(उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को लेकर à¤à¤• नई बहस शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆ है। सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ जरूरतों और विकास के लिठइसको पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ देने की टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¥‹à¤‚ में बातें होती रही हैं। राजà¥à¤¯ में बोली जाने वाली मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤: तीन बोलियों कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚नी, गढ़वाली और जौनसारी को संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में शामिल करने की बात à¤à¥€ उठती रही है। मेरा पहाड़ इस हेतॠलगातार पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करता रहा है, इन दिनों नई दिलà¥à¤²à¥€ से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ ‘जनपकà¥à¤· आजकल’ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इसे लोक à¤à¤¾à¤·à¤¾ अà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨ के रूप में चलाया जा रहा है, जिसे हम साà¤à¤¾à¤° मेरा पहाड़ में पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ कर रहे हैं। इसकी पहली कड़ी में हिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ के सà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤šà¤¿à¤¤ रचनाकार डॉ. लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ सिंह बिषà¥à¤Ÿ ‘बटरोही’ का लेख दिया जा रहा है।)
जब गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ साल पहले अलग पहाड़ी राजà¥à¤¯ के रूप में उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ का गठन किया गया तो इसकी à¤à¥Œà¤—ोलिक और सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ विशेषताओं के आधार पर राजà¥à¤¯ के कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• चà¥à¤¨à¥‡ गये। पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• इसलिठचà¥à¤¨à¥‡ जाते हैं कि राजà¥à¤¯ का अपना à¤à¤• अलग और खास चरितà¥à¤° उà¤à¤° सके। इसी आधार पर उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में राजकीय पà¥à¤·à¥à¤ª के रूप में समà¥à¤¦à¥à¤° सतह से साढ़े तीन-साढ़े चार हजार मीटर की ऊंचाई पर हिमालय के बà¥à¤—à¥à¤¯à¤¾à¤²à¥‹à¤‚ में उगने वाले दà¥à¤°à¥à¤²à¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® कमल को, राजकीय पशॠके रूप में ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर पाये जाने वाले कसà¥à¤¤à¥‚री मृग को, राजकीय पकà¥à¤·à¥€ के रूप में उसी ऊंचाई पर पाये जाने वाले मोनाल को और राजकीय वृकà¥à¤· के रूप में पांच हजार से गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ हजार फीट की ऊंचाई पर पाये जाने बà¥à¤°à¥‚ंश को चà¥à¤¨à¤¾ गया। ये सारे पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤ की बहà¥-सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पृषà¥à¤ à¤à¥‚मि के बीच à¤à¤• अलग तरह की पहाड़ी पहचान को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखकर चà¥à¤¨à¥‡ गये थे। पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥‹à¤‚ के अलावा हर राजà¥à¤¯ की अपनी राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ à¤à¥€ होती है जिसे राजà¥à¤¯ के लोगों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संपरà¥à¤• और सरकारी कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठलगातार पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— की जाने वाली à¤à¤¾à¤·à¤¾ के रूप में चà¥à¤¨à¤¾ जाता है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ हिंदी है, जो à¤à¤¾à¤°à¤¤ की राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤à¤¾à¤·à¤¾ à¤à¥€ है। पिछले साल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की à¤à¤¾à¤œà¤ªà¤¾ सरकार ने राजà¥à¤¯ की दूसरी राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ के रूप में संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ को मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ दी और इसे à¤à¤• अà¤à¥‚तपूरà¥à¤µ निरà¥à¤£à¤¯ के रूप में पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤ करते हà¥à¤ सà¤à¥€ सरकारी दफà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ और सूचना पटà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤¾à¤“ं का संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में लिखा जाना अनिवारà¥à¤¯ कर दिया।
पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• आपदा की मार à¤à¥‡à¤² रहे उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के लोगों का इस ओर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ à¤à¥€ न जाता, अगर पिछले महीने सरकार ने यहां की राजà¥à¤¯ सà¥à¤¤à¤°à¥€à¤¯ परीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं की अनिवारà¥à¤¯à¤¤à¤¾ को खतà¥à¤® न किया होता। हà¥à¤† यह था कि राजà¥à¤¯ बनने के बाद जब यहां की लोक सेवाओं के लिये पाठà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® बनाया जाने लगा, तब पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤•à¥‹à¤‚ के लिठसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की जानकारी देने के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से हर विषय में कà¥à¤› à¤à¤¸à¥‡ सवाल शामिल किये गये, जिनके जरिये पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के बारे में उनकी जानकारी का पता लग सके। मगर दो-à¤à¤• बार की परीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं के बाद दिखायी दिया कि परीकà¥à¤·à¤¾ की इस पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ से सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ यà¥à¤µà¤¾à¤“ं को कोई फायदा नहीं हà¥à¤†à¥¤ इसके पीछे शायद यह कारण रहा हो कि ये पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ सैदà¥à¤§à¤¾à¤‚तिक थे, इसलिठअधिकतर बाहर के लोग ही चà¥à¤¨à¤•à¤° आने लगे। सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ यà¥à¤µà¤¾à¤“ं ने इस पर आपतà¥à¤¤à¤¿ दरà¥à¤œ की और उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की लोकà¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को इसमें शामिल करने की मांग की। राजà¥à¤¯ लोक सेवा आयोग की परीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं में बिना विधेयक पारित किये इस तरह का बदलाव ला पाना संà¤à¤µ नहीं था, मगर यà¥à¤µà¤¾à¤“ं की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤ सूबे की à¤à¤¸à¥€ नौकरियों का à¤à¤• अलग समूह बनाया गया, जिनका संबंध आम आदमी से अधिक पड़ता है। इसे नाम दिया गया समूह ‘ग’ और इनकी परीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं को राजà¥à¤¯ लोक सेवा आयोग की परिधि से अलग रखा गया। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में अनेक लोकà¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ बोली जाती हैं, सà¤à¥€ को इसमें शामिल कर पाना न तो संà¤à¤µ था और न ही वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤•à¥¤ इसलिठसमूह ‘ग’ की परीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं के लिठकà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚नी, गढ़वाली और जौनसारी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ अनिवारà¥à¤¯ कर दिया गया।
सरकार के इस निरà¥à¤£à¤¯ का उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के मैदानी हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ में विरोध होने लगा और पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ मंतà¥à¤°à¥€ ने इसे विधानसà¤à¤¾ में चरà¥à¤šà¤¾ के लिठपेश कर दिया। यही नहीं, आवास विकास परिषद के अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· ने मà¥à¤–à¥à¤¯à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ को à¤à¥‡à¤œà¥‡ अपने पतà¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बोलियों की अनिवारà¥à¤¯à¤¤à¤¾ से सामाजिक समरसता के बिगडऩे का अंदेशा जताया। कà¥à¤› यà¥à¤µà¤¾à¤“ं ने इस निरà¥à¤£à¤¯ को राज ठाकरे के नकà¥à¤¶à¥‡-कदम पर चलने वाला बताते हà¥à¤ जगह-जगह सरकार के पà¥à¤¤à¤²à¥‡ फूंके। आखिरकार सात दिसंबर २०१० को पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के मà¥à¤–à¥à¤¯ सचिव को कहना पड़ा कि ‘शासनादेश गलत जारी हो गया था, उसे वापस लेकर आवशà¥à¤¯à¤• संशोधन के निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ दे दिये गये हैं। सरकार का यह निरà¥à¤£à¤¯ शायद पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में अकेला होगा जब कोई राजà¥à¤¯ अपने बाशिंदों से कह रहा हो कि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी जà¥à¤¬à¤¾à¤¨ बोलने की अनिवारà¥à¤¯à¤¤à¤¾ नहीं है। हालांकि पूरे देश के सà¥à¤¤à¤° पर देखें तो हालत इससे अलग नहीं है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ के किसी à¤à¥€ कोने में आप साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° दे रहे हों और आप अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ जानते हैं तो कोई वहां यह पूछने वाला नहीं है कि आपकी कोई अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾ à¤à¥€ है। यही नहीं, अगर आप अपनी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ नहीं बोल सकते या गलत बोलते हैं तो यह आपकी अयोगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ कतई नहीं मानी जायेगी और à¤à¤¸à¤¾ शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ समाज सिरà¥à¤« इसी देश में संà¤à¤µ है।
यह बात कà¥à¤› हद तक समठमें आ सकती है कि अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ के आकरà¥à¤·à¤£ और à¤à¤¾à¤°à¤¤ के बहà¥à¤à¤¾à¤·à¥€ चरितà¥à¤° के कारण पà¥à¤°à¤¾à¤‚तीय à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ का मोह न दिखायी देता हो,(हालांकि इसे कà¥à¤·à¤®à¥à¤¯ नहीं कहा जा सकता) मगर संसार की किसी à¤à¥€ जिंदा कौम में अपनी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अरà¥à¤šà¤¿ हो, à¤à¤¸à¤¾ संà¤à¤µ नहीं है। जहां तक उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ का पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ है, वहां à¤à¤• करोड़ से à¤à¥€ कम आबादी वाले कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में करीब à¤à¤• दरà¥à¤œà¤¨ à¤à¤¸à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ बोली जाती हैं, जिनकी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हिंदी में नहीं हैं। दूर-दराज के गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ इलाकों में कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚नी, गढ़वाली, जौनसारी, जौनपà¥à¤°à¥€, बà¥à¤•à¥à¤¸à¤¾, थरà¥à¤†à¤Ÿà¥€, रं (à¤à¥‹à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤¾à¤·à¤¾), राजी (वनरौतों की à¤à¤¾à¤·à¤¾) à¤à¤¾à¤·à¥€ लोग तो शताबà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से इस इलाके में रहते आ रहे हैं और वे दूसरी कोई à¤à¤¾à¤·à¤¾ नहीं जानते, हालांकि संपरà¥à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾ के रूप में वे मिली-जà¥à¤²à¥€ पहाड़ी à¤à¤¾à¤·à¤¾ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते हैं। इनके अलावा बाहर से आयी हà¥à¤ˆ जातियां हैं जिनकी निजी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं। हालांकि उनके बीच संपरà¥à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾ के रूप में हिंदी है। राजà¥à¤¯ बनने के बाद इन बोली-à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ लोगों की यह इचà¥à¤›à¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• है कि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी पहचान मिले और यह उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दूसरी राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ की पहचान के रूप में आसानी से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो सकती है। उनकी अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का हक मारकर वह अधिकार संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ को दिया जाना किसी à¤à¥€ तरह नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¸à¤‚गत नहीं कहा जा सकता। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ कà¤à¥€ à¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤ से आम लोगों की à¤à¤¾à¤·à¤¾ नहीं रही है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के लगà¤à¤— बंद समाज की à¤à¤¾à¤·à¤¾ होने का तो पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ ही नहीं है। यहां के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– तीरà¥à¤¥à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ बदरीनाथ, केदारनाथ आदि के पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚ केपà¥à¤¤ लिठबसाये गये दो-à¤à¤• गांवों को छोड़ दें तो संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ कहीं à¤à¥€ सामूहिक रूप से नहीं बोली जाती। इन गांवों में à¤à¥€ पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤à¥€ करà¥à¤® के अलावा बाकी कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठकà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का ही पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जाता है।
à¤à¤¾à¤°à¤¤ में संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का चरितà¥à¤° सांपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾ का बनता चला जा रहा है। शायद इसीलिठयह à¤à¤¾à¤œà¤ªà¤¾ के à¤à¤œà¥‡à¤‚डे में शामिल है। साहितà¥à¤¯ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ के रूप में संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ समृदà¥à¤§ ही नहीं, संसार की शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ तम à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में से à¤à¤• है, मगर आम लोगों के बीच उसकी उपयोगिता करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤‚ड की à¤à¤¾à¤·à¤¾ के रूप में रह गयी है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ जैसे विकासशील समाज के लिठकरà¥à¤®à¤•à¤¾à¤‚ड जैसे सांपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• पाठकी कà¥à¤¯à¤¾ उपयोगिता है, इसके समरà¥à¤¥à¤¨ में सिरà¥à¤« अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ तरà¥à¤• दे सकता है। जिस समाज में दो-तिहाई से अधिक लोगों को दो जून का à¤à¤°à¤ªà¥‡à¤Ÿ खाना उपलबà¥à¤§ न हो, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पंडों की à¤à¤¾à¤·à¤¾ परोसना सांपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• हिंसा नहीं तो और कà¥à¤¯à¤¾ है? यह à¤à¤• संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤¶à¥€à¤², मगर विपनà¥à¤¨ समाज के हाथों से उसके मà¥à¤‚ह का कौर छीनना कहा जायेगा। इससे बड़ी विडमà¥à¤¬à¤¨à¤¾ और कà¥à¤¯à¤¾ होगी कि जहां à¤à¤• ओर सरकार संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ को राजà¥à¤¯ की दूसरी राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ घोषित करने का विधेयक पारित कर रही है, गांव-कसà¥à¤¬à¥‹à¤‚ में कोने-कोने में अपनी पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° सामगà¥à¤°à¥€ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में परोसने का संकलà¥à¤ª दोहरा रही है, वहीं दूसरी ओर राजà¥à¤¯à¤à¤° में शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ जनता अपने मोबाइलों, ईमेल या पतà¥à¤°-पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤“ं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤• दूसरे को यह संदेश à¤à¥‡à¤œ रही है कि ‘आगामी जनगणना में अपनी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ के रूप में गढ़वाली, कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚नी, जौनसारी आदि लिखें।’ यह चेतना इन दिनों उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¤µà¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¤• विसà¥à¤«à¥‹à¤Ÿ की तरह दिखायी देने लगी है, चाहे वे कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में रहने वाले लोग हों या पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€à¥¤ यहां की à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में शामिल करने की मांग à¤à¥€ सिर उठा चà¥à¤•à¥€ है। वरà¥à¤· २००३ से २००ॠतक उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ के रूप में मैं साहितà¥à¤¯ अकादेमी का सदसà¥à¤¯ था, तब à¤à¥€ यह मांग उठायी जाती रही थी। अकादेमी का कहना था कि आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ जैसे छोटे पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की किसी à¤à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾ को शामिल करने पर विचार किया जा सकता है, संà¤à¤µ है कि इस पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ में यहां की à¤à¤• मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का उदय हो जाये, मगर यह कà¥à¤¯à¤¾ कम है कि लोगों में अपनी जड़ों से जà¥à¤¡à¤©à¥‡ का जजà¥à¤¬à¤¾ पैदा हो रहा है और यह à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ छोटी बात है कि उनमें यह विवेक पैदा हो सका है कि उनकी जड़ें संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में नहीं, लोकà¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में हैं। पिछले दिनों यही मांग संसद में सतपाल महाराज ने उठायी थी, जिसका पूरे पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में जबरà¥à¤¦à¤¸à¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤—त हà¥à¤† था। à¤à¤¾à¤œà¤ªà¤¾ के निवरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ और वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ दोनों मà¥à¤–à¥à¤¯à¤®à¤‚तà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इस मांग के रासà¥à¤¤à¥‡ में अनेक रà¥à¤•à¤¾à¤µà¤Ÿà¥‡à¤‚ डाली जाती रही हैं, मगर इसे रोक पाना संà¤à¤µ नहीं लगता। यह मांग à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ आंदोलन की शकà¥à¤² लेती जा रही है जिसका उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ मांग की पूरà¥à¤¤à¤¿ नहीं, जनजागरण है। और यही किसी सचà¥à¤šà¥‡ आंदोलन की सही शकà¥à¤² है।
राजनीतिक नजरिये से देखें तो लगता नहीं कि संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ को राजà¥à¤¯ की दूसरी राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ बना देने से सतà¥à¤¤à¤¾à¤§à¤¾à¤°à¥€ दल को कोई लाठपहà¥à¤‚च सकेगा। आम लोग इसे आधे वोट बैंक और आधे जातिबैंक के रूप में देख रहे हैं। जातिवादी गणित के हिसाब से à¤à¥€ यह घाटे का सौदा है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤à¥€ करने वाली जाति के अधिकतर लोग न केवल संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ से कट गये हैं, बलà¥à¤•à¤¿ वे अब अपने समाज के लिठà¤à¥€ उसकी कोई उपयोगिता नहीं समà¤à¤¤à¥‡à¥¤ लोगो का यह कयास à¤à¥€ अनायास नहीं है कि इसके जरिये समाज का उचà¥à¤š वरà¥à¤£ सरकारी आरकà¥à¤·à¤£ के समानानà¥à¤¤à¤° अपने लिठपिछले दरवाजे से आरकà¥à¤·à¤£ पैदा कर रहा है। पिछले दिनों उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ मà¥à¤•à¥à¤¤ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के कà¥à¤²à¤ªà¤¤à¤¿ का वकà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ था कि संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के जरिये वे धारà¥à¤®à¤¿à¤• परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ की असीम संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं पर विचार कर रहे हैं। उनके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° वे जलà¥à¤¦à¥€ ही जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·, वैदिक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ और करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤‚ड का à¤à¤• à¤à¤¾à¤°à¥€ पैकेज शà¥à¤°à¥‚ करने जा रहे हैं, जिससे यà¥à¤µà¤¾à¤“ं को जबरà¥à¤¦à¤¸à¥à¤¤ रोजगार मिलेगा। मगर कà¥à¤¯à¤¾ हिंदू-बहà¥à¤² उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ समाज में यह संà¤à¤µ हो सकेगा कि यहां की औरतें मंदिरों में पाठपढऩे के लिठगैर बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚, विशेषजà¥à¤ž रूप से दलित पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚ को दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ à¤à¥‡à¤‚ट करने का साहस जà¥à¤Ÿà¤¾ पायेंगी। à¤à¤²à¥‡ ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤‚ड में डिपà¥à¤²à¥‹à¤®à¤¾ लिया होगा। दूसरी राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ के रूप में संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ को थोपने और इसी बहाने उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के आम लोगों को अपनी जड़ों से काटने का यह सिलसिला सतà¥à¤¤à¤¾à¤§à¤¾à¤°à¥€ दल को लाठतो कà¥à¤¯à¤¾ पहà¥à¤‚चा पायेगा, कहीं à¤à¤¸à¤¾ न हो कि यह निरà¥à¤£à¤¯ उनके असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ के लिठही संकट बन जाये।
[…] ही नहीं, सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पहचान का पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बनाम वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¶à¥ˆà¤²à¤¨à¤Ÿ की कारà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤° मेंà¤à¤• […]
[…] ही नहीं, सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पहचान का पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बनाम वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¶à¥ˆà¤²à¤¨à¤Ÿ की कारà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤° मेंà¤à¤• […]
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[…] कर रहे हैं। इसकी पहली कड़ी में आप लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ सिंह बिषà¥à¤Ÿ “बटरोही’ जी का लेख , दूसरी कड़ी में बदà¥à¤°à¥€à¤¦à¤¤à¥à¤¤ कसनियाल का […]