(उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को लेकर à¤à¤• नई बहस शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆ है। सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ जरूरतों और विकास के लिठइसको पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ देने की टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¥‹à¤‚ में बातें होती रही हैं। राजà¥à¤¯ में बोली जाने वाली मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤: तीन बोलियों कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली और जौनसारी को संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में शामिल करने की बात à¤à¥€ उठती रही है। इन दिनों नई दिलà¥à¤²à¥€ से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ ‘जनपकà¥à¤· आजकल’ पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इसे लोक à¤à¤¾à¤·à¤¾ अà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨ के रूप में चलाया जा रहा है, जिसे हम साà¤à¤¾à¤° यहां पर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ कर रहे हैं। इसकी पहली कड़ी में आप लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ सिंह बिषà¥à¤Ÿ “बटरोही’ जी का लेख तथा दूसरी कड़ी में बदà¥à¤°à¥€à¤¦à¤¤à¥à¤¤ कसनियाल का लेख पॠचà¥à¤•à¥‡ हैं। इसकी तीसरी कड़ी में पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤µà¤¿à¤¦ शà¥à¤°à¥€ à¤à¤—वती पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ नौटियाल का लेख पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ है।)
काफी अरसे से यह सà¥à¤¨à¤¾ जा रहा है कि गढ़वाली à¤à¤¾à¤·à¤¾ की अपनी कोई लिपि नहीं है और यदि अपनी लिपि होती तो गढ़वाली à¤à¤¾à¤·à¤¾ को संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में बहà¥à¤¤ पहले ही सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जाता। à¤à¤¸à¤¾ नहीं है कि इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की सोच आम गढ़वाली की ही है, बलà¥à¤•à¤¿ कà¥à¤› बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤œà¥€à¤µà¥€ à¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ सोच रखते हैं और बड़ी हैरानी होती है। उनके मà¥à¤–ारविनà¥à¤¦ से इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की सोच को सà¥à¤¨à¤•à¤°à¥¤ बलà¥à¤•à¤¿ कà¤à¥€-कà¤à¥€ तो उनके इस अविवेक पर तरस à¤à¥€ आता है। कà¥à¤› वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ à¤à¤• पंजाबी सजà¥à¤œà¤¨ ने घोषित कर दिया था कि उसने गढ़वाली की लिपि बना दी है और उसके चहेतों ने उसे राजà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤² के दरबार में खड़ा करके उसको लिपि बनाने के लिठसमà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ à¤à¥€ करवा दिया था। इस पà¥à¤°à¤•à¤°à¤£ पर काफी बबाल पैदा हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने इसकी à¤à¤°à¥à¤¤à¥à¤¸à¤¨à¤¾ की। ‘अखिल गढ़वाल सà¤à¤¾â€™ के सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¤• शिषà¥à¤Ÿà¤®à¤£à¥à¤¡à¤² ततà¥à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ राजà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤² महोदय से मिला तथा इन पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लेखक और राजेनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह रावत, पूरà¥à¤µ निदेशक, à¤à¤¾à¤·à¤¾, केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ गृह मंतà¥à¤°à¤¾à¤²à¤¯, दिलà¥à¤²à¥€ ने राजà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤² के नाम खà¥à¤²à¤¾ पतà¥à¤° लिखकर यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ किया था कि लिपि बनाना निबनà¥à¤§ लिखने जैसा कारà¥à¤¯ नहीं है।
यह à¤à¤• वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ है जिसे बनाने और कारà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¿à¤¤ करने में वरà¥à¤· नहीं सदियां लगती है। à¤à¤¾à¤·à¤¾ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ और वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ ही मिल बैठकिसी à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ के लिठलिपि बनाने पर विचार-विमरà¥à¤¶ करते हैं। लिपि कला का नहीं विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का विषय है। लिपि की सारà¥à¤¥à¤•à¤¤à¤¾ पर वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक मंथन होता रहता है। मानव ने à¤à¤¾à¤·à¤¿à¤• अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को देश और काल की सीमा से मà¥à¤•à¥à¤¤ कर सारà¥à¤µà¤•à¤¾à¤²à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ सारà¥à¤µà¤à¥Œà¤®à¤¿à¤• बनाने के लिठलिपि बनायी नहीं, बलà¥à¤•à¤¿ उसका आविषà¥à¤•à¤¾à¤° किया। कोई à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ नà¥à¤¯à¥‚नाधिक रूप में किसी à¤à¥€ लिपि में लिखी जा सकती है। इस पर à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤ˆ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और धà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® à¤à¤µà¤‚ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• ढंग से वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करने के लिठपà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾-à¤à¤¾à¤·à¥€ किसी न किसी रूप में लिपि को विकसित करता है। अकà¥à¤¸à¤° यह लिपि उसे परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि कोई à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾-à¤à¤¾à¤·à¥€ डंडे की चोट पर यह नहीं कह सकता कि हमारी à¤à¤¾à¤·à¤¾ की लिपि को अमà¥à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ने बनाया है। लिपि तो à¤à¤• आविषà¥à¤•à¤¾à¤° है जो विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की अनेक वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के शà¥à¤°à¤® à¤à¤µà¤‚ गवेषणा का फल होती है। समय-समय पर इसमें यथावशà¥à¤¯à¤• परिवरà¥à¤¤à¤¨ होते रहते हैं- जैसे देवनागरी लिपि में अà¤à¥€ लगà¤à¤— ५०-६० वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ तक हम आज के अ को ई इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° लिखते थे, ण को रा इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° लिखते थे और सौ, दो सौ या पांच सौ वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ की बात करें तो देवनागरी की समसà¥à¤¤ बाराखड़ी का रूप कà¥à¤› और à¤à¥€ परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ था। आज à¤à¥€ ठको पूरà¥à¤µ वाले अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ दोनों ही रूपों में लिखा जा रहा है। इस पर कोई à¤à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ या à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤µà¤¿à¤¦à¥ यह नहीं कह सकता कि यह ई इस अ में कब और किसके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ हà¥à¤† और यह रा इस ण में। अत: कहना होगा कि वैदिक ऋचाओं को अपने में समेटते हà¥à¤ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में जिस लिपि में संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤, पाली, पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ वाङमय के अतिरिकà¥à¤¤ उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ की अधिकांश à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में मामूली से लिपà¥à¤¯à¤¾à¤‚तर के साथ गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€, बंगाली, असमिया, उडिय़ा और गà¥à¤°à¤®à¥à¤–ी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में साहितà¥à¤¯ का सृजन हो रहा है, विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ विषयों की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ लिखी जा रही है, बीà¤, à¤à¤®à¤, की पढ़ाई हो रही है- वह देवनागरी लिपि ही है, कोई अनà¥à¤¯ नहीं और इस लिपि को सैकड़ों वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¥€ लिपि से ही पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया गया है।
देवनागरी लिपि का मूल बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¥€ लिपि है जो à¤à¤¾à¤°à¤¤ की अपनी लिपि थी। इस समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ में ‘Story of Indian scripts’ में डॉ. बीà¤à¤¸ अगà¥à¤°à¤µà¤¾à¤² ने लिखा है "It is a fact universally recognied that Devnagri is the direct desecendant of the ancient Brahmi script which was the National alphabet of India." विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने बड़ी वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• खोजबीन के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ लिपि विकास के सोपान निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ किठहैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गहनता के साथ मानवीय उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ की अधिक से अधिक धà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ करके à¤à¤• सरà¥à¤µà¤¾à¤‚गींण लिपि का विकास किया था। इतना ही नहीं उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने धà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर चिनà¥à¤¤à¤¨ करके उसे à¤à¤• विशेष शासà¥à¤¤à¥à¤° के रूप में वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ किया जिसे वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ कहा गया। इस कारà¥à¤¯ में à¤à¤¾à¤°à¤¤ की कितनी पीढ़ी गà¥à¤œà¤°à¥€à¤‚, कहना कठिन है पर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पाणिनी ने à¤à¤¸à¥‡ अनेक पूरà¥à¤µà¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का सà¥à¤®à¤°à¤£ किया है जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने नागरी लिपि और वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ को वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ दी। आज समसà¥à¤¤ विशà¥à¤µ इन महान à¤à¤¾à¤·à¤¾ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ और वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का ऋण सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करता है कि लिपि विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ और वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की आधारशिला à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ ने ही रखी थी (It is a common place of linguistics to acknowledge thee that we owe to Indian Grammarians- Prof. Perth “Introduction to the Devnagri scriptâ€) देवनागरी लिपि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे सà¥à¤µà¤° à¤à¤µà¤‚ वà¥à¤¯à¤‚जनों में विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ किया गया है। इसमें सेमेटिक à¤à¤µà¤‚ रोमन लिपि की अपेकà¥à¤·à¤¾ आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° सà¥à¤µà¤°à¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। सà¥à¤µà¤°à¥‹à¤‚ की कमी के कारण ही अनà¥à¤¯ लिपियां नितांत अवैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• बन गई हैं जिसके परिणामसà¥à¤µà¤°à¥‚प उनके माधà¥à¤¯à¤® से विविध à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को लिखना समà¥à¤à¤µ नहीं है। नागरी (देवनागरी) लिपि की दूसरी विशिषà¥à¤Ÿà¤¤à¤¾ यह है कि इसके वरà¥à¤£à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ और उनके लेखन में अनà¥à¤¤à¤° नहीं है जब कि रोमन लिपि में बोला कà¥à¤› जाता है और लिखा कà¥à¤› जाता है। जैसे Talk (टालà¥à¤•), और बोला जाता है- ’टाक’। धà¥à¤µà¤¨à¤¿ सामंजसà¥à¤¯ में à¤à¥€ अनà¥à¤¤à¤° है- U (यू) की धà¥à¤µà¤¨à¤¿ कहीं अ है तो कहीं ऊ, जैसे But और Put और à¤à¤¸à¥‡ अनेक उदाहरण पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किठजा सकते हैं। जबकि देवनागरी के वरà¥à¤£ उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सजे हà¥à¤ हैं जैसे- कंठ, तालà¥, मूरà¥à¤§à¤¾, दनà¥à¤¤, ओषà¥à¤ आदि। यही कारण है कि इस लिपि में जो बोला जाता है वही लिखा à¤à¥€ जाता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इसके उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मà¥à¤– में निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ हैं। विशà¥à¤µ की अनà¥à¤¯ किसी लिपि में यह सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ नहीं है, और à¤à¤• आज के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ हैं जो रट लगाठहà¥à¤ हैं कि गढ़वाली à¤à¤¾à¤·à¤¾ को संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तà¤à¥€ समà¥à¤à¤µ हो सकेगा जब उसकी अपनी लिपि होगी-कितनी à¤à¥à¤°à¤¾à¤®à¤• और अविवेकी है यह सोच?
संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को शामिल करने के लिठà¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संविधान में कोई मानदणà¥à¤¡ निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ नहीं है। संविधान लागू होने के बाद जितनी à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ इस अनà¥à¤¸à¥‚ची में शामिल की गई हैं उनके पीछे मातà¥à¤° राजनैतिक कारण रहे हैं। जिस राजà¥à¤¯ में जितना दम था और जिस à¤à¤¾à¤·à¤¾ को बोलने वालों में जितना दम था उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी-अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को इस सूची में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ करवा दिया। उदाहरणत: नेपाली à¤à¤¾à¤·à¤¾à¥¤ यह à¤à¤¾à¤·à¤¾ तो à¤à¤¾à¤°à¤¤ के किसी à¤à¥€ राजà¥à¤¯ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ नहीं है फिर à¤à¥€ यह à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इस à¤à¤¾à¤·à¤¾ के बोलने वालों की à¤à¤¾à¤°à¤¤ के नागरिक के रूप में à¤à¤• बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ है। इसी कड़ी में बात आती है à¤à¥‹à¤œà¤ªà¥à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ की जो बिहार राजà¥à¤¯ के à¤à¤• संà¤à¤¾à¤— में बोली जाती है। इस à¤à¤¾à¤·à¤¾ के बोलने वालों ने अपनी राजà¥à¤¯ सरकार पर दबाव बनाया और राजà¥à¤¯ सरकार के अनà¥à¤°à¥‹à¤§ पर उसे इस सूची में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ कर दिया गया। अब बात आती है लिपि की। अब तक संविधान की जितनी à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ (समà¥à¤à¤µà¤¤: २३ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚) आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ की गई हैं उनमें से संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤, हिनà¥à¤¦à¥€, नेपाली, मराठी, डोगरी, बोडो, मैथली, संथाली और à¤à¥‹à¤œà¤ªà¥à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं की लिपि देवनागरी है। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ के २ॠराजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में से हिमाचल, हरियाणा, राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨, दिलà¥à¤²à¥€, उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶, बिहार, मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶, à¤à¤¾à¤°à¤–णà¥à¤¡, छतà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤—ढ़ और उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ है जिसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। उपरोकà¥à¤¤ दोनों सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¤²à¥€-à¤à¤¾à¤‚ति समठलेने के बात उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ लिपि को लेकर जिस à¤à¥à¤°à¤® को पाले हà¥à¤ उसे जितनी जलà¥à¤¦à¥€ हो सके अपने मन-मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• से निकाल बाहर करें। गढ़वाली और कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ होने का आधा मारà¥à¤— तो साहितà¥à¤¯ अकादमी, दिलà¥à¤²à¥€ ने सà¥à¤²à¤ कर दिया है, इन दोनों à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के साहितà¥à¤¯ को समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ करके। साहितà¥à¤¯ अकादमी à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार की à¤à¤• सà¥à¤µà¤¾à¤¯à¤¤à¥à¤¤ संसà¥à¤¥à¤¾ है जिसकी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ १९५२ में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में साहितà¥à¤¯ लेखन को पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ करने के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से की गई थी। इसी सिलसिले में वरà¥à¤· २०१० में साहितà¥à¤¯ अकादमी ने गढ़वाली और कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ दोनों à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को अनà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के समान ही मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कर दी है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार जब à¤à¥€ किसी à¤à¤¾à¤·à¤¾ को अषà¥à¤Ÿà¤® अनà¥à¤¸à¥‚ची में शामिल करने पर विचार करती है तब अनà¥à¤¯ बातों के साथ-साथ यह à¤à¥€ देखा जाता है कि कà¥à¤¯à¤¾ उस à¤à¤¾à¤·à¤¾ के साहितà¥à¤¯ को साहितà¥à¤¯ अकादमी ने मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ दी हà¥à¤ˆ है। अब यह उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के विदà¥à¤µà¤¤à¤µà¤°à¥à¤— पर निरà¥à¤à¤° करता है कि कितनी जलà¥à¤¦à¥€ वो अपनी राजà¥à¤¯ सरकार पर यह दबाव बनाने में समरà¥à¤¥ होते हैं कि राजà¥à¤¯ सरकार इन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ दिलाने के लिठà¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार के गृह मंतà¥à¤°à¤¾à¤²à¤¯ का दरवाजा खटखटाà¤à¥¤
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Mera Phad,
Namaskar,
Bahut hi chintaniy our aashcharya ki bat hai ki NAPALI hamare DESH ki BHASHA hai our AATHVI ANUSUCHI me SHAMIL hai per hamari matra bhasha KUMAUNI, GADHWALI, JONSHARI nahi jabki inki LIPI DEVONAGRI hai…………………………..
Jaunsari does have unique scipt used by thier people, which has stark similarity to ‘Kosher’…. and Bhatakshri which is used in Himachal and J&K…(though these are not so popular)…its lost in time
Nice uttrakhand