(उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को लेकर à¤à¤• नई बहस शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆ है। सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ जरूरतों और विकास के लिठइसको पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ देने की टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¥‹à¤‚ में बातें होती रही हैं। राजà¥à¤¯ में बोली जाने वाली मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤: तीन बोलियों कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली और जौनसारी को संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में शामिल करने की बात à¤à¥€ उठती रही है। इन दिनों नई दिलà¥à¤²à¥€ से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ ‘जनपकà¥à¤· आजकल’ पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इसे लोक à¤à¤¾à¤·à¤¾ अà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨ के रूप में चलाया जा रहा है, जिसे हम साà¤à¤¾à¤° यहां पर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ कर रहे हैं। इसकी पहली कड़ी में आप लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ सिंह बिषà¥à¤Ÿ “बटरोही’ जी का लेख पड़ चà¥à¤•à¥‡ हैं, इसी कà¥à¤°à¤® में वरिषà¥à¤ पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¤µà¤‚ ‘आज का पहाड़’ पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ के संपादक बदà¥à¤°à¥€à¤¦à¤¤à¥à¤¤ कसनियाल का लेख पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ है।)
राजà¥à¤¯ बनने के बाद उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की सरकारों ने जिन बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ पहलà¥à¤“ं की उपेकà¥à¤·à¤¾ कर राजà¥à¤¯ की पृथक पहचान बनने से रोका है उनमें से उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हैं। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ समाज में सरकारों ने जब à¤à¤¾à¤·à¤¾ के सवाल उठाठहै तब दरà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को सामने रखकर बात की है, जिनके बोलने वाले राजà¥à¤¯ में पिछले पचास वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में आकर बसे हैं और इसकी आड़ में पिछले तीन हजार वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से बोली जाने वाली उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ समाज की à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं की पूरी तरह उपेकà¥à¤·à¤¾ की है। इसी कारण आज उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ समाज की पृथक पहचान का कोई खाका उà¤à¤°à¤¤à¤¾ हà¥à¤† नहीं दिखता, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पहाड़ी समाज की सारी पहचान इसी à¤à¤¾à¤·à¤¾ की चाबी में छà¥à¤ªà¥€ हà¥à¤ˆ हैं।
उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में मूल रूप से गढ़वाली, कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, जौनसारी के अलावा आधा दरà¥à¤œà¤¨ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ बोली जाती हैं। इन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के कई सà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤¤ हैं। इणà¥à¤¡à¥‹ आरà¥à¤¯à¤¨, इणà¥à¤¡à¥‹ तिबà¥à¤¬à¤¤à¥€ तथा दरद परिवार की मधà¥à¤¯ पहाड़ी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ इनमें पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हैं। इनमें से कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली तथा जौनसारी राजà¥à¤¯ में बहà¥à¤¸à¤‚खà¥à¤¯ लोग बोलते हैं। à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤µà¤¿à¤¦à¥ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ सौर सेनी पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ परिवार में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ करते हैं। उनका मानना है कि कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली और जौनसारी के साथ ही हिमाचल, कशà¥à¤®à¥€à¤° तथा पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ नेपाल के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में बोली जाने वाली à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ पहाड़ी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ हैं। दरद पहाड़ी उप परिवार की मधà¥à¤¯ पहाड़ी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं की शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में आती है। इस तरह वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली और जौनसारी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का उदय उसी मूल à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं समूह से हà¥à¤† है जिससे राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€, बà¥à¤‚देली, अवधी, à¤à¥‹à¤œà¤ªà¥à¤°à¥€ या उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ की अनà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का हà¥à¤† है।
लेकिन उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली और जौनसारी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में à¤à¤• विशिषà¥à¤Ÿà¤¤à¤¾ है। पूरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ के उदà¥à¤à¤µ तथा उसके विखंडन के समय से à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की मूल à¤à¤¾à¤·à¤¾ परिवार के रूप में बोली जाने वाली ये à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ अपने तीन हजार वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के कालकà¥à¤°à¤® में हजारों गैर आरà¥à¤¯ या गैर संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ परिवार के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ को अपने आप में समाती गई हैं। à¤à¤¾à¤·à¤¾ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ का कहना है कि उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में न केवल आरà¥à¤¯ मूल के खसों की आमद रही है, बलà¥à¤•à¤¿ कोल, किरात, यकà¥à¤·, शक, किनà¥à¤¨à¤°, गनà¥à¤§à¤°à¥à¤µ, नाग, कà¥à¤²à¥€à¤¨à¥à¤¦ तथा हूंण सà¤à¥€ वंश पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की आमद à¤à¥€ रही। खश आकà¥à¤°à¤®à¤£à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने यहां पर जिन लोगों को हराकर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया, उनमें कोल और किरात वंश के मूल के लोग थे जिनकी à¤à¤¾à¤·à¤¾ तमिल परिवार के à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं से और बड़े सà¥à¤¤à¤° पर निगà¥à¤°à¥‹ परिवार की à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं से मेल खाती थी। à¤à¤¾à¤·à¤¾ पर शोधकरà¥à¤¤à¤¾à¤“ं ने कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली और जौनसारी में आज à¤à¥€ निगà¥à¤°à¥‹ परिवार की इन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का होना सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर दिया है। à¤à¤¸à¤¾ सौर सेनी पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ परिवार की अनà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में कम देखने को मिलता है। इतिहास और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से हिमालय का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° देश की मà¥à¤–à¥à¤¯à¤§à¤¾à¤°à¤¾ से पूरी तरह अलग रहा। अà¤à¥€ सौ साल पहले तक कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ और गढ़वाल के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° तिबà¥à¤¬à¤¤ की ओर अधिक खà¥à¤²à¥‡ हà¥à¤¯à¥‡ थे, मà¥à¤–à¥à¤¯à¤§à¤¾à¤°à¤¾ की ओर कम। इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤¯à¤¾ तिबà¥à¤¬à¤¤ से ही होता रहा और तिबà¥à¤¬à¤¤à¥€ समाज के साथ पहाड़ी समाज का सà¥à¤¬à¤¹-शाम का साथ रहा, जिसके पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ आज à¤à¥€ कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली और जौनसारी à¤à¤¾à¤·à¤¾ के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के रूप में पà¥à¤°à¤šà¥à¤›à¤¨à¥à¤¨ रूप से पà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ किये जाते हैं। इसी तरह उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ का हिमाचल तथा नेपाल से à¤à¥€ सामाजिक संबंध बना रहा, जिसका असर आज पूरà¥à¤µà¥€ कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ तथा जौनसारी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में साफ दिखता है। à¤à¤¾à¤·à¤¾ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ का यह à¤à¥€ मानना है कि मà¥à¤–à¥à¤¯à¤§à¤¾à¤°à¤¾ से सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• अलगाव के समय हिमालय कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में जिन दरद पहाड़ी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ था, उनमें कई पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ की à¤à¥€ रचना की गई जो कि आज à¤à¥€ सà¥à¤²à¤ हैं। जैसे पेशाची à¤à¤¾à¤·à¤¾, जिसमें गà¥à¤£à¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लिखा गया गà¥à¤°à¤‚थ पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ पर ही आधारित है। बृहतà¥à¤•à¤¥à¤¾ नामक इस गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ को कई पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤•à¤¾à¤² में कई à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में अनà¥à¤¦à¤¿à¤¤ किया गया है। à¤à¤¾à¤·à¤¾ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ का मानना है कि इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गढ़वाली à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के दरद परिवार की à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं की समूह की होने का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बाद में इणà¥à¤¡à¥‹ आरà¥à¤¯ परिवार की à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं ने पीछे धकेल दिया, पर आज à¤à¥€ लà¥à¤¹à¤¾à¤£à¥à¤¡à¤¾, कशà¥à¤®à¥€à¤°à¥€, सिना, गिलगित, खोआर, चितà¥à¤°à¤¾à¤² तथा कई कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में ये à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ अधिकांशत: कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गढ़वाली के कà¥à¤› शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के रूप में मौजूद हैं। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤•à¤¾à¤² के à¤à¤¾à¤·à¤¾ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤§à¤° ने कई देशों का वरà¥à¤£à¤¨ किया है, जो ये पेशाची à¤à¤¾à¤·à¤¾ बोलते थे इनमें पांडव पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ à¤à¥€ है जिसका संबंध विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के पहाड़ों से जोड़ा है।
उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में इतिहास पर बहà¥à¤¤ कम अनà¥à¤µà¥‡à¤·à¤£ हà¥à¤ हैं। तामà¥à¤°à¤ªà¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ और पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ बहियों के आधार पर जो à¤à¥€ शोध कारà¥à¤¯ हà¥à¤¯à¥‡ हैं, उनसे सिरà¥à¤« पिछले पांच सौ या हजार वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में मà¥à¤–à¥à¤¯à¤§à¤¾à¤°à¤¾ के राजाओं, विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के आगमन तथा उनकी सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के फलने-फूलने के ही पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ मिलते हैं। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में आज à¤à¥€ कोई à¤à¤¸à¤¾ शोध नहीं हो पाया है जिससे इस समाज की हजार वरà¥à¤· की पूरà¥à¤µ से सामाजिक इतिहास का पता चल सके। यदि महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ का लेखक उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में खसों, दरदों, किरातों, तंगड़ों की सेना का होना लिखता है और अरà¥à¤œà¥à¤¨ को हिमालय के किरात के समà¥à¤®à¥à¤– अपने गांडीव की शकà¥à¤¤à¤¿ कà¥à¤·à¥€à¤£ लगती है तो हिमालय में इन जातियों के पà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¥à¤µ से इनकार नहीं किया जा सकता। विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ समयों पर उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ और हिमालय के इतिहास में इन विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ जातीय समूहों के पà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¥à¤µ की चाबी सिरà¥à¤« कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚नी, गढ़वाली और जौनसारी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में है जिनमें से à¤à¤•-à¤à¤• शबà¥à¤¦ à¤à¤•-à¤à¤• दौर के इतिहास की रहसà¥à¤¯ की गà¥à¤¤à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ खोल सकता है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की इन तीन मूल à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के साथ सबसे बड़ी चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ यह है कि पिछले तीन हजार वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में लमà¥à¤¬à¥‡ समय तक à¤à¤• संगठित राजनीतिक इकाई न रहने के कारण यहां की à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ अलग-अलग धà¥à¤µà¤¨à¤¿ समूहों में बंट गई हैं। आज जौनसारी के छह, गढ़वाली-कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ में à¤à¤• दरà¥à¤œà¤¨ से अधिक विविधताà¤à¤‚ हैं। हर दस किलोमीटर के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में à¤à¤¾à¤·à¤¾ के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के धà¥à¤µà¤¨à¤¿ उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ अलग हो जाता है। दूसरी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ का उस पर असर दिखता है। à¤à¤• राजनीति इकाई न होने के कारण कà¤à¥€ à¤à¥€ समगà¥à¤° रूप से इन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के मानकीकरण का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ नहीं किया गया। मधà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤² की राजसतà¥à¤¤à¤¾à¤“ं ने अपनी विलासिता के चलते इस तरफ कà¤à¥€ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ नहीं दिया जिससे उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के समाज में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥€ विविधता दिखती है और पूरे राजà¥à¤¯ की à¤à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾ न होने के कारण सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ के पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ का जोश कà¥à¤› समय बाद बंटकर कà¥à¤·à¥€à¤£ हो जाता है। अब चूंकि उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ à¤à¤• राजनीतिक इकाई बन गया है इसलिठइस राजà¥à¤¯ को अपनी सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पहचान की जड़ें à¤à¤¾à¤·à¤¾ और सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• परंपराओं में खोजनी चाहिठऔर इस सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पहचान में समगà¥à¤°à¤¤à¤¾ के ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ को संचित तथा विकसित किया जाना चाहिà¤à¥¤
आज कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गढ़वाली à¤à¤¾à¤·à¤¾ बोलने वालों की संखà¥à¤¯à¤¾ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की à¤à¤• करोड़ से अधिक की आबादी में पचास लाख से अधिक नही हैं। जबकि जौनसारी à¤à¤¾à¤·à¤¾ लगà¤à¤— à¤à¤• लाख लोग ही बोलते हैं। पिछले दशकों की जनगणना की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की इन मूल à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को बोलने वालों की संखà¥à¤¯à¤¾ लगातार घट रही है। लगातार पहाड़ों से महानगरों की ओर पलायन हो रहा है और पलायन के साथ ही अपनी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली लोग अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के लिये कम, फैशन के लिये अधिक बोलते हैं। आज जरूरत इस बात की है कि इन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ की विवेचना की जाये, उनके पीछे छिपे हà¥à¤¯à¥‡ à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ का पता लगाने के लिये शोध किया जाये। कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गढ़वाली में जो मूल शबà¥à¤¦, धà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚, उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ à¤à¤µà¤‚ अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ गायब होकर नकली सà¥à¤µà¤°à¥‚प गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर रही हैं उसे रोका जाà¤à¥¤ जब तक उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ समाज à¤à¤¾à¤·à¤¾ के माधà¥à¤¯à¤® से सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पहचान सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने की दिशा में पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ नहीं करेगा तब तक कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚नी, गढ़वाली, जौनसारी और थारू, बोकà¥à¤¸à¤¾, रंग तथा राजी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का उतà¥à¤¥à¤¾à¤¨ नहीं हो सकता।
à¤à¤• और मà¥à¤–à¥à¤¯ जरूरत इन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• रूप से समृदà¥à¤§ करने की à¤à¥€ है। यह आवशà¥à¤¯à¤¤à¤¾ न केवल गढ़वाली, कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और जौनसारी के मानक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ माने जाने वाली à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में है, बलà¥à¤•à¤¿ पूरी उपबोलियों में है। जैसे गढ़वाल में शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—रीय, सैलानी, बधानी, लोबिया, मटियानी, नागपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾, रांठी, रंवाई, गंगाड़ी, चांदपà¥à¤°à¥€ तथा जाड़ी उपबोलियों तथा कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ में खसपरजीया, दनपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾, फलदाकोटी, कà¥à¤®à¤‡à¤¯à¤¾à¤‚, सौरीयाली, जौहारी, दरमियां, पछांई, गंगोली, सेराली, चौगड़खिया तथा à¤à¤¾à¤¬à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• साहितà¥à¤¯ सजृन की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में जबकि कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली की किसी à¤à¤• उपबोली में किये जा रहे साहितà¥à¤¯à¤• सरà¥à¤œà¤¨ को पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ नहीं मिल रहा है, तब इन उपà¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का à¤à¤²à¤¾ कब होगा। लेकिन सारी सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पहचान की चाबी उन शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में ही है जो इन उपà¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में अलग-अगल रूप से उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤ किये जाते हैं और अपने उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ में पूरा सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• इतिहास समेटे रहते हैं।
pahale kya koi apni bhasha rahi hogi uttarakhand ki.
[…] कला नहीं विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ है- à¤à¤• आविषà¥à¤•à¤¾à¤° हैà¤à¤¾à¤·à¤¾ ही नहीं, सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पहचान का पà¥à¤°à¤¶…सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बनाम वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¶à¥ˆà¤²à¤¨à¤Ÿ की […]