अशोक मल्ल उत्तराखण्डी सिनेमा का एक जाना माना नाम है। उत्तराखण्डी सिनेमा के शुरुआत से वर्तमान तक अशोक मल्ल ने जो तपस्या की, वह अतुलनीय है। 17 अक्टूबर, 1958 को पिथौरागढ के धपड़पट्टा में श्री मोहन सिंह मल्ल और श्रीमती चन्द्रकला देवी जी के घर में इनका जन्म हुआ। मिशन इण्टर कालेज, पिथौरागढ से इण्टर करने के बाद इन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय से एम०ए० किया और उसके बाद फौज में भरती हो गये। पैरा रेजीमेण्ट में दो साल काम करने के बाद इन्होंने नौकरी छोड़ दी और अभिनय में रुचि के चलते मुम्बई का रुख किया। अशोक जी को बचपन से ही अभिनय में रुचि थी, वह स्कूल कालेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों को हिस्सा लेते रहते थे। दिनांक 9 दिसम्बर, 1991 को इनका विवाह श्रीमती राजलक्ष्मी मल्ल जी से हुआ और इनकी एक पुत्री है।
1980 से इनके फिल्मी सफर की शुरुआत हुई, उसी दौर में इनकी मुलाकात श्री चरण सिंह चौहान से हुई, जिनको मुम्बई में उत्तराखण्डी सिनेमा का भीष्म पितामह कहा जाता है, उनके साथ ही इन्होंने अपने आप को उत्तराखण्डी सिनेमा के लिये समर्पित कर दिया। इन्हॊंने शुरु में “कभी सुख, कभी दुःख” फिल्म में काम किया, जिसके निर्माता श्री बी०के० नौडियाल थे। इन्होंने घरजवें फिल्म में निर्देशक चरण सिंह चौहान जी के एसिस्टेंट के रुप में काम किया, किसी कारणवश चौहान जी इस फिल्म से अलग हो गये, फिर चौहान जी ने “कौथिग” फिल्म की शुरुआत की, जिसमें अशोक मल्ल ने मुख्य भूमिका निभाई। पहली कुमाऊनी फिल्म “मेघा आ” में अशोक मल्ल ने खलनायक गंगा सिंह की भूमिका निभाई। इसके बाद जब वीडियो फिल्मों का चलन बढा तो अशोक मल्ल ने बंटवारु, चक्रचाल, मेरी गंगा होली त मैमू आली आदि अनेक फिल्मों में भी काम किया। इसके अलावा अशोक मल्ल ने हिन्दी फिल्मों में भी काम किया, जिसमें करिये क्षमा में यादगार भूमिका निभाई। कालान्तर में अशोक मल्ल ने अपना प्रोडक्शन “राज फिल्मस” के नाम से शुरु किया और कई वीडियो फिल्में बनाई, जिसमें पिठें के लाज और हरि दर्शन प्रमुख हैं, इसके अलावा “चो चम्म, चका चम्म” नाम से मे एल्बम भी निकाला। अशोक जी हमेशा उत्तराखण्डी सिनेमा के लिये चिन्तित रहते थे और लोगों को फिल्म बनाने को प्रेरित करते रहते थे, इसी कड़ी में उन्होंने मुम्बई के प्रसिद्ध उद्यमी माधवानन्द भट्ट जी को फिल्मों के निर्माण के लिये प्रोत्साहित किया, जिसके फलस्वरुप उन्होंने 70 एम०एम० की पहली उत्तराखण्डी फिल्म “सिपैजी” का निर्माण किया। कुछ समय पूर्व आई चर्चित फिल्म “गोपी भीना” का भी निर्देशन अशोक जी ने किया था।
इसके अलावा अशोक जी को प्रकृति से बहुत प्रेम था, उन्होंने 1992 में अपने एक साथी के साथ मुम्बई के कोलाबा में एक बाटिनिकल गार्डन का निर्माण किया और वहां पर विविध प्रजातियों के पेड़ पौधे लगाये, गार्डन के पेड़-पौधों को अपनी सन्तानों की तरह प्रेम करते थे। अशोक मल्ल जी भले ही मुम्बई में बस गये थे, लेकिन पहाड़ उनके दिलोदिमाग में हमेशा रचा-बसा रहा। वह हमेशा पहाड़ी में बात करते थे, मुम्बई के पहाड़ी समाज के सांस्कृतिक कार्यों में हमेशा उनकी उल्लेखनीय भूमिका रही, पहाड़ के अनेक कलाकारों को उन्होंने मुम्बई में बुलवाकर मंच प्रदान किया। इसके अलावा अशोक जी पहाड़ी खान-पान के लिये भी बहुत जागरुक रहते थे, वह रविवार को खुद पहाड़ी खाना बनाते थे और उसकी फोटो सोशल मीडिया में डालकर और लोगों को भी पहाड़ी भोजन के लिये प्रेरित करते थे।
इसके अलावा अपने व्यक्तिगत जीवन में अशोक मल्ल जी बहुत ही धार्मिक व्यक्ति थे, वह फोन पर अपना उद्बोधन हमेशा हरिओम से ही शुरु करते थे, इतनी उपलब्धियों के बाद भी गुरुर नाम की कोई चीज उनकी शख्सियत को छू भी नहीं सकी, वह बहुत ही जमीनी व्यक्ति थे, उत्तराखण्ड से मुम्बई गये हर व्यक्ति के वह मेजबान हो जाते थे। उनका मयालु स्वभाव हमेशा याद रहेगा, मेरा पहाड़ डाट काम के शुरुआती दिनों में वह हमारे मार्गदर्शक बने, क्योंकि वह बहुत ही सहज और सरल व्यक्तित्व, पहाड़ को दिल से जीने वाले वयक्ति थे, क्रूर काल ने उनको असमय ही हमसे छीन लिया, दिनांक 8 जुलाई, 2020 को उनका देहावसान हो गया, उत्तराखण्डी सिनेमा को अपनी निश्छल मुस्कान से मयालु बनाये रखने वाला महानायक सबको रोता हुआ छोड़ गया।
It’s good though
अशोक दा एक महान कलाकार और उत्तराखंड प्रेमी थे, बहुत ही डाउन टू अर्थ व्यक्तित्व था उनका, सादर नमन एवं श्रध्दांजलि।
Ashok Mall ji is also known as Uttarakhandi RAJNIKANT in hilywood
उत्तराखण्ड के लिए यह समय विपत्ति का चल रहा है। कुछ समय के अन्तराल में हमने अपने अनेक विभूतियों को खोया है। रोज कोई न कोई दु:खद सामाचार मिल रहा है। प्रार्थना 🙏 करता हूँ।
अशोक दा पहाड़ के सच्चे प्रतिनिधि थे। माया नगरी का वास किन्तु, पहाड़ी व्यंजन विधि सहित फेसबुक में अपलोड करते थे। पहाड़ को उन्होंने एक सच्चा प्रतिनिधित्व किया। उनके जाने की क्षति कभी पूरी नहीं हो सकती। उनका कोलाबा गार्डन और जिसमे अनेकों वनस्पतियां…..एक ऋषि तुल्य हिमालय वासी आज हमने खो दिया।
अदाकारी और निर्देशन तो जैसे जन्मजात थी उनमें, उनके सहकर्मियों और जिनको भी उनका सानिध्य मिला उन्होंने एक दार्शनिक, कलाकार, पर्यावरणविद्, समाज सेवक, बड़ा भाई और एक सक्षम संरक्षक भी खो दिया
ओह…. वो चले गया।
ओम् शान्ति !!!!
एक अपूर्णीय क्षति है ये।। मेरा उनसे हालांकि व्यक्तिगत रूप से संपर्क नही हुआ, मेरपहाड़ फोरम के माध्यम और फेसबुक पोस्ट के संदर्भ में उनसे दो एक बार फोन पर बात हुई। बहुत ही आत्मीयता से बात की उन्होंने जैसे कि कितना पुराना परिचय हो।। ऐसी सोच और विचारधारा बिरलों में होती है।। दुखी हृदय से श्रधांजलि देता हूँ।