उदà¥à¤¯à¤®à¤¶à¥€à¤²à¤¤à¤¾ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ नाम है तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी जी का, पिथौरागॠजिले के नौलरा गांव में १९१९ में à¤à¥‹à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ शà¥à¤°à¥€ खीम सिंह रावत और सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ रावत के घर पर उनका जनà¥à¤® हà¥à¤†à¥¤ परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° की à¤à¥‹à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ जनजाति का साग-सबà¥à¤œà¥€ से हरा-à¤à¤°à¤¾ यह छोटा सा गांव उनका असà¥à¤¥à¤¾à¤ˆ आवास था, जहां ऊन धोने, सà¥à¤–ाने, तकà¥à¤“ं पर कातने तथा ऊनी वसà¥à¤¤à¥à¤° बà¥à¤¨à¤¨à¥‡ में महिलायें वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ रहती थीं। तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी का शैशव à¤à¤¸à¥‡ ही वातावरण में बीता, मातà¥à¤° पांच साल की उमà¥à¤° में à¤à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€ के पिता और à¤à¤¾à¤ˆ का देहानà¥à¤¤ हो गया। अतः मां-बेटी इस असहाय सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में à¤à¤• दूसरे के सहारे जीने लगीं।
मां ने तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी को पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ दिलाई, यह ’माइगà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤¨â€™ वाला सà¥à¤•à¥‚ल था, समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को इसके बाद अलà¥à¤®à¥‹à¥œà¤¾ या पिथौरागॠà¤à¥‡à¤œà¤¤à¥‡ थे। किनà¥à¤¤à¥ पितृविहीन तà¥à¤²à¤¸à¥€ आगे न पॠपाई। इसी बीच तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी की मां १९४० में अपने à¤à¤¤à¥€à¤œà¥‡ के पास गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¦à¤® चलीं आईं और १९४३ में à¤à¤• संà¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ परिवार के दीवान सिंह राणा के साथ तà¥à¤²à¤¸à¥€ का विवाह हà¥à¤†à¥¤ इसके बाद इनका जीवनाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ नये ढंग से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ हà¥à¤†, किनà¥à¤¤à¥ १ॠवरà¥à¤· की आयॠमें ही तà¥à¤²à¤¸à¥€ को वैधवà¥à¤¯ की मार à¤à¥‡à¤²à¤¨à¥€ पड़ी। इनके ससà¥à¤°à¤¾à¤² वालों ने परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° उनका विवाह उनके देवर से करना चाहा, किनà¥à¤¤à¥ तà¥à¤²à¤¸à¥€ ने इसे घृणासà¥à¤ªà¤¦ समà¤à¤¾à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इसका विरोध किया और समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ को तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर अपनी मां के पास लौट आईं।
तà¥à¤²à¤¸à¥€ अपनी विपतà¥à¤¤à¤¿ से जूà¤à¤¤à¥€ हà¥à¤ˆ अपने ऊनी कारोबार में करà¥à¤®à¤ ता से जà¥à¤Ÿ गई, किनà¥à¤¤à¥ वह और à¤à¥€ कà¥à¤› करना चाहती थीं। इनके à¤à¤• चचेरे à¤à¤¾à¤ˆ कांगेसी कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ थे, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चाय बागान की कà¥à¤› à¤à¥‚मि तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी को दान में दे दी, जब चाय बगान खतà¥à¤® हà¥à¤¯à¥‡ तो तीन नाली à¤à¥‚मि लीज पर तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी के नाम पर कर दी। तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी ने उस जमीन पर अपना घर बनाया और अपनी आजीविका के पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§ करने लगीं।
१९४६ में कौसानी में महातà¥à¤®à¤¾ गांधी की शिषà¥à¤¯à¤¾ सरला बहन ने महिलाओं के लिये à¤à¤• संसà¥à¤¥à¤¾ लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ आशà¥à¤°à¤® खोली, तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी सरला बहन के समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• में आई। जà¥à¤à¤¾à¤°à¥ और चिंतनशील तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी ने सोचा कि अपनी à¤à¥‚मि केवल वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त सà¥à¤– के लिये ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ उपयोग की जाय। अतः मन में आशà¥à¤°à¤® से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ लेकर इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने १९५२ में इस à¤à¥‚मि पर कताई-बà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ केनà¥à¤¦à¥à¤° की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की और १९५ॠमें ऊन गॄह उदà¥à¤¯à¥‹à¤— समिति के नाम से à¤à¤• संसà¥à¤¥à¤¾ गठित कर उसे पंजीकृत करवाया। परमारà¥à¤¥à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी ने असहाय सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को ऊन उदà¥à¤¯à¥‹à¤— का पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ देकर सà¥à¤µà¤¾à¤²à¤®à¥à¤¬à¥€ बनाकर टूटते परिवारों को सहारा दिया। वे सदैव आशà¥à¤°à¤® से समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• बनाये रखतीं, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने निषà¥à¤ ापूरà¥à¤µà¤• कारà¥à¤¯ करते हà¥à¤¯à¥‡ कई अनाथ बालिकाओं का पालन-पोषण कर शिकà¥à¤·à¤¾-दीकà¥à¤·à¤¾ देकर उनका विवाह कर नई राह दी। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से बालकों को à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ कर सà¥à¤µà¤°à¥‹à¤œà¤—ार के अवसर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤²à¤ करवाये। उदार दॄषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥‹à¤£à¤µà¤¾à¤¦à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€ १९à¥à¥¨ में जिला कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ कमेटी की महिला संयोजिका के रà¥à¤ª में कारà¥à¤¯ करने लगीं औत थराली पà¥à¤°à¤–णà¥à¤¡ की कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ सदसà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥€ निरà¥à¤µà¤¾à¤šà¤¿à¤¤ हà¥à¤ˆà¤‚। १९à¥à¥ª में वे जिला परिषद चमोली की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· रहीं, १९à¥à¥ में उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ राजà¥à¤¯ समाज कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ सलाहकार बोरà¥à¤¡ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सीमानà¥à¤¤ कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ विसà¥à¤¤à¤¾à¤° परियोजना, गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¦à¤® की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· à¤à¥€ मनोनीत की गई। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी संसà¥à¤¥à¤¾ में १९à¥à¥® से अरà¥à¤§à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ महिलाओं और लड़कियों के लिये à¤à¤• कंडेसà¥à¤¡ कोरà¥à¤¸ चलाया, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने १९८० में टà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¸à¥‡à¤® योजना के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ देना शà¥à¤°à¥ किया, जो १९८ॠतक चला। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इन पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ महिलाओं को ’हाड़ा’ योजना के तहत ॠण दिलवाकर करघों की बà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ के साधन दिलवाये। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ इलाकों को छोटे बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को शिकà¥à¤·à¤¾ से जोड़ने के लिये बालवाड़ी के कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® à¤à¥€ चलवाये।
आविषà¥à¤•à¤¾à¤°à¤• पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी ने १९à¥à¥¬ में à¤à¤• नये पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का शाल बनाया, जिसे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तà¥à¤²à¤¸à¥€ रानी शाल नाम दिया। इसका पà¥à¤°à¤¥à¤® निरà¥à¤®à¤¾à¤£ आसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‡à¤²à¤¿à¤¯à¤¨ ऊन पर किया, जो उतना सफल नहीं रहा, बाद में अंगोरा ऊन से यह शाल बनाया, जो अपनी सà¥à¤‚दरता के कारण लोगों को बहà¥à¤¤ पसनà¥à¤¦ आया। १९८३ में इस शाल के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हेतॠउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तà¥à¤²à¤¸à¥€ रानी शाल फैकà¥à¤Ÿà¤°à¥€ à¤à¥€ बनायी।
तà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी ने महिलाओं को सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ देते हà¥à¤¯à¥‡ à¤à¤• बार कहा था कि ’रोओ नहीं, आगे बà¥à¥‹, यदि शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ नहीं हो तो अपने हाथों व दिमाग का उपयोग करो, हारो नहीं, à¤à¤—वान ने तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ शकà¥à¤¤à¤¿ दी है, उसको बà¥à¤¾à¤“, अपने पैरो पर खड़ी हो जाओ।’
फोटो (दन बà¥à¤¨à¤¤à¥€ à¤à¤• à¤à¥‹à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ महिला) साà¤à¤¾à¤°- http://www.himalayanweavers.org
धाद संसà¥à¤¥à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ १९९४ में पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ आयोजन-à¤à¤• से साà¤à¤¾à¤° टंकित
उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ महिलाओं और उनकी उपलबà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को जानने के लिये हमारे फोरम पर पधारें।
Bhut bhut sukriya.