सीमांत प्रांतर पिथौरागढ़ के धारचूला में साढ़े दस हजार फीट की ऊंचाई पर बसे गर्ब्यांग गांव की गंगोत्री गर्ब्याल शिक्षा के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट सेवाओं के कारण 1964 राष्ट्रपति डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हुई। जिसका श्रेय उन्होंने जनभावना को ही दिया था। इनका जन्म ९ दिसम्बर, १९१८ में हुआ था, गंगोत्री जी शैक्षिक संस्थाओं से जुड़ी रही, शिक्षा जगत और समाजसेवा में गंगोत्री जी की सेवायें अनुकरणीय हैं। इनका सम्पूर्ण जीवन शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित होकर कार्य करते हुये व्यतीत हुआ। सेवानिवृत्ति से मृत्यु तक वे कैलाश नारायण आश्रम, पिथौरागढ़ में अवैतनिक व्यवस्थापक के रुप में सेवारत रहीं। गंगोत्री जी बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि की अति मेधावी छात्रा थी, उन्होंने १९३१ में वर्नाक्यूलर लोअर मिडिल उत्तीर्ण कर लिया था। उस समय ओई०टी०सी० उत्तीर्ण को ग्रामीण पाठशाला में नौकरी मिल जाती थी। मिस ई. विलियम्स, तत्कालीन सर्वप्रथम बालिका मुख्य निरीक्षका थीं, पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाओं को उन्होंने शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित करने में बड़ी रुचि दिखाई, वे एंग्लो इंडियन थीं। सीमान्त क्षेत्रों से आई छात्राओं का वह विशेष ध्यान रखती थीं,उन्होंने ही छात्रावास की तत्कालीन संरक्षिका रंदा दीदी से कहा कि गंगोत्री को हाईस्कूल में प्रवेश दिलायें, छात्रवृत्ति मैं दूंगी। यदि विवाह हो भी जाये तो भी आगे पढने में क्या आपत्ति हो सकती है।
१९३५ में तीन दिन की बीमारी के पश्चात गांव में इनके मंगेतर की मृत्यु हो गई, तब गंगोत्री जी एडम्स हाई स्कूल में पढ़ रही थीं। बालमन दुःखी हुआ, १९३७ में गंगोत्री जी को श्री नारायण स्वामी* के सत्संग व सानिध्य का अवसर मिला। इन्होंने नारायण स्वामी से दीक्षा ले ली और गुरुमंत्र को जीवन का पथ माना।
इसी दौरान बरेली में इन्होंने ई०टी०सी० (इंग्लिश टीचर सर्टिफिकेट) में प्रवेश लिया। ई.टी.सी. उत्तीर्ण करने के बाद १९३९ में गंगोत्री जी की नियुक्ति सी०टी० ग्रेड में राजकीय कन्या हाईस्कूल, बरेली में हुई। पूरे प्रदेश में यही प्रथम हाईस्कूल था, यहां पर मिसेज एलाय प्रधानाचार्य थीं, कुछ वर्ष बाद यह इंटर कालेज हो गया। छुट्टियों में कभी ये अल्मोड़ा रंदा दीदी के पास तथा कभी मां आनन्दमयी के आश्रम देहरादून जाया करती थीं। उन्होंने इण्टर की परीक्षा निजी रुप से पास की और इसी तरह बी०ए० तथा एम०ए० भी पास किया। अध्ययनावकाश लेकर राजकीय महिला प्रशिक्षण महाविद्यालय, प्रयाग से एल०टी० किया। १९४५ में राजकीय कन्या हाईस्कूल, अल्मोड़ा खुला तो यह अल्मोड़ा आ गई। पुनः रंदा दीदी के संरक्षण में रहीं। गर्मियों की छुट्टियों में शांति निकेतन से घर आई जयंती पांडे, जयंती पन्त, गौरा पाण्डे (शिवानी जी) के सानिध्य में भी रहीं।
जब समाज सेवा की धुन लगी तो गंगोत्री जी १९४८ में अस्कोट क्षेत्र से जिला परिषर, अल्मोड़ा की निर्विरोध सदस्य चुनी गई। अब वे शिक्षण कार्यों के अतिरिक्त सामाजिक कार्यों में भी रुचि लेने लगीं, लोगों की समस्यायें हल करने लगी, वे जिला परिषद, अल्मोड़ा की उपाध्यक्ष भी रहीं।
वे ग्राम पाठशालाओं का निरीक्षण कर समस्या समाधान के लिये सदैव प्रयत्नशील रहीं। स्त्री शिक्षा विरोधी रुढिवादियों को अब स्त्री शिक्षा का महत्व समझ में आने लगा, वे कन्याओं का स्कूल भेजने लगे। गंगोत्री जी मद्य निषेध पर भी बोलती थीं, अल्मोड़ा में १९४६ से १९५२ तक महिला नार्मल स्कूल में कार्यरत रहकर वे विभिन्न समाज सेवी संस्थाओं से जुड़ी रहीं। १९४९-५० में चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया, चीनी तिब्बतियों पर आधिपत्य जमाने लगे और तिब्बती जनता को अपने ढांचे में ढालने हेतु स्कूल, अस्पताल आदि की सुविधा देने लगे। सीमान्त के भारतीय व्यापारियों पर भी चीनियों का अंकुश बढ़ने लगा, अतः सीमान्तवासियों को अपनी सुरक्षा की चिंता होने लगी। तब उन्होंने २४ फरवरी से २६ फरवरी, १९५१ में रामनगर, जिला नैनीताल में एक विराट सम्मेलन का आयोजन किया। इस हिमालय प्रांतीय सम्मेलन में लाहौल, कुल्लू-कांगड़ा, गढ़वाल, कुमाऊं के जनप्रतिनिधि सम्म्लित थे, तत्कालीन सांसद देवीदत्त पन्त तथा विधायक हर गोबिन्द पन्त भी आमंत्रित थे, व्यापारियो एवं जनता का बड़ा सराहनीय सहयोग भोजन तथा व्यवस्था के लिये था। प्रतिनिधियों और नागरिकों ने बहुत बड़ा जुलूस निकालकर सम्मेलन का प्रारम्भ किया। ’सीमान्त को बचाओ’ ’सुरक्षा की व्यवस्था हो’ ’व्यापार बचाओ’ ’सीमान्त का विकास करो’ आदि जोशीले नारे लगाये गये, स्वागताध्यक्ष कार्य गंगोत्री जी के सुपुर्द था। आगंतुक, जनप्रतिनिधियों एवं उपस्थित जनसमूह का स्वागत करते हुये सीमान्त सम्मेलन के उद्देश्यों पर उन्होंने प्रकाश डाला। तत्कालीन समस्त समस्याओं को लेकर उनकी मांगों को पूरा करवाने के लिये एक समिति का गठन किया ग्या, जिसका नाम हिमालय सीमान्त संघ रखा गया। गंगोत्री गर्ब्याल कार्यकारिणी के सात सदस्यों में एक मात्र महिला सदस्य थीं, तब यह भी निश्चय किया गया कि संघ का एक शिष्टमंडल अपनी मांगों को लेकर प्रधानमंत्री के पास दिल्ली जायेगा।
गंगोत्री गर्ब्याल दारमा, से शिष्टमंडल की सदस्य थीं, अपने कार्यकाल में गंगोत्री जी ने स्त्री शिक्षा के प्रचार और प्रसार के लिये समर्पित भाव से कार्य किया। जब अल्मोड़ा में छात्रावास न था, तब इन्होंने सीमान्त क्षेत्रों से आने वाली समस्त छात्राओं को अपने पास रखा और शिक्षित किया। परिवार की तरह एक ही रसोई होती थी, कुछ छात्रायें कुछ महीनों से लेकर १५ वर्ष तक इनके साथ रहीं, एक जाती, दूसरी आती, यही क्रम चलता रहा।
सीमान्त पर तैनात जवानों के लिये उन्होंने सेना सेवा समिति का गठन किया, वे हाथ से बने गरम कपड़े और डिब्बा बन्द भोजन फौजी भाइयों के लिये भेजती। जिलाधिकारी के संरक्षण में इन सब कार्यों में उत्साहपूर्वक भाग लेने वाली वहां की कुछ अन्य शिक्षिकायें माया खर्कवाल, जानकी जोशी, विभा मासीवाल तथा सुशीला उप्रेती भी थीं। राजकीय इन्टर कालेज में नियुक्त सुश्री गंगोत्री १९६१ में लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित होकर प्रधानाध्यापिका के पद पर उत्तरकाशी गई। तब कक्षा दस में मात्र दो छात्रायें थीं, गंगोत्री जी के सतत प्रयास से उनमें वृद्धि होती चली गई। १९६२ में चीन आक्रमण के समय राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में धन संचय हेतु गंगोत्री जी की पहल और प्रेरणा से छात्राओं ने एक सांस्कृतिक कार्यक्रम तैयार कर मकर संक्रान्ति के पर्व पर प्रस्तुत किया तथा उस कार्यक्रम से २००० रुपये की राशि एकत्र कर राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दी, इससे तत्कालीन मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी बहुत प्रसन्न हुईं। गंगोत्री जी सेवानिवृत्ति के बाद भी उसी गति और भावना से समाज सेवा में संलग्न रहीं। दिनांक २० अगस्त, १९९९ को इनका देहावसान हो गया। इनकी स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने की भावना को अक्षुण्ण रखने के लिये जनपद पिथौरागढ़ के राजकीय बालिका इण्टर कालेज का नाम गंगोत्री गर्ब्याल राजकीय बालिका इण्टर कालेज रखा गया है।
इस विभूति को मेरा पहाड का शत-शत नमन।
’धाद’ संस्था द्वारा प्रकाशित ’ग्रन्थ आयोजन : एक’ से साभार टंकित
* नारायण स्वामी जी ने उत्तराखण्ड के ग्रामीण एवं सीमान्त क्षेत्रों में अनेकों स्कूल खोले , पिथौरागढ़ जिले में डीडीहाट के पास बसा नारायणनगर इन्हीं के नाम पर बसा है, आज वहां पर महाविद्यालय है। सीमान्त क्षेत्रॊं में कई आश्रम और विद्यालय इन्होंने खोले, जिनमें पढ़े लोग आज कई ख्यातिप्राप्त व्यक्तित्व हैं। पिथौरागढ़ जिले के देवलथल में भी हाईस्कूल की स्थापना इनके द्वारा ही की गई थी, पहले उसका नाम नारायण विद्या मन्दिर हायर सेकेण्डरी स्कूल, देवलथल था। इस पोस्ट में लगी फोटो उनके द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग में स्थापित नारायण आश्रम की है।
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Thanks a lot for posting about my maternal grandmother…
Feel indebted towards merapahad.com for bringing forward her contribution towards the society.
Thanks
Dear Richa,
Will it be possible for you to send us her picture as we are publishing a book on the prominent women of Uttarakhand and she is a part of it.
Raanu Bisht