मायके से असहाय, ससà¥à¤°à¤¾à¤² से तिरसà¥à¤•à¥ƒà¤¤, अपने à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ के लिये चिंतित माई ने अपना मारà¥à¤— सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बनाने का उसी रात निरà¥à¤£à¤¯ कर लिया। अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ अधिकारी के साथ अकेले सफर कर लैंसडाऊन पहà¥à¤‚चने वाली माई अति निरà¥à¤à¥€à¤• सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ की थी, वे मानती थीं कि हमने अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ के अवगà¥à¤£ तो अपनाये, लेकिन सदगà¥à¤£ नहीं। अपने पति के साथ अलà¥à¤ªà¤¾à¤µà¤§à¤¿ में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ के सदगà¥à¤£à¥Šà¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ गà¥à¤£à¤—à¥à¤°à¤¾à¤¹à¥€ माई यह सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करती थी कि अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ नारी जाति का समà¥à¤®à¤¾à¤¨ करना जानते हैं। माई कहती थी कि यदि कोई हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ मेरे साथ आता तो शायद मेरा पैसा लूट कर मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ बेच खाता। अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ अफसर ने माई का पैसा डाकखाने में जमा करवा कर उसको पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ के पास सौंपा, किंतॠविधवा नारी को ससà¥à¤°à¤¾à¤² में मातà¥à¤° तिरसà¥à¤•à¤¾à¤°, अपमान, उपेकà¥à¤·à¤¾ और कषà¥à¤Ÿà¤¤à¤® जीवन के और कà¥à¤¯à¤¾ मिलता। जैसा कि वैधवà¥à¤¯ का जीवन जीने वाली हर à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ नारी के साथ होता है, माई फिर वहां से निकलकर लाहौर पहà¥à¤‚च गई, वहां à¤à¤• मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में कà¥à¤› दिन रहकर à¤à¤• विदà¥à¤·à¥€, सà¥à¤¸à¤‚कृत सनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤¨à¥€ से माई ने दीकà¥à¤·à¤¾ ली और तब वे दीपा से इचà¥à¤›à¤¾à¤—िरि माई बन गई और वीतराग à¤à¤µà¤‚ निसà¥à¤ªà¥ƒà¤¹ जीवन जीने लगी, किंतॠ१९४ॠके सांमà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• दंगों के कारण पंजाब का वातावरण विषाकà¥à¤¤ हो चà¥à¤•à¤¾ था। माई वहां रहकर हैवानियत के विरà¥à¤¦à¥à¤§ संघरà¥à¤· करना चाहती थीं, लेकिन अपनी गà¥à¤°à¥ के साथ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° आना पड़ा।
लौटकर वह नौ माह कालीमंदिर चंडीघाट में रहीं। वहां माई ने ढोंगी साधà¥à¤“ं के दà¥à¤·à¥à¤•à¤°à¥à¤® देखे, जैसे मछली मारकर खाना, गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के समय मछलियां छिपाकर लाना, दिन à¤à¤° सà¥à¤²à¥à¤«à¤¾-गांजा का नशा करना और निठलà¥à¤²à¥‡ पड़े रहना। माई ने उनसे लड़ने की ठानी पर उनकी सामूहिक शकà¥à¤¤à¤¿ और माई निपट अकेली, लड़ती à¤à¥€ तो आखिर कहां तक। अतः माई इधर-उधर घूमकर सिगडà¥à¤¡à¥€-à¤à¤¾à¤¬à¤° आ गई और घास-फूस की à¤à¥‹à¤ªà¥œà¥€ बनाकर रहने लगी। वहां पर पानी का बहà¥à¤¤ अà¤à¤¾à¤µ था, महिलाओं को बहà¥à¤¤ दूर से पानी लाना पड़ता था। माई को यह सहन नहीं हà¥à¤†, वह अधिकारियों से मिली, डिपà¥à¤Ÿà¥€ कलेकà¥à¤Ÿà¤° से मिली, किंतॠकà¥à¤› नहीं हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤²à¤¾ माई कहां हार मानती, अतः दिलà¥à¤²à¥€ पहà¥à¤‚च गई और जवाहर बाबा की कोठी के फाटक पर धरना देकर बैठगई। नेहरॠजी जब कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ जा रहे थे, तो माई उनकी गाड़ी के सामने खड़ी हो गई। पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वाले उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ खींचकर हटाने लगे, नेहरॠजी गाड़ी से नीचे उतरे और माई ने गांव की बहू-बेटियों की खैरी-विपदा बाबा को सà¥à¤¨à¤¾ दी। उस दिन उनका बदन बà¥à¤–ार से तप रहा था। माई ने बताया कि मैने नेहरॠबाबा का हाथ पकड़ लिया और पूछा ’बोल बाबा पानी देगा या नहीं’ नेहरॠबाबा बोला ’माई तà¥à¤à¥‡ तो तेज बà¥à¤–ार है’ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² à¤à¤¿à¤œà¤µà¤¾à¤¯à¤¾ और वापस लौटते समय कà¥à¤› कपड़े à¤à¥€ दिये और कहा ’अब जाओ, जलà¥à¤¦à¥€ ही पानी à¤à¥€ मिल जायेगा’ हां बाबा, कà¥à¤› दिनों बाद पानी वाले साहब सिगडà¥à¤¡à¥€ आ गये और सिगडà¥à¤¡à¥€ में पानी à¤à¥€ आ गया, अब तो मंतरी-संतरी सब à¤à¥‚ठबोलते हैं। पहले à¤à¤¸à¥€ बात नहीं थी, जो कह देते थे, वह कर à¤à¥€ देते थे।
à¤à¤• बार माई की कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤• आदमी ने पटवारी से मिलकर हड़प ली, लेकिन माई अपने कारण नहीं लड़ी और वहां से मोटाढांक चली गई, वहां पर à¤à¤• अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• शà¥à¤°à¥€ मोहन सिंह ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ रहने के लिये à¤à¤• कमरा दे दिया। मासà¥à¤Ÿà¤° जी चाहते थे कि वहां पर à¤à¤• सà¥à¤•à¥‚ल बने। इस संबंध में कोटदà¥à¤µà¤¾à¤° के गà¥à¤—ौरव के समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤• शà¥à¤°à¥€ कà¥à¤‚वर सिंह नेगी “करà¥à¤®à¤ †बताते हैं कि à¤à¤• बार शिकà¥à¤·à¤¾ पर चरà¥à¤šà¤¾ हà¥à¤ˆ तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने माई से कहा कि यहां पर कोई सà¥à¤•à¥‚ल नहीं है। माई ने इस बात को बहà¥à¤¤ गंà¤à¥€à¤°à¤¤à¤¾ से लिया और न जाने कब à¤à¤• टà¥à¤°à¤• ईंट वहां लाकर डाल दी। उस समय कोटदà¥à¤µà¤¾à¤° बिजनौर जिले में था। तब रामपà¥à¤° के जिलाधीश à¤.जे. खान थे, जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यह पता चला तो बोले “कि बड़े शरà¥à¤® की बात है, माई ने यहां ईंटॆ डलवा दी हैं तो सà¥à¤•à¥‚ल तो अब बनाना ही पड़ेगा।†माई अपने पैसों से सरिया, सीमेनà¥à¤Ÿ लाती रही तथा उस दौरान पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ मिडिल सà¥à¤•à¥‚ल बनकर तैयार हो गया। पहले तो यह सà¥à¤•à¥‚ल छातà¥à¤°à¤¾à¤“ं के लिये ही बना, बाद में यह हाईसà¥à¤•à¥‚ल हो गया। माई ने इस सà¥à¤•à¥‚ल का नाम अपने पति सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ीय गणेश राम के नाम पर रखवाया और फिर यह इंटर कालेज हà¥à¤†, अब इस कालेज में सह शिकà¥à¤·à¤¾ है।
कोटदà¥à¤µà¤¾à¤° में पानी का सदा अà¤à¤¾à¤µ रहा है, माई इसके लिये सà¥à¤µà¤¯à¤‚ लखनऊ गई, सचिवालयॠके सामने à¤à¥‚ख-हड़ताल ओअर बैठगई। उस समय मà¥à¤–à¥à¤¯à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ से सà¥à¤¨à¤µà¤¾à¤ˆ हà¥à¤ˆ और पेयजल की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ हो गई। मोटाढांक में अपना कारà¥à¤¯ पूरा करके माई बदरीनाथ धाम चली गई, वहां पर वह नौ साल तक रहीं, वहां पर रावल ने इनके आवास और à¤à¥‹à¤œà¤¨ की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की। बदरीनाथ के बाद वह चार साल केदारनाथ में रहीं। किनà¥à¤¤à¥ वहां के देवदरà¥à¤¶à¤¨ में अमीर-गरीब का à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ और दिन-पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ बà¥à¤¤à¥€ असà¥à¤µà¤›à¥à¤¤à¤¾ और अपवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ देखकर माई खिनà¥à¤¨ हà¥à¤ˆ और वहां से पौड़ी आ गई। वहां १९५५-५६ के आस-पास à¤à¤• दिन डाकखाने के बरामदे में माई सà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾ रही थी, सामने शराब वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€Â मितà¥à¤¤à¤² की टिंचरी की दà¥à¤•à¤¾à¤¨ थी, जहां पर à¤à¤• आदमी टिंचरी पीकर लडखड़ाता हà¥à¤† महिलाओं की ओर अà¤à¤¦à¥à¤°à¤¤à¤¾ से इशारे करने लगा और फिर अचेत होकर नाली में गिर गया। गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ से कांपती माई कंडोलिया डिपà¥à¤Ÿà¥€ कमिशà¥à¤¨à¤° के बंगले पर पहà¥à¤‚ची, कमिशà¥à¤¨à¤° साहब कà¥à¤› लिख रहे थे, वह माई को जानते थे, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने माई से बैठने को कहा। किंतॠकà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ माई ने कमिशà¥à¤¨à¤° का हाथ पकड़ा और बोली ’तू यहां बैठा है, चल मेरे साथ, देख, तेरे राज में कà¥à¤¯à¤¾ अनरà¥à¤¥ हो रहा है।’ माई के कà¥à¤°à¥‹à¤§ को देखकर सहमे कमिशà¥à¤¨à¤° ने जीप मंगाई और वहां जा पहà¥à¤‚चे, जहां वह शराबी खून से सना पड़ा था। माई बोली ’देख लिया तूने, कà¥à¤¯à¤¾ हो रहा है तेरी नाक के नीचे, लेकिन तू कà¥à¤› नहीं कर पायेगा, तू जा और सà¥à¤¨, मैं यह तमाशा नहीं होने दूंगी……आग लगा दूंगी इस दà¥à¤•à¤¾à¤¨ पर—–तू मà¥à¤à¥‡ जेल à¤à¥‡à¤œ देना—-मैं जाने दे दूंगी पर टिंचरी नहीं बिकने दूंगी। डिपà¥à¤Ÿà¥€ कमिशà¥à¤¨à¤° वापस चले गये।
माई मिटà¥à¤Ÿà¥€ का तेल और माचिस की डिबिया लाई और बंद दरवाजा तोड़ कर अंदर चली गई, टिंचरी पी रहे लोग à¤à¤¾à¤— खड़े हà¥à¤¯à¥‡, à¤à¥€à¥œ जà¥à¤Ÿà¤¨à¥‡ लगी। काली का रà¥à¤ª धारण किये माई ने दà¥à¤•à¤¾à¤¨ में आग लगा दी, दà¥à¤•à¤¾à¤¨ जलकर सà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¾ हो गई, माई को बड़ी शांति मिली, मगर माई à¤à¤¾à¤—ी नहीं। डिपà¥à¤Ÿà¥€ कमिशà¥à¤¨à¤° के बंगले पर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पहूंच गई और बोली “ टिंचरी की दà¥à¤•à¤¾à¤¨ फूंक आई हूं, अब मà¥à¤à¥‡ जेल à¤à¥‡à¤œà¤¨à¤¾ है तो à¤à¥‡à¤œ देâ€Â दिन à¤à¤° कमिशà¥à¤¨à¤° ने माई को अपने बंगले पर बिठाकर रखा और शाम को अपनी जीप मॆं बिठाकर लैंसडाऊन à¤à¥‡à¤œ दिया। सब जगह खबर फैल गई, माई ने गजब कर दिया, इस घटना की वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ हà¥à¤ˆ, महिलायें अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ हरà¥à¤·à¤¿à¤¤ हà¥à¤ˆ, à¤à¤²à¥‡ ही शराबी कà¥à¤·à¥à¤¬à¥à¤§ हà¥à¤¯à¥‡ हों। तब से इचà¥à¤›à¤¾à¤—िरि माई “टिंचरी माई†के नाम से विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ हो गई। नशे के खिलाफ उनका अà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨ लगातार जारी रहा।
वे आतà¥à¤®à¤ªà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° से सदैव दूर रहतीं थीं, वातà¥à¤¸à¤²à¥à¤¯à¤ªà¥‚रà¥à¤£ हृदय, निसà¥à¤ªà¥ƒà¤¹, परदà¥à¤ƒà¤– कातर, तपसà¥à¤µà¤¿à¤¨à¥€, करà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤·à¥à¤ , समाजसेवी माई जितने गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥ˆà¤² सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ की थी, उतनी ही संवेदनशील à¤à¥€à¥¤ राजनीतिक लोगोंकी सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¤²à¥‹à¤²à¥à¤ªà¤¤à¤¾ से वे हमेशा दà¥à¤ƒà¤–ी रही, कà¥à¤·à¥à¤¬à¥à¤§ होती रहीं। वे बड़ी सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¥€ थी, दान सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª किसी से कà¤à¥€ à¤à¥€ कà¥à¤› नहीं लेती थी, कहीं जाती तो केवल à¤à¥‹à¤œà¤¨ ही करती थी। वे सà¥à¤µà¤¯à¤‚ दानशीला थी, शिकà¥à¤·à¤¾, मदà¥à¤¯à¤¨à¤¿à¤·à¥‡à¤§ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤°à¥à¤¥ के लिये माई के कारà¥à¤¯ अविसà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ हैं। असà¥à¤¸à¥€ वरà¥à¤· से कà¥à¤› अधिक आयॠमें १९ जून, १९९२ को माई की दैहिक लीला समापà¥à¤¤ हà¥à¤ˆà¥¤
उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की इस जीवट महिला को मेरा पहाड़ का शत-शत नमन।
’धाद’ संसà¥à¤¥à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ गà¥à¤°à¤‚थ आयोजन-à¤à¤• से साà¤à¤¾à¤°
सारे पाहिडी à¤à¤¾à¤ˆà¤¯à¥‹ कॠनमसà¥à¤•à¤¾à¤° à¤à¤¾à¤ˆ लोगो मà¥à¤¯à¤° नाम मदन बिषà¥à¤Ÿ छॠमै बेतालघाट कॠरणी छॠमै गाजियाबाद मे बिकानेरवाला मै काम करनॠबाकी सबॠकै होली मà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤• धनà¥à¤¯à¤¬à¤¾à¤¦
टिंचरी माई की ही तरह की जीवटता का परिचय उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की महिलायें देती रहती हैं। १९८४ का नशा नहीं रोजगार दो आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ इसका पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है।
Thanks for sharing this information about the great peronality of Pahad.