[उत्तराखण्ड सदियों से कर्मवीरों की भूमि रही है, हम किसी भी क्षेत्र में जब व्यक्तित्व की बात करते हैं तो उत्तराखण्ड की कई विभूतियां उनमें शीर्ष स्थान पर अपने आप भी शामिल हो जाती हैं। दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे श्री सत्येन्द्र सिंह रावत आज हमें एक ऐसे ही एक व्यक्तित्व से परिचित करा रहे हैं। स्व० नारायण दत्त सुन्दरियाल सामाजिक और राजनीतिक चेतना में रुचि रखने वाले व्यक्तित्वों में एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने हमेशा जातिविहीन, वर्गविहीन और समतामूलक समाज बनाने में ही अपना जीवन होम कर दिया। अपने जीवन के आखिरी क्षणों तक स्व० सुन्दरियाल अपने इसी सपने को यथार्थ बनाने में जुटे और रमे रहे।]
उत्तराखण्ड में राजनीतिक और सामाजिक चेतना की जब भी बात होगी कामरेड नारायण दत्त सुन्दरियाल के बिना वह अधूरी रहेगी। सार्वजनिक जीवन में शुचिता, सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध, संगठनात्मक जिजीविषा और सबको साथ लेकर चलने का कौशल बहुत कम लोगों में देखने को मिलता है। आज के समय में जब इन तमाम चीजों का ह्रास हो रहा है तब एन डी सुन्दरियाल और प्रासंगिक हो जाते हैं। देशभर में मजदूरों, मेहनतकशों और समाज के अंतिम छोर में खड़े व्यक्ति के हितों के लिये वे जीवन के अंतिम समय तक लड़ते रहे। वामपंथी विचारधारा से जुडक़र उन्होंने जातिविहीन, वर्गविहीन और समतामूलक समाज बनाने की उन तमाम कोशिशों में अपना प्रभावी हस्तक्षेप रखा जो बेहतर समाज बनाने के लिये जरूरी थे। पांच दशक तक वह हर मोर्चे पर जनता के सवालों के साथ खड़े रहे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन शुरू करने वाले सुन्दरियाल के राजनीतिक जीवन में जितने पड़ाव आये उनमें उन्होंने अपनी प्रतिबद्ध विचारयात्रा को कहीं कमजोर नहीं होने दिया। उन्होंने जहां एक ओर पूरी दुनिया और देश में वामपंथी आंदोलन में शिरकत की, वहीं स्थानीय स्तर की तमाम समस्याओं के समाधान के लिये भी काम किया। दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षण संस्थान खोलने से लेकर पृथक राज्य आंदोलन की अगुआई करने तक स्व० सुन्दरियाल को अनेक भूमिकाओं में पाते हैं। कामरेड नारायण दत्त सुन्दरियाल का जन्म १० नवंबर १९२७ को पौड़ी जनपद के गांव पंजारा, पट्टी गुजरो, तहसील धूमाकोट में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही की। उच्च शिक्षा उन्होंने लखनऊ से पूरी की। चालीस के दशक में जब कानपुर आजादी के आंदोलन का मुख्य केंद्र था, वे आंदोलनकारियों के संपर्क में आये। यहीं से वे कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़ गये। उन्होंने १९५२ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और ताउम्र सीपीआई के सदस्य रहे।
कामरेड नारायण दत्त सुन्दरियाल जी में अद्भुत संगठनात्मक कौशल था। वे सीपीआई की सदस्यता लेने के बाद लगातार पार्टी में कई पदों पर रहे। पार्टी को जमीन स्तर से खड़ा करने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। वर्ष १९५२-१९५६ तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, गढ़वाल के सचिव रहे। वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने गढ़वाल में किसानों, मजदूरों, घरेलू नौकरों और होटल कर्मचारियों को संगठित कर उनके अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। वर्ष १९५२ से १९६० तक सुन्दरियाल जी गढ़वाल मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन के जनरल सेक्रेटरी रहे। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने गढ़वाल मोटर मजदूर भवन का निर्माण कराया। श्रमिकों के प्रति उनकी दृष्टि व्यापक थी। श्रमिकों के प्रति उनके लगाव को इस बात से समझा जा सकता है कि सतपुली में बाढ़ से बहे चालकों और परिचालकों की स्मृति में स्मृति स्तंभ का निर्माण भी उन्होंने ही कराया था। गढ़वाल क्षेत्र में जहां बड़े उद्योग और कारखाने नहीं हैं, वहां की सबसे बड़ी मोटर कंपनी के श्रमिकों को इकट्ठा कर उनकी लड़ाई लडऩा कम चुनौतीपूर्ण नहीं था। इस तरह उन्होंने आम आदमी को अपने हकों के लिए लडऩे की चेतना दी। वर्ष १९५८-५९ में मोटर मजदूरों के आंदोलन का नेतृत्व करते हुए उनकी गिरफ्तारी हुई और एक माह तक वे पौड़ी जेल में रहे। कामरेड सुन्दरियाल ने सार्वजनिक जीवन में विचार और जमीनी सच्चाइयों को बखूबी समझा। इस विचार के चलते गढ़वाल के धूमाकोट और खिरैणीखाल कॉलेजों की स्थापना भी उनके अथक प्रयासों से ही संभव हुई। कामरेड सुन्दरियाल का देश की तमाम राजनीतिक गतिविधियों से गहरा जुड़ाव रहा। जब देश में गोवा मुक्ति आंदोलन चला तो सुन्दरियाल जी को संगठन मंत्री बनाया गया। उन्होंने देश भर के मजदूरों के बीच काम किया। वे १९६० से १९७० तक अखिल भारतीय रोड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव रहे तथा दुबारा १९७३ में इस फेडरेशन के कार्यकारी अध्यक्ष बने। इस दौरान उन्होंने मजदूरों के हित में अनेक कार्य किये। सुन्दरियाल जी ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन के सदस्य भी रहे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में वे १९७२-१९९२ तक अंतर्राष्ट्रीय विभाग के सचिव रहे। इस समयावधि में लगभग पच्चीस बार विश्व के विभिन्न देशों में पार्टी का प्रतिनिधित्व किया।
वामपंथी आंदोलन के अलावा कामरेड सुन्दरियाल को उत्तराखण्ड राज्य के युग पुरुष के रूप में भी जाना जाता है। राज्य आंदोलन को संगठनात्मक ढंग से चलाने वाले लोगों में से नारायण दत्त सुन्दरियाल महत्वपूर्ण नाम थे। वर्ष १९६७ में रामनगर में उत्तराखण्ड पर्वतीय राज्य परिषद के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्हें इस परिषद का महासचिव बनाया गया था। सुन्दरियाल जी १९६७ से लेकर उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के गठन तक लगातार पृथक उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के लिए संघर्षरत रहे। नब्बे के दशक में यानी १९९४ में उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति के वरिष्ठ नेता होने के नाते उन्होंने उत्तराखण्ड में राज्य आंदोलन को मजबूती प्रदान की। दिल्ली प्रदेश संघर्ष समिति के संरक्षक के रूप में भी उन्होंने दिल्ली में अनेक धरने एवं विशाल रैलियां आयोजित की थीं। इतना ही नहीं विभिन्न दलों के मान्य सांसदों का पृथक उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए समर्थन जुटाने में नारायण दत्त सुन्दरियाल ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव एवं वरिष्ठ सांसद रहे इंद्रजीत गुप्त ने १९९३ में संसद में जो उत्तराखण्ड राज्य विधेयक प्रस्तुत किया था, उसको तैयार करने में भी सुन्दरियाल जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। वैचारिक रूप से पृथक उत्तराखण्ड राज्य की जरूरत को समझाने में भी सुन्दरियाल जी ने अहम भूमिका निभायी थी। उन्होंने वर्ष १९८६ में ‘उत्तराखण्ड पर्वतीय राज्य’ नाम से एक पुस्तिका भी प्रकाशित की। इसमें व्यापक रूप से उन मुद्दों को उठाया गया जिसके लिए राज्य की आवश्यकता महसूस की गयी। दिनांक २७ फरवरी, २००९ को यह महान व्यक्तित्व अपनी यादें छोड़ हमसे दूर चला गया।
स्व० सुन्दरियाल जी की यादों को अक्षुण्ण रखने के लिये हमारे संगठन क्रियेटिव उत्तराखण्ड-म्यर पहाड़ ने अपनी पोस्टर श्रॄंखला के १२ वें चरण में दिनांक २८ फरवरी, २०११ को उनके पैतृक गांव पंजारा में उनके पोस्टर का विमोचन किया। स्व० सुन्दरियाल जी को मेरा पहाड़ डाट काम नैटवर्क की ओर से कृतज्ञतापूर्वक श्रद्धांजलि।
nice………………