उत्तराखण्ड की संस्कृति की समृद्धता के विस्तार का कोई अन्त नहीं है, हमारे पुरखों ने सालों पहले जो तीज-त्यौहार और सामान्य जीवन के जो नियम बनाये, उनमें उन्होंने व्यवहारिकता और विज्ञान का भरपूर उपयोग किया था। इसी को चरितार्थ करता उत्तराखण्ड का एक लोक त्यौहार है-हरेला।
हरेले का पर्व हमें नई ऋतु के शुरु होने की सूचना देता है, उत्तराखण्ड में मुख्यतः तीन ऋतुयें होती हैं- शीत, ग्रीष्म और वर्षा। यह त्यौहार हिन्दी सौर पंचांग की तिथियों के अनुसार मनाये जाते हैं, शीत ऋतु की शुरुआत आश्विन मास से होती है, सो आश्विन मास की दशमी को हरेला मनाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत चैत्र मास से होती है, सो चैत्र मास की नवमी को हरेला मनाया जाता है। इसी प्रकार से वर्षा ऋतु की शुरुआत श्रावण (सावन) माह से होती है, इसलिये एक गते, श्रावण को हरेला मनाया जाता है। किसी भी ऋतु की सूचना को सुगम बनाने और कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण ऋतुओं का स्वागत करने की परम्परा बनी होगी।
उत्तराखण्ड में देवाधिदेव महादेव शिव की विशेष अनुकम्पा भी है और इस क्षेत्र में उनका वास और ससुराल (हरिद्वार तथा हिमालय) होने के कारण यहां के लोगों में उनके प्रति विशेष श्रद्धा और आदर का भाव रहता है। इसलिये श्रावण मास के हरेले का महत्व भी इस क्षेत्र में विशेष ही होता है। श्रावण मास के हरेले के दिन शिव-परिवार की मूर्तियां भी गढ़ी जाती हैं, जिन्हें डिकारे कहा जाता है। शुद्ध मिट्टी की आकृतियों को प्राकृतिक रंगों से शिव-परिवार की प्रतिमाओं का आकार दिया जाता है और इस दिन उनकी पूजा की जाती है।
हरेला शब्द का स्रोत हरियाली से है, पूर्व में इस क्षेत्र का मुख्य कार्य कृषि होने के कारण इस पर्व का महत्व यहां के लिये विशेष रहा है। हरेले के पर्व से नौ दिन पहले घर के भीतर स्थित मन्दिर में या ग्राम के मन्दिर के भीतर सात प्रकार के अन्न (जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट) को रिंगाल की टोकरी में रोपित कर दिया जाता है। इससे लिये एक विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है, पहले रिंगाल की टोकरी में एक परत मिट्टी की बिछाई जाती है, फिर इसमें बीज डाले जाते हैं। उसके पश्चात फिर से मिट्टी डाली जाती है, फिर से बीज डाले जाते हैं, यही प्रक्रिया ५-६ बार अपनाई जाती है। इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है। ९ वें दिन इनकी पाती (एक स्थानीय वृक्ष) की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें यानि कि हरेले के दिन इसे काटा जाता है। काटने के बाद गृह स्वामी द्वारा इसे तिलक-चन्दन-अक्षत से अभिमंत्रित (“रोग, शोक निवारणार्थ, प्राण रक्षक वनस्पते, इदा गच्छ नमस्तेस्तु हर देव नमोस्तुते” मन्त्र द्वारा) किया जाता है, जिसे हरेला पतीसना कहा जाता है। उसके बाद इसे देवता को अर्पित किया जाता है, तत्पश्चात घर की बुजुर्ग महिला सभी सदस्यों को हरेला लगाती हैं। लगाने का अर्थ यह है कि हरेला सबसे पहले पैरो, फिर घुटने, फिर कन्धे और अन्त में सिर में रखा जाता है और आशीर्वाद स्वरुप यह पंक्तियां कहीं जाती हैं।
जी रये, जागि रये
धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये
सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो
दूब जस फलिये,
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये।
{अर्थात-हरियाला तुझे मिले, जीते रहो, जागरूक रहो, पृथ्वी के समान धैर्यवान,आकाश के समान प्रशस्त (उदार) बनो, सूर्य के समान त्राण, सियार के समान बुद्धि हो, दूर्वा के तृणों के समान पनपो,इतने दीर्घायु हो कि (दंतहीन) तुम्हें भात भी पीस कर खाना पड़े और शौच जाने के लिए भी लाठी का उपयोग करना पड़े।}
इस पूजन के बाद परिवार के सभी लोग साथ में बैठकर पकवानों का आनन्द उठाते हैं, इस दिन विशेष रुप से उड़द दाल के बड़े, पुये, खीर आदि बनाये जाने का प्रावधान है। घर में उपस्थित सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता है, साथ ही देश-परदेश में रह रहे अपने रिश्तेदारो-नातेदारों को भी अक्षत-चन्दन-पिठ्यां के साथ हरेला डाक से भेजने की परम्परा है।
चैत्र मास के प्रथम दिन हरेला बोया जाता है और नवमी को काटा जाता है। श्रावण मास लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ मास में बोया जाता है और १० दिन बाद काटा जाता है और आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरे के दिन काटा जाता है। हरेला घर मे सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया व काटा जाता है। हरेला अच्छी कृषि का सूचक है, हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलो को नुकसान ना हो। हरेले के साथ जुड़ी ये मान्यता भी है कि जिसका हरेला जितना बडा होगा उसे कृषि मे उतना ही फायदा होगा।
वैसे तो हरेला घर-घर में बोया जाता है, लेकिन किसी-किसी गांव में हरेला पर्व को सामूहिक रुप से द्याप्ता थान (स्थानीय ग्राम देवता) में भी मनाये जाने का प्रावधान है। मन्दिर में हरेला बोया जाता है और पुजारी द्वारा सभी को आशीर्वाद स्वरुप हरेले के तिनके प्रदान किय जाते हैं। यह भी परम्परा है कि यदि हरेले के दिन किसी परिवार में किसी की मृत्यु हो जाये तो जब तक हरेले के दिन उस घर में किसी का जन्म न हो जाये, तब तक हरेला बोया नहीं जाता है। एक छूट भी है कि यदि परिवार में किसी की गाय ने इस दिन बच्चा दे दिया तो भी हरेला बोया जायेगा।
उत्तराखण्ड में हरेले के त्यौहार को “वृक्षारोपण त्यौहार” के रुप में भी मनाया जाता है। श्रावण मास के हरेला त्यौहार के दिन घर में हरेला पूजे जाने के उपरान्त एक-एक पेड़ या पौधा अनिवार्य रुप से लगाये जाने की भी परम्परा है। माना जाता है कि इस हरेले के त्यौहार के दिन किसी भी पेड़ की टहनी को मिट्टी में रोपित कर दिया जाय, पांच दिन बाद उसमें जड़े निकल आती हैं और यह पेड़ हमेशा जीवित रहता है।
इस पर्व से संबंधित विस्तृत जानकारी हमारे फोरम के इस लिंक पर उपलब्ध है। आप सभी को हरेला पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
बहुत अच्छा, नेपाल मे भी इसी उत्साह के साथ मनाया जाता है सावन संक्रान्तिका यह पर्ब ।सब मित्रों को हरिभरि शुभकामनाये!!!!
महाराज, हमारे यहां बाराबीसी में जिमिदारों के यां हरेला नहीं बोया जाता। आमाओं से पूछा तो उन्होंने बताया कि “इजा, हमारे यहां बिरुड़ भिगाते हैं, इसलिये हरेला नहीं बोते।” हमारे यहां गुरुओं (पंडितों) के यहां हरेला बोया जाता है और वे ही घर-घर हरेला पहुंचाते हैं। जिसकी उन्हें दक्षिणा दी जाती है।
happy harela
sare bharat vasiyo ko harela ki hardik subh kamanayon……………………..
hello dosto i m mast pahadi person……happy harela to u all
dosto me ek pahadi person hu…..muje pahadi tyohar bahut pasand h…..hum apne ghar m in tyoharo ko achhe se manate h…..
इस पारम्परिक त्यौहार की मूल भावना पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी है. ऐसे त्यौहार को राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करके पेड़-पौधे लगाने के प्रति लोगों को जागरूक करना जरूरी है.
‘यदि हरेले के दिन किसी परिवार में किसी की मृत्यु हो जाये तो जब तक हरेले के दिन उस घर में किसी का जन्म न हो जाये, तब तक हरेला बोया नहीं जाता है। एक छूट भी है कि यदि परिवार में किसी की गाय ने इस दिन बच्चा दे दिया तो भी हरेला बोया जायेगा।’
-पहाड़ों में यह परम्परा अन्य त्योहारों के लिए भी मान्य है.
हरेले का त्योहर तो बचपन से ही मनता देखते आ रहे हैं और यहाँ प्रवास में आज भी यथा शक्ति मनाते हैं.लेकिन इस लेख से कुछ ऐसी बातें भी पता चलीं जो अब तक ज्ञात नहीं थीं.
Mujhe uttrakhandi hone ka garv hai, yahan ki riti revaj tyoahar mujhe pasand hai.
हरेला पर यह लेख अच्छा लगा। एक अनुरोध है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि पूरे वर्ष के अपने त्यौहार व हरेला जैसे त्यौहारों से सम्बद्ध हरेला बोने के दिन का पूरा पंचांग सा बनाकर उत्तराखंड सम्बन्धित ब्लॉग्स में लगा दिया जाए। यदि ऐसा किया जाए तो पहाड़ से दूर रहने वालों का कोई त्यौहार छूटेगा नहीं।
घुघूती बासूती
[…] त्यौहार भी हरेले की ही तरह ऋतु आधारित त्यौहार है, हरेला […]
[…] और बीजों से सम्बन्धित त्यौहार "हरेला" है, पिथौरागढ में मनाया जाने वाला […]
हरेला त्योहार का सिर्फ हमे ही नही बल्कि
हर उत्तराखण्ड की नारी को इन्तजार रहता है
हरेली त्यौहार आलौ त आपण मैत जूल कनै तो सब यो त्यौहार क भली भाति मनाया
मै त घर बै भौत दुर छु पर मेरी इच्छा घर आहै भौते कररै
कलैकी हरयावै दिन मेरी दीदी आली मेरी बैणी आली
तो कतु भौल लागल घर मै
सबुकै हरयावै त्यौहारेकी
बधाँईया
sabhi pahadi bhaiyo ko harela utsav mubark ho kayo ki ye ek esa utsav he jo hame ye batata he ki rituwe aa gayi he inka welcome karo or sabhi me payar ka sandesh bato or ek dusre se payar karo,
[…] फोटो: मेरा पहाड़ संबंधित लेख….अनशन की सीमायेंइंदिरा राही भारत में पुरातन काल से ही उपवास की एक धार्मिक परम्परा रही है। मुस्लिम समुदाय में भी…सम्पादकीय : जनता बेवकूफ ना बने तो क्या करे….स्वामी रामदेव के बच जाने और स्वामी निगमानन्द के शहीद हो जाने के बाद देश और प्रदेश की राजनीति का कुरू…बहुतु कठिन है डगर पनघट की…वह एक अजीब दृश्य था। चैनल उसे सनसनीखेज बनाना चाहते थे और वह लगातार हास्यास्पद होता चला जा रहा था। एं…चिट्ठ्ठी पत्री :भ्रष्टाचार,नगर निगम और ब्रज मोहन शर्मा1-14 जून के अंक में भुवन बिष्ट का आलेख ‘भ्रष्टाचार से तरक्की का रास्ता है हजारे जी’ वर्तमान व्यवस्था…भ्रष्टाचार तो तरक्की का रास्ता है हजारे जी !‘पूरे देश का कहना है अन्ना हजारे गहना है।’ ‘जब तक सूरज चांद रहेगा अन्ना तेरी बात कहेगा’, ‘अन्ना नहीं… […]
achha shodh aadhaarit lekh lagta he.
sach me yaar apne pahaadi elaake jesha koi nahi i really love my uttrakhand
Thanks sir apne aacha lake likha hai hame garve hua ke hamare tyohare ko aapne sarvjanik kiya hai ham aapke aabhari hai
हम टेहरी गढ़वाल से हैं वहां पर चैत माह के नवरात्रों तथा आश्विन के नवरात्रों में हरियाली बोई जाती है इसे देवी माँ की पूजा के रूप में बोया जाता है। हरेला के बारे में विस्तार से जानकर अति प्रशन्नता हुई।
जानकारी अच्छी लगी, लेखक को आभार
harela parv ki sabhi uttarakhand k bhai bahen ko badhai
i am vicky garia from bageshwar live chandigarh
i like love harela festival i missing my childhood days uk i love uk
bahut achi jaankari mili or kafi acha lagta hai jb kuch hme nya content milta hai aapne uttrakhand ke baare or sabse achi bat yaha hai ki jo jaager hm roj ghr me dekhte the aaj us
ke baare me bhi padh liya or samjh bhi liya
Kisi ne theek kaha ke yadi pure verse ka panchang kumaoni tuoharoi ke anusar ban jaye to perdesh mei rahane waloi ko suvidha ho jay.
हरेला पर्व कुमाऊँनी संस्कृति का प्राण है।हमारे पिताजी डा० नारायणदत्त पालीवाल जी जब तक जीवित रहे,उन्होंने हमें इस पर्व से जोड़े रखा। यदि हमें हरेला की सही तिथि पता रहे तो हम भी इस परम्परा को आगे बढ़ा सकते हैं।सभी को हरेला पर्व मुबारक।
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Maine bhee bahut achhi trah se manaaya hai es tyohar ko par ab bahut jyaada miss karta hun
आप सभी को हरेला पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
And special thank म्यार पहाड़ team,
they give us a very beautiful, and useful information about this festival…
Nice bahut badiy yaaro
Nice
Happy Harela Festival to all
A greatfull thanks from bottom of my heart for above information
हरेला पर्व सम्बन्धी जानकारी बहुत अच्छी लगी।लेखक को साधुवाद।
हरेला पर्व की सारगर्भित जानकारी के लिए धन्यवाद । हरेला गढ़वाल में उतना प्रचलित नहीं जितना कुमाऊँ में । अलबत्ता शारदेय और चैत्र नवरात्रों में जौ की हरियाली का प्रचलन गढ़वाल में अत्यधिक है ।
Just kisi NE is parv ki janjari ko duso ko btaya unka
Thanks but haert
Harela parva ke bare me our jaanna chahta hoon ki kya dobaara harela parva Suru karne ke liye kisi bachche ke paida hone ke alawa bachhde ka janm Lene ke alawa bhi koi our niyam h jis Ko karke bhi harele parva fhir se suruat ki ja sake kyonki Kai dashko se hamaare pariwar me koi bhi baby paida nahin hua. Please tell me
हरेले पर सुंदर लेख हेतु धन्यवाद। एक त्रुटि है कृपया ठीक कर लें। उरद, मडुवा व भट नही बोये जाते।
धन्यवाद।
[…] Source : http://www.merapahad.com […]