उत्तराखण्ड में प्रारम्भ से ही कृषि और पशुपालन आजीविका का मुख्य स्रोत रहा है। जटिल भौगोलिक परिस्थितियों के कारण व्यापार की संभावनाएं नगण्य थीं, लेकिन कम उपजाऊ जमीन होने के बावजूद कृषि और पशुपालन ही जीवनयापन के प्रमुख आधार थे। आज भी कृषि और पशुपालन से सम्बन्धित कई पारम्परिक लोक परम्पराएं और तीज-त्यौहार पहाड़ के ग्रामीण अंचलों में जीवित हैं। इन त्यौहारों में हरियाली और बीजों से सम्बन्धित त्यौहार “हरेला” है, पिथौरागढ में मनाया जाने वाला “हिलजात्रा” एक ऐसा पर्व है, जिसमें कृषि-पशुपालन को विशिष्ट मुखौटों और नृत्यों के साथ मैदान में प्रदर्शित किया जाता है। पशुधन की प्रचुरता का लुत्फ उठाने का त्यौहार घी-त्यार के रुप में मनाया जाता है, इसी प्रकार से दीपावली के दो दिन के बाद होने वाले “गोवर्धन पूजा” पर गाय-भैंस व बैलों को सजाया जाता है, जो पर्वतीय अंचल के लोगों के पशुप्रेम और उनके प्रति उत्तरदायित्व को दर्शाता है। इसी प्रकार से भादों (भाद्रपद) के महीने में मनाया जाने वाला “खतड़ुवा” पर्व भी मूलत: पशुओं की मंगलकामना के लिये मनाया जाने वाला पर्व है। कुछ राजनीतिक प्रपंचों और बंटवारे की भावना वाले लोगों ने इस त्यौहार के साथ कई मनगढन्त किस्से जोड़ दिये हैं। जिससे इस पर्व को मनाने का मूल उद्देश्य पीछे छूटता जा रहा है।
खतड़ुआ शब्द की उत्पत्ति “खातड़” या “खातड़ि” शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है रजाई या अन्य गरम कपड़े. गौरतलब है कि भाद्रपद की शुरुआत (सितम्बर मध्य) से पहाड़ों में जाड़ा धीरे-धीरे शुरु हो जाता है। यही वक्त है जब पहाड़ के लोग पिछली गर्मियों के बाद प्रयोग में नहीं लाये गये कपड़ों को निकाल कर धूप में सुखाते हैं और पहनना शुरू करते हैं. इस तरह यह त्यौहार वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद शीत ऋतु के आगमन का परिचायक है। इस त्यौहार के दिन गांवों में लोग अपने पशुओं के गोठ (गौशाला) को विशेष रूप से साफ करते हैं. पशुओं को नहला-धुला कर उनकी खास सफाई की जाती है और उन्हें पकवान बनाकर खिलाया जाता है। पशुओं के गोठ में मुलायम घास बिखेर दी जाती है. शीत ऋतु में हरी घास का अभाव हो जाता है, इसलिये “खतड़ुवा” के दिन पशुओं को भरपेट हरी घास खिलायी जाती है. शाम के समय घर की महिलाएं खतड़ुवा (एक छोटी मशाल) जलाकर उससे गौशाला के अन्दर लगे मकड़ी के जाले वगैरह साफ करती हैं और पूरे गौशाला के अन्दर इस मशाल (खतड़ुवा) को बार-बार घुमाया जाता है और भगवान से कामना की जाती है कि वो इन पशुओं को दुख-बीमारी से सदैव दूर रखें। गांव के बच्चे किसी चौराहे पर जलाने लायक लकड़ियों का एक बड़ा ढेर लगाते हैं गौशाला के अन्दर से मशाल लेकर महिलाएं भी इस ,चौराहे पर पहुंचती हैं और इस लकड़ियों के ढेर में “खतड़ुआ” समर्पित किये जाते हैं। ढेर को पशुओं को लगने वाली बिमारियों का प्रतीक मानकर “बुढी” जलायी जाती है. यह “बुढी” गाय-भैंस और बैल जैसे पशुओं को लगने वाली बीमारियों का प्रतीक मानी जाती हैं, जिनमें खुरपका और मुंहपका मुख्य हैं. इस चौराहे या ऊंची जगह पर आकर सभी खतड़ुआ जलती बुढी में डाल दिये जाते हैं और बच्चे जोर-जोर से चिल्लाते हुए गाते हैं-
भैल्लो जी भैल्लो, भैल्लो खतडुवा,
गै की जीत, खतडुवै की हार
भाग खतड़ुवा भाग
अर्थात गाय की जीत हो और खतड़ुआ (पशुधन को लगने वाली बिमारियों) की हार हो।
इसके साथ ही बच्चे पड़ोस के गांववालों को ऊंची आवाजों में उनकी गाय-भैंसों को लगने वाली बीमारियां अपने घर ले जाने के लिये भी आमन्त्रित करते हैं। इस अवसर पर हल्का-फुल्का आमोद-प्रमोद होता है और ककड़ी को प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाता है. इस तरह से यह त्यौहार पशुधन को स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट बने रहने की कामना के साथ समाप्त होता है। इस महत्वपूर्ण पर्व के सम्बन्ध में पिछले दशकों से कुछ भ्रान्तियां फैलायी जा रही हैं। एक तर्कहीन मान्यता के अनुसार कुमाऊं के सेनापति गैड़ सिंह ने गढवाल के खतड़ सिंग (खतड़ुवा) सेनापति को हराया था, उसके बाद यह त्यौहार शुरू हुआ. लेकिन अब जबकि लगभग सभी इतिहासकार वर्तमान उत्तराखण्ड के इतिहास में गैड़ सिंह या खतड़ सिंह जैसे व्यक्तित्व की उपस्थिति और इस युद्ध की सच्चाई को नकार चुके हैं तो इन सब कुतर्कों पर बहस करना मूर्खता ही माना जायेगा। इस काल्पनिक युद्ध की घटना का उल्लेख गढवाल या कुमाऊं के किसी ऐतिहासिक वर्णन में नही है। कुमाऊंनी के प्रसिद्ध कवि श्री बंशीधर पाठक “जिज्ञासु” की कविता की कुछ पंक्तियां इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय हैं.-
अमरकोश पढ़ी, इतिहास पन्ना पलटीं, खतड़सिंग न मिल, गैड़ नि मिल।
कथ्यार पुछिन, पुछ्यार पुछिन, गणत करै, जागर लगै,
बैसि भैट्य़ुं, रमौल सुणों, भारत सुणों, खतड़सिंग नि मिल, गैड़ नि मिल,
स्याल्दे-बिखौती गयूं, देविधुरै बग्वाल गयूं, जागसर गयूं, बागसर गयूं,
अलम्वाड़ कि नन्दादेवी गयूं, खतड़सिंग नि मिल, गैड़ नि मिल।
यह भी सोचनीय विषय है कि पूरे विश्व के इतिहास में आज तक कोई ऐसा युद्ध नहीं हुआ, जिसमें जीत या हार का श्रेय किसी सेनापति को दिया गया हो। हमेशा ही युद्ध की जीत या हार का श्रेय सिर्फ और सिर्फ राजा को ही मिला है। दूसरा पक्ष यह भी है कि उत्तराखण्ड का सबसे प्रमाणिक इतिहास एटकिन्सन के गजेटियर को माना जाता है, क्योंकि उसने ही पूरे उत्तराखण्ड में घूमकर इसकी रचना की थी। यदि ऐसा कुछ होता तो उन्होंने इसका भी वर्णन जरुर किया होता। इसलिये अब जरूरत है कि हम अपनी समृद्ध धरोहरों के रूप में चले आ रहे खतड़ुआ जैसे अन्य पर्वों को उनमें निहित सकारात्मक सन्देश के साथ मनायें और उनसे जुड़ी भ्रान्तियों को यथाशीघ्र मिटाते चलें जायें, जिससे आने वाली पीढियां भी इन परम्पराओं और लोकपर्वों को खुले मन से मना पायें।
लेखक- श्री हेम पन्त
thnx… for telling d true story bout khatdwa…till now i was also having d misconception of it being celebration of winning fight frm som ruler of gharwal.
सामान्यत: यह पर्व 17 सितम्बर को पड़ता है.. इस साल भी खतड़ुआ पर्व 17 सितम्बर को मनाया जायेगा..
This is very -2 exclusive article by Hem Ji. Good job. I am sure all readers will like this.
Dear Pant ji,
Aap samay samay per itni sari jaankariyan dete rahte ho jis ke karan hum sabhi logon ko update hota rahta hai.
kya aap kumaun ki itihas arrange karva sakte ho?
i will be very thankful to you and wish very best of health and wealth for forever.
इस पर्व का वास्तविक रुप सभी के सामने लाने के लिये कोटिशः धन्यवाद। हम सभी को भ्रान्तियां दूर कर लोक पर्वों को पुरातन परम्परा के अनुसार मनाया ही जाना चाहिये।
The whole team of “Mera Pahad” deserves due recognition for their fervent efforts being put by them to bring wide awareness amongst populace of the country about our heritage, rich and varied culture.My deep appreciation to all of you.
Hem ji. Dhanyawad. Khatoduwa bare mai itna kuch batane ke liye.
Thanks HEMU BHAI for useful info, keep it up
Pant Ji ,
Bhotai Badiya Lekhichh Tumule ” Khatarwa Ka baar mai ” Great job done” Hare Hara !
khateduwa song bhello ti bhello khtedua bhello gaay ki jeet khteduwa ki haar.
Hem Ji,
Bahut badiya….aapke likhoon ko padke garv hota hai ki hum aapke mitr hain. Bahut badiya….
Aaapko Khatauwa ki dher saari badhayiyaan.
Great job sir……….
I need more fact & festivals related with animals & birds.
The whole team of “Mera Pahad” deserves due recognition for their fervent efforts being put by them to bring wide awareness amongst populace of the country about our heritage, rich and varied culture.My deep appreciation to all of you.
Read more: http://www.merapahad.com/khatarua-animal-protection-festival-in-uttarakhand/#ixzz0zyuEUtWR
Regards
sskarki
Is prakar ki jankariyon se humari samajik riti riwajon ko jeewit wa chiraayu rakha ja sakta hai…
Aapke is prayas e liye haardik badahi Hem bhai…
Neeraj Bawari
Thanks a lot Pant ji……………
Bahut Bahut Dhanyabad Hem Ji,
app ne khataurwa ke bare mai bhut achhi jankri di app ka tahe dil se sukriya aada karta hu aapke likhoon ko padke kar hume apne uttrakhand par or app jaise bhaiye par bahut garv mahsush karte hain.
Read more: http://www.merapahad.com/khatarua-animal-protection-festival-in-uttarakhand/#ixzz10ENjMPOw
Thanks Pantji…………….for this valueable knowledge……..
Hem ji,
Namskar, aap pahar ki sasnkirti ke bare me jankari jutate rahen . shubkamnaye.
mera Uttarakhand mahaan, sabko mil-julkar apne teej tyohar khule dil se manane chahiye aur bhramo ko dur karna chahiye.
Thx to Merapahad
[…] गते को कुमाऊँ में मनाया जाने वाला खतडुवा भी पशुओं का त्यौहार है। इस दिन गाँव के सभी घरों में भांग की […]
Hi ..its really a important fact about this festival..I was also not aware of this infact ham manate sare pahadi tayohar hain but sach to ye hai ki hame manane ka karan nahi pata hota…aise me ye sabhi jankaari jo aapke dwara milti hai ..its very usefull… thnx a lot for providing such information..
mai pahar ki sanskriti se banut hi prabhawit hoo aap logo ka ,mera pahar naam. se chalayi jaane waali ye website bahut hi kargar hogi ki log pahar ki upyogita samajh sake. ganesh graam- arey bageshwar.
thanks for providing this useful information.
Jay Hind, Jay Uttrakhand.
Aapki kahani padkar bahut achchha laga aap uttarakhand ke sachche saput ho.
aap log isi tarah pahad ki sanskirti ko bacha sakte ho warna hamari sanskirti ko khatra hai,
From,
Chandan Mehta
Anarsa, Bageshwar
achha lekh hai jankari se bhara sath hi vishleshan parak bhi.
खतड़वा संकराद
बच्चों-किषोरों का झुंड
उल्लास से भरा
इकट्ठा करने में जुटा है केड़-पात
मक्के के ठँूठ , सूखे झील-झंखाड़
ढूँढ-ढूँढकर लाए जा रहे हैं
गाँव भर से
सबसे ऊँची टिकड़ी में गाँव की
बनाया जा रहा है ढेर ।
घसियारिनें लगी हैं
घास के पूले के पूले काटने में
भर पेट खिलाना जो है आज के दिन
इतना कि
गाएँ उसी का सोत्तर बनाकर सो जाएंँ।
षाम होने को आई
लौट रही हैं घसियारिनें
घास का लूटा सा ही पीठ में लादे
इसी घास से बनाए जाएंगे बुड़ि के पुतले
डाले जाएंगे –
गोशाला की छत पर
गोबर के खात पर
लौकी-कद्दू-ककड़ी -तोरई के बेलों में
एक साथ ले जाई जाएगी
टिकड़ी में बने ढेर में जलाने ।
अब सारी तैयारी पूरी हो चुकी है
जल उठी है मषालें
सिन्ने के ढाँक साथ बुड़ि का पुलता
पकड़कर
भीतर से लेकर गोठ के ओने-कोने से
झाड़-पोछकर
बाहर भगाया जा रहा है बुड़ि को।
हाँेक लगाकर –
‘भ्यार निकल बुड़ि ,भ्यार निकल ’।
दौड़ पड़े हैं सभी टिकड़ी की ओर
मषाले लहराते
समवेत स्वर में चीखते-चिल्लाते
सार गाँव गूँज उठा है
ऐसे में भला बुड़ि कहाँ छुपी रह सकती है
कितना सुदंर लग रहा है गाँव
अंधकार दुबक रहा है जान बचाकर ।
एक इषारा पाते ही
धू-धू जल उठा है केड़-पात का ढेर
झोंक दी गईं हैं उसमें सारे के सारे पुतले ।
फैल गईं हैं आसमान में असंख्य चिनगारियाँ
हर पहाड़ी ने
थाम ली हो जैसे एक-एक मषाल
और समवेत स्वर चक्र बन घूमने लगे हों घाटी में ।
पता नहीं कब से
हर साल
बुड़ि को खदेड़कर सुपुर्दे खाक करते
आ रहे हैं ये लोग
पर बुड़ि है कि फिर -फिर लौट आती है।
Thanks Hemji for analyzing the history in right spirit.
हेम पन्त जी , आपको बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने इस भ्रान्ति को दूर किया ! लगभग 98% लोग सच नही जानते थे … खुद हमने अपने बूबू लोंगों से भी राजा वाली बात सुनी थी .. जो आज आपने भ्रम दूर करा दिया..
कपिल नेगी
नौबारा (द्वाराहाट)
अल्मोड़ा
Great work Hem Daijyu. I proud of you. Keep going i’ m always with you guys. I m also doing some big work for my Dev Bhumi Uttarakhand. Jai Uttarakhand.
excellent attempt to explore the rich cultural traditions of uttarakhand that carries social values of a rural set up. at the same time it is also a good attempt to condemn the misgivings and distortions of history
भाई हेम ने एक लिंक भेजा है खतडआ पर| सटीक विवेचन है | त्योहारों के साथ भेद बुद्धि जोड़ने वाले जो व्याख्या करते हैं वह निराधार है, उसे निरुत्साहित किया जाना चाहिए |
मेरी इस बारे में एक और दृष्टि है | जब सन्देश भेजने के लिए सिर्फ दूत ही – पैदल या संपन्न हों तो घोड़े से – जा सकते थे तब यह सन्देश प्रसारण की बहुत पुरानी और प्रभावी तकनीक थी | प्रसारण स्थल की पहाडी में आग जला दी और उसे देख कर दूसरे गाँव ने और देखते देखते प्रकाश की सी चाल से सन्देश फ़ैल गया | किसी घटना/प्रतीक्षित संवाद के घटित होने न होने का सन्देश तो इससे भेजा ही जा सकता था | यह उस आदिम उपाय का बचा रूप हो सकता है |
यह बच्चों की खुशी का पर्व भी है | बच्चे एक टहनी को फूलों से सजाते हैं, उसमे छोटी सी ककड़ी (खीरा) टांगते हैं और इस ‘फुलोरी’ को और मशालें लेकर खुशी-खुशी खतडआ-स्थल पहुँचते हैं |
इस साल भी खतड़ुआ पर्व 17 सितम्बर को मनाया जायेगा..
Pant ji this was really a genuine information about our healthy culture. Thanks for sharing this.
बचपन की सुखद परछाइयॉ ऑखो के आगे तैरने लगी है कहॉ गये वो दिन जब गॉव की पथरीले रास्तो पर मशाल थामे पंक्तिबद्ध लोग एक स्वर में गायन करते ककड़ी के मवेशी.धूप की खूश्बू .thanks ये सब फिर से याद दिलाने के लिये मुझ में मर रहे पहाड़ का जगाने के लिये.
मेरापहाड़ डॉट कॉम एक बेहतरीन वेबसाइट हैं और पहाड़ के बारे में बहुत जानकारियां भी प्रदान करती है |
हेम जी का लेख पढ़ा बहुत अच्छी जानकारी है.
आज पहाड़ का जो हाल है , उसे देख कर बहुत ही दुःख होता है. सबसे बड़ी कमजोरी है एकता की कमी |
वक्त आ गया है की हम सब उत्तराखण्ड वासी एक सूत्र में जुड़ें और पहाड़ को फिर से सवाँरे |
अच्छी जानकारी है।।
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*उत्तराखंड के सभी जिलों की संक्षिप्त मगर* *महत्वपूर्ण जानकारी।*
आओ बच्चों देखो झाँकी अपने उत्तराखंड धाम की।
इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
*(1)*
🔼 ये देखो अल्मोड़ा यहाँ कितनी सुंदर हरियाली है।
🔼 सबको है आकर्षित करती धरती ये मतवाली है।
🔼 दूर-दूर तक दृश्य विहंगम बदरा काली-काली है।
🔼 सबसे प्यारी नैना देवी झाँकी यहाँ निराली है।
🔼 जागेश्वर मंदिर में बजते घंटे सुबह और शाम जी।
🔼 इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
🔼 जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।
*(2)*
🔼 बागेश्वर को देखो यहाँ कितना सुंदर विस्तार है।
🔼 सुंदरता में इसकी महिमा चारों ओर अपार है।
🔼 धरती से आकाश चूमते बाँज-बुराँस का प्यार है।
🔼 सचमुच में ये पावन धरती स्वर्ग का अवतार है।
🔼 मन को ठंडक मिलती है जब लेते इसका नाम जी।
🔼 इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
🔼 जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।
*(3)*
🔼 चमोली को शोभित करता बद्रीनाथ का धाम है।
🔼 गोपेश्वर भी है यहाँ पर हेमकुंड भी साथ है।
🔼 औली में है बर्फ चमकती सुबह, दिन और रात है।
🔼 फूलों की घाटी का सुंदरता में अदभुत् हाथ है।
🔼 तपकुंड, विष्णु प्रयाग, पंच प्रयाग है जान जी।
🔼 इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
🔼 जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।
*(4)*
🔼 चंपावत में बालेश्वर मंदिर ये बड़ा ही प्यारा है।
🔼 रीठा साहब यहाँ पर सिखों का गुरुद्वारा है।
🔼 पंचेश्वर और देवीधुरा ने इस धरती को तारा है।
🔼 नागनाथ के मंदिर का भी यहाँ पर बड़ा सहारा है।
🔼 वन्य जीवों से भरे हुए हैं यहाँ के हरे मैदान जी।
🔼 इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
🔼 जय हो उत्तरा खंड, जय हो उत्तराखंड।
*(5)*
🔼 देखो देहरादून यहाँ की ये ही तो राजधानी है।
🔼 अंग्रेजों की सत्ता की यहाँ पर कई निशानी हैं।
🔼 घंटा-घर आकाश चूमता आई.एम.ए. पहचानी है।
🔼 लीची के हैं बाग यहाँ पर और मसूरी रानी है।
🔼 शिक्षा में भी देहरादून रखता है प्रथम स्थान जी।
🔼 इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
🔼 जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।
*(6)*
🔼 कितना पावन और निराला अपना ये हरिद्वार है।
🔼 देवलोक से आती सीधी गंगा माँ की धार है।
🔼 वेदों और पुराणों में भी गाथा बारम्बार है।
🔼 जीवन और मरण का देखो यही आखिरी सार है।
🔼 इस पावन धरती पर देवों ने भी किया बखान जी।
🔼 इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
🔼 जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।
*(7)*
🔼 अदभुत् सुंदर कितना प्यारा अपना नैनीताल है।
🔼 चारों ओर यहाँ पर फैला झीलों का जंजाल है।
🔼 चाइना पीक यहाँ पर चोटी बहुत ही बेमिसाल है।
🔼 इस धरती को गर्वित करते तल्ली-मल्ली ताल हैं।
🔼 मृदुभाषी हैं लोग यहाँ के हँसकर करें सलाम जी।
🔼 इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
🔼 जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।
*(8)*
🔼 पौड़ी जिले की उत्तराखंड में एक अलग पहचान है।
🔼 नागर्जा का मंदिर इसमें ज्वालपा माँ की शान है।
🔼 बिंसर महादेव यहाँ है, ताराकुंड भी जान है।
🔼 सचमुच इसमें रचते-बसते उत्तराखंड के प्राण हैं।
🔼 लोकगीत संगीत में पौड़ी का है ऊँचा नाम जी।
🔼 इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
🔼 जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।
*(9)*
🔼 सीमा की है रक्षा करता पिथौरागढ़ महान है।
🔼 उल्का देवी मंदिर की भी एक नई पहचान है।
🔼 राय गुफा भी अदभुत् इसमें, भटकोट स्थान है।
🔼 हनुमान गढ़ी में जुटती रोज़ भीड़ तमाम है।
🔼 कई बार बचाई इसने हम लोगों की आन जी।
🔼 इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
🔼 जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।
*(10)*
🔼 अलकनंदा-मंदाकिनी का संगम रुद्रप्रयाग है।
🔼 कहीं पर शीतल धारा है कहीं उफनती आग है।
🔼 अगस्तमुनि बसुकेदार है केदारनाथ का राग है।
🔼 गुप्तकाशी, कालीमठ है मद्महेश्वर, तुंगनाथ है।
🔼 यहाँ थकावट को मिलता है अदभुत् एक विराम जी।
🔼 इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
🔼 जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।
*(11)*
🔼 देखो जिला ये टिहरी का श्रीदेव सुमन से वीर पले।
🔼 कितने उन पर राजा के भाले, बर्छी, तीर चले।
🔼 भूखे रहे 84 दिन तक पर ना उनके नीर चले।
🔼 1944 में दुनिया से बनकर वे पीर चले।
🔼 मरकर वो इतिहास बन गए गाथा पूरे ग्राम की।
🔼 इस मिट्टी को झुककर चूमो शत्-शत् करो प्रणाम भी।
🔼 जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।
Galat Hai Bhai Sahab , ranjnitik karan ho Sakta hai per Katarwa parv ka mehtava Kuch aur Hai !!!!!!! Kumaon ka itihaas by B>D. Pandey !!!! the reason in the Himalayas by – Sir Holmes trang !!!!!!! Aur vibhin Taampatro me Darj Lekho Ke aadhar pe , ye bataya Gaya hai Ki !!!! Kyu Is parv ko manaya jata hai aur Kis prakaar Dehradun Chetr tak Kumaun District me aata tha !!!!! Me Koi yudh Naa Cherna Chahunga yahan Kuch likh Ker !!!! per aapki Janakari Ke Lia bata DU !!!!!!
Uttarakhand ki ekta ka prayas sarahniy h dhanyavad. Soch nayi josh naya.
That is what i and many other youth of uttarakhand want to know. Thanks a lot to author