चन्द्र शेखर लोहुमी (1904-1984)
अल्मोड़ा जिले के सतराली गांव के एक गरीब किसान श्री बचीराम लोहनी के घर वर्ष १९०४ में जन्मे चन्द्र शेखर लोहुमी जी ने मात्र हाईस्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की थी, इन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा से वह कर दिखाया, जो साधन संपन्न वैज्ञानिकों के लिये एक चुनौती बन गया।
लोहुमी जी ने १९३२ में प्रथम श्रेणी में मिडिल की परीक्षा पास की और उसके बाद अध्यापन को अपना पेशा बनाया। लोहुमी जी ने पढ़ाई की एक सुगम विधि भी तैयार की और उसी विधि से छात्रों को पढ़ाने लगे। इससे प्रभावित होकर तत्कालीन शिक्षा मंत्री (१९३२) कमलापति त्रिपाठी जी ने इन्हें ५०० रु० का अनुदान दिया और १९६४ में इन्हें राष्ट्रपति के हाथों इन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला।
१९६७ में इन्होंने लेन्टाना (कुरी घास) को नष्ट करने वाले कीट की खोज कर तहलका मचा दिया। १९७८ में जैव विज्ञान चयनिका के अंक १ में इन्होंने लिखा था कि “१८०७ में कुछ पुष्प प्रेमी अंग्रेज अपने साथ मैक्सिको से एक फूलों की झाड़ी साथ लाये थे। इसके कुछ पौधे नैनीताल और हल्द्वानी के पास कंकर वाली कोठी में लगाये गये थे। शनैः-शनैः यह झाड़ी पूरे भाबर क्षेत्र और पहाड़ों में भी फैल गई। आज तो स्थिति यह है कि लेन्टाना उत्तराखण्ड के घाटी इलाकों में भी फैल गया है। हजारों एकड़ जमीन इस घास के प्रभाव में आने के कारण कृ्षि विहीन हो गई है” लेन्टाना बग के कीट को खोजने के लिये मास्टर जी ने ४ साल तक अथक प्रयास किया, इसके लिये उन्होंने २४ किस्म के अनाज, ६ फूलों, १८ फलों, २३ तरकारियों, २४ झाड़ियों, ३७ वन वृक्षों और २५ जलीय पौधों पर परीक्षण किया। इनके इस शोध को विश्व भर के सभी कीट विग्यानियों और वनस्पति शाष्त्रियों ने एकमत से स्वीकार किया। इस जैवकीय परीक्षण के लिए आई०सी०ए०आर० (इण्डियन काउन्सिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च) ने इन्हें १५००० का किदवई पुरस्कार देकर सम्मानित किया। प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने ५००० और पंतनगर वि०वि० ने १८००० का नकद पारितोषिक दिया। पन्तनगर वि०वि० ने पांच साल तक १०० रुपये की मासिक सहायता भी दी और कुमाऊं वि०वि० ने भी १००० का पारितोषिक दिया।
लेन्टाना को जैविक ढंग से नष्ट करने की जानकारी देने के लिये इन्हें लखनऊ और दिल्ली से टी०वी० और रेडियो पर वार्ता के लिये बुलाया गया। पन्तनगर, कुमाऊ, जे एन यू, पूसा इंस्टीट्यूट, विवेकानन्द अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा ने भी इन्हें परीक्षण से प्राप्त उपलब्धियों की जानकारी लेने के लिये आमंत्रित किया। १९७४ में बेसिक शिक्षा परिषद ने इन्हें परिषद का सदस्य मनोनीत किया। १९७६ में जिलाधिकारी नैनीताल और अल्मोड़ा ने इनका नाम पद्मश्री पुरस्कार के लिये नामित किया, लेकिन यथासमय संस्तुति न पहुंचने के कारण वह इस पुरस्कार से वंचित रह गये।
लोहुमी जी ने सुर और लोनिया व ईटवा (ईट-पत्थर) पर १९७५ से अन्वेषण कार्य प्रारम्भ किया, इस विषय पर आपका विस्तृत लेख ८ अक्टूबर, १९७८ के साप्ताहिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित हुआ। मक्के की डंठल की राख पर आपने २ साल तक शोध किया, उस पर योजना भेजी, योजना विज्ञान और प्रोद्योगिकी विभाग, उ०प्र० से स्वीकृत हो गई, यह योजना अभी पंतनगर वि०वि० में चलाई जा रही है। ११ अगस्त, १९७६ को सप्रू हाउस, दिल्ली में भारतवर्ष के वैज्ञानिकों का सम्मेलन हुआ। सम्मेलन में “जैवकीय विधि से नियंत्रण तथा विज्ञान कैसे लिखा जाय” विषय पर इन्होंने वैज्ञानिकों के सामने अपने विचार रखे। सभी ने इनकी मुक्त कंठ से सराहना की। तिपतिया घास और तुन की लकड़ी पर भी इनके प्रयोग सफल रहे। मधुमक्खी पालन पर भी आपने अन्वेषण किया।
लेन्टाना बग पर आपने एक पुस्तक लिखी है, जो इण्डियन काउन्सिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च, दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई है। यह पुस्तक देश और विदेश की भाषाओं में भी प्रकाशित हुई है। लोहुमी जी जैसे विज्ञान और अंग्रेजी से अनभिज्ञ व्यक्ति ने वह कर दिखाया, जो साधन संपन्न वैज्ञानिक नहीं कर सके।
(स्व० लोहुमी जी का दुर्लभ चित्र उनके भतीजे श्री मुकेश लोहनी जी ने उपलब्ध कराया है, इस हेतु मेरा पहाड़ उनका हृदय से आभार प्रकट करता है।)
[…] देखिए क्या याद आता है? ”याद आए, बुजुर्ग चंद्रशेखर लोहुमी जी याद आए जिन्होंने कभी कुरी के कीड़े […]
uttrakhand is very good place for summer , thx for introduce lohumi jee achivements.
is jankari ko sabhi ke samne lane ke liye dhanyavad
[…] लिये होती तो पहाड़ को गर्व होता। एक थे चंद्रशेखर लोहुमी। हाईस्कूल पास शिक्षक, राष्ट्रपति […]
I am thankfull for highliting the research work on LANTA CAMARA dangerous weed by my dedicated father late Chandra Sekher Lohumi. I am interested to supply the valuable information about Late Lohumi and various works done by him. Thanks.
Exclusive One
Very nice information about Chandra Shekhar Lohumi. Lekin inhe Uttarakhand me itna samman nahi mila jitna milna chahiye tha …Kuri Ghass (Lantana ) Abhi bhi uttarakhand me bahut teji se fail raha hai. or is prajati ne kai sari anya paudhon ki prajati ke astitwa ko samapt karne ki kagar per hai. agar ise abhi bhi nahi roka gaya to ye aage chalkar humari mulyawaan paudhon ki prajatiyo ko bhi samapt kar dega. hume viswaas hai ki hum ek din Lantana ko jad se he mita denge.. isme humare Yuva vegyaniko ka saath chahiye.
i love my pahad kb jula pahad
अपने कुल के महान पूर्वज स्व श्री चन्द्रशेखर लोहुमी जी के बारे में पढ़कर सीना गर्व से और चौड़ा हो गया। ऐसे महान व्यक्ति को शत शत नमन।
उत्तराखंड के (मुख्यतः सत्राली, अल्मोड़ा) के लोहनी कुल के बारे में, इनकी संख्या कम होने के कारण अन्य लोग बहुत कम जानते हैं। जबकी इस कुल में अनेको विद्धवान लोग हमेशा से होते रहे हैं, जिन्होंने देश- विदेश में अपने कार्यो से ख्याति प्राप्त की हैं। आशा हैं इनके विषय में शोध कर और अधिक जानकारी पाठको के सामने रखी जायेगी।