होली का त्यौहार रंगों का त्यौहार है,धूम का त्यौहार है। लेकिन उत्तराखण्ड के कुमाऊं मण्डल में होली रंगो के साथ-साथ रागों के संगम का त्यौहार है। इसे अनूठी होली कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि यहां होली सिर्फ रंगो से ही नहीं बल्कि रागों से भी खोली जाती है। पौष माह के पहले सप्ताह से ही तथा बसन्त पंचमी के दिन से ही गांवों में बैठकी होली का दौर शुरु हो जाता है। होल्यार हारमोनियम, तबला और हुड़के की थाप पर भक्तिमय होलियों से बैठकी होली शुरु करते हैं। इन होलियों को शाष्त्रीय रागों पर गाया जाता है, जिनमें दादरा और ठुमरी ज्यादा प्रचलित है। अधिकतर बैठकी होलियों में राग धमार से होली का आह्वान किया जाता है तथा राग श्याम कल्याण से होली की शुरुआत की जाती है, बीच में समयानुसार अन्य रागों पर आधारित होलियां गाई जाती हैं और इसका समापन राग भैरवी से किया जाता है।
बैठकी होली कुमाऊं के लोक संगीत में रची बसी होने के बाद भी इसकी भाषा ब्रज की है, सभी बंदिशें राग-रागिनियों पर गाई जाती हैं। यह खांटी शास्त्रीय गायन तो है, लेकिन इसे गाने का ढब भी थोड़ा अलग है। क्योंकि इसे समूह में गाया जाता है, लेकिन इसे सामूहिक गायन भी नहीं कहा जा सकता और न ही शास्त्रीय होली की तरह एकल गायन। महफिल में बैठा कोई भी व्यक्ति बंदिश गा सकता है, जिसे ’भाग लगाना’ कहा जाता है। अर्थात बैठकी होली में शामिल हर व्यक्ति श्रोता भी खुद है और होल्यार भी खुद है। बैठकी होली पौष माह के प्रारम्भ से शुरु हो जाती है बसन्त पंचमी तक इसमें आध्यात्मिक और भक्तिमय होलियां गाई जाती हैं, शिवरात्रि आते-आते इसमें श्रंगार रस का समावेश होने लगता है, उसके बाद तो श्रृंगार रस से सराबोर होलियां लोगों को झूमने के लिये विवश कर देते हैं। बैठकी होली में आपको भक्ति, वैराग्य, कृष्ण-गोपियों की ठिठोली, प्रेमी-प्रेमिका की तकरार, देवर-भाभी की छेड़छाड़ के रस मिल जायेंगे।
होली के मर्मज्ञों ने इसे और लोकप्रिय और सुगम बनाने के लिये होली की धमार और आंचर ताल में भी परिवर्तन किया। सो १४ मात्रा की धमार और १६ मात्रा की आंचर ताल का निर्माण किया गया। ऐसे ही अन्य तालों और रागों में भी थोड़ा सा परिवर्तन किया गया। बैठकी होली का दौर निरन्तर फाल्गुन एकादशी तक चलता रहता है। फाल्गुन एकादशी की द्याप्ता थान (देव मंदिर) पर चीर बंधन के बाद इसका स्थान खड़ी होली ले लेती है। जिसमें होल्यार खड़े होकर वृत्ताकार घूम-घूमकर गांव के हर घर के आंगन में होली गायन करते हैं।
इसके अतिरिक्त महिलाओं की बैठकी होली भी बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें महिलाओं के स्वभावानुसार श्रॄंगार रस की अधिकता होती है।
कुमाऊंनी होली के सम्पूर्ण रस्वादन हेतु हमारे फोरम के इस लिंक पर पधारें, यहां पर आपको, खड़ी और बैठकी होलियों के बोल, वीडियो और फोटो का संग्रह देखने को मिलेगा।
really its heart touching .
right now i am in africa, lekin mujhe ye sub dekh ke……….. bhot bhal lagna.
meur ghar balsuna-almora chu…
devendra
I like kumauni Holi this is very hart touching moment
me pahad me sheraghat ka rahne wala hu i am living in delhi
Deepak Singh Dobal
holi ki yaad aate hi gaon ki holi yaad aati hai bahut mast holi hoti hai …..
Sachmuch bahut achhi holi hoti hai par me kuch salo se bahar hu to ho nahi dekh paya hu. lekin bahut yaad aati hai.
This website is a heritage for our Pahari culture. It will not only bridge the Pahar with people living out side also maintain its importance among our up coming younger generation.They will not be ashamed to be called Pahari.They will be proud to be Pahari.
My heartiest best wishes to Mer Pahar team.
R.C.Chaturvedi
Delhi
happy holi tou allllllll………………………!
aap logo ka pahari prem hamari birasat hai…..aise hi banaye rakhana mere bhayio……I am fond of pahari holi…….really its ultimate …..
Naini tal / purnagiri sundar ramdik
मैं पिछले 8 साल बाद अपने पहाड़ की होली में सामिल हो रहा हूँ क्यूकि मैं एक केंद्रीय कर्मचारी हूँ किसी कारणवश मुझे होली के पर्व पर छुट्टी नहीं मिल पाई। जब भी कोई त्योहार आते मुझे अपने पहाड़ की बहुत याद आती और सोचता था आखिर मुझे अपने पहाड़ जाकर इन त्योहारों में इन लोक संस्कृतियों में सामिल होने का मौका कब मिल पायेगा।
लेकिन इस बार मुझे रंगों के इस पावन पर्व पर अपने पहाड़ी लोगों के साथ सामिल होने का मौका मिल रहा हैं।