उत्तराखण्ड एक कृषि प्रधान राज्य है, आदिकाल से यहां की सभ्यता जल, जंगल और जमीन से प्राप्त संसाधनों पर आधारित रही है। जिसकी पुष्टि यहां के लोक त्यौहार करते हैं, प्रकृति और कृषि का यहां के लोक जीवन में बहुत महत्व है, जिसे यहां की सभ्यता अपने लोक त्यौहारों के माध्यम से प्रदर्शित करती है। उत्तराखण्ड में हिन्दी मास की प्रत्येक १ गते यानी संक्रान्ति को लोक पर्व के रुप में मनाने का प्रचलन रहा है। भाद्रपद मास की संक्रान्ति को भी यहां घी-त्यार के रुप में मनाया जाता है।
यह त्यौहार भी हरेले की ही तरह ऋतु आधारित त्यौहार है, हरेला जहां बीजों को बोने और वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक त्यौहार है, वहीं घी-त्यार अंकुरित हो चुकी फसलों में बालियों के लग जाने पर मनाया जाने वाला त्यौहार है। इस त्यौहार के समय पूर्व में बोई गई फसलों पर बालियां लहलहाना शुरु कर देती हैं। साथ ही स्थानीय फलों, यथा अखरोट आदि के फल भी तैयार होने शुरु हो जाते हैं। मान्यता है कि अखरोट का फल घी-त्यार के बाद ही खाया जाता है। इसके अतिरिक्त माल्टा, नारंगी आदि ऋतु फलों में भी फूल अब फलों का आकार लेने लगते हैं। अपनी ऋतु आधारित फसलों और फलों पर आई बालियों और फलों को देखकर आनन्दित होते हुये, उनके मूर्त रुप लेने की कामना हेतु यह त्यौहार मनाया जाता है।
जिसके फलस्वरुप पर्याप्त मात्रा में पशुधन (दूध-दही-घी) भी प्राप्त होता है, इस त्यौहार में उनसे प्राप्त पशुधन को भी पर्याप्त इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन बेडू रोटि ( दाल की भरवां रोटियां) विशेष रुप से तैयार की जाती है और कटोरे में शुद्ध घी के साथ डुबोकर खाई जाती हैं, पिनालू (अरबी) की कोमल और बंद पत्तियों की सब्जी (गाबा) भी इस दिन विशेष रुप से बनाई जाती है। घर में घी से विभिन्न पारम्परिक पकवान बनाये जाते हैं। किसी न किसी रुप में घी खाना अनिवार्य माना जाता है, ऐसी भी मान्यता है कि जो इस दिन घी नहीं खाता, वह अगले जन्म में गनेल (घोंघा) बनता है। गाय के घी को प्रसाद स्वरुप सिर पर रखा जाता है और छोटे बच्चों की तालू (सिर के मध्य) पर मला जाता है।
इसे घृत संक्रान्ति या सिंह संक्रान्ति या ओलगी संकरात भी कहा जाता है, स्थानीय बोली में इसे ओलगिया भी कहते हैं। पहले चन्द राजवंश के समय अपनी कारीगरी तथा दस्तकारी की चीजों को दिखाकर शिल्पज्ञ लोग इस दिन पुरस्कार पाते थे तथा अन्य लोग भी साग-सब्जी, फल-फूल, दही-दूध, मिष्ठान्न तथा नाना प्रकार की उत्तमोत्तम चीज राज दरबार में ले जाते थे तथा मान्य पुरुषों की भेंट में भी ले जाते थे। यह ’ओलगे’ की प्रथा कहलाती थी। राजशाही खत्म होने के बाद भी गांव के पधानों के घर में यह सब चीजें ले जाने का प्रचलन था, लेकिन अब यह प्रथा विलुप्ति की कगार पर है।
इस दिन घर के मुख्य दरवाजे पर अनाज की एक बाली को गोबर से थापने की भी परम्परा है, जो इस बात का द्यौतक है कि यह त्यौहार प्रकृति, कृषि, पशु और मानव सभ्यता के बीच स्थाई संबंध को परिलक्षित और मजबूत करने वाला ऋतु आधारित लोक त्यौहार है। पहले समय में जब मनोरंजन के भौतिक साधनों की कमी थी तो उस समय इन्हीं छोटे-बड़े त्यौहारों के माध्यम से मनुष्य आनन्दित होता था। इस त्यौहार के समय खेती-बाड़ी तैयार हो रही होती थी, किसान अपनी खेती-किसानी देखकर उल्लासित और प्रफुल्लित होता था। प्रचुर पशुधन का इस्तेमाल कर आने वाले समय में कृषि कार्यों के लिये शारीरिक रुप से और अधिक सक्षम होने के लिये भी यह त्यौहार मनाया जाता था।
इस लेख को तैयार करने में उत्तराखण्ड के जनकवि श्री गिरीश तिवारी “गिरदा” तथा डा० शेखर पाठक की विशेष सहायता ली गई, इस हेतु उनको कोटिशः धन्यवाद।
sir g lekh padk ucha laga ghee tyar k baare mai nayee nayee baatein pata chali
घी-त्यार के बारे इतनी जानकारी प्रदान करने के लिये धन्यवाद।
VERY NICE
ghee tyar ke bare main batane ke liye aapka bahut 2 dhanyabad
Jai uttrakhand……
I LIKE KNOW ABOUT THE FESTIVAL “GHEE TYAR”.THANKS.
special thanks to all you to give such a great knowledge about GHEE TYAR
घी त्यौहार के बारे में जानकारी हेतु धन्यवाद.
grt knowledge on our regional culture. plzz add features like sharing the post on facebook or other social media sites so that more and more people can know about our culture. Thanxx… 🙂
Bahoot bahoot dhanyavaad. ese bahoot kam forum hain jo hamare pahad ki sanskriti k bare mai batate hain. mai v is forum ka hissa banna chahta hu. muze kya karna hoga?? please advise.
Nice
Thank you sir वैसे हमारे कुमाऊँ और गढ़वाल के त्यौहार लिस्ट होना चाहिए with date कब क्या त्यौहार है किसी को पता नही चलता जो भाई लोग बाहर है ।
Thanks for this valuable information really it shows how we are rich tradition that we have..
Bachpan ki saari yaadein taazi ho gai.dhanyabad.
Ghee ke tyohaar ki jaankaari ke liye Dhanyawaad…..
Its imaging testable
I love knowing about my culture, thanks for enlightening us about our unique culture and traditions.
Wow very nice…. Got to know about our culture and traditions