उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ à¤à¤• कृषि पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ राजà¥à¤¯ है, आदिकाल से यहां की सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ जल, जंगल और जमीन से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ संसाधनों पर आधारित रही है। जिसकी पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ यहां के लोक तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° करते हैं, पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और कृषि का यहां के लोक जीवन में बहà¥à¤¤ महतà¥à¤µ है, जिसे यहां की सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ अपने लोक तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के माधà¥à¤¯à¤® से पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¤ करती है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में हिनà¥à¤¦à¥€ मास की पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• १ गते यानी संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ को लोक परà¥à¤µ के रà¥à¤ª में मनाने का पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ रहा है। à¤à¤¾à¤¦à¥à¤°à¤ªà¤¦ मास की संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ को à¤à¥€ यहां घी-तà¥à¤¯à¤¾à¤° के रà¥à¤ª में मनाया जाता है।
यह तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° à¤à¥€ हरेले की ही तरह ऋतॠआधारित तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है, हरेला जहां बीजों को बोने और वरà¥à¤·à¤¾ ऋतॠके आगमन का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है, वहीं घी-तà¥à¤¯à¤¾à¤° अंकà¥à¤°à¤¿à¤¤ हो चà¥à¤•à¥€ फसलों में बालियों के लग जाने पर मनाया जाने वाला तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है। इस तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° के समय पूरà¥à¤µ में बोई गई फसलों पर बालियां लहलहाना शà¥à¤°à¥ कर देती हैं। साथ ही सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ फलों, यथा अखरोट आदि के फल à¤à¥€ तैयार होने शà¥à¤°à¥ हो जाते हैं। मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि अखरोट का फल घी-तà¥à¤¯à¤¾à¤° के बाद ही खाया जाता है। इसके अतिरिकà¥à¤¤ मालà¥à¤Ÿà¤¾, नारंगी आदि ऋतॠफलों में à¤à¥€ फूल अब फलों का आकार लेने लगते हैं। अपनी ऋतॠआधारित फसलों और फलों पर आई बालियों और फलों को देखकर आननà¥à¤¦à¤¿à¤¤ होते हà¥à¤¯à¥‡, उनके मूरà¥à¤¤ रà¥à¤ª लेने की कामना हेतॠयह तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° मनाया जाता है।
जिसके फलसà¥à¤µà¤°à¥à¤ª परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मातà¥à¤°à¤¾ में पशà¥à¤§à¤¨ (दूध-दही-घी) à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है, इस तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° में उनसे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ पशà¥à¤§à¤¨ को à¤à¥€ परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² किया जाता है। इस दिन बेडू रोटि ( दाल की à¤à¤°à¤µà¤¾à¤‚ रोटियां) विशेष रà¥à¤ª से तैयार की जाती है और कटोरे में शà¥à¤¦à¥à¤§ घी के साथ डà¥à¤¬à¥‹à¤•à¤° खाई जाती हैं, पिनालू (अरबी) की कोमल और बंद पतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की सबà¥à¤œà¥€ (गाबा)  à¤à¥€ इस दिन विशेष रà¥à¤ª से बनाई जाती है। घर में घी से विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पारमà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• पकवान बनाये जाते हैं। किसी न किसी रà¥à¤ª में घी खाना अनिवारà¥à¤¯ माना जाता है, à¤à¤¸à¥€ à¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि जो इस दिन घी नहीं खाता, वह अगले जनà¥à¤® में गनेल (घोंघा) बनता है। गाय के घी को पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª सिर पर रखा जाता है और छोटे बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की तालू (सिर के मधà¥à¤¯) पर मला जाता है।
इसे घृत संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ या सिंह संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿Â या ओलगी संकरात à¤à¥€ कहा जाता है, सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बोली में इसे ओलगिया à¤à¥€ कहते हैं। पहले चनà¥à¤¦ राजवंश के समय अपनी कारीगरी तथा दसà¥à¤¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ की चीजों को दिखाकर शिलà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž लोग इस दिन पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤° पाते थे तथा अनà¥à¤¯ लोग à¤à¥€ साग-सबà¥à¤œà¥€, फल-फूल, दही-दूध, मिषà¥à¤ ानà¥à¤¨ तथा नाना पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की उतà¥à¤¤à¤®à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® चीज राज दरबार में ले जाते थे तथा मानà¥à¤¯ पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की à¤à¥‡à¤‚ट में à¤à¥€ ले जाते थे। यह ’ओलगे’ की पà¥à¤°à¤¥à¤¾ कहलाती थी। राजशाही खतà¥à¤® होने के बाद à¤à¥€ गांव के पधानों के घर में यह सब चीजें ले जाने का पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ था, लेकिन अब यह पà¥à¤°à¤¥à¤¾ विलà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¿ की कगार पर है।
इस दिन घर के मà¥à¤–à¥à¤¯ दरवाजे पर अनाज की à¤à¤• बाली को गोबर से थापने की à¤à¥€ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ है, जो इस बात का दà¥à¤¯à¥Œà¤¤à¤• है कि यह तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, कृषि, पशॠऔर मानव सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के बीच सà¥à¤¥à¤¾à¤ˆ संबंध को परिलकà¥à¤·à¤¿à¤¤ और मजबूत करने वाला ऋतॠआधारित लोक तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है। पहले समय में जब मनोरंजन के à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• साधनों की कमी थी तो उस समय इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ छोटे-बड़े तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के माधà¥à¤¯à¤® से मनà¥à¤·à¥à¤¯ आननà¥à¤¦à¤¿à¤¤ होता था। इस तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° के समय खेती-बाड़ी तैयार हो रही होती थी, किसान अपनी खेती-किसानी देखकर उलà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¿à¤¤ और पà¥à¤°à¤«à¥à¤²à¥à¤²à¤¿à¤¤ होता था। पà¥à¤°à¤šà¥à¤° पशà¥à¤§à¤¨ का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² कर आने वाले समय में कृषि कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये शारीरिक रà¥à¤ª से और अधिक सकà¥à¤·à¤® होने के लिये à¤à¥€ यह तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° मनाया जाता था।
इस लेख को तैयार करने में उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के जनकवि शà¥à¤°à¥€ गिरीश तिवारी “गिरदा“ तथा डा० शेखर पाठक की विशेष सहायता ली गई, इस हेतॠउनको कोटिशः धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥¤
sir g lekh padk ucha laga ghee tyar k baare mai nayee nayee baatein pata chali
घी-तà¥à¤¯à¤¾à¤° के बारे इतनी जानकारी पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने के लिये धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥¤
VERY NICE
ghee tyar ke bare main batane ke liye aapka bahut 2 dhanyabad
Jai uttrakhand……
I LIKE KNOW ABOUT THE FESTIVAL “GHEE TYAR”.THANKS.
special thanks to all you to give such a great knowledge about GHEE TYAR
घी तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° के बारे में जानकारी हेतॠधनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦.
grt knowledge on our regional culture. plzz add features like sharing the post on facebook or other social media sites so that more and more people can know about our culture. Thanxx… 🙂
Bahoot bahoot dhanyavaad. ese bahoot kam forum hain jo hamare pahad ki sanskriti k bare mai batate hain. mai v is forum ka hissa banna chahta hu. muze kya karna hoga?? please advise.
Nice
Thank you sir वैसे हमारे कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤ और गà¥à¤µà¤¾à¤² के तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° लिसà¥à¤Ÿ होना चाहिठwith date कब कà¥à¤¯à¤¾ तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है किसी को पता नही चलता जो à¤à¤¾à¤ˆ लोग बाहर है ।
Thanks for this valuable information really it shows how we are rich tradition that we have..
Bachpan ki saari yaadein taazi ho gai.dhanyabad.
Ghee ke tyohaar ki jaankaari ke liye Dhanyawaad…..
Its imaging testable
I love knowing about my culture, thanks for enlightening us about our unique culture and traditions.
Wow very nice…. Got to know about our culture and traditions