बुलन्द हौंसलों और अथक प्रयासों के साथ किस तरह आदमी अपनी जीवन के संघर्षशील दिनों से पार पाकर पुन: अपने को स्थापित कर सकता है, इसका उदाहरण भला मीर रंजन नेगी से बेहतर कौन हो सकता है? अपनी जीवन गाथा को उन्होंने पुस्तक स्वरूप सामने रखा है और इसे उचित ही नाम दिया है – “From Gloom to Glory” उनके जीवन में भारी उथल-पुथल तब शुरु हुई, जब सन 1982 में एशिया कप के फाइनल में भारतीय टीम पाकिस्तान के हाथों पराजित हुई। इस भारतीय हाकी टीम के गोलकीपर मीर रंजन नेगी थे, उन पर पाकिस्तान को जिताने के लिये देश से गद्दारी करने के बेबुनियाद आरोप लगाये गये। इन शर्मनाक आरोपों ने नेगी जी को खेल की दुनिया से लगभग बाहर ही कर दिया था। राष्ट्रीय खेल की राष्ट्रीय टीम का यह गोलकीपर अचानक गुमनामी में खो गया. लेकिन मीर रंजन नेगी ने हाकी के प्रति अपने जुनून को कम नहीं होने दिया और भारतीय महिला हाकी टीम के कोच के रूप में सफलतापूर्वक अपनी पहचान को न सिर्फ पुन:स्थापित किया बल्कि भारत में महिला हाकी को एक नये मुकाम पर पहुंचा दिया। मीर रंजन के भारतीय महिला हॉकी टीम के गोलकीपिंग कोच नियुक्त होने के बाद 1998 एशियन गेम्स व 2002 में कॉमनवेल्थ गेम्स में महिला हाकी टीम स्वर्ण पदक जीतने में सफल हुई। हाकी टीम के सहायक कोच के रूप में उनकी टीम 2004 में एशियन हॉकी का स्वर्ण जीती थी।
मीर रंजन नेगी की इस संघर्षमय गाथा को बालीवुड के रुपहले पर्दे पर जब शाहरूख खान द्वार अभिनीत “चक दे इण्डिया” में दर्शकों के सामने रखा गया, तो यह फिल्म खेलों पर आधारित सर्वाधिक चर्चित और सफल फिल्म साबित हुई और “चक दे इण्डिया” भारतीय खेल प्रेमियों के लिये एक नारा ही बन गया। उनके जीवन पर आधारित फिल्म “चक दे इण्डिया” की सफलता के बाद मीर रंजन नेगी ग्लैमर की दुनिया से खुद को अलग नहीं रख पाये, और टीवी, फिल्मों में छा गये। सोनी के डांस शो “झलक दिखला जा” में नृत्य के मंच पर भी उन्होंने नया सीखने और कभी हार न मानने के अपने सकारात्मक गुणों के आधार पर वाह-वाही लूटी। इसके बाद वह कुछ फिल्मों में नजर आये और अपनी जीवनी “From Gloom to Glory” के माध्यम से अपने जीवन के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को जीवनी के रुप में दुनिया के सामने रखा, जो कि पहले अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित हुई थी और बाद में “मिशन चक दे” नाम से हिन्दी में प्रकाशित हुई। जल्द ही मीर रंजन नेगी निर्देशक राहुल ढोलकिया की आने वाली फिल्म “लम्हा” में वह एक सैनिक अफसर की एक महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आयेंगे।
मीर रंजन नेगी मूलत: अल्मोड़ा जिले के ओटला (मजखाली) गांव के निवासी हैं, लगभग पूरी जिन्दगी पहाड़ से बाहर बिताने के बावजूद उनमें एक सच्चे पहाड़ी की जिजीविषा और संघर्ष करने की क्षमता कूट-कूट कर भरी हुई है. व्यक्तिगत रूप से वह बहुत मिलनसार और सहज व्यक्ति हैं। उत्तराखण्ड से अपने सम्बन्धों को मजबूती देने के लिये उन्होंने उत्तराखण्ड के मशहूर लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी जी के एक गढवाली एलबम “मायाकु मुण्डारू” में “हरसु मामा” गाने पर अभिनय किया है और वह उत्तराखण्ड में हाकी प्रशिक्षण की बेहतर सुविधाएं जुटाने के लिये भी प्रयासरत हैं। पिछले दिनों भारतीय महिला हाकी टीम के कोच पर लगे यौन शोषण के आरोपों के बाद हाकी से जुड़े लगभग सभी प्रतिष्ठित खिलाड़ियों और अधिकारियों ने भारतीय महिला हाकी कोच के रूप में मीर रंजन नेगी को नियुक्त करने की मांग उठायी है। नेगी भी इस पद पर कार्य करने को इच्छुक नजर आ रहे हैं। आशा है जल्द ही इस विषय में निर्णय हो जायेगा और उत्तराखण्ड का यह सच्चा सपूत भारतीय हाकी को उसका खोया वैभव पुन: लौटाने के अपने सपनों को साकार करेगा।
आलेख- श्री हेम पन्त
नेगी जी का इंटरव्यू और उनके बारे में विस्तृत जानकारी आप हमारे फोरम के इस लिंक पर प्राप्त कर सकते हैं।
मीर रंजन नेगी के बारे में जानकर खुशी हुई. भारतीय हाकी अपने संक्रमण काल से गुजर रही है. ऐसे में मीर रंजन नेगी और परगट सिंह जैसे हाकी के दिग्गजों का महत्वपूर्ण पदों पर लौटना आवश्यक है.
नेगी जी को कोच पद के लिये और उनके निर्देशन में महिला हाकी टीम की सफलता, दोनों के लिये अग्रिम शुभकामनायें।
negi ji all the best we are always with u. we r proud of u.
We must feel proud about MIR daju’ achievements. God bless him.
Neg Da we r proud of u, plz do something in uttarakhand for sport, we have lots of talent in uttarakhand
नेगी जी के बारे में एक सच्चाई और जोड़ना चाहूंगा… 1982 में पाकिस्तान के साथ फ़ाईनल के ठीक एक रात पहले नेगी जी की तबियत अचानक खराब हो गयी थी और उनके मुंह से झाग निकलने लगा था.. उन्होने अपने कोच से कहा था की मै कल के मैच में नही खेल पाऊंगा, लेकिन कोच ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया.. और बेहद खराब तबियत में ही उन्हे मैच में उतार दिया गया था….वो मैच भारत 7-1 से हार गया था…मैच हारने के बाद मीडिया ने नेगी जी की मां से पूछा था की :”मैच हरवाने के लिये पाकिस्तान ने मीररंजन को कितने पैसे दिये थे”… इतना ही नही मैच से पहले पाकिस्तानी खिलाड़ियों से शिष्टाचार अभिवादन का भी उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा और हार के बाद उनकी माँ और मंगेतर से भी यह सवाल पूछा गया कि हर गोल के लिए उन्होंने पाकिस्तानियों से कितना पैसा लिया था?
“बुलन्द हौंसले और धैर्य का दूसरा नाम- मीर रंजन नेगी”
its true