Uttarakhand Encyclopedia : उत्तराखण्ड ज्ञानकोष अपना उत्तराखण्ड आइये, जाने, समझें और जुडें अपने पहाड़ से, अपने उत्तराखण्ड से मेरा पहाड़ फोरम तब नहीं तो अब गैरसैंण, अब नहीं तो कब गैरसैंण राजधानी से कम मंजूर नहीं

4 responses to “उत्तराखण्ड की पनचक्की-घराट”

  1. Gopu Bisht

    यह एक महत्वपूर्ण जानकारी है हमारी धरोहरों के बारे में। पहाड़ी जीवन की आधार शीला थे ये घराट भी, जो अधिकांस जगहों पर विलुप्ति की कगार पर हैं ये घराट हमारे पहाड़ उत्तराखंड ही नहीं अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में भी देखने को मिलते हैं जैसे हिमांचल, कश्मीर, नेपाल आदि क्षेत्रों में। हमेशा की तरह धन्यवाद इस खुबसूरत पोस्ट के लिए।

  2. Kavita Rawat

    बहुत उपयोगी प्रस्तुति
    हमारे गांव में भी घट था लेकिन घट चलाने वाले की मृत्यु के बाद उनके बच्चों ने नहीं संभाला तो वह बंजर हो गया है, बहुत यादें हैं उन दिनों की

  3. khushal Singh Rawat

    घट को कुछ लोग घटना यानी कम होना भी बताते है। अर्तार्थ जितना आटा पीस के आता है उसकी मात्रा घटा कर घट चलाने वाला पैसे के बदले ले लेता था। इसे ‘ भगव्लू ‘ काटना भी कहते थे। जो सर्व मान्य था। लोगो का भी बिस्वास था घट चलाने वाले पर। घाट का अर्थ जो कुछ भी हो लेकिन आज उत्तराखंड से सब कुछ लुप्त होता जा रहा है. चाहे वहां की भाषा हो या वहां के लोग, रीति और कुछ। कहने को काफी कुछ है परन्तु किसे कहें। ? आज बढ़ रहे है तो गूणी बांदर , सुंगर और बहार के लोग। और वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड में इन्ही का राज होगा और सब कुछ लुप्त हो जायेगा. ऐ एक सोच का बिषय है.

  4. दाज्यू

    घराट में जो गेहूं पिसा जाता है वह ढाई से तीन सौ आर०पी०एम० की स्पीड में पिसता है, वहीं चक्की में गेहुं लगभग १४ से १६०० आर०पी०एम में पिसता है, जिससे उसके पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं, इसलिये आज के युग में गेहूं भले ही बाजार का हो, अगर घट में पीसा जाय तो फिर भी पौष्टिकता बचाई जा सकती है।

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