उत्तराखण्ड राज्य में कुमाऊं-गढवाल मण्डल के पहाड़ी क्षेत्र अपनी विशिष्ट लोक परम्पराओं और त्यौहारों को कई शताब्दियों से सहेज रहे हैं| यहाँ प्रचलित कई ऐसे तीज-त्यौहार हैं, जो सिर्फ इस अंचल में ही मनाये जाते हैं. जैसे कृषि से सम्बन्धित त्यौहार हैं हरेला और फूलदेई, माँ पार्वती को अपने गाँव की बेटी मानकर उसके मायके पहुंचा कर आने की परंपरा “नन्दादेवी राजजात”, मकर संक्रान्ति के अवसर पर मनाये जाने वाला घुघतिया त्यौहार आदि.
उत्तराखण्ड की ऐसी ही एक विशिष्ट परम्परा है “भिटौली”. भिटौली का शाब्दिक अर्थ है – भेंट (मुलाकात) करना. प्रत्येक विवाहित लड़की के मायके वाले (भाई, माता-पिता या अन्य परिजन) चैत्र के महीने में उसके ससुराल जाकर विवाहिता से मुलाकात करते हैं. इस अवसर पर वह अपनी लड़की के लिये घर में बने व्यंजन जैसे खजूर (आटे + दूध + घी + चीनी का मिश्रण), खीर, मिठाई, फल तथा वस्त्रादि लेकर जाते हैं. शादी के बाद की पहली भिटौली कन्या को वैशाख के महीने में दी जाती है और उसके पश्चात हर वर्ष चैत्र मास में दी जाती है. यह एक अत्यन्त ही भावनात्मक परम्परा है. लड़की चाहे कितने ही सम्पन्न परिवार में ब्याही गई हो उसे अपने मायके से आने वाली “भिटौली” का हर वर्ष बेसब्री से इन्तजार रहता है. इस वार्षिक सौगात में उपहार स्वरूप दी जाने वाली वस्तुओं के साथ ही उसके साथ जुड़ी कई अदृश्य शुभकामनाएं, आशीर्वाद और ढेर सारा प्यार-दुलार विवाहिता तक पहुंच जाता है.
उत्तराखण्ड की महिलाएं यहाँ के सामाजिक ताने-बाने की महत्वपूर्ण धुरी हैं. घर-परिवार संभालने के साथ ही पहाड़ की महिलाएं पशुओं के चारे और ईंधन के लिये खेतों-जंगलों में अथक मेहनत करती हैं. इतनी भारी जिम्मेदारी उठाने के साथ ही उन्हें अपने जीवनसाथी का साथ भी बहुत सीमित समय के लिये ही मिल पाता है क्योंकि पहाड़ के अधिकांश पुरुष रोजी-रोटी की तलाश में देश के अन्य हिस्सों में पलायन करने के लिये मजबूर हैं. इस तरह की बोझिल जिन्दगी निभाते हुए पहाड़ की विवाहित महिलाएं इन सभी दुखों के साथ ही अपने मायके का विछोह भी अपना दुर्भाग्य समझ कर किसी तरह झेलने लगती हैं. लेकिन जब पहाड़ों में पतझड़ समाप्त होने के बाद पेड़ों में नये पत्ते पल्लवित होने लगते हैं और चारों ओर बुरांश व अन्य प्रकार के जंगली फूल खिलने लगते हैं तब इन महिलाओं को अपने मायके के बारे में सोचने का अवकाश मिलता है. इस समय खेतों में काम का बोझ भी अपेक्षाकृत थोड़ा कम रहता है और महिलाएं मायके की तरफ से माता-पिता या भाई के हाथों आने वाली “भिटौली” और मायके की तरफ के कुशल-मंगल के समाचारों का बेसब्री से इन्तजार करने लगती हैं. इस इन्तजार को लोक गायकों ने लोक गीतों के माध्यम से भी व्यक्त किया है, “न बासा घुघुती चैत की, याद ऐ जांछी मिकें मैत की”।
जब महिला के मायके से “भिटौली” लेकर उसके माता-पिता, भाई-भतीजे पहुंचते हैं तो घर में एक त्यौहार का माहौल बन जाता है. उनके द्वारा लायी गई सामग्री को पड़ोस के लोगों में बांटा जाता है. शाम को “भिटौली” पकाई जाती है अर्थात खीर, पूरी, हलवा आदि पकवान बनते हैं और इसे खाने के लिये भी गांव-पड़ोस के लोगों को आमन्त्रित किया जाता है. इस तरह यह परम्परा पारिवारिक न रहकर सामाजिक एकजुटता का एक छोटा सा आयोजन बन जाती है.
वर्तमान समय में हालांकि दूरसंचार के माध्यमों और परिवहन के क्षेत्र में उपलब्ध सुविधाओं की बदौलत दूरियां काफी सिमट चुकी हैं लेकिन एक विवाहिता के दिल में मायके के प्रति संवेदनाएं और भावनाएं शायद ही कभी बदल पायेंगी. इसीलिये सदियों से चली आ रही यह परम्परा आज भी पहले की तरह ही कायम है. शहरों में रह रहे नये पीढी के लोग अब “वेलेन्टाइन डे”, “रोज डे”, “मदर्स-फादर्स डे” जैसे पाश्चात्य संस्कृति के ढकोसले भरे औपचारिक मान्यताओं की तरफ आकर्षित होने लगे हैं. ऐसे में इस बात की सख्त जरूरत है कि हम अपनी इस विशिष्ट परम्परा को औपचारिकताओं से ऊपर उठकर अपनाएं. आज बशर्ते शहरों में रह रहे लोग अपनी बहनों को मनीआर्डर या कोई उपहार भेजकर ही “भिटौली” की परम्परा का निर्वाह कर लेते हों, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी “भिटौली” सिर्फ एक रिवाज ही नहीं बल्कि प्रत्येक विवाहिता के लिये अपने मायके से जुड़ी यादों को समेटकर रखने का एक वार्षिक आयोजन है.
इस लोक त्यौहार के बारे में अधिक जानकारी (पुरातन विवरण, लोक गाथाओं, लोक गीतों) के लिये मेरा पहाड़ फोरम पर पधारें।
भिटौली का महीना आ गया है, मेरा सभी भाईयों से निवेदन है कि प्रवास में, नौकरी की व्यस्तता से कुछ समय निकालकर अपनी बहनों को भिटौली के प्रतीक स्वरुप कुछ धनराशि जरुर भेज दें। ऐसा न करें कि अभी रक्षा बंधन आयेगा, उसी समय दोनों का इकट्ठा दे देंगे।
अगर उसे समय पर भिटौली या भिटौली के पैसे मिलेंगे, तभी वह इसे महसूस कर पायेगी, इसे थोड़ा ऐसे भी देखें कि यदि राखी पर बहन राखी न भेजे और भैयादूज को ही च्यूड़े के साथ राखी भी बांध दे तो आपको कुछ अजीब सा लगेगा न? ऐसा ही उस बेचारी को भी लगता होगा।
………प्राकर्तिक गोद में बसन वाल कुमाऊँ अपु अलग ही पहचान छू | कुमाऊँ रीती रिवाज ,परंपरा को सब लोगोन तक पहुचन लिजी म्यार तरफ बटी हार्दिक शुभकामनायें ………………
Hamar dasol badiyar bahut bahut sunder chh… Gari chali ghur ghura pahad lane ma nainital ghum ula maruti ven ma hamar pahad good
म्यार उत्तराखंड भाई-बहिनोँ आज फूलदेई क त्यौहार छै सब लोगोँ कै म्यार तरफ बै खूब-खूब हार्दिक बधाई आज दिनांक 14मार्च2012 अपने देश के बारे मै निम्न पंक्ति-work wile you work,ply while you ply,that is the way,to be happy and gay. PANKAJ LOVIYAL VILL.DASHAULA BADIYAR (ALMORA)
yo aayo rangeelo chait ghughuti ghuraili…tau izu ki yaad alli ro ali turuk…
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बहुत खूबसूरत एवम् दिल को छू लेने वाला लेख है .
JI raya jagi RYA yo din yo mass bhetana raya
अत्यन्त भावानात्मक त्योहार है