कवि गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ पनà¥à¤¤ जी का जनà¥à¤® विकà¥à¤°à¤¤ संवतॠ१८४à¥, कà¥à¤®à¤¾à¤‚रà¥à¤• गते २à¥, बà¥à¤§à¤µà¤¾à¤°, फरवरी १à¥à¥¯à¥¦ को काशीपà¥à¤° में हà¥à¤† था, इनका पैतृक निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ गà¥à¤°à¤¾à¤®-उपराड़ा, गंगोलीहाट, पिथौरागॠथा। इनका मूल नाम लोकनाथ पनà¥à¤¤ था। कहते हैं कि काशीपà¥à¤° के महाराजा गà¥à¤®à¤¾à¤¨ सिंह की सà¤à¤¾ में राजकवि रहने के कारण इनका नाम लोकरतà¥à¤¨ “गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€” पड़ा और कालानà¥à¤¤à¤° में ये इसी नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हà¥à¤¯à¥‡à¥¤ गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी ने अपनी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ अपने चाचा शà¥à¤°à¥€ राधाकृषà¥à¤£ पनà¥à¤¤ तथा बाद में कलà¥à¤¯à¥‚ं(धौलछीना) अलà¥à¤®à¥‹à¥œà¤¾ के सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·à¥€ पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ हरिदतà¥à¤¤ पनà¥à¤¤ से शिकà¥à¤·à¤¾ गà¥à¤°à¤¹à¤£ की, इसके अतिरिकà¥à¤¤ आपने चार वरà¥à¤· तक पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— में शिकà¥à¤·à¤¾ गà¥à¤°à¤¹à¤£ की। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की खोज में आप वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— और हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° सहित हिमालयी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में à¤à¥à¤°à¤®à¤£ करते रहे, इस दौरान आपने साधॠवेश में गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में वास किया। कहा जाता है कि देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में किसी गà¥à¤«à¤¾ में साधनारत गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी को à¤à¤—वान राम के दरà¥à¤¶à¤¨ हो गये और à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ राम ने गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी से पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर सात पीढियों तक का आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और विदà¥à¤¯à¤¾ का वरदान दिया। अपने जीवनकाल में गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी कोई महाकावà¥à¤¯ तो नहीं लिखा, किनà¥à¤¤à¥ समकालीन परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर बहà¥à¤¤ कà¥à¤› लिखा। गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के कवि और रचनाकार थे। किनà¥à¤¤à¥ खड़ी बोली और कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚नी में à¤à¥€ आपने बहà¥à¤¤ कà¥à¤› लिखा है। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में शà¥à¤²à¥‹à¤• और à¤à¤¾à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ कविता रचने में इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ विलकà¥à¤·à¤£ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ थी।
गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी को खड़ी बोली का पहला कवि कहा जाता है (यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ हिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ में à¤à¤¸à¤¾ कहीं उलà¥à¤²à¥‡à¤– पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं है), à¤à¤¸à¤¾ संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ इसलिये कि पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤² हिनà¥à¤¦à¥€ नाटककार और कवि काशी के à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥ हरिशचनà¥à¤¦à¥à¤°, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ जगत में खडी बोली का पहला कवि होने का समà¥à¤®à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है, का जनà¥à¤® गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी के निधन (१८४६) के चार वरà¥à¤· बाद हà¥à¤† था।
        काशीपà¥à¤° के राजा गà¥à¤®à¤¾à¤¨ सिंह के दरबार में इनका बड़ा मान-समà¥à¤®à¤¾à¤¨ था, कà¥à¤› समय तक गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी टिहरी नरेश सà¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ शाह के दरबार में à¤à¥€ रहे। इनकी विदà¥à¤µà¤¤à¤¾ की खà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¿ पड़ोसी रियासतों- कांगड़ा, अलवर, नाहन, सिरमौर, गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤°, पटियाला, टिहरी और नेपाल तक फ़ैली थी।
गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ विरचित साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• कृतियां-
रामनामपंचपंचाशिका, राम महिमा, गंगा शतक, जगनà¥à¤¨à¤¾à¤¥à¤¶à¥à¤Ÿà¤•, कृषà¥à¤£à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¤•, रामसहसà¥à¤¤à¥à¤°à¤—णदणà¥à¤¡à¤•, चितà¥à¤°à¤ªà¤›à¤¾à¤µà¤²à¥€, कालिकाषà¥à¤Ÿà¤•, ततà¥à¤µà¤µà¤¿à¤›à¥‹à¤¤à¤¿à¤¨à¥€-पंचपंचाशिका, रामविनय, विà¥à¤œà¥à¤žà¤ªà¥à¤¤à¤¿à¤¸à¤¾à¤°, नीतिशतक, शतोपदेश, जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤à¥ˆà¤·à¤œà¥à¤¯à¤®à¤‚जरी।
उचà¥à¤š कोटि की उकà¥à¤¤ कृतियों के अलावा हिनà¥à¤¦à¥€, कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚नी और नेपाली में कवि गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ की कई और कवितायें है- दà¥à¤°à¥à¤œà¤¨ दूषण, संदà¥à¤°à¤œà¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¤•à¤®, गंजà¤à¤¾à¤•à¥à¤°à¥€à¥œà¤¾ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿, समसà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤¤à¤¿, लोकोकà¥à¤¤à¤¿ अवधूत वरà¥à¤£à¤¨à¤®, अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ राजà¥à¤¯ वरà¥à¤£à¤¨à¤®, राजांगरेजसà¥à¤¯ राजà¥à¤¯ वरà¥à¤£à¤¨à¤®, रामाषà¥à¤Ÿà¤ªà¤¦à¥€, देवतासà¥à¤¤à¥‹à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¥¤
हिमालय के इस महान सपूत व कूरà¥à¤®à¤¾à¤‚चल गौरव की साहितà¥à¤¯ साधना पर अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ बहà¥à¤¤ कम लिखा गà¥à¤¯à¤¾ है। 1897 में चनà¥à¤¨à¤¾ गांव, अलà¥à¤®à¥‹à¥œà¤¾ के देवीदतà¥à¤¤ पाणà¥à¤¡à¥‡ जी ने “कà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ कवि विरचित संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¾à¤·à¤¾ कावà¥à¤¯” लिखा है और रेवादतà¥à¤¤ उपà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥€ ने “गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ नीति” नामक पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ में कवि का साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• परिचय दिया है। उपराड़ा में गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ शोध केनà¥à¤¦à¥à¤° इन पर वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• शोध कर रहा है।
गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤à¤¨à¥€ तथा नेपाली के पà¥à¤°à¤¥à¤® कवि तो थे ही, साथ ही हिनà¥à¤¦à¥€ तथा संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ पर à¤à¥€ उनकी अचà¥à¤›à¥€ पकड़ थी. यह छनà¥à¤¦ देखिये। चार पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के छनà¥à¤¦ की पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• पंकà¥à¤¤à¤¿ में अलग à¤à¤¾à¤·à¤¾ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— है।
बाजे लोक तà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤• नाथ शिव की पूजा करें तो करें (हिनà¥à¤¦à¥€)
कà¥à¤µà¥‡-कà¥à¤µà¥‡ à¤à¤•à¥à¤¤ गणेश का में बाजा हà¥à¤¨à¥€ तो हà¥à¤¨à¥€ (कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤à¤¨à¥€)
रामà¥à¤°à¥‹ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ का चरण मा गरà¥à¤¦à¤¨ कसैले गरनॠ(नेपाली)
धनà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤²à¤§à¤¾à¤®à¥à¤¨à¥€à¤¹ रमते रामे गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ कवि (संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤)
खड़ी बोली का उदà¥à¤à¤µ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥ यà¥à¤— में माना जाता है, जोकि 1850 के आस-पास शà¥à¤°à¥‚ होता है। लेकिन निमà¥à¤¨ पद गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ 1816 में रचित है, इसमें खड़ी बोली का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है। इस तरह गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी को खड़ी बोली का पà¥à¤°à¤¥à¤® कवि माना जाना चाहिये।
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विषà¥à¤£à¥ देवाल उखाड़ा ऊपर बंगला बना खरा
महराज का महल ढहाया बेड़ी खाना वहाठधरा
मलà¥à¤²à¥‡ महल उड़ाई ननà¥à¤¦à¤¾ बंगलों से वहाठà¤à¤°à¤¾
अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ ने अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¥‡ का नकà¥à¤¶à¤¾ औरी और करा
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इस पद में à¤à¥€ गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी ने अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ के कारनामों का वरà¥à¤£à¤¨ किया है। इस विषय पर गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी ने खड़ी बोली में 20 पद लिखे हैं.।
दूर विलायत जल का रासà¥à¤¤à¤¾ करा जहाज सवारी है
सारे हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ à¤à¤°à¥‡ की धरती वश कर डारी है
और बड़े शाहों में सबमें धाक बड़ी कà¥à¤› à¤à¤¾à¤°à¥€ है
कहे गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ धनà¥à¤¯ फिरंगी तेरी किसà¥à¤®à¤¤ नà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ है
à¤à¤• महान आदमी का गà¥à¤£ यह है कि वह अपने मूल से हमेशा लगाव महसूस करता है। अपने पैतृक गांव उपराडा का सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° वरà¥à¤£à¤¨ गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी ने इन शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में किया है-
उतà¥à¤¤à¤° दिशि में वन उपवन हिसालू काफल किलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾.
दकà¥à¤·à¤¿à¤£ में छन गाड़ गधेरा बैदी बगाड़ नाम पड़ा.
पूरब में छौ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® मंडली पशà¥à¤šà¤¿à¤® हाट बाजार बड़ा.
तैका तलि बटि काली मंदिर जगदमà¥à¤¬à¤¾ को नाम बड़ा.
धनà¥à¤µà¤¨à¥à¤¤à¤°à¤¿ का सेवक सब छन à¤à¥‡à¤·à¤œ करà¥à¤® पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° बड़ा.
धनà¥à¤¯ धनà¥à¤¯ यो गà¥à¤°à¤¾à¤® बड़ो छौ थातिन में उतà¥à¤¤à¤® उपराड़ा.
गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी का जनà¥à¤® काशीपà¥à¤° में हà¥à¤† और वह काशीपà¥à¤° के ततà¥à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ राजा गà¥à¤®à¤¾à¤¨ सिंह देव के दरबार में कवि रहे। गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ काशीपà¥à¤° के बारे में लिखे गये अनेक पदों मे से à¤à¤• यह है
यहाठढेला नदà¥à¤¦à¥€ उत बहत गंगा निकट में
यहाठà¤à¥‹à¤²à¤¾ मोटेशà¥à¤µà¤° रहत विशà¥à¤µà¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° वहाà¤
यहाठसणà¥à¤¡à¥‡ दणà¥à¤¡à¥‡ कर धर फिरें शाà¤à¤¡à¤‰à¤¤ ही
फरक कà¥à¤¯à¤¾ है काशीपà¥à¤° शहर काशी नगर में?
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सर जारà¥à¤œ गà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤°à¥à¤¸à¤¨ ने ‘लिंगà¥à¤µà¤¿à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• सरà¥à¤µà¥‡ ऑफ इंडिया’ में गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी की दो रचनाओं- गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ नीति और गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ कावà¥à¤¯-संगà¥à¤°à¤¹ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– किया है। गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ नीति का संपादन देवीदतà¥à¤¤ उपà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥€ ने १८९४ में किया है। गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ कावà¥à¤¯-संगà¥à¤°à¤¹ का संकलन और संपादन देवीदतà¥à¤¤ शरà¥à¤®à¤¾ ने १८३ॠमें किया। इसके अलावा उनका कोई संगà¥à¤°à¤¹ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ नहीं हो सका। कà¥à¤› पतà¥à¤°-पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤“ं में उनके बारे में लेख अवशà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ हà¥à¤à¥¤ पंडित देवीदतà¥à¤¤ शरà¥à¤®à¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° यदि इनके लिखे हà¥à¤ खरà¥à¤°à¥‡ à¤à¥€ मिल जाते तो इनकी समसà¥à¤¤ रचना à¤à¤• लाख से अधिक पदों में होती। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ततà¥à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ नरेशों के बारे में à¤à¥€ कई रचनाà¤à¤ कीं। हिंदी साहितà¥à¤¯ के आधà¥à¤¨à¤¿à¤• पितामहों को गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी को खड़ी बोली का पहला कवि मान लेना चाहिà¤à¥¤
* सà¥à¤°à¥‹à¤¤- शà¥à¤°à¥€ शकà¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ सकलानी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लिखित “उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की विà¤à¥‚तियां†तथा मेरा पहाड़ फोरम
कवि गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ जी के बारे में विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से पढने के लिये हमारे फोरम के इस लिंक पर जाने का कषà¥à¤Ÿ करें-     लोककवि गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ – साहितà¥à¤¯ का विलकà¥à¤·à¤£ लेकिन गà¥à¤®à¤¨à¤¾à¤® वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ
The famous Khadi Boli poet of Pithora Garh, Gumani Pant (1780-1846) spent some period in the Garhwal kingdom at the time of king Sudarshan Shah. Gumani Pant will be remembered in Sanskrit, Hindi , Garhwali, Kumaoni , Nepali, Himalayan literature for creating peculiar poetries.. He used to write poems in Sanskrit but the last part of stanza would be in Garhwali , Kumaoni or Nepali as:
Uttam dhamk padanti, madhyam cha turatari
Nish dam farak padanti , kachhedi ma ch Tukituki II
Vadhurlok beerasya lamkeshwarasya , prasrmedhanadasya maydays
Rate devar hant mandodari sa, hwai rand nari gai laj sari
Source: Shailvani edited by Abodh Bandhu Bahuguna , 1981, Himalaya Kla Sangam, Delhi, PP10 and courtsey by Keshav Datt Ghildiyal
“1897 में चनà¥à¤¨à¤¾ गांव, अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ के देवीदतà¥à¤¤ पाणà¥à¤¡à¥‡ जी ने “कà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ कवि विरचित संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¾à¤·à¤¾ कावà¥à¤¯â€ लिखा है ”
मेरे विचार से ये देवी दतà¥à¤¤ पांडे छाना गांव के थे जो अब पिथोरागढ़ जिले में है |
लेख अचà¥à¤›à¤¾ है , बधाई |
Great Gumanipant poet of Kumaoni is very famous in our socity by his cultural lyrics
In the decade of seventies Dr. Basant Ballabh Bhatt has done his Phd. from Benaras Hindu Viswavidyalaya on the topic-SANSKRIT VANGMAY KO GUMANI KE DEN.At present Dr. Bhatt is doing editorial work for “KALYAN” patrika of geeta press from Benaras.To know more about Gumani this reasearch can be reffered.
Shri Gumani Pant was indeed a great poet of his time. His contribution remained unrecognized for a very long time. Few of his followers have contributed greatly to remove some dust from the history in order to bring laurel to this great poet. In this regard Shri Umesh Chandra Pant contribution is very appreciable. In fact , he is such a great devotee of Shri Gumani that he named his resident as “Gumani Dham” (currently located as Bharapuri, Ramnagar, Nainital). He also runs an NGO called “Gumani Shodh” Kendra which is aimed to spread the vast literature esoteric to Uttarakhand as of now.
बहà¥à¤¤ बहà¥à¤¤ धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥¤
गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€ पनà¥à¤¤ जी के पैतà¥à¤°à¤• गांव गया था पर कोई जानकारी नहीं मिल पाई थी ।अब काफी जानकारी मिल गई हैं धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥¤
Gumani Pant was a great poet of Kumaoni dialect .After reading his poetry I am in position that he was intelligent as well as educate , Many persons has wrote about Gumani but the remark of Late Yamunadut Vasnav is very correct and has weight Kumaoni dialectis pure Sanskrit but their pronunciationis not correct One word is tees in Kumaon it is wrong pronunciation of Trishana and word Anguwai is come from ALANGAn JHAN mean not it also come from Sanskrit According .Dr Late Vasnva the name of Kumaoni language is Khuskhura or language of Khash or Yashkhsh Although Gumani was intelligent he could composed poetry is another language but he choose his own mother tongue We have to proud that Gumani pant has born here
who considers Gumani Pant as the most ancient poet of Uttarakhand?
(a) Father Kamel Bulke
(b) Sir Gerorge Griyarsan
(c) Ramchandra Shukla
(d) Nanvar Singh
इनका कावà¥à¤¯ के कला पकà¥à¤· और à¤à¤¾à¤µ पकà¥à¤· के बारे में बताठ।