उत्तराखण्ड राज्य ०९ नवम्बर, २००० को अस्तित्व में आया, लेकिन इस क्षेत्र की यह मांग दो सदी पुरानी थी, आन्दोलन होते रहे, लेकिन १९९४ में जनता के इस आन्दोलन ने ऐसा प्रचण्ड रुप धारण किया कि उ०प्र० और देश की सरकारें हिल गई। इस आन्दोलन में कुल ४२ लोगों की शहादतें हुई और मुजफ्फरनगर चौराहे जैसी अमानवीय घटना हुई, जिसकी परिणिति आज का राज्य है, इस लेख का मकसद नई पीढी को उनके पुरखों के संघर्ष से परिचित कराने के साथ ही राज्य हमने दिया कहने वालों को आईना दिखाना है, जय उत्तराखण्ड।
1897- अल्मोड़ा के राजकीय हाईस्कूल में हुई बैठक में लिये गये निर्णय के बाद महारानी विक्टोरिया को भेजे पत्र से पर्वतीय क्षेत्र की पृथक राजनैतिक व सांस्कृतिक पहचान को मान्यता दिलाने का पहला प्रयास हुआ। इस बैठक में पं० गोपाल दत्त जोशी, राय बहादुर दुर्गा दत्त जोशी, पं० हरिराम पांडे व राय बहादुर बद्रीदत्त जोशी मौजूद थे।
१९२३- 27 नवम्बर, धार्मिक, सांस्कृतिक, ऎतिहासिक और राजनैतिक आधार पर उत्तराखण्ड को संयुक्त प्रांत से अलग करवाने की मंशा से राजा आनन्द सिंह, जिम कार्बेट, भैरव द्त्त, जंगबहादुर विष्ट, लच्छी राम शाह, ऎनी बिल्कनसन, हाजी नियाज अहमद, गंगाधर पांडे, आदि लोगों ने संयुक्त प्रांत के गवर्नर को एक ग्यापन भेजा गया, जिसमें मांग की गयी कि “सरकार को चाहिये कि कुमाऊं को शेष भारत से पृथक करने के लिये जल्द कदम उठाये।” {कुमाऊं से अभिप्राय टिहरी रियासत को छोड़कर सम्पूर्ण उत्तराखण्ड से था, जो तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नरी थी।
१९२८- साइमन कमीशन के भारत आने की खबर से पहाड़ के लोगों ने उत्तराखण्ड को विशेष दर्जा दिये जाने की मांग के आशय से “कुमाऊं एक पृथक प्रांत” शीर्षक से लिखा स्मृति पत्र आगरा, अवध के गवर्नर के मार्फत ब्रिटिश सरकार को दिया।
१९२९- पहाड़ के कुछ प्रबुद्ध लोगों ने गवर्नर से मुलाकात कर कुमाऊं के लिये अलग से संविधान निर्धारण के कार्य हेतु एक संसदीय समिति के गठन की मांग के आशय से उन्हें ग्यापन दिया।
१९३८ से पहले गोरखो के आक्रमण व उनके द्वारा किये अत्याचरो से अन्ग्रेजी शासन द्वारा मुक्ति देने व बाद मे अन्ग्रेजो द्वारा भी किये गये शोषण से आहत हो कर उत्तराखण्ड के बुद्धिजीवियो मे इस क्षेत्र के लिये एक प्रथक राजनैतिक व प्रशासनिक इकाई गठित करने पर गम्भीरता से सहमति घर बना रही थी. समय-समय पर वे इसकी मांग भी प्रशासन से करते रहे.
१९३८ = ५-६ मई, को कांग्रेस के श्रीनगर गढ्वाल सम्मेलन मे क्षेत्र के पिछडेपन को दूर करने के लिये एक प्रथक प्रशासनिक व्यवस्था की भी मांग की गई. इस सम्मेलन मे माननीय प्रताप सिह नेगी, जवाहर लाल नेहरू व विजयलक्षमी पन्डित भी उपस्थित थे.
१९४६: हल्द्वानी सम्मेलन मे कुर्मान्चल केशरी माननीय बद्रीदत्त पान्डेय, पुर्णचन्द्र तिवारी, व गढ्वाल केशरी अनसूया प्रसाद बहुगुणा द्वारा पर्वतीय क्षेत्र के लिये प्रथक प्रशासनिक इकाई गठित करने की माग की किन्तु इसे उत्तराखण्ड के निवासी एवं तात्कालिक सन्युक्त प्रान्त के मुख्यमन्त्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने अस्वीकार कर दिया.
१९५२: देश की प्रमुख राजनैतिक दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम महासचिव, पी.सी. जोशी ने भारत सरकार से प्रथक उत्तराखण्ड राज्य गठन करने का एक ग्यापन भारत सरकार को सोपा. पेशावर काण्ड के नायक व प्रसिद्द स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्र सिह गढ्वाली ने भी प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु के समक्ष प्रथक पर्वतीय राज्य की माग क एक ग्यापन दिया.
१९५५: २२ मई नई दिल्ली मे पर्वतीय जनविकास समिति की आम सभा सम्पन्न. उत्तराखण्ड क्षेत्र को प्रस्तावित हिमाचल प्रदेश में मिला कर वृहद हिमाचल प्रदेश बनाने की मांग.
१९५६: पृथक हिमाचल प्रदेश बनाने की मांग राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा ठुकराने के बाबजूद गृह मन्त्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने अपने बिशेषाधिकारों का प्रयोग करते हुये हिमाचल प्रदेश की मांग को सिद्धांत रूप में स्वीकार किया. किन्तु उत्तराखण्ड के बारे में कुछ नहीं किया.
१९६६: अगस्त माह में उत्तरप्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र के लोगों ने प्रधानमन्त्री को ग्यापन भेज कर पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग की.
१९६७: (१० – ११ जून) : जगमोहन सिंह नेगी एवम चन्द्र भानु गुप्त की अगुवाई में रामनगर कांग्रेस सम्मेलन में पर्वतीय क्षेत्र के विकास के लिये पृथक प्रशासनिक आयोग का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा.
२४-२५ जून, पृथक पर्वतीय राज्य प्राप्ति के लिये आठ पर्वतीय जिलों की एक “पर्वतीय राज्य परिषद” का गठन नैनीताल में किया गया जिसमें दयाकृष्ण पान्डेय अध्यक्ष एवम ऋशिबल्लभ सुन्दरियाल, गोविन्द सिहं मेहरा आदि शामिल थे.
१४-१५ अक्टूबर: दिल्ली में उत्तराखण्ड विकास संगोष्टी का उदघाटन तत्कालीन केन्द्रीय मन्त्री अशोक मेहता द्वारा दिया गया जिसमें सांसद एवम टिहरी नरेश मान्वेन्द्र शाह ने क्षेत्र के पिछडेपन को दूर करने के लिये केन्द्र शासित प्रदेश की मांग की.
१९६८: लोकसभा में सांसद एवम टिहरी नरेश मान्वेन्द्र शाह के प्रस्ताव के आधार पर योजना आयोग ने पर्वतीय नियोजन प्रकोष्ठ खोला।१९७०: (१२ मई) तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान प्राथमिकता से करने की घोषणा की.
१९७१: मा० मान्वेन्द्र शाह, नरेन्द्र सिंह बिष्ट, इन्द्रमणि बडोनी और लक्षमण सिंह जी ने अलग राज्य के लिये कई जगह आन्दोलन किये.
१९७२: श्री रिषिबल्लभ सुन्दरियाल एवम पूरण सिंह डंगवाल सहित २१ लोगों ने अलग राज्य की मांग को लेकर बोट क्लब पर गिरफ़्तारी दी.
१९७३: पर्वतीय राज्य परिषद का नाम उत्तराखण्ड राज्य परिषद किया गया. सांसद प्रताप सिंह बिष्ट अध्यक्ष, मोहन उप्रेती, नारायण सुंदरियाल सदस्य बने.
१९७८: चमोली से विधायक प्रताप सिंह की अगुवाई में बदरीनाथ से दिल्ली बोट क्लब तक पदयात्रा और संसद का घेराव का प्रयास. दिसम्बर में राष्ट्रपति को ग्यापन देते समय १९ महिलाओं सहित ७१ लोगों को तिहाड भेजा गया जिन्हें १२ दिसम्बर को रिहा किया गया.
१९७९: सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेत्रत्व में उत्तराखण्ड राज्य परिषद का गठन. ३१ जनवरी को भारी वर्षा एवम कडाके की ठंड के बाबजूद दिल्ली में १५ हजार से भी अधिक लोगों ने पृथक राज्य के लिये मार्च किया.
१९७९: (२४-२५ जुलाई) मंसूरी में पत्रकार द्वारिका प्रसाद उनियाल के नेत्रत्व में पर्वतीय जन विकास सम्मेलन का आयोजन. इसी में उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना. सर्व श्री नित्यानन्द भट्ट, डी.डी. पंत, जगदीश कापडी, के. एन. उनियाल, ललित किशोर पांडे, बीर सिंह ठाकुर, हुकम सिंह पंवार, इन्द्रमणि बडोनी और देवेन्द्र सनवाल ने भाग लिया. सम्मेलन में यह राय बनी कि जब तक उत्तराखण्ड के लोग राजनीतिक संगठन के रूप एकजुट नहीं हो जाते, तब तक उत्तराखण्ड राज्य नहीं बन सकता अर्थात उनका शोषण जारी रहेगा. इसकी परिणिति उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना में हुई.
१९८०: उत्तराखण्ड क्रांति दल ने घोषणा की कि उत्तराखण्ड भारतीय संघ का एक शोषण विहीन, वर्ग विहीनऔर धर्म निरपेक्ष राज्य होगा.
१९८२: प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने मई में बद्रीनाथ मे उत्तराखण्ड क्रांति दल के प्रतिनिधि मंडल के साथ ४५ मिनट तक बातचीत की.
१९८३: २० जून को राजधानी दिल्ली में चौधरी चरण सिंह ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उत्तराखण्ड राज्य की मांग राष्ट्र हित में नही है.
१९८४: भा.क.पा. की सहयोगी छात्र संगठन, आल इन्डिया स्टूडेंट्स फ़ैडरेशन ने सितम्बर, अक्टूबर में पर्वतीय राज्य के मांग को लेकर गढवाल क्षेत्र मे ९०० कि.मी. लम्बी साईकिल यात्रा की. २३ अप्रैल को नैनीताल में उक्रांद ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नैनीताल आगमन पर पृथक राज्य के समर्थन में प्रदर्शन किया.
१९८७: अटल बिहारी वाजपेयी, भा.ज.पा. अध्यक्ष ने, उत्तराखण्ड राज्य मांग को पृथकतावादी नाम दिया. ९ अगस्त को बोट क्लब पर अखिल भारतीय प्रवासी उक्रांद द्वारा सांकेतिक भूख हडताल और प्रधानमंत्री को ग्यापन दिया. इसी दिन आल इन्डिया मुस्लिम यूथ कांन्वेन्सन ने उत्तराखण्ड आन्दोलन को समर्थन दिया.
२३ नबम्बर को युवा नेता धीरेन्द्र प्रताप भदोला ने लोकसभा मे दर्शक दीर्घा में उत्तरखण्ड राज्य निर्माण के समर्थन में नारेबाजी की.
१९८८: २३ फ़रवरी : राज्य आन्दोलन के दूसरे चरण में उक्रांद द्वारा असहयोग आन्दोलन एवम गिरफ़्तारियां दी.
२१ जून: अल्मोडा में ’नये भारत में नया उत्तराखण्ड’ नारे के साथ ’उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी’ का गठन.
२३ अक्टूबर: जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली में हिमालयन कार रैली का उत्तराखण्ड समर्थकों द्वारा विरोध. पुलिस द्वारा लाठी चार्ज.
१७ नबम्बर: पिथौरागढ़ मे नारायण आश्रम से देहारादून तक पैदल यात्रा.
१९८९: मु.मं. मुलायम सिह यादव द्वारा उत्तराखण्ड को उ.प्र. का ताज बता कर अलग राज्य बनाने से साफ़ इन्कार.
१९९०: १० अप्रैल: बोट क्लब पर उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति के तत्वाधान में भा.ज.पा. ने रैली आयोजित की.
१९९१: ११ मार्च: मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखण्ड राज्य मांग को पुन: खारिज किया.
१९९१: ३० अगस्त: कांग्रेस नेताओं ने “वृहद उत्तराखण्ड” राज्य बनाने की मांग की.
१९९१: उ.प्र. भा.ज.पा. सरकार द्वारा प्रथक राज्य संबंधी प्रस्ताव संस्तुति के साथ केन्द्र सरकार के पास भेजा. भा.ज.पा. ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी पृथक राज्य का वायदा किया.
3rd week of December, 1991:During his visit to Haldwani – Nainital, Shri N.D. Tiwari rejected the demand for a separate State in NATIONAL INTEREST
भारतीय क्ष्रमजीवी पत्रकार संघ के उत्तर प्रदेश सम्मेलन मे उत्तराखण्ड राज्य की मांग का समर्थन किया गया. National Movement for States Re-organisation Demand Committee की स्थापना के लिये आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन की समाप्ति पर २५ अप्रैल को नई दिल्ली में संसद सदस्य डा० जयन्त रैंगती ने कहा “छोटे और कमजोर समूहों को राजनैतिक सत्ता में भागीदार बनाने का काम कभी पूरा नहीं किया गया.” कल्याण सिंह सरकार ने केन्द्र सरकार को याद दिलाया कि उत्तारांचल राज्य की मांग स्वीकार न किये जाने के कारण पर्वतीय क्षेत्र की जनता में असंतोष पनप रहा है और अलगाव वाद की भावना घर करती जा रही है.
मार्च १९९२: हल्द्वानी में, नारायण दत्त तिवारी ने उत्तराखण्ड राज्य का पुन: बिरोध किया.
27th February, UTTARAKHAND BANDH called by “Mukti Morcha”
April 30, 1993: Jantar Mantar : Rally organised by “Uttaranchal Pradesh Sangharsh Samiti”
6th May, 1993: New Delhi: ALL PARTY MEETING was held in which various senior leaders participated.
१९९३: ५ अगस्त को लोक सभा में उत्तराखण्ड राज्य के मुद्दे पर मतदान. ९८ सदस्यों ने पक्ष में व १५२ ने विपक्ष में मतदान किया.
१९९३: २३ नबम्बर: आंदोलन को नई दिशा देने के लोये दिल्ली व लखनऊ की सरकारों पर ब्यापक जन दबाव बनाने के लिये “उत्तराखण्ड जनमोर्चा” का गठन नई दिल्ली में. इसके प्रमुख आंदोलनकारी – जगदीश नेगी, देब सिंह रावत, राजपाल बिष्ट व बी. डी. थपलियाल आदि थे.
१९९४: २४ अप्रैल: दिल्ली के पूर्व निगमायुक्त बहादुर राम टम्टा के नेत्रत्व में रामलीला मैदान से संसद मार्ग थाने तक बिराट प्रदर्शन.
१९९४: २१ जून: तात्कालिक मु.मं. मुलायम सिंह की सरकार ने उत्तराखण्ड राज्य गठन हेतु “रमाशंकर कौशिक” की अगुवाई में एक उपसमिति का गठन किया. इस समिति ने आठ पर्वतीय जनपदों को किला कर एक प्रथक राज्य ’उत्तराखण्ड’ बनाने के लिये ३५६ प्रष्ठों की एक एतिहासिक रिपोर्ट सरकार को सौंपी. इसमें राजधानी ’गैरसैंण’ बनाने की प्रबल संस्तुति की गई.
१७ जून, १९९४: मुलायम सरकार ने मण्डल कमीशन की रिपोर्ट शिक्षण संस्थानों में लागू करने की अधिसूचना जारी की जिससे उत्तराखण्ड में राजनैतिक भूचाल आ गया और उत्तराखण्ड राज्य की मांग को नया जीवन प्रदान किया.
२२ जून, १९९४: मुलायम सरकार ने उत्तराखण्ड के लिये अतिरिक्त मुख्य सचिव नियुक्त करने की घोषणा की.
११ जुलाई, १९९४: पौडी में उक्रांद का जोरदार प्रदर्शन – ७९१ लोगों ने गिरफ़्तारी दी.
२ अगस्त, १९९४: पौडी में, वयोवृद्द नेता मा० इन्द्रमणि बडोनी के नेतृत्व में आमरण अनशन प्रारम्भ.
७,८, एवम ९ अगस्त, १९९४ : पुलिस का लाठी चार्ज. पूरे उत्तराखण्ड में प्रखर राज्य जनांदोलन का बिगुल बजा.
१० अगस्त, १९९४: श्रीनगर में उत्तराखण्ड छात्र संघर्ष समिति का गठन.
पंकज सिंह महर:
१६ अगस्त, १९९४: उत्तराखण्ड राज्य के लिये संसद की चौखट, जंतर मंतर पर उत्तराखण्ड आंदोलनकारी संगठनों का ऎतिहासिक धरना प्रारम्भ हुआ जो उत्तराखण्ड आंदोलन संचालन समिति व बाद में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के नाम से बिख्यात हुआ. दिल्ली,हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के तमाम आंदोलनकारी संगठन इससे जुड गये. यह इस आन्दोलन का एक केन्द्रबिन्दु बन गया जहां पर दिन रात निरन्तर आन्दोलन जारी रहा.
२४ अगस्त, १९९४: विधानसभा में दूसरी बार अलग राज्य का प्रस्ताव पारित. दो छात्रों, श्री मोहन पाठक और श्री मनमोहन तिवारी ने संसद में नारेबाजी करते हुये उत्तराखण्ड राज्य के समर्थन में छलांग लगाई.
३० अगस्त, १९९४: दिल्ली में पूरे देश के आये हुये हजारों उत्तराखण्डियों ने प्रचण्ड प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोडे गये.
१ सितम्बर, १९९४: उत्तराखण्ड आंदोलन के इतिहास में एक काला दिन..खटीमा मे उत्तराखण्डी आंदोलनकारियों पर पुलिस ने शर्मनाक ढंग से फ़ायरिंग की. आठ आंदोलनकारियों की मौत हल्द्वानी व खटीमा में कर्फ़्यू……
२ सितम्बर, १९९४:मसूरी में उत्तराखण्ड आंदोलनकारियों पर कहर.पुलिस उप-अधीक्षक सहित आठ आंदोलनकारी शहीद.इसके बिरोध में दिल्ली सहित पूरे देश में भारी आक्रोश.. और प्रदर्शन. पौड़ी में छात्रों की ऎतिहासिक रैली मे हजारों लोगों ने भाग लिया.
८ सितम्बर, १९९४:छात्रों के आव्हान पर ४८ घन्टे का उत्तराखण्ड बन्द.
२० सितम्बर, १९९४:पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन के बैनर तले राज्य कर्मचारी बेमियादी हडताल पर गये.
१ अक्टूबर, १९९४ यह दिन उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों के लिये मनहूस दिन रहा. २ अक्टूबर को लालकिला, दिल्ली में आयोजित होने वाली रैली मे लाखों उत्तराखन्डी शान्तिपूर्वक दिल्ली की ओर बढ रहे थे कि उ.प्र. के सरकार को किसी शैतान ने अपने बस में कर लिया. मुजफ़्फ़रनगर में पुलिस ने आन्दोलनकारियों का दमन करने के लिये भयंकर नरसंहार किया. महिलाओं के साथ अभद्रता की. यहां पर आठ आन्दोलनकारी शहीद हुये.
जैसे कि स्वाभाविक है,मुजफ़्फ़रनगर में पुलिस की बर्बरता से समूचे उत्तराखण्ड में व्यापक आक्रोश फ़ैल गया. इस कुकृत्य के बिरोध में लोग सड्कों पर उतर आये. किन्तु अपनी घिनौनी करतूत पर शर्मिन्दा होने होने की बजाय, शैतानी प्रशासन ने फ़िर ताण्ड्व किया. देहरादून व कोटद्वार मे दो-दो और नैनीताल मे एक आंदोलनकारी पुन: शहीद हुये.
५ अक्टूबर, १९९४:इलाहाबाद हाइकोर्ट ने पर्वतीय शिक्षण संस्थाओं में लागू २७% आरक्षण पर रोक लगाई.जहां समूचा उत्तराखण्ड मुलायम व नरसिंहा राव सरकारों के दमन में पिस रहा था, उक्रांद के नेता आपसी कलह में उलझे हुये थे जिसकी परिणिति हुई उक्रांद का बिभाजन.मुजफ़्फ़रनगर गोली काण्ड के सी.बी.आइ. से जांच के आदेश.इसी दिन पुलिस की गोली से देहरादून में एक महिला आंदोलनकारी शहीद. महिलायें इस आंदोलन में बढ चढ कर भाग ले रहीं थी.
१३ अक्टूबर, १९९४: प्रचण्ड आंदोलन के चलते, देहरादून में कर्फ़्यू लगा दिया गया. यही पर एक और आंदोलनकारी ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये.
अक्टूबर १९९४ में, सतपाल महाराज ने ’संयुक्त संघर्ष समिति’ के संरक्षक के रूप में बद्रीनाथ से नारसन तक जनजागरण पदयात्रा की.
७ दिसम्बर, १९९४ तो श्री भुवनचन्द्र खन्ड्यूरी के नेत्रत्व में दिल्ली के लालकिला मैदान पर भा.ज.पा. की बिशाल रैली आयोजित की इस रैली में श्री अटल, आडवानी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती,कल्याण सिंह जैसे नेता उपस्थित थे.
८ – २३ दिसम्बर, १९९४:’उत्तराखण्ड आंदोलन संचालन समिति’ के आव्हान पर, संसद के शीतकालीन शत्र के दौरान जेल भरो आंदोलन चलाया गया. इसमें कुल ४,६१२ लोगों ने गिरफ़्तारी दी.
२२ दिसम्बर, १९९४:उत्तराखण्ड में हड्ताली कर्मचारी “काम के साथ संघर्ष” का नारा देते हुये काम पर लौटे. छात्रों ने “पढाई के साथ लडाई” का नारा बुलन्द किया, स्कूल और कालेज भी खुले.
२५ फ़रवरी, १९९५: इस दिन उत्तराखण्ड के प्रमुख आंदोलनकारी संगठनों का दो दिवसीय “प्रथम अखिलभारतीय सम्मेलन” दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू बि.बि. के सिटी सेंटर में डा० कर्ण सिंह के उदघाटन संबोधन के साथ शुरू हुवा.
२३ मार्च, १९९५: शहीद भगत सिंह आजाद के शहादत दिवस पर, ले.जन. गजेन्द्र सिंह रावत के नेत्रत्व में पूर्व सैन्य अधिकारियों व पूर्व सैनिकों ने अन्य आंदोलनकारियौं के साथ मिलकर बिशाल प्रदर्शन किया. गौरतलब है कि इस प्रदर्शन में १३ पूर्व जनरल शामिल थे.
१७ – २३ अगस्त, १९९५:केन्द्र सरकार की कान पर जूं न रेंगती देख, उत्तराखण्ड जन मोर्चा व अन्य आंदोलनकारी संगठनों के संयुक्त आव्हान पर पुन: “जेल भरो” आंदोलन शुरू किया इसमें भारी संख्या में लोगों ने गिरफ़्तारी दी. प्रशासन को अस्थाई जेल के ब्यवस्था करनी पढी. चार दिन बाद आंदोलनकारियों को रिहा कर दिया गया.
३० दिसम्बर, १९९५:मुजफ़्फ़रनगर काण्ड के अपराधिओं को तत्काल दण्डित करने की मांग को लेकर उत्तराखण्ड की सैकडों महिलाओं ने होम मिनिस्टर के निवास पर प्रचण्ड प्रदर्शन किया.
८ अक्तूबर, १९९५:स्थान : श्रीयंत्र टापू (श्रीनगर गढ्वाल)अलकनंदा की जलधारा के बीच स्थित श्रीयंत्र टापू पर उत्तराखण्ड क्रान्ति दल (डंगवाल) के आंदोलनकारियों ने प्रथक उत्तराखण्ड राज्य के लिये ’आमरण अनशन’ शुरू किया.
५ नवम्बर, १९९५:स्थान : वही.पुलिस ने आंदोलनकारियों के दमन का कुचक्र फ़िर चला. दो आंदोलनकारियों को अलकनंदा की तेज जलधारा में बहा देने का कलंक पुलिस के माथे लगा. श्री डंगवाल सहित अनेक आंदोलनकारियों को सहारनपुर जेल भेज दिया गया.आन्दोलनकारी किसी भी प्रकार से हार मानने को तैयार नहीं थे.
१२ अक्तूबर, १९९५:उत्तराखण्ड क्रान्ति दल (डंगवाल) के नेता श्री दिवाकर भट्ट ने खैट पर्वत (जिला टिहरी) पर पुन: आमरण अनसन शुरु किया.और२१ दिसम्बर, १९९५ आज, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, श्री मोतीलाल बोरा, ने उत्तराखण्ड क्रान्ति दल (डंगवाल) को वार्ता पर बुलाया.
१२ जनवरी, १९९६:खैट पर्वत पर अनशन पर बैठै नेता, श्री दिवाकर भट्ट केन्द्र सरकार के आमंत्रण पर अन्य साथियों सहित दिल्ली में अनशन पर बैठै अन्य आंदोलनकारियों के पास (जंतर मंतर) पहुचे. यहां ग्रिह राज्य़मंत्री एवम बिदेश राज्य मंत्री ने आंदोलनकारियों से अनसन खत्म करने का अनुरोध किया.तब इसके बाद:
१९-२२ जनवरी, १९९६ भारत सरकार और आंदोलनकारियों के बीच आधिकारिक रूप से पहली वार्ता शुरू हुयी. इस वार्ता में मुख्य रूप से उपस्थित नेता इस प्रकार हैं:सर्वश्री: दिवाकर भट्ट, पूरण सिंह डंगवाल, मेजर जनरल शैलेन्द्र राज, पी. सी. थपलियाल, प्रकाश सुमन ध्यानी, अवतार रावत, देवसिंह रावत, राजेन्द्र शाह, श्रीमती कौशल्या डबराल के साथ साथ प्रख्यात पर्यावरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा, एस.के. शर्मा एवम छात्र नेता .
२६ जनवरी, १९९६: (गणतंत्र दिवस)स्थान : विजय चौक (इस स्थान के गणतंत्र दिवस परेड आरम्भ होती है)उत्तराखण्ड संयुक्त महिला संघर्ष समिति की आंदोलनकारियों ने ४४ महिलाओं व १८ नवयुवकों के लेकर बी.आई.पी. गैलरी (विजय चौक) में उत्तराखण्ड राज्य के समर्थन में जोरदार नारेबाजी की. श्रीमती उषा नेगी को वहा पर गिरफ़्तार किया गया.
९ फ़रवरी, १९९६इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तराखण्ड आंदोलनकारियों पर मुजफ़्फ़रनगर एवम अन्य स्थानों पर दमन के आरोपों के लिये उत्तरप्रदेश सरकार व केन्द्र सरकार को कटघरे में रखते हुये इसे यहूदियों पर नाजियों द्वारा किये गये अत्याचार के बराबर बताया.
१५ अगस्त्, १९९६:प्रधानमंत्री एच. डी. देवागौडा ने लाल किले के प्रचीर से उत्तराखण्ड राज्य गठन का संकल्प ब्यक्त किया.
१५ अगस्त्, १९९७:प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल ने भी लाल किले के प्रचीर से उत्तराखण्ड राज्य गठन का संकल्प दोहराया.
१९९८ में, अटल बिहारी के नेतृत्त्व वाली भा.ज.पा. की गठ्बंधन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तरप्रदेश सरकार को उत्तराखण्ड राज्य बिधेयक प्रेषित किया.इस बीच, दिल्ली में जन्तर मन्तर पर आंदोलनकारियों का धरना जारी था.
९ अगस्त, १९९८:भारी पुलिस बल ने जन्तर मन्तर पर आंदोलनकारियों पर धावा बोल दिया और आन्दोलनकारियों को तितर-बितर कर दिया. परिणामस्वरूप धरना स्थल वहा से मंदिर मार्ग में स्थानतरित हो गया. बाद में पुन: जन्तर मन्तर पर आगया.
१९९९कांग्रेस नेता, हरीश रावत भी संघर्ष में कूदे.
27 July, 2000:Uttar Pradesh Reorganisation Bill, 2000 presented in Lok Sabha.
1 August, 2000:LOK SABHA passed the Bill.
10 August, 2000Rajya Sabha Passed the Bill.
१५ अगस्त, २००० लालकिले के प्रचीर से प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी ने उत्तराखण्ड राज्य गठन के अपने वादे को पूरा करने की घोषणा की.
१६ अगस्त, २०००स्थान : जन्तर मन्तर, दिल्ली.यहां पर उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के श्री देब सिंह रावत के उत्तराखण्ड राज्य के गठन की मांग को लेकर ६ वर्षों (१९९४-२०००) के लगातार धरने का हर्षोल्लास के साथ समापन करने हेतु सभी आंदोलनकारियों ने संगठन व दलों की सी्माओं को तोडते हुये समारोह में भाग लिया. इस अवसर पर यहां आने वालओं में सर्वश्री बची सिंह रावत, सतपाल महाराज, डा० हरक सिंह रावत, एस.के. शर्मा, अवतार रावत, रणजीत सिंह पंवार, प्रताप रावत नरेन्द्र भाकुनी व अन्य शामिल थे.
२० अगस्त, २००० भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्य गठन बिधेयक को मंजूरी दे दी गई।
9 नवम्बर, 2000- पृथक उत्तराखण्ड राज्य की आधिकारिक घोषणा एवं उत्तरांचल नाम से नये राज्य का गठन।
12 जनवरी, 2001, उत्तराखण्ड विधान सभा का पहला सत्र विधान सभा भवन, देहरादून में प्रारम्भ हुआ।
18-03-2002 – निर्वाचित उत्तराखण्ड विधान सभा का पहला सत्र प्रारम्भ हुआ।
1 जनवरी, 2007- प्रदेश का नाम उत्तरांचल से परिवर्तित कर उत्तराखण्ड किया गया।
उत्तराखण्ड राज्य गठन जन-आंदोलन में भाग लेने वाले प्रमुख संगठन:
१. उत्तराखण्ड क्रांति दल (उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर बना पहला क्षेत्रीय राजनैतिक दल.प्रमुख पदाधिकारी: स्व.श्री. इन्द्रमणि बडोनी, श्री काशी सिंह ऎरी, दिवाकर भट्ट, विपिन त्रिपाठी व पूरण सिंह डंगवाल आदि.
२.उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति (उ.क्रा.द. भी इसमें शामिल था.प्रमुख पदाधिकारी: श्री सतपाल महाराज (संरक्षक) व श्री धीरेन्द्र प्रताप (समन्वयक)
३. उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा (संसद के चौखट पर निरन्तर ६ वर्षों तक धरना देने वाला संगठनप्रमुख पदाधिकारी: श्री अवतार सिंह रावत, देव सिंह रावत, राजेन्द्र शाह, डा० हरक सिंह रावत, प्रकाश सुमन ध्यानी, राजेन्द्र सिंह रावत, खुशहाल सिंह बिष्ट, जगदीश भट्ट, देशबंधु बिष्ट, रवीन्द्र बर्त्वाल, बिनोद नीगी और सीता पटवाल इत्यादि.
४. उत्तराखण्ड संयुक्त छात्र संघर्ष समितिप्रमुख पदाधिकारी: डा० मेहता, डा० एस. पी. सती (गढ्वाल बि.बि.), गिरिजा पाठक (कुमाऊ बि.बि.) एवम राजपाल सिंह बिष्ट (दिल्ली बि.बि.)
५. उत्तराखण्ड जनसंघर्ष वाहिनीप्रमुख पदाधिकारी: डा० शमशेर सिंह बिष्ट, पी. सी. तिवारी, प्रभात ध्यानी आदि.
६. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी. प्रमुख पदाधिकारी: श्री नारायणदत्त सुन्द्रियाल
७. कम्युनिस्ट पार्टी (मा.ले.)प्रमुख पदाधिकारी: श्री राजा बहुगुणा.
८. उत्तराखण्ड महिला मंचप्रमुख पदाधिकारी: कमला पंत, धनेश्वरी तोमर, लक्ष्मी गुसांई, धनेश्वरी घिल्डियाल आदि
९. उत्तराखण्ड महिला संयुक्त संघर्ष समितिप्रमुख पदाधिकारी: कौशल्या डबराल, उषा नेगी, आशा बहुगुणा, कमला भन्डारी आदि.
१०. उत्तराखण्ड पूर्व सैनिक संगठनप्रमुख पदाधिकारी: ले.जन. जगमोहन सिंह रावत, मे. जन. शैलेन्द्र राज बहुगुणा, पी. सी. थपलियाल, कर्नल गंगा सिंह रावत आदि.
११. उत्तराखण्ड कर्मचारी एवम शिक्षक संगठनप्रमुख पदाधिकारी: श्री दौलत राम सेमवाल, श्री खर्कवाल आदि.
१२. उत्तराखण्ड महासभाप्रमुख पदाधिकारी: श्री हरिपाल रावत, अनिल पंत, करन बुटोला आदि.
१३. उत्तराखण्ड जनमोर्चाप्रमुख पदाधिकारी: श्री जगदीश नेगी, बीना बिष्ट, हर्षबर्धन. श्री खंड्यूरी, राम भरोसे, एड्वोकेट वी. एस. बोरा, श्री ढौंडियाल, ए.एस.एन. सिलियाल, केवलानन्द जोशी आदि.
१४. उत्तराखण्ड राज्य लोक मंचप्रमुख पदाधिकारी: श्री उदय राम ढौंडियाल, ब्रिजमोहन उप्रेती आदि.
१५. हिमनद संघप्रमुख पदाधिकारी: श्री बिरेन्द्र जुयाल
१६. उत्तराखण्ड मानवाधिकार समितिप्रमुख पदाधिकारी: श्री एस. के शर्मा.
१७. उत्तराखण्ड अधिवक्ता संघ.
सभी राज्य आन्दोलनकारियों को हमारा कृतग्यतापूर्वक नमन