परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में आटा पीसने की पनचकà¥à¤•à¥€ का उपयोग अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ है। पानी से चलने के कारण इसे “घट’ या “घराट’ कहते हैं। पनचकà¥à¤•à¤¿à¤¯à¤¾à¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¯: सदानीरा नदियों के तट पर बनाई जाती हैं। गूल दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ नदी से पानी लेकर उसे लकड़ी के पनाले में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ किया जाता है जिससे पानी में तेज पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो जाता है। इस पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ के नीचे पंखेदार चकà¥à¤° (फितौड़ा) रखकर उसके ऊपर चकà¥à¤•à¥€ के दो पाट रखे जाते हैं। निचला चकà¥à¤•à¤¾ à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤¥à¤¿à¤° होता है। पंखे के चकà¥à¤° का बीच का ऊपर उठा नà¥à¤•à¥€à¤²à¤¾ à¤à¤¾à¤— (बी) ऊपरी चकà¥à¤•à¥‡ के खांचे में निहित लोहे की खपचà¥à¤šà¥€ (कà¥à¤µà¥‡à¤²à¤¾à¤°) में फà¤à¤¸à¤¾à¤¯à¤¾ जाता है। पानी के वेग से जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ही पंखेदार चकà¥à¤° घूमने लगता है, चकà¥à¤•à¥€ का ऊपरी चकà¥à¤•à¤¾ घूमने लगता है। पनचकà¥à¤•à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤¯: दो मंजिली होती है। कही पंखेदार चकà¥à¤° के घूमने की जगह को छोड़कर à¤à¤• मंजिली चकà¥à¤•à¥€ à¤à¥€ देखने में आती है। à¤à¥‚मिगत या निचली मंजिल में पनचकà¥à¤•à¥€ के फितौड़ा, तलपाटी (तवपाटी), ताल (तव), काà¤à¤Ÿà¤¾ (कान), बी, औकà¥à¤¯à¥‚ड़, तलपाटी को दबाने के लिठà¤à¤¾à¤° या पतà¥à¤¥à¤° तथा पनेला (पनà¥à¤¯à¤¾à¤µ) होते हैं। ऊपरी मंजिल में निचला चकà¥à¤•à¤¾ (तवौटी पाटि), ऊपरी चकà¥à¤•à¤¾ (मथरौटी पाटि), कà¥à¤µà¥‡à¤²à¤¾à¤°, चड़ि, आधार की लकड़ी, पनà¥à¤¯à¤¾à¤‡ तथा की छत की रसà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से लटका “डà¥à¤¯à¥‚क’ होता है। पनचकà¥à¤•à¥€ निरà¥à¤®à¤¾à¤£ के लिठसरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® नदी के किनारे किसी उपयà¥à¤•à¥à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तक गूल दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पानी पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤¯à¤¾ जाता है। उस पानी को फिर ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ से लगà¤à¤— ४५ ० के कोण पर सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ लकड़ी के नीलादार पनाले में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ किया जाता है, इससे पानी में तीवà¥à¤° वेग उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो जाता है। पनाले के मूà¤à¤¹ पर बाà¤à¤¸ की जाली लगी रहती है, उससे पानी में बहकर आने वाली घास-पात या लकड़ी वहीं अटक जाती है। गूल को सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बोली में “बान’ à¤à¥€ कहा जाता है। पनाले को पतà¥à¤¥à¤° की दीवार पर टिकाया जाता है। गूल के पानी को तोड़ने के लिठपनाले के पास ही पतà¥à¤¥à¤° या लकड़ी की à¤à¤• तखà¥à¤¤à¥€ à¤à¥€ होती है, जिसे “मà¥à¤à¤…र’ कहते हैं। इसे पानी की विपरीत दिशा में लगाकर जब चाहे पनाले में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ कर दिया जाता है या पनाले में पानी का पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ रोककर गूल तोड़ दी जाती है। “पनाला’ पà¥à¤°à¤¾à¤¯: à¤à¤¸à¥€ लक़ड़ी का बनाया जाता है, जो पानी में शीघà¥à¤° सड़े-गले नहीं। सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ उपलबà¥à¤§à¤¤à¤¾ के आधार पर पनाले की लकड़ी चीड़, जामà¥à¤¨, साल (Shoera robusta ), बाà¤à¤¸, सानड़ (Ougeinia oojennesis ), बैंस, जैथल आदि किसी की à¤à¥€ हो सकती है। पनाले की नाली इस तरह काटी जाती है कि बाहर की ओर निचे का सिरा संकरा तथा à¤à¥€à¤¤à¤°à¥€ ओर गोल गहराई लिठहà¥à¤ हो। पनाले का गूल पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सिरा चौड़ा और नीचे का सिरा सà¤à¤•à¤°à¤¾ होता है। सामानà¥à¤¯à¤¤: पनाले की लंबाई १५-१६ फीट होती है और गोलाई लगà¤à¤— २ फीट तक होती है, परनà¥à¤¤à¥ नाम घट-बढ़ à¤à¥€ सकती है। पनाले गाà¤à¤µ के लोग सामूहिक रà¥à¤ª से जंगल से पनचकà¥à¤•à¥€ के सà¥à¤¥à¤² तक लाते हैं।
पनचकà¥à¤•à¥€ का फितौड़ा  लकड़ी का à¤à¤¸à¤¾ ठोस टà¥à¤•à¥œà¤¾ होता है, जो बीच में उà¤à¤°à¤¾ रहता है और दोनों सिरों पर कम चौड़ होता है। इसका निचला सिरा अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ अधिक नà¥à¤•à¥€à¤²à¤¾ होता है, जिस पर लोहे की कील लगी होती है। यह कील आधार पटरे के मधà¥à¤¯ में रखे लोहे के गà¥à¤Ÿà¤•à¥‡ या चकमक पतà¥à¤¥à¤° के बने ताल पर टिका रहता है। इन दोनों को समवेतॠरà¥à¤ª से ताल काà¤à¤Ÿà¤¾ कहा जाता है। तालकाà¤à¤Ÿà¥‡ को कही “मैनपाटी’ à¤à¥€ कहा जाता है। फितौड़ा पà¥à¤°à¤¾à¤¯: सानड़, साल, जामà¥à¤¨, साज (Terrninalia alata ) की लकड़ी का बना होता है। आधार पटरा पà¥à¤°à¤¾à¤¯: साल या सानड़ की लकड़ी का होता है। “तालकाà¤à¤Ÿà¥‡’ की कहीं मैणपाटी à¤à¥€ कहते हैं। फितौड़े के गोलाई वाले मधà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤— में खाà¤à¤šà¥‹à¤‚ में लकड़ी के पाà¤à¤š, सात, नौ या गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ पंखे लगे रहते हैं। इनकी लंबाई १-१ /४ फीट तथा चौड़ाई ३ /४ फीट तक होती है। पंखों की लंबाई-चौड़ाई ऊपरी चकà¥à¤•à¥‡ के वजन और फितौड़े के आकार-पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° पर निरà¥à¤à¤° करती है। पंखों को “फिरंग’ कहा जाता है। पंखों में पà¥à¤°à¤¾à¤¯: चीड़ या साल की छड़ फà¤à¤¸à¤¾à¤ˆ जाती है, जो निचले चकà¥à¤•à¥‡ के छेद से होती हà¥à¤ˆ ऊपरी चकà¥à¤•à¥‡ के खाà¤à¤šà¥‡ में फिर लोहे की खपचà¥à¤šà¥€ (कà¥à¤µà¥‡à¤²à¤¾à¤°) में फà¤à¤¸à¤¾à¤ˆ जाती है, निचले चकà¥à¤•à¥‡ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ छेद में लकड़ी के गà¥à¤Ÿà¤•à¥‡ को अचà¥à¤›à¥€ तरह कील दिया जाता है, जिससे मडà¥à¤µà¤¾ आदि महीन अनाज छिदà¥à¤°à¥‹à¤‚ से छिर न सके। लोहे की इस छड़ को “बी’ कहा जाता है। आधार के पटरे को पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ से अचà¥à¤›à¥€ तरह से दबा दिया जाता है, जिससे वह हिले नहीं। आधार पटरे के à¤à¤• सिरे को दीवार से दबा कर दूसरे सिरे पर साज या साल की मजबूत लकड़ी फà¤à¤¸à¤¾ कर दो मंजिलें तक पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤ˆ जाती है, जहाठउस पर à¤à¤• हतà¥à¤¥à¤¾ लगाया जाता है। इसे “औकà¥à¤¯à¥‚ड़’ कहते हैं। औकà¥à¤¯à¥‚ड़ का अरà¥à¤¥ है – उठाने की कल। औकà¥à¤¯à¥‚ड़ को उठाने के लिठलकड़ी की पतà¥à¤¤à¥€ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में लाई जाती है, जो सिरे की ओर पतली तथा पीछे की ओर मोटी होती है। इस पर à¤à¥€ हतà¥à¤¥à¤¾ बना रहता है। औकà¥à¤¯à¥‚ड़ उठाने से घराट का ऊपरी चकà¥à¤•à¤¾ निचले चकà¥à¤•à¥‡ से थोड़ा उठजाता है, जिससे आटा मोटा पिसता है। औकà¥à¤¯à¥‚ड़ को बिठा दिया जाà¤, तो आटा महीन पिसने लगता है। औकà¥à¤¯à¥‚ड़ की सहायता से आटा मोटा या महीन किया जाता है। दà¥à¤®à¤‚जिले में “बी’ को बीच में रख कर निचला चकà¥à¤•à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया जाता है। निचले चकà¥à¤•à¥‡ (तवौटी पाटि) को सà¥à¤¥à¤¿à¤° कर दिया जाता है। फिर निचले चकà¥à¤•à¥‡ के ऊपर ऊपरी चकà¥à¤•à¤¾ रखा जाता है। इसी ऊपरी चकà¥à¤•à¥‡ के खांचे में फंसी लोहे की खपचà¥à¤šà¥€ को फितौड़ से ऊपर निकली लोहे की छड़ की नोक पर टिकाया जाता है। ऊपरी चकà¥à¤•à¥‡ को “मथरौटि पाटि’ कहा जाता है। ये चकà¥à¤•à¥‡ पिथौरागढ़ जनपद के बौराणी नामक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® माने जाते हैं, जो घिसते कम हैं और टिकाऊ à¤à¥€ होते हैं। इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ करने में बौराणी के कारीगर सिदà¥à¤§à¤¹à¤¸à¥à¤¤ माने जाते हैं। चकà¥à¤•à¥€ को à¤à¥€ गांव वाले सामूहिक रà¥à¤ª से पनचकà¥à¤•à¥€ सà¥à¤¥à¤² तक लाते हैं। ऊपरी चकà¥à¤•à¥‡ पर अलंकरण à¤à¥€ रहता है। बौराणी के चकà¥à¤•à¥‡ उपलबà¥à¤§ न होने पर सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ टिकाऊ व कठोर पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ के à¤à¥€ कई लोग चकà¥à¤•à¥‡ बनाते हैं। ऊपरी चकà¥à¤•à¥‡ से लगà¤à¤— दो-ढाई इंच छत में बà¤à¤§à¥€ à¤à¤¾à¤‚ग (cannabis Sativa) , रामबांस (Agave americana ) या बाबिल (Eulalipsis binata ) की रसà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की सहायता से किंरगाल (Chimnobambusa faicata and C. jaunsarenisis ) का “डोका’ बनाया जाता है। यह किसी पेड़ के तने का शंकà¥à¤µà¤¾à¤•à¤° खोखल का à¤à¥€ हो सकता है, जो उलà¥à¤Ÿà¤¾ लटका रहता है, अब यह तखà¥à¤¤à¥‹à¤‚ से बॉकà¥à¤¸ के आकार का à¤à¥€ बनने लगा है। इस डोके के निचले संकरे सिरे पर à¤à¤• “पनà¥à¤¯à¤¾à¤‡’ या “मानी’ लगी रहती है। यह आगे की ओर नालीनà¥à¤®à¤¾ मà¥à¤– वाली होती है। मानी डोके में डाले गठअनाज को à¤à¤•à¤¾à¤à¤• नीचे गिरने से रोकती है। इस मानी के मà¥à¤–ड़े की ओर से पीछे की ओर नाली लगà¤à¤— २५ अंश से ३० अंश का कोण बनाती हà¥à¤ˆ काटी जाती है। यह मानी या पनà¥à¤¯à¤¾à¤‡ गेठी (Boehmeria regulosa ) जामà¥à¤¨, बाà¤à¤œ आदि की बनी होती है। मानी की नाली से अनाज की धार को नियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ करने के लिठकà¤à¥€ गीले आटे का à¤à¥€ लेप उसके मà¥à¤à¤¹ पर लगा दिया जाता है। इस मानी या पनà¥à¤¯à¤¾à¤‡ के पीछे की ओर छेद करके उसमें कटूà¤à¤œ (Castanopsis tribuloides ) बाà¤à¤œ या फà¤à¤¯à¤¾à¤Ÿ (Quercxus glauce ) की तिरछी लकड़ी फà¤à¤¸à¤¾ दी जाती है। यह लकड़ी मानी और डोके का संतà¥à¤²à¤¨ बनाठरखती है। आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ पड़ने पर इस तिरछे डंडे पर रसà¥à¤¸à¥€ बाà¤à¤§ कर मà¥à¤à¤¹ को ऊपरी चकà¥à¤•à¥‡ में बने छेद के ठीक ऊपर रखा जाता है। जिससे अनाज के दाने चकà¥à¤•à¥‡ के पाट के à¤à¥€à¤¤à¤° ही पड़े, बाहर न बिखरें। डोके और मानी की रसà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर गाà¤à¤ े लगी रहती हैं। इनमें लकड़ी फà¤à¤¸à¤¾à¤•à¤° आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤¨à¥à¤°à¥à¤ª डोके व मानी को आगे-पीछे कर सà¥à¤¥à¤¿à¤° कर दिया जाता है। इस तिरछे डंडे पर à¤à¤• या à¤à¤•à¤¾à¤§à¤¿à¤• पकà¥à¤·à¥€ के आकार के लकड़ी के टà¥à¤•à¥œà¥‡ इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° लगाठजाते हैं कि उनका निचला सिरा चकà¥à¤•à¥‡ के ऊपरी पाट को निरनà¥à¤¤à¤° छूता रहे। इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ “चड़ी’ कहा जाता है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ये चकà¥à¤•à¥‡ के ऊपरी पाट पर सदा चढ़ी रहती है। ये चड़ियाठचकà¥à¤•à¥‡ के घूमते ही मानी और डोके को हिलाती है, अनाज के दाने मानी की धार से चकà¥à¤•à¥€ में गिरने लगते हैं और चकà¥à¤•à¥€ अनà¥à¤¨ के दानों को आटे में परिणीत कर देती है। पानी से चलने वाले इस पूरे संयंतà¥à¤° को “घट’, “घराट’ या “पनचकà¥à¤•à¥€’ कहते हैं। घराट को वरà¥à¤·à¤¾ या धूप से बचाने के लिठउसके बाहर १० से १६ फीट तक लंबा तथा ६ से १० फीट तक चौड़ा à¤à¤• कमरा बना दिया जाता है। रात में आदमी वहाठसो à¤à¥€ सकते हैं। परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में पानी की माप “घट’ या “घराट’ से मापी जाती है जैसे – इस नदी में इतने “घट’ पानी है। ये घराट पà¥à¤°à¤¾à¤¯: गाà¤à¤µà¥‹à¤‚ की सामूहिक समà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ होते हैं। घराट की गूलों से सिंचाई का कारà¥à¤¯ à¤à¥€ होता है। यह à¤à¤• पà¥à¤°à¤¦à¥‚षण से रहित परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤—त पà¥à¤°à¥Œà¤¦à¥à¤¯à¥Œà¤—िकी है। इसे जल संसाधन का à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤µà¤‚ समà¥à¤¨à¥à¤¨à¤¤ उपयोग कहा जा सकता है। आजकल बिजली या डीजल से चलने वाली चकà¥à¤•à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के कारण कई घराट बंद हो गठहैं और कà¥à¤› बंद होने के कगार पर हैं।
यह à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ जानकारी है हमारी धरोहरों के बारे में। पहाड़ी जीवन की आधार शीला थे ये घराट à¤à¥€, जो अधिकांस जगहों पर विलà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¿ की कगार पर हैं ये घराट हमारे पहाड़ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड ही नहीं अनà¥à¤¯ पहाड़ी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ देखने को मिलते हैं जैसे हिमांचल, कशà¥à¤®à¥€à¤°, नेपाल आदि कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में। हमेशा की तरह धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ इस खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रत पोसà¥à¤Ÿ के लिà¤à¥¤
बहà¥à¤¤ उपयोगी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿
हमारे गांव में à¤à¥€ घट था लेकिन घट चलाने वाले की मृतà¥à¤¯à¥ के बाद उनके बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने नहीं संà¤à¤¾à¤²à¤¾ तो वह बंजर हो गया है, बहà¥à¤¤ यादें हैं उन दिनों की
घट को कà¥à¤› लोग घटना यानी कम होना à¤à¥€ बताते है। अरà¥à¤¤à¤¾à¤°à¥à¤¥ जितना आटा पीस के आता है उसकी मातà¥à¤°à¤¾ घटा कर घट चलाने वाला पैसे के बदले ले लेता था। इसे ‘ à¤à¤—वà¥à¤²à¥‚ ‘ काटना à¤à¥€ कहते थे। जो सरà¥à¤µ मानà¥à¤¯ था। लोगो का à¤à¥€ बिसà¥à¤µà¤¾à¤¸ था घट चलाने वाले पर। घाट का अरà¥à¤¥ जो कà¥à¤› à¤à¥€ हो लेकिन आज उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड से सब कà¥à¤› लà¥à¤ªà¥à¤¤ होता जा रहा है. चाहे वहां की à¤à¤¾à¤·à¤¾ हो या वहां के लोग, रीति और कà¥à¤›à¥¤ कहने को काफी कà¥à¤› है परनà¥à¤¤à¥ किसे कहें। ? आज बॠरहे है तो गूणी बांदर , सà¥à¤‚गर और बहार के लोग। और वह दिन दूर नहीं जब उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में इनà¥à¤¹à¥€ का राज होगा और सब कà¥à¤› लà¥à¤ªà¥à¤¤ हो जायेगा. ठà¤à¤• सोच का बिषय है.
घराट में जो गेहूं पिसा जाता है वह ढाई से तीन सौ आर०पी०à¤à¤®à¥¦ की सà¥à¤ªà¥€à¤¡ में पिसता है, वहीं चकà¥à¤•à¥€ में गेहà¥à¤‚ लगà¤à¤— १४ से १६०० आर०पी०à¤à¤® में पिसता है, जिससे उसके पोषक ततà¥à¤µ खतà¥à¤® हो जाते हैं, इसलिये आज के यà¥à¤— में गेहूं à¤à¤²à¥‡ ही बाजार का हो, अगर घट में पीसा जाय तो फिर à¤à¥€ पौषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤¤à¤¾ बचाई जा सकती है।