उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की विधान सà¤à¤¾ में उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ दल उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ दल से दो बार सदसà¥à¤¯ रहे सà¥à¤µà¥¦ शà¥à¤°à¥€ जसवंत सिंह बिषà¥à¤Ÿ à¤à¤• पà¥à¤°à¤–र समाजवादी वà¥à¤¯à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ थे। इस साल उनकी पà¥à¤£à¥à¤¯à¤¤à¤¿à¤¥à¤¿ पर उनको याद करते हà¥à¤¯à¥‡ उनके अननà¥à¤¯ सहयोगी रहे वरिषà¥à¤ पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° और समाजसेवी शà¥à¤°à¥€ शà¥à¤¯à¤¾à¤® सिंह रावत जी का आलेख
गाथा à¤à¤• गांधीवादी निरà¥à¤§à¤¨ के विधायक बनने की
आज 4 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर है, उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के गांधी कहलाने वाले पà¥à¤°à¤–र समाजवादी नेता, पà¥à¤°à¤®à¥à¤– राजà¥à¤¯ आंदोलनकारी à¤à¤µà¤‚ पूरà¥à¤µ विधायक सà¥à¤µ. जसवंत सिंह बिषà¥à¤Ÿ की 14वीं पà¥à¤£à¥à¤¯ तिथि। उनका जनà¥à¤® अविà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ जिले की रानीखेत तहसील की बिचला चौकोट पटà¥à¤Ÿà¥€ में सà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥à¤¦à¥‡ के निकट तिमली गांव में जनवरी 1929 में हà¥à¤† था। उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता। उनकी सादगी और ईमानदारी के चरà¥à¤šà¥‡ आज à¤à¥€ लोग याद करते हैं। जसवंत सिंह बिषà¥à¤Ÿ 1944 में गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° में मजदूर यूनियन में शामिल हà¥à¤à¥¤ जहां वे पहली बार देश के अगà¥à¤°à¤£à¥€ समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के संपरà¥à¤• में आà¤à¥¤ वहां से गांव लौटकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सामाजिक कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¤¾à¤— लेना शà¥à¤°à¥‚ किया और 1955 में वन पंचायत के सरपंच बने। फिर 1962 से 76 तक कनिषà¥à¤ बà¥à¤²à¥‰à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– रहे। इसी बीच उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने 1967 में पà¥à¤°à¤œà¤¾ सोशलिसà¥à¤Ÿ पारà¥à¤Ÿà¥€ की ओर से पहली बार रानीखेत उतà¥à¤¤à¤°à¥€ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° से विधानसà¤à¤¾ का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ लड़ा और हार गà¤à¥¤ इसके बाद 1972 में बà¥à¤²à¥‰à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– बने। वे दशकों से पृथक उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ राजà¥à¤¯ की मांग करती आ रही परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ जनता के उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ विधानसà¤à¤¾ में पहले पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ के रूप में उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ दल के टिकट पर रानीखेत विधानसà¤à¤¾ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° से 1980 में पहली बार लखनऊ पहà¥à¤‚चे। इसके बाद रानीखेत से ही 1989 से 91 के बीच दोबारा विधायक रहे। वे सचमà¥à¤š में परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ लोक-जीवन के सचà¥à¤šà¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ थे। थोड़ा पृषà¥à¤ à¤à¥‚मि में चलते हैं―
देश में आपातकाल की समापà¥à¤¤à¤¿ के बाद 1977 में आई जनता पारà¥à¤Ÿà¥€ की सरकार के असफल होने पर देश की 7वीं लोकसà¤à¤¾ के लिठजनवरी,1980 में चà¥à¤¨à¤¾à¤µ हो रहे थे। माहौल इंदिरा गांधी के नेतृतà¥à¤µ वाली कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ के पकà¥à¤· में सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ दिखाई दे रहा था। लोकसà¤à¤¾ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ की उसी सरगरà¥à¤®à¥€ के बीच à¤à¤• दिन सà¥à¤¬à¤¹-सबेरे जिले के पà¥à¤°à¤–र समाजवादी नेता जसवंत सिंह बिषà¥à¤Ÿ हमारे घर पधारे। यों तो वे पà¥à¤°à¤¾à¤¯: आते रहते थे लेकिन आज इतनी सà¥à¤¬à¤¹ वे पहली बार आये थे। कारण पूछने पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया कि वे तकनीकी रूप से तो जगजीवन राम की दलित मजदूर किसान पारà¥à¤Ÿà¥€ में हैं लेकिन चà¥à¤¨à¤¾à¤µ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° वे निरà¥à¤¦à¤²à¥€à¤¯ हो चà¥à¤•à¥‡ अपने जिलाधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· के चà¥à¤¨à¤¾à¤µ निशान हवाई जहाज का कर रहे हैं। डॉ. राम मनोहर लोहिया और मधॠलिमये जैसे समाजवादी नेताओं के साथी की इस दशा पर मà¥à¤à¥‡ अफसोस हà¥à¤†à¥¤
मैं तब अलग परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ राजà¥à¤¯ की मांग को लेकर गठित उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ दल का जिला उपाधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· था और हम लोग पारà¥à¤Ÿà¥€ के केदà¥à¤°à¥€à¤¯ अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· डॉ. डीडी. पनà¥à¤¤ को अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾-पिथौरागढ़ से लोकसà¤à¤¾ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ लड़ा रहे थे। मैंने बिषà¥à¤Ÿ जी से कहा, “इन चà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ में इंदिरा गांधी पà¥à¤°à¤¬à¤² बहà¥à¤®à¤¤ से अपनी चौथी पारी की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ करने जा रही हैं और उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ सहित अनेक राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ विपकà¥à¤·à¥€ दलों का सूपड़ा साफ करने वाली है। वे à¤à¤¸à¥‡ राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की सरकार à¤à¤‚ग कर वहां मई-जून में विधानसà¤à¤¾ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ करायेंगी। यदि वे (बिषà¥à¤Ÿ जी) उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ दल में शामिल हो जाते हैं तो समà¥à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ विधानसà¤à¤¾ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ जीतकर पृथक राजà¥à¤¯ की मांग राजà¥à¤¯ विधानसà¤à¤¾ में मजबूती के साथ उठाई जा सकेगी।” आगे चलकर वही हà¥à¤† जो मैंने बिषà¥à¤Ÿ जी से कहा था। इंदिरा गांधी की धà¥à¤‚आधार वापसी हà¥à¤ˆà¥¤ इस बीच मैंने चà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥‹à¤ªà¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ फरवरी में बसंत पंचमी के दिन मà¥à¤¨à¤¿ की रेती (ऋषिकेश) में आयोजित पारà¥à¤Ÿà¥€ की समीकà¥à¤·à¤¾ बैठक में जसवंत सिंह बिषà¥à¤Ÿ जी को उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ दल की सदसà¥à¤¯à¤¤à¤¾ दिलाई। फिर मई 1980 में हà¥à¤ विधानसà¤à¤¾ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ में कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ के जबरदसà¥à¤¤ धनबल और बाहà¥à¤¬à¤² को मात दी।
विधानसà¤à¤¾ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ लड़ने जा रहे हैं, जेब में फूटी कौड़ी तक नहीं―
जसवत सिंह बिषà¥à¤Ÿ जी के इस चà¥à¤¨à¤¾à¤µ का नामांकन करने से à¤à¤• दिन पहले की घटना पर कोई बहà¥à¤¤ मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² से ही यकीन करेगा लेकिन सà¥à¤µ. बिषà¥à¤Ÿ जी को जानने वालों के लिठयह कोई आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ की बात नहीं। हà¥à¤† यह कि परà¥à¤šà¤¾ दाखिल करने 120 किमी. दूर अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ जाने से पहले उनके पास गांव की à¤à¤• दलित महिला ने आकर कहा कि उसके चौथी ककà¥à¤·à¤¾ में पढ़ने वाले बचà¥à¤šà¥‡ से सà¥à¤•à¥‚ल से गरीब बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को दी जाने वाली दो पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ खो गई हैं और अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•à¥‹à¤‚ का कहना है कि या तो पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• जमा करो या उनकी कीमत। बिषà¥à¤Ÿ जी ने पूछा कि किताबों का मूलà¥à¤¯ कितना है तो उस महिला ने बताया कि चार रà¥à¤ªà¤¯à¥‡à¥¤ बिषà¥à¤Ÿ जी ने अपनी जेब में रखे छ रà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤‚ में से चार उसे दे दिये और हाथ में पारà¥à¤Ÿà¥€ का बड़ा-सा à¤à¤‚डा व कंधे में थैला लटका कर चल दिये। गांव से नीचे उतरे तो वहां गà¥à¤°à¤¾à¤® देवता के मंदिर में जेब के शेष दो रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ à¤à¥€ चढ़ा दिये। अब उनकी जेब पूरी तरह खाली थी। अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ कैसे जायेंगे और नामांकन का शà¥à¤²à¥à¤• कैसे जमा करेंगे कà¥à¤› नहीं मालूम। कà¥à¤› खेत नीचे उतरे तो गांव का à¤à¤• किसान कंधे में हल टांगे और हाथो मे बैलो की रास पकड़े हà¥à¤ मिले। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पूछा कि नेताजी आज कहां का दौरा हो रहा है। बताया कि अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ जा रहा हूं चà¥à¤¨à¤¾à¤µ का परà¥à¤šà¤¾ दाखिल करने। सहृदय किसान ने कहा, “यार नेता जी, कैसे आदमी हो, पहले घर पर पर बताते तो कोई सहायता करता, यहां मेरे पास बीड़ी-माचिस के लिठदो रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ हैं, आप ले जाओ। मैं काम चला लूंगा। ना-ना करते हà¥à¤ à¤à¥€ उस à¤à¤²à¥‡ आदमी ने वे दो रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ उनके हाथ में धर दिये। गांव के नीचे सड़क पर पहà¥à¤‚चे तो वहां à¤à¤• छोटी-सी दà¥à¤•à¤¾à¤¨ पर बैठे। दà¥à¤•à¤¾à¤¨à¤¦à¤¾à¤° ने à¤à¥€ वही उलाहना दिया कि पहले कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं बताया। कल शाम ही रामनगर से वसूली को आये लाला को जो कà¥à¤› था, सब दे दिया। बातें हो ही रही थी कि दूसरे गांव के दो गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤•à¥‹à¤‚ ने कà¥à¤› सामान लिया। उनसे मिले 20 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ उस दूकानदार ने बिषà¥à¤Ÿ जी को थमा दिये। थोड़ी देर में देघाट से रामनगर जाने वाली बस आ पहà¥à¤‚ची। उसमें बैठे तो कंडकà¥à¤Ÿà¤° की सीट पर मौजूद बस मालिक के बेटे ने à¤à¥€ वही सवाल पूछा कि नेताजी कहां जाना हो रहा है। बताने पर उसने कंडकà¥à¤Ÿà¤° को हांक लगाई, “अरे नेताजी हमारे साथ à¤à¤¤à¤°à¥Œà¤‚जखान तक जायेंगे, इनका टिकट मत काटना।”
नेताजी का à¤à¤¤à¤°à¥Œà¤‚जखान (हमारे गांव) में तिलक लगाकर शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी ने सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया और उनके विजयी होने की शà¥à¤à¤•à¤¾à¤®à¤¨à¤¾ के साथ दो सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ उनके लाख मना करने के बाद à¤à¥€ जबरदसà¥à¤¤à¥€ उनकी वासà¥à¤•à¤Ÿ की जेब में घà¥à¤¸à¤¾ दिये। यहां घटà¥à¤Ÿà¥€ के घनशà¥à¤¯à¤¾à¤® वरà¥à¤®à¤¾ à¤à¥€ आकर मिल गये। फिर तीनों लोग पहà¥à¤‚चे रानीखेत। केमू बस अडà¥à¤¡à¥‡ से बाजार की तरफ जाते हà¥à¤ रासà¥à¤¤à¥‡ में बिषà¥à¤Ÿ जी के हमउमà¥à¤° खांटी कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥€ नेता और विधान परिषद सदसà¥à¤¯ मिल गये। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने धीरे से मेरे कान में कहा, “जसवंत के पास परà¥à¤šà¥‡ के à¤à¥€ पैसे हैं कि नहीं?” मैंने संकेत में उतà¥à¤¤à¤° दिया। तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि शाम को वापसी में घर आना। आगे चलकर बà¥à¤• सेलर धरम सिंह जी की दूकान पर पहà¥à¤‚चे तो वे नामांकन शà¥à¤²à¥à¤• और खरà¥à¤šà¥‡ लायक पैसों व à¤à¤• अनà¥à¤¯ मितà¥à¤° के साथ तैयार मिले। हम पांचों बस से अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ पहà¥à¤‚चे और बिषà¥à¤Ÿ जी का नामांकन कराया। पूरे चà¥à¤¨à¤¾à¤µ के दौरान हमारे पास 64 मॉडल à¤à¤• खटारा विलिस जीप और दो लाउडसà¥à¤ªà¥€à¤•à¤° थे। जिसमें से à¤à¤• रानीखेत सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में बजता था और दूसरा हमारे साथ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में। न मालूम कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ और कैसे ये दोनों साधन जब इनकी जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ जरूरत होती तà¤à¥€ खराब हो जाते। यह रहसà¥à¤¯ डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° मदनसिंह की समठमें तक नहीं आया। चà¥à¤¨à¤¾à¤µ के दौरान कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ ‘सà¥à¤•à¤¿ गलड़, फटी कोट, जसà¥à¤•à¤¾ कैं दियो वोट’ (सूखे गालों और फटे हà¥à¤ कोट वाले जसवंत चाचा को वोट दें) जैसे नारों के माधà¥à¤¯à¤® से उनका पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करते थे। रात होने पर गांव का जो à¤à¥€ घर खà¥à¤²à¤¾ मिलता वहीं à¤à¥‹à¤œà¤¨-शयन होता था और सà¥à¤¬à¤¹ विदाई में वहां से सहरà¥à¤· जो à¤à¥€ मिल जाता उसे सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर आगे बढ़ जाते। इस तरह 1980 का वह बेहद संघरà¥à¤·à¤ªà¥‚रà¥à¤£ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤¶à¥€ पूरन सिंह माहरा को 256 वोटों से पराजित करके जीता।
टà¥à¤°à¤• के टूल बॉकà¥à¤¸ में बैठकर यातà¥à¤°à¤¾â€•
बिषà¥à¤Ÿ जी की सादगी और सीधे-साधेपन को समà¤à¤¨à¥‡ के लिठसिरà¥à¤« à¤à¤• ही उदारण काफी है―à¤à¤• बार उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤¿à¤•à¤¿à¤¯à¤¾à¤¸à¥ˆà¤‚ण से रामनगर जाकर लखनऊ वाली टà¥à¤°à¥‡à¤¨ पकड़नी थी लेकिन जाने का कोई साधन नहीं था। बाजार में किसी से मालूम हà¥à¤† कि लाला बहादà¥à¤° मल का टà¥à¤°à¤• रामनगर जाने वाला था। लाला के घर जाकर पता चला कि उसमें तो उनके परिवार की महिलाà¤à¤‚ और छोटे-छोटे बचà¥à¤šà¥‡ रामनगर जाने को तैयार बैठे हैं और उसमें जरा à¤à¥€ जगह बाकी नहीं है। इस पर बिषà¥à¤Ÿ जी बोले कि वे ऊपर टूल बॉकà¥à¤¸ में बैठजायेंगे। सचमà¥à¤š उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने 94 किमी. की वह यातà¥à¤°à¤¾ उसी टूल बॉकà¥à¤¸ में बैठकर पूरी की जिसमें से 80 किमी. पूरी तरह पहाड़ी है। 1980 में पहली बार विधायक बनने के बाद जब गांव में ही रहने वाली उनकी पतà¥à¤¨à¥€ का अचानक सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ खराब हो गया तो जानवरों के चारे के लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ दराती से घास काटकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ खिलाया-पिलाया। बेहद गरीबी में जीवनयापन करने वाले सà¥à¤µ. जसवंत सिंह बिषà¥à¤Ÿ धन व बाहà¥à¤¬à¤² के इस अंधकारपूरà¥à¤£ समय के नेताओं के लिठअनà¥à¤•à¤°à¤£à¥€à¤¯ उदाहरण हैं।
सरलता और सादगी से परिपूरà¥à¤£ निशà¥à¤›à¤² सà¥à¤µ. जसवत सिंह बिषà¥à¤Ÿ जी की सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ को नमन !