……..इसके बाद खुमाड़ में पुरुषोत्तम जी के घर पर एक बैठक हुई, जिसमें यह तय किया गया कि जिन स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ वारण्ट हैं, वे स्वयं को गिरफ्तार करा देंगे। लक्ष्मण सिंह अधिकारी को बाहर रहकर आन्दोलन का संचालन करने के लिये कहा गया। इस बीच जंगल सत्याग्रह, कर-बंदी और बैल पड़ाव में बैलों की बिक्री पर रोक लगाने के आन्दोलन चलाये गये। २४ अक्टूबर, १९३० को सल्ट से पुरुषोत्तम उपाध्याय, मथुरा दत्त जोशी, धर्म सिंह, चंदन सिंह आदि अपनी गिरफ्तारी देने रानीखेत की ओर रवाना हुये। उनके साथ विशाल जुलूस था, ओगलिया (ककलासों) में जसोद सिंह ने जुलूस का भव्य स्वागत किया। कुछ महीने पहले डंगूला क्षेत्र में विदेशी कपड़े पहने जसोद सिंह को सी.आई.डी. का आदमी समझकर स्वतंत्रता सेनानियों ने उनके कपड़ों को आग लगा दी थी। दूसरे दिन जुलूस रानीखेत पहुंचा और आम जनता के लिये प्रतिबंधित माल रोड पर नेताओं ने अपनी गिरफ्तारी दी। इसके बाद खुमाड़ में बैठक हुई, जिसमें आगे की रणनीति तय की गई। बैलों को रामनगर के पड़ाव में बेचने के लिये ले जाने से रोकने के लिये नाकाबंदी की गई, जगह-जगह स्वंय सेवक तैनात कर दिये गये।
३० नवंबर, १९३० को जंगल सत्याग्रह के लिये ४०४ लोगों का जुलूस मोहान डाक बंगले पर पहुंचा। जत्थे का पहले से इंतजार हो रहा था, वहां पर निहत्थे सत्याग्रहियों पर लाठियां बरसाई गई। ५८ सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर काशीपुर हवालात पहुंचाया गया और फिर बिना मुकदमा किये ही मुरादाबाद जेल भेज दिया गया। जगह-जगह पर लोगों को भयभीत करने के लिये पुलिस गारद रखी गई, १० दिसम्बर, १९३० को एस.डी.एम. हबीबुर्रहमान ने मोहान में सल्ट में प्रवेश किया। मरचूला में कैम्प लगया गया, कोटा चामी में पान सिंह पटवाल का सारा सामान कुर्क कर दिया गया, गांव की ३० बकरियां पुलिस वाले ले गये, जिनमें से ११ बकरियों को उन्होंने खा डाला और अगले दिन १६ सितम्बर को एस.डी.एम. देवायल पहुंचा, जहां १४ गांवों के मालगुजार उपस्थित थे। सबने एक स्वर में कहा कि वे लगान देंगे लेकिन पुलिस टैक्स नहीं, अगर पुलिस टैक्स वसूल किया गया तो लगान भी नहीं दिया जायेगा। दूसरे दिन तल्ली पोबरी में घर-घर से समान लूटा गया, लोगों की कुर्की की गई। सल्ट के १४४ गांवों से पुलिस टैक्स वसूलने का आदेश जारी किया गया और मनमाने तरीके से वसूला गया।
१६ मार्च, १९३१ को अपने साथियों सहित रिहा होकर पुरुषोत्तम जी खुमाड़ पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत किया गया। १२ फरवरी, १९३२ को वे पुनः गिरफ्तार कर लिये गये, गले की बीमारी से ३० दिसंबर, १९३२ को बरेली जेल में पुरुषोत्तम जी की मृत्यु हो गई। २ फरवरी, १९३९ को एक विशाल शोकसभा में उनके अधूरे कामों को पूरा करने का संकल्प लिया गया। ७ मार्च, १९३९ को देवायल में रघुवर दत्त उपाध्याय, हरि दत्त वैद्य, लक्ष्मण सिंह आदि को सभा से गिरफ्तार कर लिया गया और क्वैराला में लक्ष्मण सिंह अधिकारी व बाबा हरिद्वार गिरि गिरफ्तार कर लिये गये। १९४२ में चारों पट्टी सल्ट और गढवाल की गूजडू पट्टी की जनता के बीच राजनीतिक चेतना का उभार जोरों पर था। सभी क्षेत्रों में सभायें हुई और संगठित आन्दोलन चलाये गये। १ सितम्बर, १९४२ को लगभग २०-२५ स्वतंत्रता सेनानियों ने ४-५ सितम्बर को पोबरी में एकत्र होने और इस बीच पूरे इलाके में काम करने का फैसला लिया गया।
३ सितम्बर को एस.डी.एम. जानसन पुलिस, पटवारी, पेशकार और लाइसेंसदारों क जत्था लेकर खुमाड के लिये रवाना हुआ। इस जत्थे में लगभग २०० लोग थे, यह जत्था भिकियासैंण होता हुये देघाट, चौकोट में गोलीकांड कर खुमाड़ की ओर चला। क्वैराला में जब यह जत्था पहुंचा तो लोग खुमाड़ की ओर उमड़ पड़े। लोगों को खबर मिली कि पुलिस खुमाड में सेनानियों के अड्डे पर हमला करने जा रही है। पुलिस पटवारी के साथ एस.डी.एम. बितड़ी पहुंचा तो लालमणि ने उनका रास्ता रोक दिया, उनकी पिटाई कर हाथ पीछे बांध दिये गये, इस जत्थे ने दंगूला गांव में भी लोगों को आतंकित करने के लिये उपद्रव भी किया। जब यह दस्ता खुमाड़ पहुंचा तो वहां पर तिल रखने की भी जगह नहीं थी। चारों ओर भीड़ ही भीड़ थी, गोविन्द ध्यानी नाम के नवयुवक ने इनका रास्ता रोककर नारेबाजी शुरु कर दी। जानसन आगे बढा और स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी न देने पर आग लगाने की धमकी दी और भीड़ को आतंकित करने के लिये हवाई फायर करने लगा।
भीड़ के बीच में से नैनमणि उर्फ नैनुवा ने अचानक आगे आकर जानसन का हाथ पकड़ कर उसकी पिस्तौल छीनने का प्रयास किया, उसने पिस्तौल निकाल ली, नैनमणि जी जानसन पर लाठी से प्रहार करने जा रहे थे तो उन्हें पुलिस जवानों ने पकड़ लिया। जानसन ने गोली चलाने का हुक्म दिया, स्थानीय निवासी होने के कारण पुलिस के जवानों ने निहत्थी जनता पर निशाना साध कर गोली चलाने के बजाय इधर-उधर गोलियां चलाई तो जानसन ने स्वयं ही निशान साधकर गोलियां चलानी शुरु कर दीं। इस गोलीकांड में दो सगे भाई गंगाराम और खिमानन्द वहीं पर शहीद हो गये और चार दिन बाद गोलियों से गम्भीर रुप से घायल चूड़ामणि व बहादुर सिंह मेहरा का भी स्वर्गवास हो गया। गंगा दत्त शाष्त्री, मधुसूदन, गोपाल सिंह, बचे सिंह व नारायण सिंह भी गोली लगने के कारण घायल हो गये थे। गोली चलाने के बाद जब जानसन घायलों के पास पहुंचा और खुमाड़ के मालगुजार पानदेव की धोती फाड़कर पट्टी बांधने लगा तो घायल बहादुर सिंह मेहरा ने गरजते हुये कहा कि “मलेच्छ तू हमें मत छू”।
स्वाधीनता आन्दोलन में सल्ट की अद्वितीय भूमिका रही और इसकी सराहना करते हुये महात्मा गांधी ने इसे कुमाऊं* की बारदोली की पदवी से विभूषित किया। आज भी खुमाड़ में हर साल ५ सितम्बर को शहीद स्मृति दिवस मनाया जाता है। स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान यहां बनाया गया कांग्रेस भवन अब शहीद स्मारक के रुप में इन नाम-अनाम आन्दोलनकारियों की गरिमामय याद समेटे हम सबका मार्गदर्शन कर रहा है।
उत्तराखण्ड की स्वाधीनता आन्दोलन में भूमिका को जानने हेतु हमारे फोरम के इस लिंक पर पधारें।
*कुमाऊं का अभिप्राय टिहरी रियासत को छोड़कर सम्पूर्ण उत्तराखण्ड से था।
I like the information givenhere and appriciate the efforts from the people of this area.
I belong to talla kafalatta (Tanola). Do i have any informatio of Tanola village. If so please provide me on my mail id given. Thanks
I am feeling more proud that i belong from dangula near of khumar.where salt kranti was started.
Sub khumark shahido k myar sat sat naman cha
I am feeling more proud that i belong from dangula near of khumar.where salt kranti was started.
Sub khumark shahido k myar sat sat naman cha
इस जत्थे ने दंगूला गांव में भी लोगों को आतंकित करने के लिये उपद्रव भी किया।
कुमाऊं* की बारदोली
THANK YOU FOR THE ARTICLE.
WITH REGARDS,
RAMESH SHARMA.
प्रणाम मित्रों..
मैं मानिला कुणीधार ग्रामसभा के
कुणीधार गाँव से हूँ …।।
वास्तव में सल्ट के महान लोगों नें इस
क्रान्ति के बल से कुमाऊँ को विशेष
दर्जा दिलाकर आपनी नाम स्वर्णाक्षरों
में अंकित कर लिया है ।
एंव इन सभी क्रान्तिकारियों का इस
कार्य में चिरस्मरणीय योगदान रहेगा ।
इन सभी हुतात्माओं को श्रद्धाजंली
व कोटिश: नमन…
I really heartfull thanks to all
these patroitic leaders of salt
who secrifice their life for kumau
or uttarakhand even india.
They made kumaun a better palace in all over india…
जय उत्तराखण्ड
जय माँ मानिला….
ॐ!!!!
Hi dear all of you
I’m umesh gahatyari from manila rathakhal
वास्तव में सल्ट के महान लोगों नें इस क्रान्ति के बल से कुमाऊँ को विशेष दर्जा दिलाकर आपनी नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित कर लिया है एंव इन सभी क्रान्तिकारियों का इस कार्य में चिरस्मरणीय योगदान रहेगा ।इन सभी हुतात्माओं को श्रद्धाजंली व कोटिश: नमन…The Great kumaun.
ji ho salt ke l;ogo
I appreciate the article …… I was trying to learn this story from my grand father (who is 83 yrs old, we are resident of Village – Ghachkot near to Khumar) who told me much similar about the incidents…… I many times visited Shaheed Samarak on 5th September.
Its is great to read such a article about our history……
Kishor…
Salt ke shedo ko Nyman
Bahut umda jankari shukriya …meri ankhe bhar aayi …jis vatan ke liye mere badon ne apna khoon bahaya aaz ham use hi barbad karne par tule hain …Allah hame sadbudhhi de ..ameen Zahid Alam haridwar