मकर संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ का तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° वैसे तो पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤ वरà¥à¤· में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है और यही तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° हमारे देश के अलग-अलग हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ में अलग-अलग नाम और तरीके से मनाया जाता है। इस तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° को हमारे उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में “उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£à¥€” के नाम से मनाया जाता है। कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ में यह तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° घà¥à¤˜à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ के नाम से à¤à¥€ मनाया जाता है तथा गà¥à¤µà¤¾à¤² में इसे खिचड़ी संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ के नाम से मनाया जाता है। यह परà¥à¤µ हमारा सबसे बड़ा तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° माना जाता है । इस परà¥à¤µ पर पिथौरागॠऔर बागेशà¥à¤µà¤° को छोड़कर कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ के अनà¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में मकर संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ को आटे के घà¥à¤˜à¥à¤¤ बनाये जाते हैं और अगली सà¥à¤¬à¤¹ को कौवे को दिये जाते हैं (यह पितरों को अरà¥à¤ªà¤£ माना जाता है) बचà¥à¤šà¥‡ घà¥à¤˜à¥à¤¤ की माला पहन कर कौवे को आवाज लगाते हैं;  काले कौवा का-का, ये घà¥à¤˜à¥à¤¤à¥€ खा जा । वहीं पिथौरागॠऔर बागेशà¥à¤µà¤° अंचल में मकर संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ की पूरà¥à¤µ संधà¥à¤¯à¤¾ (मशानà¥à¤¤à¤¿) को ही घà¥à¤˜à¥à¤¤ बनाये जाते हैं और मकर संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ के दिन उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कौवे को खिलाया जाता है। बचà¥à¤šà¥‡ कौवे को बà¥à¤²à¤¾à¤¤à¥‡ हैं काले कौवà¥à¤µà¤¾ का-का, पूस की रोटी माघे खा ।  लोक अंचलों में घà¥à¤˜à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ तà¥à¤¯à¤¾à¤° से समà¥à¤¬à¤§à¤¿à¤¤ à¤à¤• कथा पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है….कहा जाता है कि à¤à¤• राजा का घà¥à¤˜à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ नाम का मंतà¥à¤°à¥€ राजा को मारकर ख़à¥à¤¦ राजा बनने का षडà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤à¥à¤° बना रहा था… à¤à¤• कौवà¥à¤µà¥‡ ने आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया…. मंतà¥à¤°à¥€ घà¥à¤˜à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ को मृतà¥à¤¯à¥à¤¦à¤‚ड मिला और राजा ने राजà¥à¤¯ à¤à¤° में घोषणा करवा दी कि मकर संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ के दिन राजà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¸à¥€ कौवà¥à¤µà¥‹ को पकवान बना कर खिलाà¤à¤‚गे……तà¤à¥€ से इस अनोखे तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° को मनाने की पà¥à¤°à¤¥à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆ| दूसरी कथा इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° है  पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨ काल में यहां कोई राजा था, उसे जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने बताया कि उस पर मारक गà¥à¤°à¤¹ दशा है। यदि वह ‘मकर संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿â€™ के दिन बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के हाथ से कवà¥à¤µà¥‹à¤‚ को घà¥à¤˜à¥à¤¤à¥‹à¤‚ फाखà¥à¤¤à¤¾ पकà¥à¤·à¥€ का à¤à¥‹à¤œà¤¨ कराये तो उसके इस गà¥à¤°à¤¹à¤¯à¥‹à¤— के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ का निराकरण हो जायेगा, लेकिन राजा अहिंसावादी था। उसने आटे के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• घà¥à¤˜à¥à¤¤à¥‡ तलवाकर बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कवà¥à¤µà¥‹à¤‚ को खिलाया। तब से यह परंपरा चल पड़ी। इस तरह की और कहानियां à¤à¥€ हैं। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¤• तीसरी किवदंती है कि कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ के à¤à¤• राजा के पà¥à¤¤à¥à¤° को घà¥à¤˜à¤¤à¥‡ (जंगली कबूतर) से बेहद पà¥à¤°à¥‡à¤® था। राजकà¥à¤®à¤¾à¤° का घà¥à¤˜à¤¤à¥‡ के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤® देख à¤à¤• कौवा चिढ़ता था। उधर, राजा का सेनापति राजकà¥à¤®à¤¾à¤° की हतà¥à¤¯à¤¾ कर राजा की पूरी संपतà¥à¤¤à¤¿ हड़पना चाहता था। इस मकसद से सेनापति ने à¤à¤• दिन राजकà¥à¤®à¤¾à¤° की हतà¥à¤¯à¤¾ की योजना बनाई। वह राजकà¥à¤®à¤¾à¤° को à¤à¤• जंगल में ले गया और पेड़ से बांध दिया। ये सब उस कौवे ने देख लिया और उसे राजकà¥à¤®à¤¾à¤° पर दया आ गई। इसके बाद कौवा तà¥à¤°à¤‚त उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर पहà¥à¤‚चा जहां रानी नहा रही थी। उसने रानी का हार उठाया और उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर फेंक दिया जहां राजकà¥à¤®à¤¾à¤° को बांधा गया था। रानी का हार खोजते-खोजते सेना वहां पहà¥à¤‚ची जहां राजकà¥à¤®à¤¾à¤° को बांधा था। राजकà¥à¤®à¤¾à¤° की जान बच गई तो उसने अपने पिता से कौवे को समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ करने की इचà¥à¤›à¤¾ जताई। कौवे से पूछा गया कि वह समà¥à¤®à¤¾à¤¨ में कà¥à¤¯à¤¾ चाहता है तो कौवे ने घà¥à¤˜à¤¤à¥‡ का मांस मांगा। इस पर राजकà¥à¤®à¤¾à¤° ने कौवे से कहा कि तà¥à¤® मेरे पà¥à¤°à¤¾à¤£ बचाकर किसी और अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿ की हतà¥à¤¯à¤¾ करना चाहते हो यह गलत है। राजकà¥à¤®à¤¾à¤° ने कहा कि हम तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• के रूप में मकर संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति को अनाज से बने घà¥à¤˜à¤¤à¥‡ खिलाà¤à¤‚गे। कौवा राजकà¥à¤®à¤¾à¤° की बात मान गया। इसके बाद राजा ने पूरे कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ में कौवों को दावत के लिठआमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया। राज का फरमान कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ में पहà¥à¤‚चने में दो दिन लग गà¤à¥¤ इसलिठयहां दो दिन घà¥à¤˜à¤¤à¥à¤¯à¤¾ का परà¥à¤µ मनाया जाता है।
घà¥à¤˜à¥à¤¤ बनाने के लिये गà¥à¥œ और आटे के मिशà¥à¤°à¤£ से आकृतियां बनाई जाती हैं, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤¬à¤¹ नहा-धोकर कौवà¥à¤µà¥‹à¤‚ को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करने के बाद इनकी माला बनाकर बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के गले में डाली जाती है, बचà¥à¤šà¥‡ हरà¥à¤·à¥‹à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ से अपनी-अपनी मालाओं को पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¤ करते हà¥à¤¯à¥‡ खाते हैं। बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को यह गीत गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ à¤à¥€ सà¥à¤¨à¤¾ जा सकता है। काले कवà¥à¤µà¤¾ काले, घà¥à¤˜à¥à¤¤à¥€ माला खाले। ले कवà¥à¤µà¤¾ बड़, मैंके दिजा सà¥à¤¨à¥Œà¤‚क घà¥à¤µà¤¡à¤¼à¥¤ ले कवà¥à¤µà¤¾ ढाल, मैंके दिजा सà¥à¤¨à¤• थाल। ले कोवà¥à¤µà¤¾ पà¥à¤°à¥€, मैंके दिजा सà¥à¤¨à¤¾à¤•à¤¿ छà¥à¤°à¥¤ ले कौवà¥à¤µà¤¾ तलवार, मैंके दे ठà¥à¤²à¥‹ घरबार। इसके अतिरिकà¥à¤¤ इस परà¥à¤µ पर बागेशà¥à¤µà¤° में बहà¥à¤¤ विशाल मेला लगता है, जिसका सामाजिक, आरà¥à¤¥à¤¿à¤•, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤• और राजनीतिक महतà¥à¤µ à¤à¥€ है। पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ जमाने में यह मेला à¤à¥‹à¤Ÿ और शेष कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ के वसà¥à¤¤à¥ विनिमय के लिये जाना जाता था, आज à¤à¥€ à¤à¥‹à¤Ÿ के वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ यहां शिरकत की जाती है और सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• जà¥à¤²à¥‚स निकाला जाता है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ लोक पà¥à¤°à¥‡à¤® गाथा राजà¥à¤²à¤¾ मालूशाही में à¤à¥€ उनके माता-पिता दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤—वान बागनाथ के समकà¥à¤· अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के विवाह का संकलà¥à¤ª लिया था। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£à¥€ का सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पकà¥à¤· à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ परंपरा में ‘मकर संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿â€™ को सूरà¥à¤¯ के उतà¥à¤¤à¤° दिशा में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ के रूप में मनाया जाता है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में इसे ‘उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£à¥€â€™ कहा जाता है। पहाड़ में इसे घà¥à¤—à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾, पà¥à¤¸à¥à¤¯à¥‹à¤¡à¤¿à¤¼à¤¯à¤¾, मकरैण, मकरैणी, उतरैणी, उतरैण, घोलà¥à¤¡à¤¾, घà¥à¤µà¥Œà¤²à¤¾, चà¥à¤¨à¥à¤¯à¤¾ तà¥à¤¯à¤¾à¤°, खिचड़ी संगंराद आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन सूरà¥à¤¯ धनà¥à¤°à¥à¤°à¤¾à¤¶à¤¿ से मकर राशि में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करता है, इसलिठइसे ‘मकर संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿â€™ या ‘मकरैण’ कहा जाता है। सौर चकà¥à¤° में सूरà¥à¤¯ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾à¤¯à¤¨ से उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£ की ओर चलता है, इसलिये इसे ‘उतà¥à¤¤à¤°à¥ˆà¤£â€™ या ‘उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£à¥€â€™ कहा जाता है। ‘उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£à¥€â€™ जहां हमारे लिये लोक का तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° है वहीं यह नदियों के संरकà¥à¤·à¤£ की चेतना का उतà¥à¤¸à¤µ à¤à¥€ है। ‘उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£à¥€â€™ परà¥à¤µ पर उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड की हर नदी में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है। उतà¥à¤¤à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¥€ में इस दिन से शà¥à¤°à¥‚ होने वाले माघ मेले से लेकर सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—ों बिषà¥à¤£à¥à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—, ननà¥à¤¦à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—, करà¥à¤£à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—, रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— और देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—, सरयू-गोमती के संगम बागेशà¥à¤µà¤° के अलावा अनà¥à¤¯ नदियों में लोग पहली रात जागरण कर सà¥à¤¬à¤¹ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करते हैं। असल में उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में हर नदी को मां और गंगा का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ मंडल में ‘उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£à¥€â€™ को घà¥à¤˜à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° के रूप में जाना जाता है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£à¥€ की पहली रात को लोग जागरण करते हैं। पहले इस जागरण में आंड-कांथ ;पहेलियां-लोकोकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚दà¥à¤§, फसक-फराव अपने आप कà¥à¤› समासामयिक पà¥à¤°à¤¸à¤‚गों पर à¤à¥€ बात होती थी। सलà¥à¤Ÿ की तरफ रात को ‘ततà¥à¤µà¤¾à¤£à¥€â€™ गरम पानी से नहान होती है। सà¥à¤¬à¤¹ ठंडे पानी से नदी या नौलों में नहाने की परंपरा शिवाणी रही है।
सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ में à¤à¥€ इस परà¥à¤µ का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ रहा, कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ केसरी बदà¥à¤°à¥€ दतà¥à¤¤ पांडे के नेतृतà¥à¤µ में 14 जनवरी, 1921 को बागेशà¥à¤µà¤° के ‘उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£à¥€â€™ मेले में हजारों लोग इकटà¥à¤ ा हà¥à¤¯à¥‡à¥¤ सबने सरयू-गोमती नदी के संगम का जल उठाकर संकलà¥à¤ª लिया कि ‘हम कà¥à¤²à¥€ बेगार नहीं देंगे।’ कमिशà¥à¤¨à¤° डायबिल बड़ी फौज के साथ वहां पहà¥à¤‚चा था। वह आंदोलनकारियों पर गोली चलाना चाहता था, लेकिन जब उसे अंदाजा हà¥à¤† कि अधिकतर थोकदार और मालगà¥à¤œà¤¾à¤° आंदोलनकारियों के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ में हैं तो वह चेतावनी तक नहीं दे पाया। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¤• बड़ा आंदोलन अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ के खिलापफ खड़ा हो गया। हजारों लोगों ने ‘कà¥à¤²à¥€ रजिसà¥à¤Ÿà¤°â€™ सरयू में डाल दिये। इस आंदोलन के सूतà¥à¤°à¤¾à¤§à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में बदà¥à¤°à¥€à¤¦à¤¤à¥à¤¤ पांडे, हरगोविनà¥à¤¦ पंत, मोहन मेहता, चिरंजीलाल, विकà¥à¤Ÿà¤° मोहन जोशी आदि महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ थे। बागेशà¥à¤µà¤° से कà¥à¤²à¥€ बेगार के खिलाफ आंदोलन पूरे पहाड़ में फैला। 30 जनवरी 1921 को चमेठाखाल गढ़वाल में वैरिसà¥à¤Ÿà¤° मà¥à¤•à¤¨à¥à¤¦à¥€à¤²à¤¾à¤² के नेतृतà¥à¤µ में यह आदोलन बढ़ा। खलà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥€ के ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¦à¤¤à¥à¤¤ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥€ और बंदखणी के मंगतराम खंतवाल ने मालगà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ से तà¥à¤¯à¤¾à¤—पतà¥à¤° दिया। गढ़वाल में दशजूला पटà¥à¤Ÿà¥€ के ककोड़ाखाल ;गोचर से पोखरी पैदल मारà¥à¤— नामक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर गढ़केसरी अनà¥à¤¸à¥‚या पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ बहà¥à¤—à¥à¤£à¤¾ के नेतृतà¥à¤µ में आंदोलन हà¥à¤† और अधिकारियों को कà¥à¤²à¥€ नहीं मिले। बाद में इलाहाबाद में अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨à¤°à¤¤ गढ़वाल के छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ ने अपने गांव लौटकर आंदोलन को आगे बढ़ाया। इनमें à¤à¥ˆà¤°à¤µà¤¦à¤¤à¥à¤¤ धूलिया, à¤à¥‹à¤²à¤¾à¤¦à¤¤à¥à¤¤ चंदोला, जीवाननà¥à¤¦ बडोला, आदि पà¥à¤°à¤®à¥à¤– थे। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£à¥€ का ही संकप था कि पहली बार यहां की महिलाओं ने अपनी देहरी लांघकर आजादी की लड़ाई में हिसà¥à¤¸à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ करना शà¥à¤°à¥‚ किया। कà¥à¤¨à¥à¤¤à¥€à¤¦à¥‡à¤µà¥€, बिसनी साह जैसी महिलायें ओदालनों का नेतृतà¥à¤µ करने लगी। आज à¤à¥€ बागेशà¥à¤µà¤° के मेले में कà¤à¥€ राजनीतिक दलों के पंडाल लगते हैं और वह अपने-अपने विचारों को वहां पर वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करते हैं।