(सà¥à¤µà¥¦ चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह राही जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, वह किसी बोली à¤à¤¾à¤·à¤¾ से हटकर पूरे उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के गà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¾ और लोककरà¥à¤®à¥€ थे। दिनांक १० जनवरी को उनकी पà¥à¤£à¥à¤¯ तिथि पर याद कर रहे हैं, वरिषà¥à¤ पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° शà¥à¤°à¥€ चारॠतिवारी जी)
रात के साà¥à¥‡ बारह बजे उनका फोन आया। बोले, ‘तà¥à¤¯à¤¾à¥œà¤œà¥à¤¯à¥‚ सै गै छा हो?’ à¤à¤• बार और फोन आया। मैंने आंखें मलते हà¥à¤¯à¥‡ फोन उठाया। सà¥à¤¬à¤¹ के चार बजे थे। बाले- ‘तà¥à¤¯à¤¾à¥œà¤œà¥à¤¯à¥‚ उठगै छा हो।’ उनका फोन कà¤à¥€ à¤à¥€ आ सकता था। कोई औपचारिकता नहीं। मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ कà¤à¥€ उनके वेवकà¥à¤¤ फोन आने पर à¤à¥à¤à¤‚लाहट नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ अलà¥à¤®à¥‹à¥œà¤¾ जनपद के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾à¤¹à¤¾à¤Ÿ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ मेरे गांव तक वे आये। मेरे पिताजी को वे बाद तक याद करते रहे। घर में जब आते तो बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के लिये यà¥à¤¦à¥à¤§ का मैदान तैयार हो जाता। वे ‘बà¥à¤¡à¥à¤¡à¥‡â€™ की कà¥à¤®à¤¾à¤‰à¤¨à¥€ वार से अपने को बचाने की कोशिश करते। पहली मà¥à¤²à¤¾à¤•à¤¾à¤¤ में पहला सवाल यही होता कि- ‘तà¥à¤µà¥ˆà¤•à¥‡à¤‚ पहाड़ि बà¥à¤²à¤¾à¤°à¥à¤¨ औछों कि ना?’ मेरी पतà¥à¤¨à¥€ किरण तो उनके साथ धारा पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ कà¥à¤®à¤¾à¤‰à¤¨à¥€ बोलती। पानी के बारे में उनका आगà¥à¤°à¤¹ था कि खौलकर रखा पानी ही पीयेंगे। हमारी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी हर बार इस बात का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखती और उनको आशà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ कराती कि यह पानी खौलकर ठंडा किया है। वे खà¥à¤¶ रहते। मेरी दोनों बेटियां उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ पसंद करती थी। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ‘सà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤Ÿ बà¥à¤¡à¥à¤¡à¤¾â€™ कहती। जब à¤à¥€ आते बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को बहà¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ करते। हमारे आॅफिस में à¤à¥€ उनका ‘आतंक’ छाया रहता। पहाड़ी बोलनी जिसे नहीं आती उसकी शामत आ जाती। फिर उनका पूरा à¤à¤¾à¤·à¤£ सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ ही पड़ता था। जनवरी 2016 में लोक के मरà¥à¤®à¤œà¥à¤ž चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¸à¤¿à¤‚ह ‘राही’ जी असà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ हो गये थे। इस दौरान कई असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤²à¥‹à¤‚ में उनका इलाज चलता रहा। लेकिन बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ के बाद à¤à¥€ वे सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ नहीं हो पाये और 10 जनवरी 2016 को इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को अलविदा कह गये। उनके जाने का मतलब है लोक विधाओं के à¤à¤• यà¥à¤— का अवसान। उनके गीत हमारे बीच रहेंगे। सदियों तक। हमेशा-हमेशा। उनकी तीसरी पà¥à¤£à¥à¤¯à¤¤à¤¿à¤¥à¤¿ पर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ विनमà¥à¤° शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि।
सà¥à¤µ. चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¸à¤¿à¤‚ह ‘राही’ का मतलब था, सà¤à¥€ लोक विधाओं का à¤à¤• साथ चलना। उनको समà¤à¤¨à¤¾à¥¤ उस अनà¥à¤°à¥à¤¤à¤¦à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿà¤¿ को à¤à¥€ जो लोक के à¤à¥€à¤¤à¤° समायी है। वे लोक विधाओं का à¤à¤• चलता-फिरता जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤•à¥‹à¤¶ थे। वे लोक धà¥à¤¨à¥‹à¤‚ के धनी थे। पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ आवाज के बादशाह à¤à¥€à¥¤ उनके गीतों में पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का माधà¥à¤°à¥à¤¯ है। संवेदनाà¤à¤‚ हैं। à¤à¤¾à¤·à¤¾ का सौंदरà¥à¤¯ है। बिमà¥à¤¬ जैसे उनके गीतों की विशेषता। शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का बड़ा संसार है। उनके पास लोक की पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ विरासत थी। नये सृजन के लिये खà¥à¤²à¥‡ दà¥à¤µà¤¾à¤° à¤à¥€à¥¤ लोक में बिखरी बहà¥à¤¤ सारी चीजों को समेटने की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ à¤à¥€à¥¤ वे लोक गायक थे। गीत लिखते और गाते थे। संगीत से उनका अटूट रिशà¥à¤¤à¤¾ रहा। लोक वादà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पर उनका अधिकार था। कोई लोकवादà¥à¤¯ à¤à¤¸à¤¾ नहीं है जिसे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने न बजाया हो। वे उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के हर लोकवादà¥à¤¯ पर अधिकारपूरà¥à¤µà¤• बोल सकते थे। ‘राही’ जी लोक विधाओं के अनà¥à¤µà¥‡à¤·à¥€ थे। लगà¤à¤— तीन हजार से अधिक लà¥à¤ªà¥à¤¤ होते लोकगीतों का संकलन उनके पास था। गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ और कà¥à¤®à¤¾à¤‰à¤‚नी à¤à¤¾à¤·à¤¾ पर उनका समान अधिकार था। इन सबके साथ ‘राही’ जी हमारी सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• धरोहर के सबसे पà¥à¤°à¤¬à¤² पहरेदार थे। à¤à¤• सरल इंसान। दरअसल ‘राही’ जी की अपनी खूबियां थीं।
चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¸à¤¿à¤‚ह ‘राही’ जी से मà¥à¤²à¤¾à¤•à¤¾à¤¤ कब हà¥à¤ˆ यह कहना बहà¥à¤¤ कठिन है। लगता था कि दशकों से à¤à¤•-दूसरे को जानते थे। उमà¥à¤° का इतना बड़ा फासला होने के बावजूद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कà¤à¥€ उस अनà¥à¤¤à¤° को पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ नहीं होने दिया। उनके साथ उस दौर में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ निकटता हो गयी जब मैं ‘जनपकà¥à¤·â€™ पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ का संपादन कर रहा था। कà¤à¥€ à¤à¥€, किसी à¤à¥€ समय उनका फोन आ सकता था। वह सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे à¤à¥€ हो सकता था, रात के 12 बजे à¤à¥€à¥¤ बहà¥à¤¤ आतà¥à¤®à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ से वे कà¥à¤®à¤¾à¤‰à¤¨à¥€ में बात करते थे। दो साल पहले अपने गृह कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾à¤¹à¤¾à¤Ÿ के कफड़ा में à¤à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में शामिल होने गया। चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¸à¤¿à¤‚ह ‘राही’ à¤à¥€ साथ थे। पता चला कि वहां रामलीला à¤à¥€ हो रही है। आयोजकों ने कहा कि आप रामलीला का उदà¥à¤˜à¤¾à¤Ÿà¤¨ कर दो। हमें à¤à¥€ रामलीला देखनी थी चले गये। लोगों को पता नहीं था कि मेरे साथ कौन हैं। मैंने मंच में जाकर घोषणा की कि रामलीला का उदà¥à¤˜à¤¾à¤Ÿà¤¨ चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¸à¤¿à¤‚ह ‘राही’ करेंगे। और सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ करते हà¥à¤ बताया कि ये वही ‘राही’ जी हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ‘सरग तारा जà¥à¤¨à¤¾à¤²à¥€ राता…’, ‘हिल मा चांदी को बटना…’, जैसे गीत गाये हैं। पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया। रामलीला तो छोड़िये पहले गीतों की फरमाइश आ गयी। पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ पीà¥à¥€ के लोग कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ à¤à¥€ नहीं कर सकते थे कि सतà¥à¤¤à¤° के दशक में जिस गायक को रेडियो पर सà¥à¤¨à¤¾ था उसे कà¤à¥€ सामने à¤à¥€ देख पायेंगे। ऊपर से धारा पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ कà¥à¤®à¤¾à¤‰à¤¨à¥€ बोलने से वे लोगों के चहेते बन गये। मैं उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कई आयोजनों में अधिकारपूरà¥à¤µà¤• अपने साथ ले गया। वे जहां à¤à¥€ गये अपने गीतों से लोगों के दिलों में जगह बना आये। ‘राही’ जी को ‘जौनसार’ से लेकर ‘जौहार’ तक की लोक विधाओं में महारत हासिल था।
सतà¥à¤¤à¤° का दशक। हम तब बहà¥à¤¤ छोटे थे। दूरसà¥à¤¥ गांवों में मनोरंजन के कà¥à¤› ही साधन थे। रामलीला और सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¤à¤° पर लगने वाले मेले-ठेले। हमारे कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में दो मेले लगते थे- ‘सà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥à¤¦à¥‡-बिखौती’ और ‘बगà¥à¤µà¤¾à¤² मेला।’ चैत-बैसाख में रातà¤à¤° गांवों में à¤à¥‹à¥œà¥‡-चांचरी की धूम रहती। गांव से दूर जंगल को जाती महिलाओं की लंबी कतारें ‘à¤à¥‹à¥œà¥‡â€™ के रंग में अपना रासà¥à¤¤à¤¾ तय करती थी। उनके लिये यह लोकगीत जीवन का संगीत था। आगे बà¥à¤¨à¥‡ की ताकत, सहयोग और सहकारिता के साथ चलने का दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€à¥¤ गांव में रेडियो थे, लेकिन कà¥à¤› ही घरों में। कà¥à¤› मिलटà¥à¤°à¥€ वाले अपने घर के बाहर ऊंची आवाज में रेडियो लगा देते। हमारे घर में à¤à¥€ रेडियो था। मेरे पिताजी बगà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€à¤ªà¥‹à¤–र इंटर कालेज में पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ थे। हम लोग सà¥à¤•à¥‚ल में बने आवास में ही रहते थे। मेरी ईजा दो मंजिले मकान की बड़ी सी खिड़की में बैठकर शाम को रेडियो लगाती। उसमें आकाशवाणी लखनऊ, नजीबाबाद, दिलà¥à¤²à¥€ और रामपà¥à¤° से गीत पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ होते। ‘गिरि गà¥à¤‚जन’, ‘उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£â€™ और दिलà¥à¤²à¥€ से पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ होने वाला ‘फौजियों के लिये फरमाइशी कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®â€™ हमारे लिये दिलचसà¥à¤ª थे। ‘उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£â€™ जब शà¥à¤°à¥‚ होता तो इससे पहले à¤à¤• गीत की धà¥à¤¨ आती थी- ‘आगे कदम… आगे कदम… आगे कदम…।’ इसके शà¥à¤°à¥‚ होते ही हम अपने सारे खेल छोड़कर à¤à¤¾à¤—कर घर आ जाते। इस कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® को सà¥à¤¨à¤¨à¥‡à¥¤ ईजा की डà¥à¤¯à¥‚टी थी कि जब ‘उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£â€™ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® आता तो वह हमें ‘धात’ (जोर से आवाज) लगाती। किसी वजह से हमें इस कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® की सूचना नहीं दे पाती तो उनके लिये नई मà¥à¤¸à¥€à¤¬à¤¤ खड़़ी हो जाती। हम ईजा से जिद करते कि फिर से उसी कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® को लगाये। बेचारी ईजा कà¥à¤¯à¤¾ कर सकती थी। कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ नहीं आ सकता था। बहà¥à¤¤ सारे गीत थे। कà¥à¤®à¤¾à¤‰à¤¨à¥€ और गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ में। कà¥à¤› गीत आज à¤à¥€ कानों में उसी तरह गूंजते हैं। ‘छाना बिलोरी à¤à¤¨ दिया बोजà¥à¤¯à¥‚, लागनी बिलोरी का घामा…’, ‘गरà¥à¤¡à¤¾ à¤à¤°à¤¤à¥€ कौसानी टà¥à¤°à¥‡à¤¨à¤¿à¤‚गा, देशा का लिजिया लडैं में मरà¥à¤²à¤¾…’, ‘बाटि लागी बराता चेली à¤à¥ˆà¤Ÿ डोलिमा…’, ‘सरग तरा जà¥à¤¨à¤¾à¤²à¥€ राता, को सà¥à¤£à¤²à¥‹ तेरी-मेरी बाता…’, ‘काली गंगा को कालो पाणी…’, ‘हिल मा चांदी को बटना…’, ‘रणहाटा नि जाण गजै सिंहा…’, ‘मेरी चदरी छूटि पछिना…,’ ‘रामगंगा तरै दे à¤à¤¾à¤—ी, धà¥à¤°à¤«à¤¾à¤Ÿà¤¾ मैं आपफी तरूलों…,’ ‘पार का à¤à¤¿à¥œà¤¾ कौ छै घसà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€…’, ‘कमला की बोई बना दे रोटी, मेरी गाड़ी लà¥à¤¹à¥‡ गै छ पीपलाकोटी…’, ‘पारे à¤à¤¿à¥œà¥ˆ की बंसती छोरी रूमा-à¤à¥à¤®…’, ‘ओ परà¥à¤† बोजà¥à¤¯à¥‚ चपà¥à¤ªà¤² कै लà¥à¤¯à¤¾à¤›à¤¾ यस…’, ‘ओ à¤à¤¿à¤¨à¤¾ कसिके जानूं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¹à¤¾à¤Ÿà¤¾…,’ ‘धारमक लालमणि दै खै जा पात मा…।’ और à¤à¥€ बहà¥à¤¤ सारे गीत थे। ‘नà¥à¤¯à¥Œà¤²à¥€â€™, ‘छपेली’, ‘बाजूबंद’, à¤à¥‹à¥œà¥‡-à¤à¥à¤®à¥‡à¤²à¥‹â€™, ‘à¤à¤—नोल’, ‘ऋतà¥à¤°à¥ˆà¤£â€™ आदि जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमें लोकगीतों की à¤à¤• समठदी। इन गीतों के साथ हम बड़े हà¥à¤ और इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤¨à¤•à¤° ही हमने रामलीलाओं और सà¥à¤•à¥‚ल की बाल-सà¤à¤¾à¤“ं में खड़ा होना सीखा। यही लोकगीत हमारी चेतना के आधार रहे।
हम लोग जब दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤°à¥€ को समà¤à¤¨à¥‡ लगे तो इन लोकगीतों का मरà¥à¤® à¤à¥€ समठमें आने लगा। यह à¤à¥€ कि बहà¥à¤¤ सहजता से कह दी गयी बातें हमारे जीवन की संवेदनाओं से कितने गहरे तक जà¥à¥œà¥€ हैं। इन गीतों में हमारा पूरा समाज चलता है। इन गीतों से हमने à¤à¤•-दूसरे के दरà¥à¤¦ à¤à¥€ जाने और दरà¥à¤¦ के साथ जीना à¤à¥€ सीखा। कितनी सारी अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤•à¤¥à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं इन गीतों के à¤à¥€à¤¤à¤°à¥¤ हमारी अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤•à¤¥à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚। लोक की, लोक में रहने वाले समाज की। सबकी सामूहिक। वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त तो हो ही नहीं सकती। होती तो यह आवाज लोक से नहीं निकलती। जंगल के à¤à¤•à¤¾à¤¨à¥à¤¤ से निकलने वाली ‘नà¥à¤¯à¥Œà¤²à¥€â€™ हो या गांव से निकलने वाला ‘à¤à¤—नौला’, सामूहिकता में पिरोई ‘à¤à¥Œà¥œà¥‡-à¤à¥à¤®à¥ˆà¤²à¥‹â€™ की रंगत हो या ‘खà¥à¤¦à¥‡à¥œ गीत’, हमारे पारंपरिक ‘ऋतà¥à¤—ीत’ हों या ‘मांगलगीत’, पांडव गीत-नृतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से लेकर ‘रमà¥à¤®à¤¾à¤£â€™ तक, घसà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ के गीतों से लेकर बदà¥à¤¦à¥€ गीत, थड़िया, चैंफला, चांचरी, बाजूबंद, छूड़ा, जागर, लोक गाथाओं तक।
लोकवादà¥à¤¯ ढोल, नगाड़ा, बांसà¥à¤°à¥€, जौलà¥à¤¯à¤¾à¤‚-मà¥à¤°à¤²à¥€, नागफनी, रणसिंगा, डफली, हà¥à¥œà¤•à¤¾, शंख, घंट, इकतारा, दोतारा, सारंगी, बिणाई, खंजरी, तà¥à¤°à¤¹à¥€, à¤à¤‚कोरा, डौंर, थाली, डमरू, अलगोजा, मशकबीन, घà¥à¤‚घरू, खड़ताल, घानी, चिमटा, मजीरा, कंसेरी, à¤à¤¾à¤‚ठतक लोक विधाओं का इतना बड़ा संसार फैला है, जिसका हर छोर हमारे अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤®à¤¨ को समेटे है। जितना बà¥à¥‡à¤—ा हमारी पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ इसमें समा जायेगी। इसमें वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•à¤¤à¤¾ है। आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤ करने की शकà¥à¤¤à¤¿ और अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की कला à¤à¥€à¥¤ इसलिये इसे वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करने की कितनी विधायें हैं। लोक है तो उसमें संगीत होगा। संगीत है तो जीवन होगा। उसके विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ रंग होंगे। दà¥à¤– के, सà¥à¤– के। पà¥à¤°à¥‡à¤® और विछोह के। खà¥à¤¦-बाडà¥à¤²à¥€ के। उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹-उमंग के। चेतना के। कà¤à¥€ विदà¥à¤°à¥‹à¤¹-पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤° के à¤à¥€à¥¤ लोक से निकली हर आवाज ने समाज को पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¿à¤‚बित करते सामूहिक गीतों की जो पंरपरा बनायी उसने हमें मिलकर आवाज उठाना à¤à¥€ सिखाया। यह आवाज तब तक निकलती रहेगी जब तक गांव बचा रहेगा। यही लोकगीतों की परंपरा के जीवित रहने की शरà¥à¤¤ है।
तीन-साà¥à¥‡ तीन दशक बाद उस ओर लौटना सà¥à¤–द अतीत की सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में खोना है। ये सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¤¸à¥‡ समय में और जीवंत हो उठती हैं जब हम लोक विधाओं को बचाने की चिंता में हैं। इस तरह की चिंता बेवजह नहीं है, लेकिन यह à¤à¥€ सच है कि संचार और तकनीक के विकास के साथ चीजें बदलती हैं। लोक विधाओं के साथ à¤à¥€ यह बात लागू होती है। लोक में समय के साथ कई चीजें जà¥à¥œà¤¤à¥€ हैं, और कई चीजें बाहर à¤à¥€ होती हैं। इसलिये हर बदलाव को सारà¥à¤¥à¤• रूप से लेना ही अपनी विधाओं को विसà¥à¤¤à¤¾à¤° देना होता है। शरà¥à¤¤ à¤à¤• ही है कि इस बदलाव में लोक की आतà¥à¤®à¤¾ नहीं मरनी चाहिये। जब हम लोक विधाओं पर बात करेंगे तो सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• रूप से लोक के संरकà¥à¤·à¤£ और संवरà¥à¤§à¤¨ में लगे लोगों की बात à¤à¥€ होगी। यह अलग बात है कि समय के साथ लोक विधाओं के सामने संकट है। सच यह à¤à¥€ है कि लोक विधाओं को जानने-समà¤à¤¨à¥‡ का à¤à¤• नया दौर à¤à¥€ शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤† है। अपनी जड़ों की ओर लौटने को आतà¥à¤° नई पीà¥à¥€ ने संचार माधà¥à¤¯à¤®à¥‹à¤‚ का सही उपयोग कर हमारी पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ विरासत को इंटरनेट तक पहà¥à¤‚चा दिया है। अब हमारे लोक का दायरा बà¥à¤¾ है। कई à¤à¤¸à¥‡ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ गीत हैं जो आपको इंटरनेट पर मिल जायेंगे। यह à¤à¥€ बदलाव का à¤à¤• सारà¥à¤¥à¤• मà¥à¤•à¤¾à¤® है। इससे अपनी विधाओं पर नये पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— का रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ निकला है।
लोक विधाओं पर बहà¥à¤¤ सारे लोगों ने काम किया है। आकाशवाणी के जिन कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ का जिकà¥à¤° किया गया है उनमें लोक के मरà¥à¤®à¤œà¥à¤ž केशव अनà¥à¤°à¤¾à¤—ी का विशेष योगदान रहा है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लोक की अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का जो वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• मंच तैयार किया उसकी नींव पर हमारे गीत-संगीत की बहà¥à¤¤ सारी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤“ं ने अपना रचना-संसार खड़ा किया। आदि कवि गà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€, मौलाराम, गौरà¥à¤¦à¤¾, गोपीदास, कृषà¥à¤£ पांडे, सतà¥à¤¯à¤¶à¤°à¤£ रतूड़ी, शिवदतà¥à¤¤ सती, मोहन उपà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥€, बà¥à¤°à¤œà¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤° लाल साह, नईमा खान, लेनिन पंत, रमापà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ घिलà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¾à¤² ‘पहाड़ी’ के बाद घनशà¥à¤¯à¤¾à¤® सैलानी, डा. गोबिनà¥à¤¦ चातक, डा. शिवाननà¥à¤¦ नौटियाल, हरिदतà¥à¤¤ à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ ‘शैलेश’, मोहनलाल बाबà¥à¤²à¤•à¤°, अबोधबंधॠबहà¥à¤—à¥à¤£à¤¾, कनà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾à¤²à¤¾à¤² डंडरियाल, रतनसिंह जौनसारी, शेरदा ‘अनपà¥â€™, गोपालबाबू गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€, बीना तिवारी, चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤•à¤²à¤¾, मोहन सिंह रीठागाड़ी, à¤à¥‚सिया दमाई, कबूतरी देवी, बसनà¥à¤¤à¥€ बिषà¥à¤Ÿ, गिरीश तिवारी ‘गिरà¥à¤¦à¤¾â€™, नरेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¸à¤¿à¤‚ह नेगी, हीरासिंह राणा आदि ने सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में अपना अविसà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ योगदान दिया है। लोक पंरपरा को आगे ले जाने वाली पीà¥à¥€ à¤à¥€ तैयार है। जागर शैली और ढोल-दमाऊ को विशà¥à¤µ पटल तक पहà¥à¤‚चाने वाले जागर समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® à¤à¤°à¤¤à¤µà¤¾à¤£ हैं तो जौनसार से रेशमा शाह, जागर शैली की हेमा करासी नेगी हैं तो विशà¥à¤¦à¥à¤§ लोक की आवाज लिये ‘नà¥à¤¯à¥Œà¤²à¥€â€™ गाने वाली आशा नेगी à¤à¥€à¥¤ अà¤à¥€ लोकधà¥à¤¨à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤—धरà¥à¤®à¥€ किशन महीपाल और रजनीश सेमवाल से à¤à¥€ लोगों का परिचय हà¥à¤† है। अमित सागर ने राही जी की चेतà¥à¤¯à¥‹à¤²à¥€ गाकर ‘राही’ जी को सही शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि दी है। लोक पर ‘पांउवाज’ के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— à¤à¥€ हमें पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ धाती को नये संदरà¥à¤à¥‹à¤‚ में समà¤à¤¨à¥‡ का रासà¥à¤¤à¤¾ निकाल रही हैं।
लोक विधाओं पर संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ में इतनी बातें हमारे लोक की समृदà¥à¤§à¤¿ को तो बताती हैं, लेकिन इससे बात पूरी नहीं होती। इस पर पूरी चरà¥à¤šà¤¾ à¤à¥€ कर लें तो समापà¥à¤¤ नहीं होगी। यह बात शà¥à¤°à¥‚ ही तब हो पायेगी जब इसमें लोक विधाओं के साथ जीने वाले à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ का नाम जोड़ा जायेेगा। वह नाम है- सà¥à¤µ. चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¸à¤¿à¤‚ह ‘राही’। अब ‘राही’ जी हमारे बीच में नहीं हैं। आज उनकी तीसरी पà¥à¤£à¥à¤¯à¤¤à¤¿à¤¥à¤¿ है। पिछले तीन साल से उनका ‘वेवकà¥à¤¤â€™ फोन नहीं आया- ‘तà¥à¤¯à¤¾à¤¡à¤œà¥à¤¯à¥‚, सै गै छा हो?’ कैसे सो सकते हैं। आपकी चेतना के गीत हमारे बीच में हैं। हमेशा चेतन करते रहेंगे। आपके गीत, आपका वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ हमें हमेशा जगाये रखेगा। वैसे ही जैसे रात के साà¥à¥‡ बारह बजे और सà¥à¤¬à¤¹ के चार बजे। आपको पूरे समाज की ओर से कृतजà¥à¤žà¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤£ विनमà¥à¤° शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि।
सà¥à¤µ. चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¸à¤¿à¤‚ह ‘राही’ जी को शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª दी पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤• पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ हेतॠधनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦!
‘राही’ जी को हारà¥à¤¦à¤¿à¤• शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि
ham duniyadari ko samjhne lge to lokgeeton ka marm samjh aane lga….
thanks
आदरणीय चारॠतिवारी जी, मैं कहानीकार गजेंदà¥à¤° रावत जी के साथ आपसे दो-तीन बार मिला। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आपकी पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ में छपी अपनी à¤à¤• कहानी का ज़िकà¥à¤° मà¥à¤à¤¸à¥‡ किया था। कहानी में à¤à¤•à¤¾à¤¦ जगह कांट-छांट से रावत जी खिनà¥à¤¨ थे। उनसे पता चला था कि आप ही जनपकà¥à¤· के संपादक हैं। आपका “चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¸à¤¿à¤‚ह राही” जी पर लिखा आलेख पà¥à¤¾à¥¤ कà¥à¤¯à¤¾ ग़ज़ब की लेखन शैली है आपकी। “राही” जी को पूरा खोलकर रख दिया आपने। à¤à¤ˆ वाह! आपकी ये बिनà¥à¤¦à¤¾à¤¸ शैली मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ पसंद आई। “सारà¥à¤¥à¤• पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸” के कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में ११ जनवरी २०१५ को राजेनà¥à¤¦à¥à¤° à¤à¤µà¤¨, आई०टी०ओ०, दिलà¥à¤²à¥€, में डॉ० सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ रावत जी के निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¨ में à¤à¤• नाटक खेला गया था “ढोल के बोल” (महावीर रवांलà¥à¤Ÿà¤¾ की कहानी पर आधारित) जिसमें हमारे सà¥à¤ªà¥à¤¤à¥à¤° सचिन à¤à¤‚डारी ने ठाकà¥à¤° के लड़के ‘बाबू’ का किरदार किया था। जिसे आपने पसनà¥à¤¦ à¤à¥€ किया था। इस कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में आप, सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हिंदी साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° पंकज बिषà¥à¤Ÿ जी के साथ मà¥à¤–à¥à¤¯ अतिथि थे। याद आया। मैं वही महावीर उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚चली अदना-सा शा’इर/कवि व कथाकार।