Uttarakhand is well known for its ancient culture. In its daily life animals, birds, fields all basic amenities of human life is given utmost importance. Gods and Goddess are treated like family members and given a prestigious position in the family people treat Gods and Goddesses as their own and gives them a high and prestigious position in their family. Even being heavenly they are relatives of common men. In this tradition the people of Uttarakhand treat goddess Parvati as their mother/sister and lord Mahadev as son in law/ brother in law.
It is believed that in the seventh day of the month Bhadrapada (Aug-Sept) Gaura comes to her mothers place and the day next Lord Mahadev also arrives to his in laws place. Aatho (आठूं) festival is celebrated as a symbol of the same. Fifth day of the month of Bhadrapada five types of seeds (like- wheat, maize, gram, peas and kalaun- Having rich medicinal properties to cure common diseases of the season) are socked in water in brass pot and after two days, Saton (सातों)( i.e. saptami) it is brought to the naula (water resource of the village) and washed. At the same place an Idol (puppet, पुतला) of goddess Gaura (Gamara Didi, गमरा दीदी) is prepared by using seasonal crop & plants. After sacredation it is brought to the village and the whole village celebrates the arrival of elder sister Gamra. In the evening the family members are blessed with the seeds and theirafter seeds are eaten as the holy Prasad of mother parvati. On this occasion local fruits like malta, orange, Amla etc. kept on a cotton sheet and thrown upwards. Who ever unmarried girl catches any of the fruit, is said that she gets married before next Aathon festival.
In the evening the house where the gamra is kept, all the villagers gathers there and dance with folk songs in which Gaura’s blessings for the village is expected. Apart from this on the day of Aathon (Ashtmi) same Idol like a man is brought as a symbol of Maheshvar (Mahadev). This idol is kept with Gauras idol. The whole village dance on the arrival of their sun in law/ brother in law. Songs on this occasion sung is called khel(खेल/झोड़ा). This procession goes on for next four-five days.
On the day of the Saton (saptmi) all married women stay on fast and tie a holy thread on their hands and prays Lord Goddess for their long married life. On this occasion it is essential for all family members to buy and wear new clothes.
After four-five days Gamra and Mahashers idol is brought to the village temple and the villagers send off these idols with heavy hearts, this procession is called Gamra Silana (dispersed). Some of the old ladies even cries in sadness. Villagers pray to Gamra didi and Mahesher Bhina (brother-in-law) to bless all happiness to the village and to come soon in the next year.
This Festival is celebrated almost all over in Uttarakhand, but the customs to celebrate are different in different places. In Pithoragarh district on the dispersions ceremony organize a unique folk festival named Hill-Jatra.
The close relation between God and Human being seems only in Uttarakhand, so that Uttarakhand is called Devbhumi, Truly Devbhumi..
“गमरा दीदी, महेशर भीना” अर्थात पार्वती दीदी (बड़ी बहन)महादेव जीजा जी, अहा! कितनी आत्मीयता है, इन शब्दों में। उत्तराखण्ड की देवभूमि में ही यह मुमकिन है, जहां देवताओं से ही लोगों के आत्मीय संबंध नहीं होते, बल्कि पशु, पक्षी, हल, बैल और अपने दैनिक उपयोग में आने वाली हर चीज से भी आत्मीयता जोड़ दी जाती है।
लड़की के किशोरावस्था में आते ही उसके लिये एक छोटी घुघरुयुक्त दरांती (घुंघर्याली दांतुली) भी यही बनती है। कृषि उपकरणॊ से इस प्रकार से आत्मीयताअ जोड़ने का प्रयास………वाह मेरी देवभूमि, उत्तराखण्ड, मुझे हर जन्म में अपनी ही गोद में लेना। प्रणाम
Autho is celebrated most part in Uttrakhand in different ways and culture before Deshara.
Basically in Pithoragarh distric this festival is celebrated with great joy/fervour and enthusism. People sings pahari joda chachri, Khel etc. This is a festival when married sister return to their villages to celebrate with traditions etc.
Jai Uttrakhand
आजकल हमारे यहां हर गांव में गमरा-महेशर आये हैं, रोज शाम को झोड़े, चांचरी, छपेली और खेल लगाये जा रहे हैं। बच्चों को नये कपड़े मिले हैं, महिलाओं को कपड़े, चूड़ी, बिंदी आदि श्रृंगार करने का मौका मिल रहा है। कौतिक हो रहा है……बस अब हिलजात्रा की भी तैयारी करनी है। मुखौटों को रंग रहा हूं आजकल।
सब लोग आना इस बार हिलजात्रा देखने के लिये
अहा! बछ्पन के वो “आठों” के दिन याद आ गए. पूरे रात खेल लगने वाले ठैरे हो मेरे गाँव में. बच्चे खूब धमाल मचाते थे. अब जो कुछ रंग फीका पड़ने लग गया है हो. ज्यादातर चेली/ब्वारी तो टी.वी. देखने बैठे रहते हैं. लेख पढ़ कर मजा आ गया.
गोरा (आठूं) उत्तराखंड के अलावा सुदूर पंशिम नेपाल के नौं जिले में भी उसी तरह मनाया जाता है / गोरा सुदूर पंशिम क्षेत्र के सबसे बड़ा त्यौहार है / people of this region observ public holiday on the eigth day of that festival.
I am from village Ukoo, i read your article on history of Ukoo which dosent reflects in History of Uttarakhand. Specially those age old stones(these stones are similar to those by which temple at Katyuri valley built in 11th century) which you published on website, if u wanna any more info related to same please write me on bhupendrapal01@gmail.com or contact me on 09004344320.
Infact i am really interested to disclose the history of Ukoo and its remaining of legacy along with the History of Askot.
आठों के बारे मे पढ़ के बहुत ही आंनंद मिला . मन भावविभोर हो गया. आप सभी का धन्यवाद
आठौं और सौपाती बागेश्वर जनपद के पोथिंग गाँव में भी होता है. पोथिंग गाँव बागेश्वर से ३० कि०मी० दूर और कपकोट से ०६ दूर है. यहाँ यह पूजा माँ भगवती के मन्दिर में होती है | यहाँ हर वर्ष पूजा होती है | एक वर्ष आठौं होती है और एक वर्ष सौपाती | आठौं का पर्व यहाँ खास धूम-धाम से मनाया जाता है | पोथिंग में होने वाली आठौं समस्त कपकोट इलाके में अपना खास महत्व रखती है | यह पूजा भाद्र मास के प्रतिपदा से लेकर अष्टमी तक चलती है | रात के अलग-अलग प्रहर में माँ की पूजा आरती की जाती है | अष्टमी के दिन माँ की पूजा का समापन होता है, यहाँ एक बहुत बड़ा मेला लगता है , जिसकी छटा देखने लायक है |
आज 31 अगस्त 2010 को सातों पर्व है कल आंठों मनाई जायेगी… आप सबको इस लोकपर्व की बधाई..
यह लेख पढ़कर मुझे आठूं के बारे में बहुत सारी जानकारी मिली
जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
आठौ के दिन आते ही मुझे अपना बचपन याद आ जाता है क्यूंकि होश सम्हालते ही हम लोग पिथोरागढ़ शहर आ गए थे ..वहां बस माँ लोग डोर दुब्धागा प्रतिष्ठा के लिए ही जाते थे …पर उससे पहले गाँव क़ी कुछ यादे अभी भी है…….. मेरे गाँव में दो डोला माता गोरा & शिव जी के बनते थे दोनों में स्वाथ्य पर्तिस्प्रधा होती थी दोनों एक ही जगह से शुरू होते थे और गाँव के मुख्य द्वार से दोनों अलग अलग घरो में को मुड़ते थे ..मुड़ते समय थोडा हसी ठिठोली होती थी ..गाँव के नई नवेली ब्याहता के सर पर डोले होते थे ..साथ ही गूंजती थी झोड़ो क़ी आवाज़ …”हिल्लोरी बाला हिलोर्री …” शाम होते ही दो टोलियों मै अलग अलग महिलाओ / पुरुषो के झोडे ….”लो बैदा बटा लगी ज्ञान ….. अब खा माछी ..जैसे ठुल खेल से आरंभ होता था फिर बाद फिर धीरे धीरे रंग चड़ना शुरू होता था फिर …..दीवानी लौडा धिन्हतो को..तीले धरु बोला ……”नंदी को देवर नंदन माज नंदन भांडा”…. चरम पे .” धम्मोर धुस्सा ….” खेल दरी दरको दरी ….. फिर खाना खाने के बाद रात क़ी महफ़िल …बैठक गीत नृत्य ..हसी ठिठोली ….ये आलम ” हिलचतरा” / गौरा विशर्जन तक चलता रहता …….
वक़्त बीतते रहता है कुछ भी स्थाई नहीं है ….सब कुछ बदला ..रोजगार उच्चतर अध्ययन के लिए गाँव घर छोड़ा ….वक़्त ने बहुत कुछ बदल दिया वो भाव ..वो प्रेम वो अपनापन ….नशे के “भूत” किसी डंगरिया के झाड़ने से भी नहीं भाग पाया … गाँव गाँव DTH पंहुचा …सास बहु/ रिअलिटी शो का “झपाला ” हुआ …पर अब भी कोशिशे जारी है …..पलायन की आंधी से बचे कुछ लोग अब भी सुना है कि वैसे ही आज भी झूमते है ..हम रोज़गार / जिम्मेदारियों में उलझे बस उन लम्हों को यादे करते है …..”.बेलि कू थ्यो घाघरो लुय्लो आज पापी खाल्ली ठागाग्यो..( कल कहता था तेरे लिए घाघरी लेके आऊंगा ..आज पापी फिर खाली ठग गया )………………”please update this
Bachpan ke din bahut yaad aate hai
आठौ – मां गौरा के बारे में बहुत सारी जानकारी मिली । बचपन के दिन फ़िर से याद आ गये वो हसीं, वो ठीठोली, वो बगैर किसी चिन्ता के दिन -रात खेलना, अब तो रोज़गार की तलाश में दूर चले आये । यहां तो केवल पुरानी यादें ही रह गयीं हैं ।
I love uttrakhand.
I love uttrakhand & hope every person who born in uttrakhand proud to self that he / she is great person who bron in devbhumi. Uttrakhand is beautiful state in india it has a natural beauty.
Jai Hind, Jai Uttrakhand
Thanks a lot for information. i just love to read about uttarakhand.
Nice
Mera pahad utarakhand jai kalika mata
Aapki jai ho anand khatri gangolihat
(Boyal)
धन्य है पहाड़ की संस्कृति, लोगों की आत्मीयता, सीधे-सरल तरीके से जीवन यापन और पूरे उत्साह के साथ अपने त्योहारों को मानाने की उत्सुकता। लेकिन मित्रों यह भी सच है कि जिस विधि-विधान एवं पूरे में से 8 -10 साल पहले तक सभी त्यौहार मनाये जाते थे, अब वो आधुनिकता के झूठे असर के कारण अपनी सुविधा के अनुसार रीति -रिवाजों के साथ समझौता कर लिया है। मेरे पहाड़ों की बचपन से जुड़ी यादों में इस पर्व का विशेष स्थान है। वास्तव में इस पर्व को मानाने में मुझे जो ख़ुशी मिलती थी वो शायद ही किसी और पर्व में मिलती हो। मेरा सभी से अनुरोध है कि हमारे पर्वों की गरिमा को बनाये रखने का पूरा प्रयास करें तथा नयी पीढ़ी को अपने रीति-रिवाजों , पर्वों एवं उसके पीछे के महत्व से जरूर अवगत कराएं ताकि हमारी संस्कृति, धरोहर समय के साथ आगे बढ़े।
Good