जिला पिथौरागढ़ की पूरà¥à¤µ दिशा में 36 किलोमीटर दूर काली नदी के किनारे à¤à¥‚लाघाट नाम का कसà¥à¤¬à¤¾ है। काली नदी हमारे देश à¤à¤¾à¤°à¤¤ और नेपाल के मधà¥à¤¯ अंतरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सीमा रेखा का कारà¥à¤¯ करती है। काली नदी के किनारे हमारे कसà¥à¤¬à¥‡ को à¤à¥‚लाघाट कहते है। और काली नदी के पार नेपाल के कसà¥à¤¬à¥‡ को जूलाघाट कहा जाता है। हमारे जिले पिथौरागढ़ के à¤à¥‚लाघाट कसà¥à¤¬à¥‡ में हमारे देश की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ से पूरà¥à¤µ, कà¥à¤µà¥€à¤¤à¤¡à¤¼ गाà¤à¤µ निवासी देव सिंह बिषà¥à¤Ÿ à¤à¤• छोटी सी दà¥à¤•à¤¾à¤¨ में घी का वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ करते थे। à¤à¥‚लाघाट में घी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ करने से पूरà¥à¤µ, देव सिंह बिषà¥à¤Ÿ के पूरà¥à¤µà¤œ नेपाल के जिला बैतड़ी के निवासी थे। बाद में नेपाल के जिला बैतड़ी से आकर पिथौरागढ़ के कà¥à¤µà¥€à¤¤à¤¡à¤¼ गाà¤à¤µ में बस गठथे। सनॠ1906 में देव सिंह के घर कà¥à¤µà¥€à¤¤à¤¡à¤¼ में उनके पà¥à¤¤à¥à¤° दान सिंह का जनà¥à¤® हà¥à¤µà¤¾ था। दान सिंह बचपन से ही कà¥à¤¶à¤¾à¤—à¥à¤° बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के थे। मातà¥à¤° 12 वरà¥à¤· की कम आयॠमें लकड़़ी का वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° करने वाले à¤à¤• बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ के साथ वह मà¥à¤¯à¤¾à¤‚मार चले गठथे। मà¥à¤¯à¤¾à¤‚मार में दान सिंह ने लकड़ी के वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ करने का गहराई के साथ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ कर लिया था। लकड़ी के वà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¸à¤¾à¤¯ में दान सिंह ने इतनी कà¥à¤¶à¤²à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ की, कि जो à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में देश के “टिबंर किंग आफ इंडिया†की उपाधि से नà¥à¤µà¤¾à¤œà¥‡ गये। मà¥à¤¯à¤¾à¤‚मार से वापस पिथौरागढ़ आने के बाद दान सिंह अपने पिता के साथ घी के वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° में हाथ बंटाने लगे। किनà¥à¤¤à¥ दान सिंह के मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• में कà¥à¤› ओर वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ करने की उचà¥à¤š सोच थी। तब तक घी के वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ में अचà¥à¤›à¤¾ लाठअरà¥à¤œà¤¿à¤¤ कर लिया था। अतः घी से अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ लाठके धन को वह कही ओर अधिक लाठके वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ में लगाना चाहते थे। देव सिंह ने अपने पà¥à¤¤à¥à¤° दान सिंह के साथ मिलकर बेरीनाग में 2000 à¤à¤•à¤¡à¤¼ का à¤à¤• चाय का बगान à¤à¤• बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ कमà¥à¤ªà¤¨à¥€ से खरीद लिया। कम उमà¥à¤° के दान सिंह ने चाय बगान का पूरा पà¥à¤°à¤¬à¤‚धन अपने हाथ में ले लिया था। उस समय विशà¥à¤µ के चाय बाजार में चीन का à¤à¤•à¤›à¤¤à¥à¤° राज था। पूरे विशà¥à¤µ में चीन में उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ चाय का बोल बाला था। अनà¥à¤¯ देशों की चाय में वो जायका नही होता था। चीन की चाय तैयार करने में किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ की जाती है, दान सिंह ने वह पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ कà¥à¤› ही समय में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करली थी। बेरीनाग की चाय के जायके की पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¥€ दूर दूर तक फैलने लगी। अपने देश à¤à¤¾à¤°à¤¤ में बेरीनाग की चाय लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ हो गई थी इसके अतिरिकà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤¨, चीन में à¤à¥€ बेरीनाग की चाय का डंका बजने लग गया था। इस सफलता का शà¥à¤°à¥‡à¤¯ यà¥à¤µà¤¾ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¥€ दान सिंह की दूरदरà¥à¤¶à¥€ सोच व कà¥à¤¶à¤² पà¥à¤°à¤¬à¤‚धन को जाता है।
उस समय हमारे देश में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ का अधिकार था। हमारे पहाड़ में बेहद गरीबी थी, न तन के लिठढ़कने के लिठपूरे कपड़े होते थे, न ही शिकà¥à¤·à¤¾ का अधिक विसà¥à¤¤à¤¾à¤° था। सामंतवादी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ थी, जमींदारों के पास बेहिसाब à¤à¥‚मि होती थी, उनके पास à¤à¤¶à¥‹ आराम के सà¤à¥€ साधन होते थे। आम गरीब आदमी फौज में à¤à¤°à¥à¤¤à¥€ हो जाता था या अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ की बंगलों में नौकर होते थे। उस गà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ के दौर में पिथौरागढ़ का वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿, विशà¥à¤µ पटल में अपने परिशà¥à¤°à¤® के बलबूते लकड़ी के कारोबार के अलावा अनà¥à¤¯ उदà¥à¤¯à¥‹à¤— जगत में नाम को दरà¥à¤œ चà¥à¤•à¤¾ था।चाय के सफल वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने सनॠ1924 को नैनीताल के निकट बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ इंडियन काॅपरेशन लिमिटेड नामक कमà¥à¤ªà¤¨à¥€ से शराब की à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ खरीद ली। दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने यहाठअपने पिता देव सिंह बिषà¥à¤Ÿ तथा अपने लिठबंगला, कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ व करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के रहने के लिठआवासों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया। बाद में यह ईलाका ‘बिषà¥à¤Ÿ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿâ€™ नाम से जाना गया। इसी मधà¥à¤¯ दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने लकड़ी के वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ में ठेकेदारी आरंठकर दी थी। लकड़ी के वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ में दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ को “किंग आफ टिंबर” कहा जाने लगा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लकड़ी के वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ में नदियों के तीवà¥à¤° बहाव का लाठलेते हà¥à¤, लकड़ियों की बलà¥à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को नदियों के तेज बहाव में à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से दूसरे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ के कारà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ आरंठकिया था। अविà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के जमà¥à¤®à¥‚ कशà¥à¤®à¥€à¤°, पंजाब के लाहौर, पठानकोट से वजिराबाद तक संपूरà¥à¤£ हिमालय कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ की लकड़ी की बलà¥à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की विशाल मंड़ियां होती थी। मंडियों के निकट सà¥à¤µà¤¯à¤‚ के रहने के लिठबंगला, कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ व करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठआवास होते थे। लकड़ी के बà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° में उस मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ देश में शिखर में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ था। कशà¥à¤®à¥€à¤° से लेकर बिहार व नेपाल तक मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने अपना लकड़ी का वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ फैला दिया था। उनकी कंपनी में उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के अतिरिकà¥à¤¤ देश के अनà¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के लगà¤à¤— 6000 लोगों को रोजगार मिला हà¥à¤µà¤¾ था।
दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ मालदार ने उस समय जब धन की बहà¥à¤¤ कमी रहती थी, तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पिथौरागढ़, टनकपà¥à¤°, हलà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤¨à¥€, नैनीताल और मेघालय, आसाम के साथ-साथ नेपाल के बरà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¤¾, काठमांडू में तक अपनी संपतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ की थी। कà¥à¤¶à¤¾à¤—à¥à¤° बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के धनी दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¥à¤µà¤¿ के समकà¥à¤· अंगेà¥à¤°à¤œ à¤à¥€ कायल थे। उनके निकट अंगेà¥à¤°à¤œ मितà¥à¤°, बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ वासà¥à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° लारी बेकर व उनकी पतà¥à¤¨à¥€ ने कई लेखों में उनकी उदà¥à¤¯à¤®à¥‡à¤¶à¥€à¤²à¤¤à¤¾ का बखान किया है और अपने अà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मितà¥à¤° के रà¥à¤ª में उलà¥à¤²à¥‡à¤– किया है। बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ काल के साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° à¤à¤µà¤®à¥ महान शिकारी जिम कारà¥à¤¬à¥‡à¤Ÿ दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ मालदार के परम मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ में थे। डी.à¤à¤¸. बिषà¥à¤Ÿ à¤à¤‚ड संस के करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ लकड़ी के वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° के सिलसिले में दूर दराज के गाà¤à¤µà¥‹à¤‚ जंगलों में जाते रहते थे। उस समय दूर दराज के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में नरà¤à¤•à¥à¤·à¥€ बाघों का बहà¥à¤¤ अधिक आतंक होता था। नरà¤à¤•à¥à¤·à¥€ बाघों के कारण लोगों को हमेशा अपने पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ का à¤à¤¯ बना रहता था। कंपनी के करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ शिकारी जिम कारà¥à¤¬à¥‡à¤Ÿ तक नरà¤à¤•à¥à¤·à¥€ बाघों की सूचना देते थे।जिम कारà¥à¤¬à¥‡à¤Ÿ बिना समय गवांठतà¥à¤°à¤‚त उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में पहà¥à¤à¤šà¤•à¤° नरà¤à¤•à¥à¤·à¥€ बाघ का शिकार कर उस बाघ का अंत कर देते थे। उन बाघों की खाल बिषà¥à¤Ÿ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿ, नैनिताल के बंगले में टांग दी जाती थी। नैनीताल के à¤à¤¾à¤à¤° कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में शिकार के लिठआने पर, जिम कारà¥à¤¬à¥‡à¤Ÿ अकà¥à¤¸à¤° मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ जी के मेहमान होते थे।
सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ से पूरà¥à¤µ, अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ के शासन के समय, रेल लाईन के लिठपà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में आने वाले लकड़ी के सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤°à¥‹à¤‚, की आपूरà¥à¤¤à¤¿ मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ की कमà¥à¤ªà¤¨à¥€ करती थी। जमà¥à¤®à¥‚ कशà¥à¤®à¥€à¤° के जंगल हों या आसाम के जंगल, रेल लाईन के लिठपà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤° मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ की कमà¥à¤ªà¤¨à¥€ करती थी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कई सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में कमà¥à¤ªà¤¨à¥€ की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के लिठजंगल और शहर के मधà¥à¤¯ सड़कों का à¤à¥€ निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया। जिससे सरकार तथा आम जनता को à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ होने लगी थी। सनॠ1945 में मà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ के राजा गजेनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह के उपर सरकार का बहà¥à¤¤ अधिक करà¥à¤œ हो गया था। जिस कारण से वह करà¥à¤œ को चà¥à¤•à¤¾ नही पा रहे थे। सरकार ने उनकी संपतà¥à¤¤à¤¿ जबà¥à¤¤ कर निलाम कर दी थी। उस जमीन को मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने 2,35,000 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में खरीद ली थी। नैनीताल में à¤à¥€à¤² के किनारे मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने शानदार बंगले बनाठथे। मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने देश के अनà¥à¤¦à¤° उदà¥à¤¯à¥‹à¤— जगत का सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया था। उनका उदà¥à¤¯à¥‹à¤— का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° देश की सीमा से बाहर à¤à¥€ फैलना आरंठहो गया था। वह उदà¥à¤¯à¥‹à¤— जगत में à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ी हसà¥à¤¤à¥€ तो थे ही, साथ ही वह परोपकार के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में à¤à¥€ पीछे नही रहते थे। मानव कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ के लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अनेक विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚, चिकितà¥à¤¸à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ तथा खेल के मैंदानों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया था।
हमारा देश सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° हो गया था। उस समय हमारे परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में शिकà¥à¤·à¤¾ की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ अचà¥à¤›à¥€ नही थी। विदà¥à¤¯à¤¾à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ की बहà¥à¤¤ कमी थी। विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ के लिठआगरा, बरेली या लखनऊ जाना पढ़ता था। साधन संपनà¥à¤¨ परिवारों के बचà¥à¤šà¥‡ चले जाते थे, लेकिन आम आदमी का बचà¥à¤šà¤¾ कà¥à¤¶à¤¾à¤—à¥à¤° व होनहार होते हà¥à¤ à¤à¥€ धन के अà¤à¤¾à¤µ में इन बड़े शहरों में नही जा पाता था। मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने इस बात को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤ सनॠ1951 में नैनीताल वेलेजली गरà¥à¤²à¥à¤¸ सà¥à¤•à¥‚ल को खरीद लिया था और कà¥à¤› नठà¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कर इसको अपने पिता सà¥à¤µ. देव सिंह बिषà¥à¤Ÿ के नाम से à¤à¤• काॅलेज के रà¥à¤ª में परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ कर दिया। उस समय नैनिताल के बीच में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने 12 à¤à¤•à¤¡à¤¼ से अधिक à¤à¥‚मी तथा पाà¤à¤š लाख रà¥à¤ªà¤¯à¤¾ नकद राशि उकà¥à¤¤ काॅलेज के लिठदान में दी थी।
उस समय उस कालेज के लिठदान दी गयी à¤à¥‚मि का मूलà¥à¤¯ 15 लाख से अधिक था। उस समय बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ पौंड और à¤à¤¾à¤°à¤¤ के रà¥à¤ªà¤ का मूलà¥à¤¯ à¤à¤• समान था। मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपने सà¥à¤µ. पिता के नाम से सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤, ठाकà¥à¤° देव सिंह बिषà¥à¤Ÿ काॅलेज, कà¥à¤®à¤¾à¤‰ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤¾à¤²à¤¯ का मà¥à¤–à¥à¤¯ परिसर महाविदà¥à¤¯à¤¾à¤¾à¤²à¤¯ बना।
मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने पिथौरागढ़ में अपनी माठव पिता के नाम से सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ देव सिंह उचà¥à¤šà¤¤à¤° माधà¥à¤¯à¤®à¤¿à¤• विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया। विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥€ शिकà¥à¤·à¤¾ के लिठइस दूर सीमावरà¥à¤¤à¥€ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में अपनी तरह का यह पà¥à¤°à¤¥à¤® पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ था। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में इस काॅलेज को देव सिंह इंटर कालेज के नाम से जाना जाता है। मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने पिथौरागढ़ में अपने माता-पिता के नाम पर विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ से सटे à¤à¤• à¤à¥‚खंड को खरीद कर उसमें à¤à¤• खेल के मैदान का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया गया। इस मैदान का नाम उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने पिता देव सिंह बिषà¥à¤Ÿ के नाम पर रखा। जो आज देव सिंह मैदान के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। पिथौरागढ़ के देव सिंह मैदान मैदान से अनेक अतंरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤¤à¤° की खेल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤“ं का जनà¥à¤® हà¥à¤µà¤¾ है। मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने अपनी माता के नाम पर à¤à¤• विदà¥à¤¯à¤¾à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को छातà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥€ देने के लिठशà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ बिषà¥à¤Ÿ छातà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ बंदोबसà¥à¤¤à¥€ टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ à¤à¥€ बनाया। यह टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ आज à¤à¥€ अपने लकà¥à¤·à¥à¤¯ में कारà¥à¤¯ कर रहा है। यह टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ जिला पिथौरागढ़ में दिया जाने वाला à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ है। यह सब नाम अनà¥à¤°à¥à¤ª मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ की दानशीलता व परोपकार के कारण हà¥à¤µà¤¾à¥¤ यह à¤à¤• शैकà¥à¤·à¤¿à¤• टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ है, जो दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ विशà¥à¤µà¤¯à¥à¤¦à¥à¤§ में पिथौरागढ़ के शहीद हà¥à¤ सैनिकों के पà¥à¤¤à¥à¤° व पà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को छातà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है। मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ की बेरीनाग चैकोरी में चाय के बगानों के अतिरिकà¥à¤¤ विशाल à¤à¥‚à¤à¤¾à¤— के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ थे। सनॠ1961 में à¤à¤• à¤à¤•à¤¡à¤¼ से अधिक à¤à¥‚मी में निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ à¤à¤• à¤à¤µà¤¨ को à¤à¤• पशॠचिकितà¥à¤¸à¤¾à¤²à¤¯ को दान में दे दिया था। बेरीनाग में विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ के लिठमहाविदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ के लिठ30 à¤à¤•à¤¡à¤¼ à¤à¥‚मी अपने à¤à¤¾à¤ˆ के नाम से दान में दी थी। बेरीनाग में विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯, खेल के मैंदान, चिकितà¥à¤¸à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚, सरकारी कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ तथा वन विà¤à¤¾à¤— के रैसà¥à¤Ÿ हाॅउस के लिठà¤à¥‚मी दान दी गयी थी।
मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अनेक औषधालय à¤à¥€ बेरीनाग में खोले गठथे। इसके साथ ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने पà¥à¤¶à¥à¤¤à¥ˆà¤¨à¥€ गाà¤à¤µ कà¥à¤µà¤¿à¤¤à¤¡à¤¼ में à¤à¥€ पीने के जल की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के साथ ही अनà¥à¤¯ उपयोगी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ गà¥à¤°à¤¾à¤® वासियों को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की थी। मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ की कमà¥à¤ªà¤¨à¥€ डी.à¤à¤¸. बिषà¥à¤Ÿ à¤à¤‚ड संस ने सनॠ1956 में अपने उदà¥à¤¯à¥‹à¤— को ओर अधिक गति देने के लिठ‘बिषà¥à¤Ÿ इंडसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤² कारपोरेशन लिमिटेड’ नाम से किचà¥à¤›à¤¾ में à¤à¤• शà¥à¤—र मिल आरंठकरने के लिठलाइसेंस लिया था। लगà¤à¤— 2000 टन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ वाली यह मिल किसानों के हित में बहà¥à¤¤ लाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ सिदà¥à¤§ होने वाली थी। मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ को सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ की सरकार से उमà¥à¤®à¥€à¤¦ थी कि किचà¥à¤›à¤¾ की शà¥à¤—र मिल के लिठमà¥à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ से लायी जा रही मशीनरी को किचà¥à¤›à¤¾ लाने के लिठसरकारी छूट मिल जाà¤à¤—ी। किनà¥à¤¤à¥ हमारे सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° देश के निति निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ नेताओं के कारण मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ की उमà¥à¤®à¥€à¤¦à¥‹à¤‚ के उपर पानी फिर गया। जिस कारà¥à¤¯ को मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ आसान समठरहे थे सरकार की विषम औदà¥à¤¯à¥‹à¤—िक नितियों के कारण वह कारà¥à¤¯ असंà¤à¤µ हो गया था। कलकतà¥à¤¤à¤¾ के बंदरगाह में जहाज में लदी, किचà¥à¤›à¤¾ शà¥à¤—र मिल के लिठखरीदी मशीनरी को जहाज से नीचे उतरने नही दिया गया। सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ में विषम औदà¥à¤¯à¥‹à¤—िक नितियों के कारण मशीनरी के उपर à¤à¤¾à¤°à¥€ टैकà¥à¤¸ लगा दिये गà¤à¥¤ मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ को इस मशीनरी को करà¥à¤œ के बोठतले दबते हà¥à¤ पà¥à¤¨à¤ƒ खरीदना पड़ा। मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ à¤à¤• दिन à¤à¥€ किचà¥à¤›à¤¾ की शà¥à¤—र मिल को चला नही पाà¤à¥¤ करà¥à¤œ के बोठके चलते उनको इस शà¥à¤—र मिल के शेयर बेचने पड़े। इस घटना के बाद मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ तनाव में रहने लगे। जिस कारण वह बीमार रहने लगे।
मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ की बीमार रहते हà¥à¤ 10 सितंबर, सनॠ1964 में मृतà¥à¤¯à¥ हो गयी। कà¥à¤®à¤¾à¤‰ के à¤à¤• उà¤à¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤ उदà¥à¤¯à¥‹à¤—पति, मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ, जिनका वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° देश के अतिरिकà¥à¤¤ विदेश में, बà¥à¤°à¤¾à¤œà¤¿à¤² तक में विसà¥à¤¤à¤¾à¤° लेने लग गया था। अपने परतंतà¥à¤° देश में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उदà¥à¤¯à¥‹à¤— जगत में अपना परचम लहराया। अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ सरकार à¤à¥€ उनकी वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° कौशलता को समà¥à¤®à¤¾à¤¨ देती थी। किनà¥à¤¤à¥ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ में विषम ओदà¥à¤¯à¤¾à¤—िक नितियों के कारण मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ अवसाद में आ गà¤, जिस कारण वह बिमार हो गठथे। और सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ करते हà¥à¤ अचानक असà¥à¤¤ हो गà¤à¥¤ उनकी मृतà¥à¤¯à¥ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ डी. à¤à¤¸. बिषà¥à¤Ÿ à¤à¤‚ड संस का कारà¥à¤¯à¤à¤¾à¤° उनके कनिषà¥à¤ à¤à¤¾à¤ˆ मोहन सिंह बिषà¥à¤Ÿ व उनके पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ ने संà¤à¤¾à¤²à¤¾à¥¤ मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ की पà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ उस समय कम आयॠकी थी। पà¥à¤¤à¥à¤° उनका कोई नही था।
मालदार दान सिंह बिषà¥à¤Ÿ के मृतà¥à¤¯à¥ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€à¤• कौशलता के अà¤à¤¾à¤µ में उनके विशाल वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ सिकà¥à¤¡à¤¼à¤¤à¤¾ हà¥à¤µà¤¾ समापà¥à¤¤ होने लगा था। बेरीनाग व चौकोड़ी के चाय बगान अनिमियताओं के कारण अराजकता की à¤à¥ˆà¤‚ट चढ़ गठथे। अनियमिताओं के साथ-साथ बेरीनाग के इन चाय बगानों के नषà¥à¤Ÿ होने में सरकार की नीतियों ने विशेष à¤à¥‚मिका अदा की। बेरीनाग, चौकोड़ी व मà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ की सैकड़ों à¤à¤•à¤¡à¤¼ à¤à¥‚à¥à¤®à¤¿ सरकार दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जमींदारी उलà¥à¤®à¥‚लन कानून के अंतरà¥à¤—त अधिगà¥à¤°à¤¹à¥€à¤¤ कर ली गयी थी। डी. à¤à¤¸. बिषà¥à¤Ÿ à¤à¤‚ड संस कमà¥à¤ªà¤¨à¥€ कà¥à¤¶à¤² वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤• नेतृतà¥à¤µ के अà¤à¤¾à¤µ में लगातार मंदी की आगोश में चली गयी। कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ का à¤à¤• उदà¥à¤¯à¥‹à¤—पति देश में à¤à¤• नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° की à¤à¤¾à¤‚ती उदà¥à¤¯à¥‹à¤— जगत में चमका, अनेक लोगों को रोजगार देकर उनका कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ किया, विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯, चिकितà¥à¤¸à¤¾à¤²à¤¯ व खेल के मैदान बनवाठव अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के परमारà¥à¤¥ के कारà¥à¤¯ किये। लेकिन कà¥à¤› कà¥à¤¨à¥€à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के कारण वह नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° असमय ही असà¥à¤¤ हो गया।
लेखक- शà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ चनà¥à¤¦à¥à¤° पà¥à¤¨à¥‡à¤ ा। लेखक पिथौरागॠके निवासी हैं à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सेना से अवकाश पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हैं तथा साहितà¥à¤¯ और पठन पाठन में रà¥à¤šà¤¿ रखते हैं।