Yesterday we were discussing about himalayan tracking. Today I am sharing a beutiful article from Hindustan on Buransh. Since that site is not in Unicode I am converting the font for our reader. We have some very good photos of Buransh and details about other fruits, flower and trees of Uttarakhand. So enjoy the article and give your comments.
उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड की उदà¥à¤¦à¤¾à¤® जवानी का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के शà¥à¤°à¤‚गारिक उपादान बà¥à¤°à¤¾à¤‚श में इन दिनों फूल खिल उठने से यहां के पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• सौंदरà¥à¤¯ में रोमांचित कर देने वाला निखार आ गया है। बà¥à¤°à¤¾à¤‚श को पहाड़ के लोक जीवन में गहरी आतà¥à¤®à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ मिली हà¥à¤ˆ है इसीलिठइसे राजà¥à¤¯ वृकà¥à¤· का गौरव मिला हà¥à¤† है।
मधà¥à¤¯à¤® ऊंचाई का यह सदापरà¥à¤£à¥€ वृकà¥à¤· हिमालय कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में लगà¤à¤— 1500 मीटर से 3600 मीटर की उंचाई पर पाया जाता है। इसकी पतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ मोटी à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤·à¥à¤ª घंटी के आकार के लाल रंग के होते हैं। मारà¥à¤š-अपà¥à¤°à¥ˆà¤² में जब इस वृकà¥à¤· में फूल खिलते हैं तो यह अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ शोà¤à¤¾à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हो जाता है। बà¥à¤°à¤¾à¤‚श या बà¥à¤°à¥‚ंश के फूल रकà¥à¤¤à¤¿à¤® वरà¥à¤£ के बड़े ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° à¤à¤µà¤‚ मनमोहक होते हैं लेकिन इनमें सà¥à¤—ंध नहीं होती। कवियों साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥‹ तथा लेखकों की पà¥à¤¯à¤¾à¤° à¤à¤°à¥€ ललचाई नजरों ने बार-बार बà¥à¤°à¤¾à¤‚श के फूल को खोजा है।
देश के पà¥à¤°à¤¥à¤® पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने संसà¥à¤®à¤°à¤£à¥‹à¤‚ में बà¥à¤°à¤¾à¤‚श का बड़ा सà¥à¤‚दर वरà¥à¤£à¤¨ करते हà¥à¤ लिखा है। पहाड़ियों में गà¥à¤²à¤¾à¤¬ की तरह बड़े-बड़े रोडोडेनà¥à¤¡à¥à¤°à¤¨ ‘बà¥à¤°à¥‚ंश’ पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‹à¤‚ से रंजित लाल सà¥à¤¥à¤² दूर से ही दिख रहे थे। वृकà¥à¤· फूलों से लद रहे थे और असंखà¥à¤¯ पतà¥à¤¤à¥‡ अपने नठकोमल और हरे परिधान में अनेक वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ की आवरणहीनता को दूर करने को बस निकलना ही चाहते थे।
गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ लोकगीतों तथा कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚नी गीतों में बà¥à¤°à¤¾à¤‚श के फूल को विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ रूपों में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया गया है। कवि हरीश चनà¥à¤¦à¥à¤° पाणà¥à¤¡à¥‡à¤¯ ने इस रकà¥à¤¤ वरà¥à¤£à¤¿à¤® फूल को उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड की उदà¥à¤¦à¤¾à¤® जवानी का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• बताते हà¥à¤ अपनी कविता में बà¥à¤°à¥‚ंश का इस तरह परिचय दिया है खून को अपना रंग दिया बà¥à¤°à¥‚ंश ने।
बà¥à¤°à¥‚ंश ने सिखाया है फेफड़ों में हवा à¤à¤°à¤•à¤° ।
कैसे हंसा जाता है कैसे लड़ा जाता है।
ऊंचाई की हदों पर ठंडे मौसम के विरूदà¥à¤§à¥¤
à¤à¤• बà¥à¤°à¥‚ंश कहीं खिलता है खबर पूरे जंगल में फैल जाती है आग की तरह।
आ गया बà¥à¤°à¥‚ंश पेड़ों में अलख जगा रहा है।
उजास और पराकà¥à¤°à¤® के बीज बो रहा है।
कोटरों में बà¥à¤°à¥‚ंश आ गया है।
जंगल के à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¤• नया मौसम आ रहा है।
कवि ने à¤à¤• बà¥à¤°à¥‚ंश के कहीं जंगल में खिलने का जिकà¥à¤° करते हà¥à¤ अपनी कविता में कहा है कि पेड़ों में अलख जगाते हà¥à¤ और उजास के संग पराकà¥à¤°à¤® के बीज बोते हà¥à¤ जंगल के विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ परिसर में बà¥à¤°à¥‚ंश का आगमन हो गया है। इसने जंगल के à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¤• नठमौसम के आने की खबर आग की तरह फैला दी है। यही फूल फेफड़ों में à¤à¤°à¤ªà¥‚र हवा समेटकर सबको हंसना सिखाता है। इस फूल ने ही ऊंचाई की हदों पर ठंडे मौसम के खिलाफ लड़ने की तकनीक उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के उदà¥à¤¦à¤¾à¤® यौवन को बताई है। बà¥à¤°à¥‚ंश ने ही खून को अपना रंग दिया है। हिनà¥à¤¦à¥€ के सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कवि ‘अजà¥à¤žà¥‡à¤¯â€™ अपनी पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤®à¤¾ को बà¥à¤°à¥‚ंश की ओट में चà¥à¤‚बन की याद दिलाते हà¥à¤ कहते हैं ‘याद है कà¥à¤¯à¤¾, ओट में बà¥à¤°à¥‚ंश की पà¥à¤°à¤¥à¤® बार। धन मेरे मैंने जब ओंठतेरा चूमा था।’
अजà¥à¤žà¥‡à¤¯ ने कई बार पहाड़ों के चीड़ और बांज बà¥à¤°à¤¾à¤‚श à¤à¥à¤°à¤®à¤£ करके अपनी कविताओं में वरà¥à¤£à¤¨ किया है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर पहाड़ी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° का जिकà¥à¤° करते हà¥à¤ अपनी अनà¥à¤à¥‚तियों को इस तरह पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ किया है:
‘नई धूप में चीड़ की हरियाली दà¥à¤°à¤‚गी हो रही थी और बीच-बीच में बà¥à¤°à¥‚ंश के गà¥à¤šà¥à¤›à¥‡ गहरे लाल फूल मानों कह रहे थे-पहाड़ के à¤à¥€ हृदय हैं जंगल के à¤à¥€ हृदय हैं।’
सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कवि शीकांत वरà¥à¤®à¤¾ ने अपनी कविता में बà¥à¤°à¥‚ंश का वरà¥à¤£à¤¨ करते हà¥à¤ लिखा है कि ‘दà¥à¤ªà¤¹à¤° à¤à¤° उड़ती रही सड़क पर मà¥à¤°à¤® की धूल। शाम को उà¤à¤°à¤¾ मैं तà¥à¤®à¤¨à¥‡ मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤•à¤¾à¤°à¤¾ बà¥à¤°à¥‚ंश का फूल।’
à¤à¤• गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ लोकगीत में मà¥à¤–ड़ी को फूल के समान बताया गया है तथा à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर यह à¤à¥€ कहा गया है कि पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤®à¤¾ के सà¥à¤‚दर मà¥à¤–ड़े को देखकर बà¥à¤°à¤¾à¤‚शी जल रही है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ ईरà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾ कर रही है।
लोकगीतों में बà¥à¤°à¥‚ंश का उलà¥à¤²à¥‡à¤– दà¥à¤²à¥à¤¹à¤¨ की डोली के रूप में अकà¥à¤¸à¤° किया गया है लेकिन सà¥à¤—ंधहीन होने के कारण अधिक कदà¥à¤° नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ बà¥à¤°à¤¾à¤‚श का फूल खिलने में बड़ी उतावली दिखाता है। जंगल में यह सबसे पहले खिल जाता है। इसे खिलने में इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° उतावली रहती है कि कोई नामà¥à¤°à¤¾à¤¦ फूल कहीं इससे पहले न खिल जाà¤à¥¤ वैसे बà¥à¤°à¤¾à¤‚श का फूल जाति का खास ठाकà¥à¤° है लेकिन इसकी सà¥à¤—ंध न जाने किस देवता ने छीन ली। à¤à¤• लोकगीत के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° इसे शिव के सिर पर चà¥à¤¾à¤ जाने की वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² आकांकà¥à¤·à¤¾ रहती है। लोकगीत में इसका वरà¥à¤£à¤¨ इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° है:
‘बà¥à¤°à¤¾à¤‚श दादू तू बड़ा उतालू रे औरू फूल तू फूलण नी देनà¥à¤¦à¥‹à¥¤
जाति का तू खास ठकरौल बास तेरी कै देवन हरी।
बालिया कूण सिर शोà¤à¥€ बालिया शिव सिर शोà¤à¥€à¥¤
बालिया बà¥à¤°à¤¾à¤‚श जागा-जागा बालिया बà¥à¤°à¤¾à¤‚श लेऊ सिरा।’
à¤à¤• कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚नी गीत में पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€à¤¯à¥à¤—ल दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बà¥à¤°à¤¾à¤‚श के फूल बन जाने की आकांकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ की गई है। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ अपनी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¿à¤•à¤¾ से कहता है कि चलो पà¥à¤°à¤¿à¤ बà¥à¤°à¤¾à¤‚श का फूल बन जाà¤à¤‚। चलो चम चम चमकता हà¥à¤† पानी बन जाà¤à¤‚। गीत इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° है:
‘हिट रूपा बà¥à¤°à¥‚ंशी का फूल बनी जौला चमचम मीठी तो डांडू का पानी जी जांैला।
हिलांस की जोड़ी बनी उड़ि उड़ि जौंला।’
à¤à¤• मां को परà¥à¤µà¤¤ शिखर पर खिला बà¥à¤°à¤¾à¤‚श का फूल अपनी बेटी जैसा पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है। मां पहाड़ के ऊंचे शिखर पर खिले हà¥à¤ बà¥à¤°à¥‚ंश को देखकर कहती है:
‘पारा à¤à¥€à¤¡à¤¾ बà¥à¤°à¥‚ंशी फूली छौ मैं ज कूंछू मेरी हीरू अरै छौ।’
वहां उधर पहाड़ शिखर पर बà¥à¤°à¥‚ंश का फूल खिल गया और मैं समà¤à¥€ कि मेरी पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ बिटिया हीरू आ रही है। अरे फूलों से à¤à¤•à¤à¤• लदे हà¥à¤ बà¥à¤°à¥‚ंश के पेड़ को मैने अपनी बिटिया हीरू का रंगीन पिछौड़ा समठलिया। वह तो बà¥à¤°à¥‚ंश का वृकà¥à¤· है। मेरी बेटी हीरू को तो राजा का पटवारी सोने-चांदी का लोठदिखाकर अपने साथ ले गया है। वह अब आने से रही। अब तो वह तà¤à¥€ आà¤à¤—ी जब बूà¥à¤¾ पटवारी आà¤à¤—ा उसी के साथ वह आà¤à¤—ी।
सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कहानीकार मोहन लाल नेगी की कहानी ‘बà¥à¤°à¤¾à¤‚श की पीड’ की नायिका रूपदेई के मà¥à¤– पर अगर किसी परदेशी ने देख लिया तो उसकी मà¥à¤–ड़ी शरà¥à¤® से à¤à¤¸à¥‡ लाल हो जाती थी जैसे उसके मà¥à¤– पर बà¥à¤°à¥‚ंश का फूल खिल गया हो। पहाड़ में नायिका के कपोलों और होठों को परिà¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ करने के लिठबà¥à¤°à¥‚ंश à¤à¤• लोकपà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ उपनाम है। गà¥à¤µà¤¾à¤² के पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कवि चनà¥à¤¦à¥à¤° मोहन रतूड़ी ने नायिका के ओठों की लालिमा का जिकà¥à¤° कà¥à¤› इस अंदाज में किया है। इस बà¥à¤°à¤¾à¤‚श के फूल ने हाय राम तेरे ओंठकैसे चà¥à¤°à¤¾ लिà¤, चोरया कना ठबà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¨ ओंठतेरा नाराण।
इसी तरह à¤à¤• अनà¥à¤¯ लोकगीत में पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¿à¤•à¤¾ सरू दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपने पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤® के वियोग में आतà¥à¤®à¤˜à¤¾à¤¤ कर लेने पर उसका बावला पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® बà¥à¤°à¤¾à¤‚श के फूल को देखकर कह उठता है ‘धार मां फूले बà¥à¤°à¤¾à¤‚श का फूल। मैंने जाणे मेरी सरू छ।’
कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ में जनà¥à¤®à¥‡ हिनà¥à¤¦à¥€ के सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कवि सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¤‚दन पंत ने यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ हिनà¥à¤¦à¥€ कविताओं में बà¥à¤°à¥‚ंश के बारे में नहीं लिखा है लेकिन जब वह अपनी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में कविता लिखते हैं तो उनकी कलम बà¥à¤°à¥‚ंश का अà¤à¤¿à¤¨à¤‚दन करना नहीं à¤à¥‚लती। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बà¥à¤°à¥‚ंश का जो परिचय दिया है उसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° बà¥à¤°à¥‚ंश में दिल की आग है। उसमें जवानी का फाग है तथा उसकी रगों में नया खून पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ हो रहा है। उसमें पà¥à¤¯à¤¾à¤° का खà¥à¤®à¤¾à¤° à¤à¥€ है। पंत जी कहते हैं कि जंगल में बà¥à¤°à¥‚ंश का अपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤® सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है। वह बेजोड़ है। उसकी बराबरी करने लायक जंगल में कोई दूसरा नहीं है।
à¤à¤• अनà¥à¤¯ लोकगीत में बà¥à¤°à¤¾à¤‚श के फूलों को नमक मिरà¥à¤š के साथ रैमोड़ी बनाकर खाने का उलà¥à¤²à¥‡à¤– इस तरह है: ‘काफल पकà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤¯à¤¾ मैत की डाली हिंसर बिनाली डयांटी किनगोड़ा खाली। बमोरा पकà¥à¤²à¤¾ बà¥à¤¯à¤¾ तौ उचà¥à¤šà¤¾ काठà¥à¤®à¤¾à¤‚ बà¥à¤°à¤¾à¤‚श की रैमोड़ी आली à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की बाटॠमां।’
इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° हम देखते हैं कि बà¥à¤°à¤¾à¤‚श को पहाड़ के लोक जीवन में गहरी आतà¥à¤®à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ मिली हà¥à¤ˆ है। बà¥à¤°à¤¾à¤‚श के फूलों को यहां के लोग बड़े चाव से खाते हैं। इसका बना शरà¥à¤¬à¤¤ रंग रूप और सà¥à¤µà¤¾à¤¦ में बेजोड़ होता है। बà¥à¤°à¤¾à¤‚श के फूलों की चटनी à¤à¥€ बनाई जाती है। बचà¥à¤šà¥‡ बà¥à¤°à¤¾à¤‚श के रस को चाव के साथ चूसते हैं। बà¥à¤°à¤¾à¤‚स के पौधों को पीस कर लेप करने से सिरदरà¥à¤¦ दूर हो जाता है तथा इसके ताजे फूलों का रस घावों को ठीक कर देता है। पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ घावों पर इसकी पंखà¥à¥œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पीस कर लगाते हैं।
बà¥à¤°à¤¾à¤‚श की लकड़ी ईंधन के काम आने के साथ साथ बरà¥à¤¤à¤¨ बनाने के काम à¤à¥€ आती है। इसके पो पशà¥à¤“ं के नीचे बिछाठजाते हैं फिर इनसे खाद बन जाती है। अत: बà¥à¤°à¤¾à¤‚श का पहाड़ के सामाजिक सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• जनजीवन से गहरा आतà¥à¤®à¥€à¤¯ संबंध है। इसे यदि यहां के सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• और सामाजिक à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• जनजीवन का दरà¥à¤ªà¤£ कहा जाठतो अतिशंयोकà¥à¤¤à¤¿ नहीं होगी।
* हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ से साà¤à¤¾à¤°
यदि आप उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड पर लिखी ढेर सारी कविताओं को पà¥à¤¨à¤¾ चाहते हैं तो यहां से अचà¥à¤›à¥€ जगह और कहाठहो सकती है.
This is really a good article. Thanks for this initiative. I have seen your forum too. Forum is marvellous. It has all the knowledge about my pahar. can’t you make a site because getting information in forum is tough.
बà¥à¤°à¤¾à¤‚श का पहाड़ के सामाजिक सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• जनजीवन से गहरा आतà¥à¤®à¥€à¤¯ संबंध है। इसे यदि यहां के सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• और सामाजिक à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• जनजीवन का दरà¥à¤ªà¤£ कहा जाठतो अतिशंयोकà¥à¤¤à¤¿ नहीं होगी।
– बिलकà¥à¤² सही |
Very good article. I have seen Buransh while trekking in Chopta, Nagtibba.
Its Juice is also very good for the heart.
dhanyavad ! mughey BURANSH KE BARE MAI JANKARI CHAHIYE THI JO AAPNE UPLABDH KARA DI,WASTSV MAIN BIRANSH,KAFAL.HISALU AADI HAMARI PAHICHAAN HAIN. EK PRATEEK HAIN,HAMARE LIYE, TABHI TOH MAINE CHUNA ‘BURANSH’ (EK PRATEEK)
Buransh floawer and tree is symbol of love, cpeaceful cultural and historical burans is identy of phari khetra.
please dont cut buransh tree save tree and save phari beuty.
बà¥à¤°à¤¾à¤à¤¶ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• है, हरà¥à¤· का, उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ का, पà¥à¤°à¥‡à¤® का शकà¥à¤¤à¤¿ का, विकास का, विसà¥à¤¤à¤¾à¤° का।
MAN AANANDIT HUVA PADKE….MAIN MUKUTMANI MASIK PATRIKA KE AGLE ANK MAIN BURANSH KA VARNAN JARUR KARUNGA ……GYAN BAANTNE K LIY AAPKA DYANVAD……SAMPADAK MUKUTMANI…..