à¤à¤•à¥à¤¤à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ का जनà¥à¤® 12 फरवरी 1912 को गोपाल सिंह रावत के घर हà¥à¤†à¥¤ आपका मूल गाà¤à¤µ था, à¤à¥Œà¤°à¤¾à¤¡à¤¼, पटà¥à¤Ÿà¥€ साà¤à¤¬à¤²à¥€, पौड़ी गढ़वाल। समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ जॉरà¥à¤œ पंचम के राजà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¤£ वरà¥à¤· में पैदा होने के कारण उनके पिता ने उनका नाम राजदरà¥à¤¶à¤¨ रखा था, परनà¥à¤¤à¥ राजनीतिक चेतना विकसित होने के बाद जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने नाम से गà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ की बू आने लगी, तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना नाम बदलकर à¤à¤•à¥à¤¤à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ कर लिया। पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ के बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने डी.à¤.वी. कॉलेज देहरादून से इंटरमीडियेट किया और विशà¥à¤µ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ (शानà¥à¤¤à¤¿ निकेतन) से कला सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤• व 1937 में इलाहाबाद विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ से राजनीति शासà¥à¤¤à¥à¤° में सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤•à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° परीकà¥à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ पास कीं। शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करते हà¥à¤ ही उनका समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ रवीनà¥à¤¦à¥à¤° नाथ टैगोर, डॉ. हजारी पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ दà¥à¤µà¤¿à¤µà¥‡à¤¦à¥€ आदि से हà¥à¤†à¥¤ 1929 में ही डॉ. à¤à¤•à¥à¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨ लाहौर में हà¥à¤ कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ के अधिवेशन में सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवक बने। 1930 में नमक आंदोलन के दौरान उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤°à¤¥à¤® बार जेल यातà¥à¤°à¤¾ की। इसके बाद वे 1941, 1942 व 1944, 1947 तक कई बार जेल गये।
18 फरवरी 1931 को शिवरातà¥à¤°à¤¿ के दिन उनका विवाह जब सावितà¥à¤°à¥€ जी से हà¥à¤† था, तब उनकी जिद के कारण सà¤à¥€ बारातियों ने खादी वसà¥à¤¤à¥à¤° पहने। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने न मà¥à¤•à¥à¤Ÿ धारण किया और न शादी में कोई à¤à¥‡à¤‚ट ही सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° की। शादी के अगले दिवस ही वे सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® में à¤à¤¾à¤— लेने के लिये चल दिये व संगलाकोटी में ओजसà¥à¤µà¥€ à¤à¤¾à¤·à¤£ देने के कारण उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° कर जेल à¤à¥‡à¤œ दिया गया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ‘गढ़देश’ के समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤•à¥€à¤¯ विà¤à¤¾à¤— में कारà¥à¤¯ किया। ‘करà¥à¤®à¤à¥‚मि’ लैंसडौन के 1939 से 1949 तक वे समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤• रहे। पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ ‘दैनिक à¤à¤¾à¤°à¤¤â€™ के लिये काम करने के कारण उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤¤à¤° पर पहचान मिली। वे कà¥à¤¶à¤² लेखक थे। उनकी लेखन शैली व सà¥à¤²à¤à¥‡ विचारों का पाठकों पर बड़ा पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ पड़ता था। वे 1945 में गढ़वाल में कसà¥à¤¤à¥‚रबा गांधी राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• निधि तथा आजाद हिनà¥à¤¦ फौज के सैनिकों हेतॠनिरà¥à¤®à¤¿à¤¤ कोष के संयोजक रहे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ कर आजाद हिनà¥à¤¦ फौज के सैनिकों को à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ सेनानियों की तरह पेंशन व अनà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ दिलवायी थीं।
1952 में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लोकसà¤à¤¾ में गढ़वाल का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¤à¥à¤µ किया व कà¥à¤² चार बार इस सीट पर जीत दरà¥à¤œ की।सनॠ1963 से 1971 तक वे जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादà¥à¤° शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ व इंदिरा गांधी के मंतà¥à¤°à¤¿à¤®à¤‚डलों के सदसà¥à¤¯ रहे। केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ शिकà¥à¤·à¤¾à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ के रूप में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करवायी और केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ संगठन के पहले अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· रहे। तà¥à¤°à¤¿à¤à¤¾à¤·à¥€ फारà¥à¤®à¥‚ला को महतà¥à¤µ देकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने संगठन को पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ बनाया। गांधी जी के हिनà¥à¤¦à¥€ के विचारों से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ होकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ हिनà¥à¤¦à¥€ निदेशालय की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करायी। दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ व पूरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° में हिनà¥à¤¦à¥€ के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° में उनका अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ योगदान रहा था। संसद में वे हिनà¥à¤¦à¥€ में ही बोलते थे। पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ का उतà¥à¤¤à¤° à¤à¥€ हिनà¥à¤¦à¥€ में ही देते थे। à¤à¤• बार नेहरू जी ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ टोका तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• कह दिया कि मैं आपके आदेश का जरूर पालन करता, परनà¥à¤¤à¥ मà¥à¤à¥‡ हिनà¥à¤¦à¥€ में बोलना उतना ही अचà¥à¤›à¤¾ लगता है जितना अनà¥à¤¯ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में।
1971 में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ राजनीति से संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ ले लिया। हालांकि शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ गांधी जी ने उनको à¤à¤¸à¤¾ करने से मना किया, लेकिन अपने सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के धà¥à¤¨à¥€ दरà¥à¤¶à¤¨ जी ने यह कहकर मना कर दिया कि मेरी उमà¥à¤° अब सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ राजनीति में रहने की नहीं रह गई है, अब नये लोगों को राजनीति में मौका दिया जाय। वे उन दà¥à¤°à¥à¤²à¤ राजनेताओं में थे, जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उचà¥à¤š पद पर रह कर सà¥à¤µà¥‡à¤šà¥à¤›à¤¾ से राजनीति छोड़ी। राजनीति की काली कोठरी में रहकर à¤à¥€ वे बेदाग निकल आये।
ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना सारा जीवन शिकà¥à¤·à¤¾ व साहितà¥à¤¯ की सेवा में लगा दिया। वे लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ जनपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ थे। जिस किसी पद पर à¤à¥€ वे रहे, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने निषà¥à¤ ा व ईमानदारी से कारà¥à¤¯ किया। वे सादा जीवन और उचà¥à¤š विचार के जीवनà¥à¤¤ उदाहरण थे। बड़े से बड़ा पद पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने पर à¤à¥€ अà¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ और लोठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ छू न सके। वे ईमानदारी से सोचते थे, ईमानदारी से काम करते थे। निधन के समय à¤à¥€ वे किराये के मकान में रह रहे थे। किसी दबाव पर अपनी सतà¥à¤¯à¤¨à¤¿à¤·à¥à¤ ा छोड़ने को वे कà¤à¥€ तैयार नहीं हà¥à¤à¥¤ वे ओजसà¥à¤µà¥€ वकà¥à¤¤à¤¾ थे और इतना सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° बोलते थे कि शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ मंतà¥à¤°à¤®à¥à¤—à¥à¤§ हो जाते थे।
1972 से 1977 तक वे उ.पà¥à¤°. खादी बोरà¥à¤¡ के उपाधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· रहे और 1972 से 1977 तक कानपà¥à¤° वि.वि. के कà¥à¤²à¤ªà¤¤à¤¿à¥¤1988-90 में उ.पà¥à¤°. हिनà¥à¤¦à¥€ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के उपाधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· रहे और दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के अनेक हिनà¥à¤¦à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ करवाया। हिनà¥à¤¦à¥€ और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के लेखकों की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ का अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ करवाया और उनके पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ में सहायता की। डॉ. à¤à¤•à¥à¤¤à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ जी ने अनेक उपयोगी गà¥à¤°à¤‚थ लिखे और समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ किये। इनमें शà¥à¤°à¥€à¤¦à¥‡à¤µ सà¥à¤®à¤¨ सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ गà¥à¤°à¤‚थ, गढ़वाल की दिवंगत विà¤à¥‚तियाठ(दो à¤à¤¾à¤—), कलाविद मà¥à¤•à¥à¤¨à¥à¤¦à¥€ लाल बैरिसà¥à¤Ÿà¤°, अमर सिंह रावत à¤à¤µà¤‚ उनके आविषà¥à¤•à¤¾à¤° तथा सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ रामतीरà¥à¤¥ पर आलेख पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हैं। इसीलिये आपको डॉकà¥à¤Ÿà¤°à¥‡à¤Ÿ उपाधि से समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ किया गया था। उनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ वरà¥à¤· की उमà¥à¤° में 30 अपà¥à¤°à¥‡à¤² 1991 को देहरादून में डॉ. à¤à¤•à¥à¤¤à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ का निधन हो गया।