Late Mohan Upreti was born in 1928 at Ranidhara, Almora.He was the real legend of Uttarakhandi folk music, he gave a new identity to Uttarakhandi folk music.He was instrumental in bringing those folk stories to main stream which were only confined to local people of Uttarakhand. Read more about him-
मोहन उपà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥€ जी का जनà¥à¤® 1928 में रानीधारा, अलà¥à¤®à¥‹à¥œà¤¾ में हà¥à¤† था। ये सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ रंगकरà¥à¤®à¥€ और लोक संगीत के मरà¥à¤®à¤œà¥à¤ž थे, कà¥à¤®à¤¾à¤‚ऊनी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, लोकगाथों को राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ पहचान दिलाने में इनकी अहम à¤à¥‚मिका रही। १९४९ में इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤®à¥¦à¤à¥¦ (डिपà¥à¤²à¥‹à¤®à¥‡à¤¸à¥€ à¤à¤£à¥à¤¡ इंटरनेशनल अफेयरà¥à¤¸) की डिगà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ की। १९५२ तक अलà¥à¤®à¥‹à¥œà¤¾ इणà¥à¤Ÿà¤° कालेज में इतिहास के पà¥à¤°à¤µà¤•à¥à¤¤à¤¾ पद पर कारà¥à¤¯ किया। १९५१ में लोक कलाकार संघ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की, १९५० से १९६२ तक कमà¥à¤¯à¥à¤¨à¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ पारà¥à¤Ÿà¥€ के लिये à¤à¥€ कारà¥à¤¯ किया। इस बीच परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ और सरà¥à¤µà¥‡à¤•à¥à¤·à¤£ का कारà¥à¤¯ किया। कूरà¥à¤®à¤¾à¤‚चल के सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कलाकार सà¥à¤µà¥¦ शà¥à¤°à¥€ मोहन सिंह रीठागाड़ी (बोरा) के समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• में आये। कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ और गà¥à¤µà¤¾à¤² में अनेक सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® किये, वामपंथी विचारधाराओं के कारण १९६२ में चीन यà¥à¤¦à¥à¤§ के समय इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° कर लिया गया और नौ महीने का कारावास à¤à¥€ à¤à¥‡à¤²à¤¾à¥¤ जेल से छूटने के बाद अलà¥à¤®à¥‹à¥œà¤¾ और सारे परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° से निषà¥à¤•à¤¾à¤¸à¤¿à¤¤ होने के कारण इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दिलà¥à¤²à¥€ में रहना पड़ा। दिलà¥à¤²à¥€ के à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ कला केनà¥à¤¦à¥à¤° में कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® अधिकारी के पद पर इनकी तैनाती हà¥à¤ˆ और इस पद पर यह १९à¥à¥§ तक रहे। १९६८ में दिलà¥à¤²à¥€ में परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के लोक कलाकारों के सहयोग से परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कला केनà¥à¤¦à¥à¤° की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की। राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ नाटà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯, दिलà¥à¤²à¥€ में १९९२ तक पà¥à¤°à¤µà¤•à¥à¤¤à¤¾ और à¤à¤¸à¥‹à¤¸à¤¿à¤¯à¥‡à¤Ÿ पà¥à¤°à¥‹à¤«à¥‡à¤¸à¤° à¤à¥€ रहे।
विशà¥à¤µ सà¥à¤¤à¤° पर गà¥à¥à¤µà¤¾à¤² और कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ की लोक कला की पहचान कराने में उपà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥€ जी का विशिषà¥à¤Ÿ योगदान रहा है। अपने रंगमंचीय जीवन में इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लगà¤à¤— २२ देशों की यातà¥à¤°à¤¾ की और वहां सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किये। १९८३ में अलà¥à¤œà¥€à¤°à¤¿à¤¯à¤¾, सीरिया, जारà¥à¤¡à¤¨, रोम आदि देशों की यातà¥à¤°à¤¾à¤à¤‚ की और वहां पर सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• कलाकारों के साथ परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ लोक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤ किया। १९८८ में २४ परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ लोक कलाकारों के साथ चीन, थाईलैणà¥à¤¡ और उतà¥à¤¤à¤°à¥€ कोरिया का à¤à¥à¤°à¤®à¤£ किया। शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® कला केनà¥à¤¦à¥à¤° के कलाकारों के साथ लगà¤à¤— २० देशों का à¤à¥à¤°à¤®à¤£ किया। १९à¥à¥§ में सिकà¥à¤•à¤¿à¤® के राजा नामà¥à¤—à¥à¤¯à¤¾à¤² ने इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ राजà¥à¤¯ में सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करने के लिये विशेष रà¥à¤ª से आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया। अलà¥à¤®à¥‹à¥œà¤¾ में इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने अननà¥à¤¯ सहयोगियों सरà¥à¤µ शà¥à¤°à¥€ बृजेनà¥à¤¦à¥à¤° लाल शाह, बांके लाल शाह, सà¥à¤°à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤° मेहता, तारा दतà¥à¤¤ सती, लेनिन पनà¥à¤¤ और गोवरà¥à¤§à¤¨ तिवाड़ी के साथ मिलकर “लोक कलाकार संघ” की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की। अपने रंगमंचीय जीवन में शà¥à¤°à¥€ उपà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥€ जी ने परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के लगà¤à¤— १५०० कलाकारों को पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ किया और १२०० के करीब सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किये। राजà¥à¤²à¤¾-मालूशाही, रसिक-रमौल, जीतू-बगड़वाल, रामी-बौराणी, अजà¥à¤µà¤¾-बफौल जैसी १३ लोक कथाओं और विशà¥à¤µ की सबसे बड़ी गायी जाने वाली गाथा “रामलीला” का पहाड़ी बोलियों (कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€) में अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ कर मंच निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¨ कर पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया। इसके अतिरिकà¥à¤¤ हिनà¥à¤¦à¥€ और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में मेघदूत और इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¸à¤à¤¾, गोरी-धनà¥à¤¨à¤¾ का हिनà¥à¤¦à¥€ में मंचीय निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¨ किया।
मोहन उपà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥€ जी à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार के सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• विà¤à¤¾à¤— की लोक नृतà¥à¤¯ समिति के विशेषजà¥à¤ž सदसà¥à¤¯ रहे, हिमालय की सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• धरोहर के à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¤°à¥à¤Ÿ सदसà¥à¤¯ और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• परिषद के à¤à¥€ विशिषà¥à¤Ÿ सदसà¥à¤¯ रहे। देश की पà¥à¤°à¤®à¥à¤– नाटà¥à¤¯ मंडलियों से इनका सीधा संपरà¥à¤• रहा, कई नाटकों के संगीतकार रहे, इनमें पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हैं- घासीराम कोतवाल, अली बाबा, उतà¥à¤¤à¤° रामचरितà¥à¤¤, मशरिकी हूर और अमीर खà¥à¤¸à¤°à¥‹à¥¤
लोक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को मंचीय माधà¥à¤¯à¤® से अà¤à¤¿à¤¨à¤µ रà¥à¤ª में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करने, संगीत निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¨ और रंगमंच के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय योगदान के लिये इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ साहितà¥à¤¯ कला परिषद, दिलà¥à¤²à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ १९६२ में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¥ƒà¤¤ किया गया। संगीत निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¨ पर इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ १९८१ में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ नाटà¥à¤¯ संघ ने पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¥ƒà¤¤ किया, लोक नृतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये संगीत नाटक अकादमी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ १९८५ में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¥ƒà¤¤ हà¥à¤¯à¥‡à¥¤ हिनà¥à¤¦à¥€ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ उ०पà¥à¤°à¥¦ सरकार नें इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¨ पनà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤° देकर समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ किया, वे जोरà¥à¤¡à¤¨ में आयोजित समारोह में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ गोलà¥à¤¡à¤¨ बियर पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤° से à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¥ƒà¤¤ हà¥à¤¯à¥‡à¥¤ वे इणà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¨ पीपà¥à¤²à¥à¤¸ थियेटर à¤à¤¸à¥‹à¤¸à¤¿à¤¯à¥‡à¤¶à¤¨ (इपà¥à¤Ÿà¤¾) के à¤à¥€ सदय रहे। सलिल चौधरी, उमर शेख और बलराज साहनी के साथ मिलकर कई कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किये। उनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ छà¥à¤ªà¥‡à¤²à¥€ “ओ लाली ओ लाल हौंसिया” की धà¥à¤¨ को चà¥à¤°à¤¾à¤•à¤° फिलà¥à¤® “गीत गाया पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ ने” की धà¥à¤¨ बनाई गई। १९९ॠमें उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ लोक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ जगत का सितारा हमसे दूर चला गया, इनका गाया और संगीतबदà¥à¤§ किया गया लोकगीत “बेडू पाको बारा मासा” चिरकाल तक हमें उनकी याद दिलाता रहेगा। जब जवाहर लाल नेहरॠजी ने उनके कंठसे यह गीत सà¥à¤¨à¤¾ तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मोहन दा का नाम “बेडू पाको बà¥à¤µà¤¾à¤¯” रख दिया।
आज यह बेडू पाको बà¥à¤µà¤¾à¤¯ à¤à¤²à¥‡ ही हमसे दूर चला गया हो लेकिन उनके गाये गीत चिरकाल तक हमारे हृदय में उनकी सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ को ताजा रखेंगे।
Read a detailed article on Mohan Upreti in our forum मोहन उपà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥€: उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ लोक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के संवाहक
mohan upreti was a person of telent. he drew attention of the people towards the folk lore and great uttarakhandi culture. his efforts was ameging in this field. malu-sahi ko lok kathaon se nikalkar aam jan tak pahuchakar unhone amulya yogdan diya hai.
Late Shri Mohan Upreti has given Uttarakhandi folk a global identity, dew to his efforts Rajula Malushahi Written in many languages of the world He deserved to a great honor.
[…] सिंह बिषà¥à¤Ÿ के घर पर रà¥à¤•à¥‡ उनके दल में मोहन उपà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥€ à¤à¥€ थे जो अलà¥à¤®à¥‹à¥œà¤¾ शहर में रहते थे और […]
Please correct the year of Mohan Upreti’s receiving the Sahitya Kala Parishad Delhi award: Sahitya Kala Parishad Delhi was not even formed in 1962.
Can anybody comment on Mohan Upreti’s activities in Delhi in the period between the years from 1962 to 1968, and the people with whose support he formed Parvatiya Kala Kendra in Delhi?