मोहन सिंह रीठागाड़ी का पूरा नाम मोहन सिंह बोरा था, “रीठागाड़ी” उनका उपनाम था। मोहन रीठागाड़ी जी का जनà¥à¤® 1905 में गà¥à¤°à¤¾à¤®-धपना, शेराघाट, पिथौरागढ़ में हà¥à¤† था, पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ करà¥à¤®à¥€ मोहन उपà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥€ जी इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपना गà¥à¤°à¥ मानते थे।
पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ रंगकरà¥à¤®à¥€ सà¥à¤µà¥¦ बà¥à¤°à¤œà¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤° लाल शाह जी के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में (रीठागाड़ी जी की मृतà¥à¤¯à¥ के बाद) -“लोक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के उनà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤• मोहन सिंह बोरा “रीठागाड़ी” का गायकी जीवन ’कौन जाने उस बंजारे गायक की याद में कितने वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक सेराघाट के आस-पास सरयू तट पर गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥à¤¯à¤¾à¤‚ठबैठती रही होंगी और मोहन की मोहक नà¥à¤¯à¥‹à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¥à¤®à¤°à¤¾à¤¤à¤¿ रही होंगी। राजà¥à¤²à¤¾ मालूशाही गाथा के मरà¥à¤®à¤¸à¥à¤ªà¤°à¥à¤¶à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤‚गों को याद कर सिसकती रही होंगी तथा बैर गायन में वाकपà¥à¤Ÿà¥ और वà¥à¤¯à¥à¤¤à¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨à¤®à¥à¤¤à¤¿, बैरी मोहन को सà¥à¤®à¤°à¤¤à¥€ हà¥à¤ˆ अतीत में डà¥à¤¬à¤•à¥€ लगाती रही होंगी।” à¤à¤• यà¥à¤—ानà¥à¤¤ का अंत हो गया, मोहन सिंह रीठागाड़ी के यà¥à¤— का अंत हो गया, अब अतीत के घोडि़या पड़ावों की रसीली लोक-गीती संधà¥à¤¯à¤¾à¤à¤‚ छोटे परà¥à¤¦à¥‹ के चारों ओर सिमट कर रह गई हैं, दूरदरà¥à¤¶à¤¨ सà¥à¤Ÿà¥‚डियो अथवा लोकोतà¥à¤¸à¤µà¥‹à¤‚ में असà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• रà¥à¤ª में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किये गये लोकगीतों à¤à¤µà¤‚ नृतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¤¾à¤‚की टेलीविजन पर अवशà¥à¤¯ दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤—ोचर होती है, किनà¥à¤¤à¥ उन दृशà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में वह बंजारा कà¤à¥€ नहीं दिखलाई पड़ेगा। जो सरयू तीरे चांदनी रातों में घोड़े हांकता, नà¥à¤¯à¥‹à¤²à¥€ गाता हà¥à¤† निकलता था और अपने सà¥à¤µà¤°à¥‹à¤‚ की à¤à¤¿à¤°à¤®à¤¿à¤°à¤¾à¤¹à¤Ÿ से समसà¥à¤¤ सेराघाट की घाटी को बोà¤à¤¿à¤² और ओसिल बनाता हà¥à¤† आगे बढ़ जाया करता था। कौन था वह बंजारा, वह घोडिया? वह था मोहन रीठागाड़ी, रसीला और रंगीला गायक।
ठाकà¥à¤° मोहन सिंह बोरा जी की दो शादियों की गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ संतानों में मोहन सबसे छोटे थे, बचपन से ही विनोद पà¥à¤°à¤¿à¤¯ मोहन के कानों में राजà¥à¤²à¤¾-मालूशाही की कथा à¤à¤µà¤‚ मोहक संगीत बस गया था। बकौल मोहन सिंह के यह संगीत उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गेवाड़ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के à¤à¤• बारà¥à¤¡à¤¼à¥€ शिलà¥à¤ªà¤•à¤¾à¤° (टोकरी बनाने वाले) से पहली बार सà¥à¤¨à¤¾ था, उसके बाद बारà¥à¤¡à¤¼à¥€ के à¤à¤•à¤²à¤µà¥à¤¯ शिषà¥à¤¯ मोहन सिंह ने आवाज के उस जादू को मृतà¥à¤¯à¥à¤ªà¤°à¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤ किये रखा।अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ जिले के सà¤à¥€ मेलों में मोहन सिंह नाम का यà¥à¤µà¤• पहà¥à¤‚चकर विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की छपेलियों, à¤à¥‹à¤¡à¤¼à¥‹à¤‚ और चांचरियों का संगीत संचय कर अपनी सांसों से संवारने लगा। आजीविका के लिये उसने बंजारे की जिंदगी अपनाई, अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¾ शहर से वे घोड़ों पर सामान लादकर गंगोलीहाट, बेरीनाग, लोहाघाट और पिथौरागढ़ की मणà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में ले जाते। विशà¥à¤°à¤¾à¤® के कà¥à¤·à¤£à¥Šà¤‚ में रात-रात à¤à¤° मालूशाही गाते, हृदय को टीसने वाली नà¥à¤¯à¥‹à¤²à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ गाकर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ à¤à¥€ सिसकते और शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤“ं को à¤à¥€ सिसकने पर मजबूर कर देते। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से पूरे कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ में लोक गायक मोहन रीठागाड़ी की धूम मच गई।
शनै-शनैः मोहन सिंह जी की कला पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° बढ़ता चला गया, गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ खेलों-मेलो- की सीमा से निकलकर वह कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ मणà¥à¤¡à¤² के शरदोतसवों, गà¥à¤°à¥€à¤·à¥à¤®à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µà¥‹à¤‚ और विशेष समारोहों में पहà¥à¤‚च गये। आकाशवाणी के लिये à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® देने शà¥à¤°à¥ कर दिये। लखनऊ से दिलà¥à¤²à¥€ तक उनकी मांग होने लगी, मोहन उपà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥€ जी के पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ से संगीत नाटक अकादमी ने उनकी गाई समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ मालूशाही का धà¥à¤µà¤¨à¥à¤¯à¤¾à¤²à¥‡à¤–न किया और यथोचित आदर और पारितोषिक दिया। परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कला केनà¥à¤¦à¥à¤°, दिलà¥à¤²à¥€ ने à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ काफी समà¥à¤®à¤¾à¤¨ दिया। २८ जनवरी, १९९८ को à¥à¥¯ वरà¥à¤· की आयॠमें à¤à¤• हà¥à¤¡à¤¼à¤•à¥‡ की गमक अननà¥à¤¤ में विलीन हो गई।
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मोहन रीठागाड़ी जी को उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ लोक संगीत का पिता (Father of uttarakhandi folk music) कहा जाय तो कोई अतिशà¥à¤¯à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¿ न होगी।
[…] थे. उस शाम रीठागाड़ के लोककलाकार मोहन सिंह बोरा (मोहन सिंह रीठागाड़ी) ने इन लोगों को कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ की पारमà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• […]
From many days i was searching about Mohan Singh Reethagaadi but unable to find any good information. Today i just googled with hindi font “रीठागाड़ी” and got this info.
Thnaks