किसी ज़माने में रेडियो सेट से गूà¤à¤œà¤¤à¤¾ ये सà¥à¤µà¤° घर-घर का जाना-पहचाना होता था। ये थे देवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡ अपने ज़माने के जाने-माने समाचार वाचक। अपने जीवन काल में ही पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ समाचार वाचन की à¤à¤• संसà¥à¤¥à¤¾ बन गठथे। उनके समाचार पढ़ने का अंदाज़, उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾, सà¥à¤µà¤° की गंà¤à¥€à¤°à¤¤à¤¾ और गà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾ और पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग अनà¥à¤°à¥‚प उतार-चढ़ाव शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ को à¤à¤• रोमांच की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में ले आता था। कानपà¥à¤° में पैदा हà¥à¤ देवकीनंदनजी के पिता शिवदतà¥à¤¤ पाणà¥à¤¡à¥‡ अपने कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के जाने-माने डॉकà¥à¤Ÿà¤° थे। बेहद रहम दिल और आधी रात को उठकर किसी à¤à¥€ मरीज़ के लिठमà¥à¤«à¤¼à¥à¤¤ में इलाज करने को ततà¥à¤ªà¤°à¥¤ मूलरूप से पाणà¥à¤¡à¥‡ परिवार कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤ का था। शायद यही वजह है कि पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ के सà¥à¤µà¤° में à¤à¤• पहाड़ी ख़नक सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ देती थी। देवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ अपने सà¥à¤•à¥‚ली दिनों में कà¤à¥€ à¤à¥€ मेघावी छातà¥à¤° नहीं रहे लेकिन वे कà¤à¥€ à¤à¥€ अपनी ककà¥à¤·à¤¾ में फेल नहीं हà¥à¤à¥¤ घूमने-फिरने, नाटक करने और खेलकूद में उनकी गहन दिलचसà¥à¤ªà¥€ थी। पाठà¥à¤¯ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¤à¥€ à¤à¥€ रास नहीं आईं किंतॠनाटक, उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸, कहानियॉं, जीवन चरितà¥à¤° और इतिहास की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हमेशा से आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करती थीं। उनकी आरंà¤à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ में हà¥à¤ˆà¥¤ अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ यानी हिमालय परà¥à¤µà¤¤ शà¥à¤°à¥ƒà¤‚खलाओं के ऊपर बसा नगर । पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ के पिता पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ के अननà¥à¤¯ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ थे। इस वजह से घर में किताबों का अचà¥à¤›à¤¾ ख़ासा संकलन थाजिससे पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ को पठन-पाठन में दिलचसà¥à¤ªà¥€ होने लगी। कॉलेज के ज़माने में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• विशंà¤à¤° दतà¥à¤¤ à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ देवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡ पर अगाध सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ रखते थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पहले-पहल पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ की आवाज़ की विशिषà¥à¤Ÿà¤¤à¤¾ को पहचाना और सराहा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने इस छातà¥à¤° को उसकी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ का आà¤à¤¾à¤¸ करवाया। à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤œà¥€ पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ को रंगमंच के लिये पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ करने लगे। अलमोड़ा में पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ ने कई दरà¥à¤œà¤¼à¤¨ नाटकों में हिसà¥à¤¸à¤¾ लिया इससे उनके आतà¥à¤®à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ में मज़बूती आई। ४० के दशक में अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ जैसी छोटी जगह में केवल दो रेडियो थे। à¤à¤• सà¥à¤•à¥‚ल के अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• जोशीजी के घर और दूसरा à¤à¤• वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ शाहजी के घर। यà¥à¤µà¤¾ देवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡ को दूसरे महायà¥à¤¦à¥à¤§ के समाचारों को सà¥à¤¨à¤•à¤° बहà¥à¤¤ रोमांच होता। वे पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ सारा काम छोड़कर समाचार सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ जाते। उन दिनों जरà¥à¤®à¤¨à¥€ रेडियो के दो पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤•à¥‹à¤‚ लॉरà¥à¤¡ हो हो और डॉ. फ़ारूक़ी का बड़ा नाम था। दोनों लाजवाब पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ थे। उनकी आवाज़ हमेशा पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ के दिलो-दिमाग़ में छाई रही। सनॠ१९४१ में बी.à¤. करने के लिठपाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ इलाहबाद चले आठजहॉं का विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ पूरे देश में विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ था। १९४३ में पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ ने लख़नऊ में à¤à¤• सरकारी नौकरी कर ली और केजà¥à¤¯à¥à¤…ल आरà¥à¤Ÿà¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ के रूप में à¤à¤¨à¤¾à¤‰à¤‚सर और डà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾ आरà¥à¤Ÿà¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ हेतॠउनका चयन रेडियो लखनऊ पर हो गया। इस सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर उरà¥à¤¦à¥‚ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾à¤“ं का बोलबाला था। पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ हमेशा मानते रहे कि इस विशिषà¥à¤Ÿ à¤à¤¾à¤·à¤¾ के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ और सही उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ की बारीकियों का अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ रेडियो लखनऊ से ही मिला।मà¥à¤à¥‡ यह लिखने में कोई à¤à¤¿à¤à¤• नहीं है कि देवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡ जैसे पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾à¤“ं की वजह से ही हिंदी को आकाशवाणी जैसे अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ परिवेश में मान मिलना पà¥à¤°à¤¾à¤‚रठहà¥à¤†. देश के आज़ाद होते ही आकाशवाणी पर समाचार बà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤¿à¤¨à¥‹à¤‚ का सिलसिला पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहà¥à¤†à¥¤ दिलà¥à¤²à¥€ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर अचà¥à¤›à¥€ आवाज़ें ढूंढ़ने की पहल हà¥à¤ˆà¥¤ देवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡ ने डिसà¥à¤• पर अपनी आवाज़ रेकारà¥à¤¡ करके à¤à¥‡à¤œà¥€à¥¤ फ़रवरी १९४८ में समाचार वाचकों का चयन किया गया। उमà¥à¤®à¥€à¤¦à¤µà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ थी तीन हज़ार और बिला शक देवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡ का नाम सबसे ऊपर था। आकाशवाणी लखनऊ पर मिले उरà¥à¤¦à¥‚ के अनà¥à¤à¤µ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हमेशा सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ समाचार वाचन में लाठदिया। पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ मानते थे कि निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप से देश की à¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ है लेकिन वाचिक परंपरा में उरà¥à¤¦à¥‚ के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के परहेज़ नहीं किया जाना चाहिà¤à¥¤ हिनà¥à¤¦à¥€-उरà¥à¤¦à¥‚ की चाशनी सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ वालों के कान में निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ ही रस घोलती है। १९४८ में आकाशवाणी में हिनà¥à¤¦à¥€ समाचार पà¥à¤°à¤à¤¾à¤— की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ हà¥à¤ˆà¥¤ इसमें आले हसन (जो कालांतर में बीबीसी उरà¥à¤¦à¥‚ सेवा के विशà¥à¤µ विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ माने गà¤) सà¥à¤°à¥‡à¤¶ अवसà¥à¤¥à¥€, बृजेनà¥à¤¦à¥à¤°, सईदा बानो और चॉंद कृषà¥à¤£ कौल। लाज़मी था कि उस समय के समाचार वाचकों को हिनà¥à¤¦à¥€-उरà¥à¤¦à¥‚ दोनों आना ज़रूरी था। आले हसन का हिनà¥à¤¦à¥€ वाचन अदà¥à¤à¥à¤¤ था। वे बहà¥à¤¤ क़ाबिल अनाउंसर और नà¥à¤¯à¥‚ज़ रीडर थे। शà¥à¤°à¥‚ में मूल समाचार अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ में लिखे जाते थे जिसका अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ वाचक को करना होता था। अशोक वाजपेयी, विनोद कशà¥à¤¯à¤ª और रामानà¥à¤œ पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª सिंह को à¤à¥€ अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ करने के लिये मजबूर किया गया लेकिन काफ़ी जदà¥à¤¦à¥‹à¤œà¤¹à¤¦ के बाद उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इस परेशानी से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ मिली और हिनà¥à¤¦à¥€ समाचार हिनà¥à¤¦à¥€ में ही लिखे जाने लगे। यहॉं ये à¤à¥€ उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय है कि मेलà¥à¤µà¤¿à¤¨ डिमेलो और चकà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤£à¥€ जैसे धà¥à¤°à¤‚धर अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾à¤“ं से सामने जिन लोगों ने हिनà¥à¤¦à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£ का लोहा मनवाया उसमे ंदेवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡ की à¤à¥‚मिका को बिसराया नहीं जा सकता।
देवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡ समाचार पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£ के समय घटनाकà¥à¤°à¤® से अपने आपको à¤à¤•à¤¾à¤•à¤¾à¤° कर लेते थे और यही वजह थी उनके पढ़ने का अंदाज़ करोड़ों शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤“ं के दिल को छू जाता था। उनकी आवाज़ में à¤à¤• जादà¥à¤ˆ सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ था। कà¤à¥€-कà¤à¥€ तो à¤à¤¸à¤¾ लगता था कि पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ के सà¥à¤µà¤° से रेडियो सेट थरà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ लगा है। आज जब टीवी चैनलà¥à¤¸ की बाढ़ है और à¤à¤«à¤¼à¤à¤® रेडियो सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤‚स अपने अपने वाचाल पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£à¥‹à¤‚ से जीवन को अतिकà¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤ कर रहे हैं à¤à¤¸à¥‡ में देवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡ का सà¥à¤®à¤°à¤£ à¤à¤• रूहानी à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ से गà¥à¤œà¤¼à¤°à¤¨à¤¾ है। तकनीक के अà¤à¤¾à¤µ में सिरà¥à¤«à¤¼ आवाज़ के बूते पर अपने आपको पूरे देश में à¤à¤• घरेलू नाम बन जाने का करिशà¥à¤®à¤¾ पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ ने किया। सरदार पटेल, लियाक़त अली ख़ान, मौलाना आज़ाद, गोविनà¥à¤¦ वलà¥à¤²à¤ पंत, पं. जवाहरलाल नेहरू और जयपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ नारायण के निधन का समाचार पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ के सà¥à¤µà¤° में ही पूरे देश में पहà¥à¤à¤šà¤¾à¥¤ संजय गॉंधी के आकसà¥à¤®à¤¿à¤• निधन का समाचार वाचन करने के लिये सेवानिवृतà¥à¤¤ हो चà¥à¤•à¥‡ पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ को विशेष रूप से आकाशवाणी के दिलà¥à¤²à¥€ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया गया। देवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡ को वॉइस ऑफ़ अमेरिका जैसी अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£ संसà¥à¤¥à¤¾ से अपने यहॉं काम करने का ऑफ़र मिला लेकिन देश पà¥à¤°à¥‡à¤® ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤¸à¤¾ करने से रोका। पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ को अपनी शख़à¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¤ की लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ का अंदाज़ उस दिन लगा जब शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ इनà¥à¤¦à¤¿à¤°à¤¾ गॉंधी ने à¤à¤• बार आकाशवाणी के सà¥à¤Ÿà¥‰à¤«à¤¼ आरà¥à¤Ÿà¤¿à¤¸à¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ को उनकी समसà¥à¤¯à¤¾ सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के लिये अपने निवास पर आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया। शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ गॉंधी से जब पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ का परिचय करवाया गया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ कहा कि “अचà¥à¤›à¤¾ तो आप हैं हमारे देश की नà¥à¤¯à¥‚ज़ वॉइस’। पूरà¥à¤µ सूचना पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£ मंतà¥à¤°à¥€ विदà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤°à¤£ शà¥à¤•à¥à¤² तो à¤à¤• बार पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ का नाम सà¥à¤¨à¤•à¤° उनसे गले लिपट गठथे। नठसमाचार वाचकों के बारे में पाणà¥à¤¡à¥‡à¤œà¥€ का कहना था जो कà¥à¤› करो शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾, ईमानदारी और मेहनत से करो। हमेशा चाक-चौबनà¥à¤¦ और समसामयिक घटनाकà¥à¤°à¤® की जानकारी रखो। जितना ़ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सà¥à¤¨à¥‹à¤—े और पढ़ोगे उतना अचà¥à¤›à¤¾ बोल सकोगे। किसी शैली की नकल कà¤à¥€ मत करो। कोई ग़लती बताठतो उसे सर à¤à¥à¤•à¤¾à¤•à¤° सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करो और बताने वाले के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अनà¥à¤—ृह का à¤à¤¾à¤µ रखो। निरà¥à¤¦à¥‹à¤· और सोच समà¤à¤•à¤° पढ़ने की आदत डालो; आतà¥à¤®à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ आता जाà¤à¤—ा और पहचान बनती जाà¤à¤—ी।
ऊà¤à¤šà¥€ क़द काठी के देवकीनंदन पाणà¥à¤¡à¥‡ आज तो हमारे बीच में नहीं है लेकिन जब à¤à¥€ रेडियो पर समाचार पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£à¥‹à¤‚ की बात चलेगी तो उनका नाम इस विधा के शिखर के रूप में जाना जाता रहेगा।
साà¤à¤¾à¤°- रेडियोवाणी
उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की विà¤à¥‚तियों को याद करने कराने का आपका पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ सराहनीय है।
साधà¥à¤µà¤¾à¤¦