छलिया नृतà¥à¤¯ हमारे उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के लोक नृतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में सबसे लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ नृतà¥à¤¯ है। यह नृतà¥à¤¯ यà¥à¤¦à¥à¤§ के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• के रà¥à¤ª में ही पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जाता है, इसमें पà¥à¤°à¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ सैनिकों जैसी वेश-à¤à¥‚षा धारण कर तलवार औरॠढाल लेकर यà¥à¤¦à¥à¤§ जैसा नृतà¥à¤¯ करते हैं। जिसमें उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के लोक वादà¥à¤¯ ढोल, दमाऊ, रणसिंग, तà¥à¤°à¤¹à¥€ और मशकबीन à¤à¥€ शिरकत करते हैं। इन सà¤à¥€ वादà¥à¤¯à¥‹à¤‚ और छलिया नरà¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ की जà¥à¤—लबनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¸à¥€ होती है कि आप दांतों तले अंगà¥à¤²à¥€ दबाने के लिये बाधà¥à¤¯ हो जायेंगे।
छलिया नृतà¥à¤¯ का इतिहास
छलिया नृतà¥à¤¯ मूल में यà¥à¤¦à¥à¤§ का नृतà¥à¤¯ है, इस नृतà¥à¤¯ का समाज में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¤à¤ƒ १० वीं सदी के आस-पास का माना जाता है। यह नृतà¥à¤¯ यà¥à¤¦à¥à¤§à¤à¥‚मि में लड़ रहे शूरवीरों की वीरता के मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ छल का नृतà¥à¤¯ है। छल से यà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¥‚मि में दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ को कैसे परासà¥à¤¤ किया जा सकता है, यही इस नृतà¥à¤¯ का मà¥à¤–à¥à¤¯ लकà¥à¤·à¥à¤¯ है। इसी कारण इसे छल नृतà¥à¤¯, छलिया नृतà¥à¤¯ और हिनà¥à¤¦à¥€ में छोलिया नृतà¥à¤¯ कहा जाता है।
पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ यह à¤à¥€ उठता है कि यह नृतà¥à¤¯ यà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¥‚मि से समाज में कैसे आया? पूरà¥à¤µ काल में यह सरà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¤¿à¤¤ ही है कि यà¥à¤¦à¥à¤§ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ के आयà¥à¤§à¥‹à¤‚ की तरह नहीं, बलà¥à¤•à¤¿ आमने सामने दो राजाओं की सेना के बीच ढाल-तलवार, à¤à¤¾à¤²à¥‡, बरछे, कटार आदि से लड़े जाते थे। पूरà¥à¤µ में परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° à¤à¥€ इस तरह के यà¥à¤¦à¥à¤§à¥‹à¤‚ से अछूता नहीं रहा। अगर हम अपनी विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ तोक गाथाओं को देखें तो कहीं-कहीं पर मलà¥à¤²à¥‹à¤‚, पैकों के बीच मलà¥à¤² यà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¥€ होता था। जिस राजा के मलà¥à¤² जीत जाते, उसी राजा को जीता हà¥à¤† मान लिया जाता था। इस तरह के यà¥à¤¦à¥à¤§ मांडलिक राजाओं के बीच अपने राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के विसà¥à¤¤à¤¾à¤° और अहंतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ के लिये à¤à¥€ किये जाते थे।
मेरे विचार में इस यà¥à¤¦à¥à¤§ नृतà¥à¤¯ का वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª यà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¥‚मि से सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® सीधे राज महलों में पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• यà¥à¤¦à¥à¤§ नृतà¥à¤¯ (dumy battle dance) के रà¥à¤ª में आया। अकसर जब कोई राजा यà¥à¤¦à¥à¤§ जीत लेता था तो कई दिनों तक राजमहल में विजय समारोह मनाया जाता था। वीरों को पà¥à¤°à¥à¤¸à¥à¤•à¥ƒà¤¤ करने के साथ ही उनके यà¥à¤¦à¥à¤§-कौशल और ढाल-तलवार नचाने की निपà¥à¤£à¤¤à¤¾ का महीनों तक बखान होता रहता था। यह बखान बहà¥à¤¤ ही अतिशयोकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤£ ढंग से किया जाता था और यह काम राज दरबार के चारण {à¤à¤¾à¤Ÿ} किया करते थे। à¤à¤¾à¤Ÿà¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ यà¥à¤¦à¥à¤§ वरà¥à¤£à¤¨ सà¥à¤¨à¤•à¤° राज दरबार में शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤“ं के रोंगटे खड़े हो जाते थे।
कहा जाता है कि à¤à¤• बार किसी विजयी राजा के दरबार में इस तरह के यà¥à¤¦à¥à¤§ वरà¥à¤£à¤¨ को सà¥à¤¨à¤•à¤° रानियां अà¤à¤¿à¤à¥‚त हो गईं और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥€ उस यà¥à¤¦à¥à¤§ में वीरों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दिखाई गई वीरता को पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• रà¥à¤ª में अपनी आंखों के सामने देखना चाहा। तो राजा के आदेश पर उसके वीर सैनिकों ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही आपस में दो विरोधी दल बनाकर और यà¥à¤¦à¥à¤§ की वेष-à¤à¥‚षा पहनकर ढाल-तलवारों से यà¥à¤¦à¥à¤§ के मैदान की ही तरह पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• यà¥à¤¦à¥à¤§ नृतà¥à¤¯ करने लगे। ढोल-दमाऊं, नगाड़े, नरसिंगा आदि यà¥à¤¦à¥à¤§ के वादà¥à¤¯ बजने लगे और वीरों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ यà¥à¤¦à¥à¤§ की सारी कलाओं का पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ किया जाने लगा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस विजय यà¥à¤¦à¥à¤§ में अपने दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ को वीरता और छल से कैसे परासà¥à¤¤ किया, इसका सजीव वरà¥à¤£à¤¨ उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ राज दरबार में किया।
राजमहल में पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• रà¥à¤ª में किया गया यह यà¥à¤¦à¥à¤§ सà¤à¥€ रानियों , राजा और दरबारियों को बड़ा ही पसनà¥à¤¦ आया। अतः समय-समय पर इस पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• छलिया नृतà¥à¤¯ का आयोजन राज दरबार में होने लगा। अति आकरà¥à¤·à¤• नृतà¥à¤¯, विविध ढंग से कलातà¥à¤®à¤• रà¥à¤ª से ढोल वादन, ढाल-तलवार दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वीरों का यà¥à¤¦à¥à¤§ नृतà¥à¤¯ समाज में अति लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ हो गया। अपने अलौकिक आकरà¥à¤·à¤¨ के कारण यह नृतà¥à¤¯ दसवीं सदी से आज तक निरंतर समाज में चलते आया है। समय के साथ-साथ इसके सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª में à¤à¥€ थोड़ा परिवरà¥à¤¤à¤¨ आ गया है।
राज शाही खतà¥à¤® होने के बाद यह आम लोगों में यह नृतà¥à¤¯ के रà¥à¤ª में लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ हà¥à¤† और उस समय के संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ करà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने इस अमूलà¥à¤¯ धरोहर को संजोने के लिये इसे विवाह à¤à¤µà¤‚ शà¥à¤ अवसरों पर किये जाने की अनिवारà¥à¤¯à¤¤à¤¾ बना दी। लेकिन दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ यह है कि दसवीं सदी से निरंतर चला आ रहा हमारी समृदà¥à¤§ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का परिचायक लोक नृतà¥à¤¯ आज वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ और आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ की अंधी दौड़ में कहीं खोता चला जा रहा है।
छलिया नृतà¥à¤¯ में ढोल वादक और उसके नृतà¥à¤¯ की à¤à¥‚मिका
यह à¤à¥€ à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ विषय है कि यà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¥‚मि में दरबारी दास दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ढोल कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ बजाया जाता था और उसके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ यà¥à¤¦à¥à¤§ के दौरान ढोल नृतà¥à¤¯ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ किया जाता था?
इस विषय में लोक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की राय है कि यह ढोल वादक मातà¥à¤° वीरों के उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ वरà¥à¤§à¤¨ के लिये ढोल नहीं बजाता था, बलà¥à¤•à¤¿ वह यà¥à¤¦à¥à¤§ कला में à¤à¥€ पà¥à¤°à¤µà¥€à¤£ होता था। वह यà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¥‚मि में अपने राजा की सेना की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ पर पूरी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ रखता था, किसी समय उसकी सेना को आगे या पीछे बà¥à¤¨à¤¾ है, किस दिशा में बà¥à¤¨à¤¾ है, यà¥à¤¦à¥à¤§ जीतने के लिये अब सेना को कैसी वà¥à¤¯à¥‚ह रचना करनी है, इसका उसे पूरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता था। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के “चकà¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¥‚ह” की ही तरह परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹ में “गरà¥à¥œ वà¥à¤¯à¥‚ह” “मयूर वà¥à¤¯à¥‚ह” “सरà¥à¤ª वà¥à¤¯à¥‚ह” की रचना की जाती थी। ढोल वादक इन वà¥à¤¯à¥‚ह रचनाओं में पारंगत होता था, वह ढोल नृतà¥à¤¯ करके संकेत में अपनी सेना को बताता था कि उसे अब यà¥à¤¦à¥à¤§ में किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°, कà¥à¤¯à¤¾ करना है, कैसे आगे बà¥à¤¨à¤¾ है, कैसे पीछे हटना है, दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ की सेना को कैसे घेरना है….यह सब वह सेना को अपने नृतà¥à¤¯ और ढोल वादन के गà¥à¤ªà¥à¤¤ संकेतों से बतलाता था।
वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में à¤à¥€ छलिया नृतà¥à¤¯ के कई बाजे हैं, यथा-गंगोलिया बाजा, हिटà¥à¤µà¤¾ बाजा, बधाई का बाजा, दà¥à¤²à¥à¤¹à¤¨ के घर पर पहà¥à¤‚चने का बाजा, वापस गांव की सीमा पर बजने वाला बाजा आदि। इन अलग-अलग बाजों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ही छोलिया, नृतà¥à¤¯ करते हैं। अà¤à¥€ à¤à¥€ छोलिया नृतà¥à¤¯ का कंटà¥à¤°à¥‹à¤² ढोल वादक के पास ही होता है, उसी की वादà¥à¤¯ धà¥à¤¨à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° यह नृतà¥à¤¯ करते हैं।
कà¥à¤› साल पहले तक छलिया नृतà¥à¤¯ शादी-बारात का à¤à¤• अà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ अंग होता था. छलिया दल के साथ डांस करने में बहà¥à¤¤ मजा आता था. छलिया दल का आकार उनकी संखà¥à¤¯à¤¾ के आधार पर निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ होता है, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ आप छलिया दल में ८-१० लोग चाहते हैं या १५-२०. दल में जितने जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ लोग होंगे उतने ही जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ नरà¥à¤¤à¤• व वादà¥à¤¯à¤¯à¤¨à¥à¤¤à¥à¤° जà¥à¤™à¥‡à¤‚गे. छलिया दल केवल नृतà¥à¤¯ ही नहीं करता. à¤à¤• निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ समय के बाद विराम लेकर दल का à¤à¤• सदसà¥à¤¯ छपेली या चांचरी के बोल गाता है और गीत खतà¥à¤® होते ही पà¥à¤¨à¤ƒ दà¥à¤°à¥à¤¤à¤—ति से ढोल-दमूं के वादन के साथ नृतà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥ होता है.
छलिया दल के साथ आम बाराती हाथों में रà¥à¤®à¤¾à¤² लेकर कलातà¥à¤®à¤• डांस करते हैं तो à¤à¤• अदà¥à¤à¥à¤¤ शमां बंध जाता है.
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छलिया नरà¥à¤¤à¤• अब मà¥à¤–à¥à¤¯ रूप से मंच पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ से ही जीवन निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ करते हैं. देश के हर कोने में यह लोग विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ में शिरकत करते हैं. पिथौरागढ में “छलिया महोतà¥à¤¸à¤µ” के नाम से à¤à¤• वारà¥à¤·à¤¿à¤• आयोजन किया जाता है जिसमें उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के अलावा हिमांचल और नेपाल से à¤à¥€ छलिया दल सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ दल बनने के लिये पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¸à¥à¤ªà¤°à¥à¤§à¤¾ करते हैं. यह आयोजन सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ सरकार के सहयोग से पिछले लगà¤à¤— 10 सालों से किया जा रहा है.
पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ आलेख में कà¥à¤› अंश शà¥à¤°à¥€ जà¥à¤—ल किशोर पेटशाली दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लिखित “उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के लोक वादà¥à¤¯â€ से साà¤à¤¾à¤°à¥¤
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