स्वाधीनता-हितरधीता से दूं झुका जगदीश को,
मां के पदों में सुमन सा रख दूं समर्पण शीश को।
अपनी जननी-जन्मभूमि के प्रति ऐसी अपार बलिदानी भावना रखने वाले तरुण तपस्वी अमर शहीद श्री श्रीदेव सुमन जी का जन्म टिहरी गढ़वाल जिले की बमुण्ड पट्टी के ग्राम जौल में १२ मई, १९१५ को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री हरिराम बड़ोनी और माता जी का नाम श्रीमती तारा देवी था। इनके पिता श्री हरिराम बडोनी जी अपने इलाके के लोकप्रिय वैद्य थे, १९१९ में जब क्षेत्र में हैजे का प्रकोप हुआ तो उन्होंने अपनी परवाह किये बिना रोगियों की अथाह सेवा की, जिसके फलस्वरुप वे ३६ वर्ष की अल्पायु में स्वयं भी हैजे के शिकार हो गये। लेकिन दृढ़निश्चयी साध्वीमाता ने धैर्य के साथ बच्चों का उचित पालन-पोषण किया और शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबन्ध भी किया। तथ्य यह है कि उन्होंने अपने पिता से लोक सेवा और माता से दृढनिश्चय के संस्कार पैतृक रुप में प्राप्त किये थे। इनकी पत्नी का नाम श्रीमती विनय लक्ष्मी सुमन है, जिन्होंने हर कार्य में इनका सहयोग किया, वे देवप्रयाग क्षेत्र से दो बार विधायक भी चुनी गईं।
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव और चम्बाखाल में हुई और १९३१ में टिहरी से हिन्दी मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। अपने विद्यार्थी जीवन में १९३० में जब यह किसी काम से देहरादून गये थे तो सत्याग्रही जत्थों को देखकर वे उनमें शामिल हो गये, इनको १४-१५ दिन की जेल हुई और कुछ बेंतों की सजा देकर छोड़ दिया गया। सन १९३१ में ये देहरादून गये और वहां नेशनल हिन्दू स्कूल में अध्यापकी करने लगे, साथ ही साथ अध्ययन भी करते रहे। यहां से यह कुछ दिनों के लिये लाहौर भी गये और उसके बाद दिल्ली आ गये। पंजाब विश्वविद्यालय से इन्होंने ’रत्न’ ’भूषण’ और ’प्रभाकर’ परीक्षायें उत्तीर्ण की फिर हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ’विशारद’ और ’साहित्य रत्न’ की परीक्षायें भी उत्तीर्ण कीं।
दिल्ली में इन्होंने कुछ मित्रों के सहयोग से देवनागरी महाविद्यालय की स्थापना की और १९३७ में “सुमन सौरभ” नाम से अपनी कवितायें भी प्रकाशित कराईं। इस बीच यह पत्रकारिता के प्रति आकर्षित हुये और भाई परमानन्द के अखबार ’हिन्दू’ में कार्य किया, फिर ’धर्म राज्य’ पत्र में कार्य किया। इसी दौरान यह वर्धा गये और राष्ट्र भाषा प्रचार कार्यालय में काम करने लगे, इस दौरान वे काका कालेलकर, श्री बा०वि० पराड़कर, लक्ष्मीधर बाजपेई आदि के सम्पर्क में आये। वहां से यह इलाहाबाद चले आये और वहां पर ’राष्ट्र मत’ नामक समाचार पत्र में सहकारी सम्पादक के रुप में काम करने लगे। साहित्य के क्षेत्र में यह तेजी से आगे बढ रहे थे, लेकिन जनता की क्रियात्मक सेवा करने के उद्देश्य से १९३७ में इन्होंने दिल्ली में ’गढ़देश-सेवा-संघ” की स्थापना की जो बाद में ’हिमालय सेवा संघ’ के नाम से विख्यात हुआ। १९३८ में यह गढ़वाल भ्रमण पर गये और जिला राजनैतिक सम्मेलन, श्रीनगर में सम्मिलित हुये और इस अवसर पर उन्होंने जवाहर लाल नेहरु जी को गढ़वाल राज्य की दुर्दशा से परिचित करया। वहीं से इन्होंने जिला गढ़वाल और राज्य गढ़वाल की एकता का नारा बुलन्द किया।
अब श्रीदेव सुमन जी पूरी तरह से सार्वजनिक जीवन में आ गये और उन्होंने पूरे राज्य में भ्रमण कर जन-जागरुकता का कार्य शुरु कर दिया। २३ जनवरी, १९३९ को देहरादून में टिहरी राज्य प्रजा मण्डल की स्थापना हुई, जिसमें यह संयोजक मन्त्री चुने गये। इसी माह में जब जवाहर लाल नेहरु की अध्यक्षता में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद का लुधियाना अधिवेशन हुआ तो इन्होंने टिहरी और अन्य हिमालयी रियासतों की समस्या को राष्ट्रीय स्तर पर पहूंचाया। हिमालय सेवा संघ के द्वारा इन्होंने हिमालय प्रांतीय देशी राज्य प्रजा परिषद का गठन किया और उसके द्वारा पर्वतीय राज्यों में जागृति और चेतना लाने का काम किया।इस बीच लैंसडाउन से प्रकाशित ’कर्मभूमि’ पत्रिका के सम्पादन मंडल में शामिल होकर कई विचारपूर्ण लेख लिखे और बनारस में हिमालय राष्ट्रीय शिक्षा परिषद की स्थापना कर ’हिमांचल’ नाम की पुस्तक छपवाकर रियासत में बंटवाई। यहीं से यह रियासत के अधिकारियों की नजर में आ गये और रियासत द्वारा इनके भाषण देने और सभा करने पर रोक लगा दी गई। वे इससे विचलित नहीं हुये और यरवदा चक्र लेकर जनता को जागरुक करते रहे। रियासत के अधिकारियों ने इन्हें नौकरी और लाभ का भी लालच दिया, लेकिन ये उनके झांसे में नहीं आये तो इन्हें रियासत से निर्वासित कर दिया गया। कुछ दिनों बाद इनके तर्कपूर्ण विरोध के कारण इनका निर्वासन रद्द कर दिया गया।
अगस्त १९४२ में जब भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ तो टिहरी आते समय इन्हें २९ अगस्त, १९४२ को देवप्रयाग में ही गिरफ्तार कर लिया गया और १० दिन मुनि की रेती जेल में रखने के बाद ६ सितम्बर को देहरादून जेल भेज दिया गया। ढ़ाई महीने देहरादून जेल में रखने के बाद इन्हें आगरा सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया, जहां ये १५ महीने नजरबन्द रखे गये। इस बीच टिहरी रियासत की जनता लगातार लामबंद होती रही और रियासत उनका उत्पीड़न करती रही। टिहरी रियासत के जुल्मों के संबंध में इस दौरान जवाहर लाल नेहरु ने कहा कि टिहरी राज्य के कैदखाने दुनिया भर में मशहूर रहेंगे, लेकिन इससे दुनिया में रियासत की कोई इज्जत नहीं बढ़ सकती। इन्हीं परिस्थितियों में यह १९ नवम्बर, १९४३ को आगरा जेल से रिहा हुये। यह फिर टिहरी की जनता के अधिकारों को लेकर अपनी आवाज बुलन्द करने लगे, इनके शब्द थे कि मैं अपने शरीर के कण-कण को नष्ट हो जाने दूंगा लेकिन टिहरी के नागरिक अधिकारों को कुचलने नहीं दूंगा। इस बीच इन्होंने दरबार और प्रजामण्डल के बीच सम्मानजनक समझौता कराने का संधि प्रस्ताव भी भेजा, लेकिन दरबारियों ने उसे खारिज कर इनके पीछे पुलिस और गुप्तचर लगवा दिये। २७ दिसम्बर, १९४३ को इन्हें चम्बाखाल में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और ३० दिसम्बर को टिहरी जेल भिजवा दिया गया, जहां से इनका शव ही बाहर आ सका।
३० दिसम्बर, १९४३ से २५ जुलाई, १९४४ तक २०९ दिन इन्होंने टिहरी की नारकीय जेल में बिताये, इस दौरान इन पर कई प्रकार से अत्याचार होते रहे, झूठे गवाहों के आधार पर जब इन पर मुकदमा दायर किया गया तो इन्होंने अपनी पैरवी स्वयं की और लिखित बयान दिया कि “मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मैं जहां अपने भारत देश के लिये पूर्ण स्वाधीनता के ध्येय में विश्वास करता हूं। वहां टिहरी राज्य में मेरा और प्रजामंडल का उद्देश्य वैध व शांतिपूर्ण उपायों से श्री महाराजा की छत्रछाया में उत्तरदायी शासन प्राप्त करना और सेवा के साधन द्वारा राज्य की सामाजिक, आर्शिक तथा सब प्रकार की उन्नति करना है, हां मैंने प्रजा की भावना के विरुद्ध काले कानूनों और कार्यों की अवश्य आलोचना की है और मैं इसे प्रजा का जन्मसिद्ध अधिकार समझता हूं।” लेकिन इस पर भी ध्यान दिये बिना झूठे मुकदमे और फर्जी गवाहों के आधार पर ३१ जनवरी, १९४४ को दो साल का कारावास और २०० रुपया जुर्माना लगाकर इन्हें सजायाफ्ता मुजरिम बना दिया गया। इस दुर्व्यवहार से खीझकर इन्होंने २९ फरवरी से २१ दिन का उपवास प्रारम्भ कर दिया, जिससे जेल के कर्मचारी कुछ झुके, लेकिन जब महाराजा से कोई बातचीत नहीं कराई गई तो इन्होंने उसकी मांग की, लेकिन बदले में बेंतों की सजा इन्हें मिली। किसी प्रकार का उत्तर न मिलने पर इन्होंने ३ मई, १९४४ से अपना ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरु कर दिया। इस बीच इनपर कई पाशविक अत्याचार किये गये, इनके मनोबल को डिगाने की कोशिश की, लेकिन यह अपने विरोध पर कायम रहे। जब इनके अनशन के समाचार जनता तक पहुंचे तो जनता उद्विग्न हुई, सो रियासत ने यह अफवाह फैला दी कि श्रीदेव सुमन ने अनशन समाप्त कर दिया है और ४ अगस्त को महाराजा के जन्मदिन पर इन्हें रिहा कर दिया जायेगा।
ऐसा प्रस्ताव सुमन जी को भी दिया गया, लेकिन सुमन जी ने कहा कि “क्या मैंने अपनी रिहाई के लिये यह कदम उठाया है। ऐसा मायाजाल डालकर आप मुझे विचलित नहीं कर सकते। अगर प्रजामण्डल को रजिस्टर्ड किये बिना मुझे रिहा कर दिया गया तो मैं फिर भी अपना अनशन जारी रखूंगा।” अनशन से इनकी हालत बिगड़ती गई और जेल के अत्याचार भी, जेल के कर्मियों ने यह प्रचारित करवा दिया कि इन्हें न्यूमोनिया हो गया है, लेकिन इन्हें कुनैन के इन्ट्रावेनस इन्जेक्शन लगाये गये। जिससे इनके सारे शरीर में खुश्के फैल गई और ये पानी-पानी चिल्लाते रह्ते और उन्हें पानी न दिया जाता। २० जुलाई की रात से ही उन्हें बेहोशी आने लगी और २५ जुलाई, १९४४ को शाम करीब चार बजे इस अमर सेनानी ने अपने देश, अपने आदर्श की रक्षा के लिये अपने प्राणो की आहुति दे दी। इसी रात को जेल प्रशासन ने इनकी लाश एक कम्बल में लपेट कर भागीरथी और भिलंगना के संगम से नीचे तेज प्रवाह में फेंक दी।
इनकी शहादत का जनता पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और उसने राजशाही के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया, इनके बलिदान के बाद जनता के आन्दोलन ने टिहरी रियासत को प्रजामण्डल को वैधानिक करार दी पर मजबूर कर दिया, मई १९४७ में उसका प्रथम अधिवेशन हुआ। १९४८ में तो जनता ने देवप्रयाग, कीर्तिनगर और टिहरी पर अधिकार कर लिया और प्रजामण्डल का मंत्रिपरिषद गठित हुआ। इसके बाद १ अगस्त, १९४९ को टिहरी गढ़वाल राज्य का भारत गणराज्य में विलीनीकरण हो गया।
इस अमर सेनानी को युगो-युगों तक याद किया जायेगा, इनकी याद को अक्षुण्ण रखने के लिये प्रदेश में कई विद्यालयो, चिकित्सालयों का नाम इन्हें समर्पित किया गया है। हमने भी इस महान बलिदानी को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये दिनांक ३० अगस्त, २००८ को इनके एक पोस्टर का प्रकाशन किया, जो सबसे ऊपर प्रदर्शित है। MeraPahad Dot Com Network, Uttarakhand इस अमर बलिदानी को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये प्रदेश और केन्द्र सरकार से मांग करता है कि टिहरी बांध पर बनी झील का नाम श्रीदेव सुमन सागर रखा जाय।
श्रीदेव सुमन के बलिदान के फलस्वरुप ही टिहरी में स्वाधीनता आई और देश की आजादी में भी उनकी शहादत से क्रान्ति आई।
आपका बलिदान हमेशा ही हमें प्रेरणा देता रहा है और रहेगा।
नमन एवं श्रद्धांजलि
i also salam suman ji ko
श्रीदेव सुमन जी की पुण्य तिथि के उपलक्ष्य में हम श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.
suman ji ki jai,ho……
अमर शहीद श्रीदेव सुमन को उनकी पुण्यतिथी पर सादर श्रद्धांजली
श्रीदेव सुमन जी को “उत्तराखंड जनशक्ति युवा मंच” की ओर से संस्थापक अध्यक्ष होने के नाते मैं अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ और टिहरी झील का नाम श्रीदेव सुमन का नाम रखने का समर्थन करता हूँ।
[…] ही नहीं पूरे उत्तराखण्ड की स्थिति है। श्रीदेव सुमन की टिहरी से लेकर ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल […]
[…] हो सकता है उन्हें उपाध्याय के सामने श्रीदेव सुमन, नागेन्द्र सकलानी जैसे नाम बहुत छोटे […]
अपने देश मै ऍसे महान व्यक्ति की दोबारा आवशयकता हैँ जो इस देश के राज नेता को सुधार सकेँ
mai shree dev suman ji ko apna guru maanataa hu mai v unke vicharoun par chalata hu. wo 1 mahan krantikari rhe hai, Agar Yamraaj ne mujhe apne pass bulaa liya to unse mai 1 hi vinati karunga ki he iswar mujhe kewal 1 baar shree dev suman ji or nirmal pandit se milawa de. mai sadaa aapki gulaami ke liye tatpar hu. jay hind jay uttarakhand
9654611999
Mera Sabhi Pahadi Banduoun se Vinamr Niwedan Hai Ki Uttarakhand ke Liye Hone Waale Har Ek Aandolan Me Mujhe Bhi Apne Sath Len.
Sarfaroshi Ki tamanna Ab hamaare DIL me hai…………… I Love Uttarakhand
-जनप्रतिनिधी ही नहीं सामाजिक संगठन भी जिम्मेदार हैं महापुरूषों के अनादर के लिए
-अमर शहीद श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस
25 जुलाई को सांय गढ़वाल भवन पंचकुया रोड़ दिल्ली में देश की आजादी व टिहरी में राजशाही से मुक्ति के लिए अपना बलिदान देने वाले महान क्रांतिवीर श्रीदेव सुमन का बलिदान दिवस मनाया गया। उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य है कि यहां जो महान क्रांतिकारी हुए उनको यहां के नेताओं ने समाज कहीं जागृत न हो कर उनको लोकशाही को रौंदने से खदेड़ न दें इसी भय से व अपनी संकीर्ण अज्ञानता के कारण यहां के महापुरूषों के विराट व्यक्तित्व को गुमनामी में रखने का षडयंत्र रचते हैं वहीं दूसरी तरफ हमारे समाज की अधिकांश सामाजिक संस्थाओं में ऐसे लोग काबिज रहते हैं जिनका न तो मानसिक स्तर ऐसा होता है व नहीं इनके जीवन की राह ही इन महापुरूषों की महता को समझने में सक्षम होता है। इसके कारण ये अधिकांश संस्थायें प्रायः अपने महापुरूषों को न तो याद करते हैं अगर कोई एकाद ने उस महापुरूष को याद भी कर लिया तो वे समाज में जनहित के कार्यो में लगे वर्तमान क्रांतिकारियों को सम्मान देने के बजाय महापुरूषों के आदर्शो को रौंदने वाले राजनेताओं, धनपशुओं आदि को मंचासीन करके महापुरूषों को ही एक प्रकार से अपमान करने का कार्य एक प्रकार से कर देते है। इसी कारण देवभूमि व मनीषियों की भूमि समझी जाने वाली उत्तराखण्ड में राज्य गठन के बाद ऐसी जनविरोधी व सत्तालोलुपु हुक्मरान सत्तासीन हुए जिनके कृत्यों व कुशासन से विश्व में अपनी ईमानदारी व कर्मठता का परचम फेहराने वाले उत्तराखण्ड आज इन 12 सालों में देश का सबसे भ्रष्टत्तम राज्यों में एक हो गया है।
25 जुलाई को गढ़वाल भवन दिल्ली में दिल्ली की सबसे पुरानी संस्थाओं में से एक टिहरी उत्तरकाशी जनविकास परिषद ने श्रीदेव सुमन का बलिदान दिवस मनाया। संस्था के अध्यक्ष गंभीर सिंह नेगी व सभा के संचालक दाताराम जोशी के अनुसार उन्होंने इस कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री व चंद दिन पहले तक टिहरी उत्तरकाशी के सांसद रहे विजय बहुगुणा व केन्द्रीय राज्य मंत्री हरीश रावत सहित अनैक जनप्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया था। परन्तु इस आयोजन में उत्तराखण्ड क्रांतिदल के शीर्ष नेता काशीसिंह ऐरी, प्रताप नगर के विधायक विक्रम नेगी, समाजसेवी जोध सिंह बिष्ट, रेल के अधिकारी श्री लोहानी सहित अन्य समाजसेवियों ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। संस्था के पदाधिकारी सभा में आश्वासन देते रहे कि हमारे नेता आने ही वाले है परन्तु अंतिम समय तक इनके स्वनाम धन्य नेताओं ने इस सभा में आ कर श्रद्धेय सुमन को अपनी श्रद्धांजलि देने की जरूरत नहीं समझी। या तो नेता भी श्रीदेव सुमन की महता को अभी तक न समझे हों या वे आयोजकों की महता। हालांकि मुझे विश्वास था कि मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा अगर दिल्ली में हैं तो यहां पर अवश्य आयेंगे क्योंकि उन्होंने चंद महिनों के अंदर ही टिहरी उत्तरकाशी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा उप चुनाव में अपने कांग्रेसी प्रत्याशी को चुनावी समर में उतारना है। परन्तु वे भी नहीं आये। परन्तु सभा में कई अग्रणी आंदोलनकारी व समाजसेवी चिंतक थे परन्तु सभा के आयोजकों को उनकी सुध लेने की फुर्सत तक नहीं। लगता है ये आयोजक श्रीदेव सुमन को स्थान विशेष तक उनको सीमित रखना चाहते। जबकि श्री देव सुमन क्षेत्र, जाति, धर्म से उपर उठ कर पूरे मानवीय समाज व देश की लोकशाही के लिए समर्पित रहे। यहां सवाल केवल टिहरी उत्तरकाशी जनविकास परिषद का नहीं अपितु अधिकांश उत्तराखण्डी संस्थाओं का है। श्रीदेव सुमन को समझने वाला और मानने वाला आदमी कभी लोकशाही को थोपशाही का तथा लोकशाही को अपने निहित स्वार्थो -सत्तालोलुपता के लिए रौंदने वालों को उनके बलिदान दिवस पर कभी अतिथि बनाने व सम्मानित करने की अक्षम्य भूल नहीं करता। परन्तु देखने में यह आ रहा है कि हमारे समाज के अधिकांश सामाजिक संगठनों में को श्रीदेव सुमन या चन्द्रसिंह गढ़वाली या बाबा मोहन उत्तराखण्डी जैसे अमर सूपतों के विराट व्यक्तित्व से नहीं अपितु लोकशाही व जनहितों को रौंदने वाले नेताओं के गले में माला डाल कर व उनके साथ तस्वीर खिंचा कर अपने तुच्छ अहं को तुष्ट करने के अलावा किसी से कुछ सरोकार नहीं है। सामाजिक संगठन तो एक तरफ हमारे बुद्धिजीवी समझे जाने वाले पत्रकार संगठन व प्रथम श्रेणी के अधिकारियों की तथाकथित बड़ी संस्थाओं की इस प्रकार की शर्मनाक ेप्रवृति देख कर समाज के इस घोर पतन का सहज ही अहसास हो जायेगा। जिस समाज में समाज व मूल्यों के लिए समर्पित लोगों के बजाय समाज के हितों को रौंदने वाले गुनाहगारों को सम्मानित करने की प्रवृति रहती वह समाज कभी न तो सम्मान अर्जित कर पाता है व नहीं आगे बढ़ पाता है। यही कारण है कि उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाबजूद 12 सालों में उत्तराखण्ड के अब तक के सत्तालोलुपु हुक्मरानों ने न तो प्रदेश के सम्मान को मुजफरनगर काण्ड में रौंदने वाले राव-मुलायम के प्यादों को दण्डित करा पाये व नहीं प्रदेश के हक हकूकों की ही रक्षा कर पाये। उल्टा प्रदेश के सम्मान को रौंदने के लिए जनता के दिलों में खलनायक बन गये मुलायम व उनके कहारों के साथ गलबहियां करके प्रदेश के जख्मों को कुरेद कर रौदने का अक्षम्य अपराध करने का दुशाहस जरूर करने की होड़ कर रहे हैं। दुर्भाग्य यह है कि हमारे लोगों में ऐसे गुनाहगारों की आरती उतारने की होड़ लगी है। इसी कारण आज उत्तराखण्ड शराब, बांध व बाघों से बर्बाद किया जा रहा है और हमारे सामाजिक संगठन इन्हीं गुनाहगारों को माल्यार्पण करके उनकी जनगणमन करने में लगे हैं।
nice note about the shri dav suman
इस महान क्रांतिकरी को हमारा सत अत नमन ।
अमर शहीद श्रीदेव सुमन को मेरा शत शत नमन
srdhye suman ji ko hamara sat sat naman.
Very nice shridev suman…….. I love uttarakhand……
अमर शहीद श्रीदेव सुमन को मेरा शत शत नमन
Shri dev Suman ko sat sat naman
I love my uttrakhand & tehri
l love my uttarakhand
I LOVE MY UTTArAKhAnD
Sat sat naman karta hu mai es veer saput ko jai hind jai uttrakhand …..
amar sahid shridev suman ko mera salam
अमर शहीद श्री देव सुमन को मेरा शत – शत नमन
सत् सत् नमन वीर शहीद श्री देव सुमन को
Plz koi sridev suman ki likhi hui kavita share kr do… Plz its urgent
जन नायक को शत् शत् नमन
Sat sat naman Swatantra senani Sri sridev Suman ji ko..garv mahasus hota h ..hamari or se hum 15 August or 26 January k awasar pr shradhanjali arpit krte Hain. Jai Hind.Jai Tehri Garhwal..Jai Bharat.