हिमालय का सौन्दर्य जितना आकर्षक है उतनी ही सुन्दर प्रेम कहानियां यहां की लोक कथाओं और गीतों में दिखाई देती हैं। उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में प्रेम कहानियां लोकगथाओं के रूप में जन जन तक पहुंची हैं, हालांकि यह अधिकतर राजघरानों से जुड़ी हैं लेकिन वह आम आदमी तक प्यार का संदेश छोड्ने में कामयाब रही हैं, हरूहीत और जगदेच पंवार की कहानी तो है ही रामी बौराणी का अपने पति के इंतजार में सालों गुजारना उसके समर्पण को दर्शाता है, इन सबसे बढ्कर राजुला मालूशाही की अमर प्रेम कथा है जो प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। उत्तराखण्ड की लोककथाओं में प्रेम कथाओं का विशेष महत्व हें यह लोक गाथाओं के रूप में गाई जाती है, हालांकि अलग अलग हिस्सों में इन कहानियों को अपनी तरह से लोक गायकों ने प्रस्तुत किया है लेकिन जब समग्रता से इसे देखते हैं तो कुछ कहानियां ऐसी हैं जिन्होंने उन पात्रों को आज भी गांवों में जीवंत रखा है। यहां प्रचलित कहानियों की पृष्ठभूमि में विषम भौगोलिक परिस्थितियों से उपजी दिक्क्तें साफ झलकती हैं। राजुला मालूशाही की गाथा कितनी अमर है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है साइबर युग में जहां प्रेम की बात संचार माध्मों से हो रही हो वहां भोट की राजुला का वैराट, चौखुटिया आने और मालूशाही का भोट की कठिन यात्रा प्रेमियों का आदर्श है।
कुमाऊं और गढ्वाल में प्रेम गाथायें झोड़ा, चांचरी, भगनौले और अन्य लोक गीतों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सुनी सुनाई जाती रही हैं, मेले इनको जीवन्त बनाते हैं। राजुला मालूशाही पहाड् की सबसे प्रसिद्व अमर प्रेम कहानी है। यह दो प्रेमियों के मिलन में आने वाले कष्टों, दो जातियों, दो देशों, दो अलग परिवेश में रहने वाले प्रेमियों की कहानी है। सामाजिक बंधनों में जकड़े समाज के सामने यह चुनौती भी थी। यहां एक तरफ बैराठ का संपन्न राजघराना है, वहीं दूसरी ओर एक साधारण व्यापारी, इन दो संस्कृतियों का मिलन आसान नहीं था। लेकिन एक प्रेमिका की चाह और प्रेमी का समर्पण पेम की एक ऐसी इबारत लिखता है जो तत्कालीन सामाजिक ढ्ाचे को तोड्ते हुए नया इतिहास बनाती है।
राजुला मालूशाही की जो लोकगाथा प्रचिलत है वह इस प्रकार है- कुमांऊं के पहले राजवंश कत्यूर के किसी वंशज को लेकर यह कहानी है, उस समय कत्यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान चौखुटिया थी। जनश्रुतियों के अनुसार बैराठ में तब राजा दुलाशाह शासन करते थे, उनकी कोई संतान नहीं थी, इसके लिए उन्होंने कई मनौतियां मनाई। अन्त में उन्हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ (बागेश्वर) में शिव की अराधना करे तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो सकती है। वह बागनाथ के मंदिर गये वहां उनकी मुलाकात भोट के व्यापारी सुनपत शौका और उसकी पत्नी गांगुली से हुई, वह भी संतान की चाह में वहां आये थे। दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड्का और लड्की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगें। ऐसा ही हुआ भगवान बागनाथ की कृपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआ, उसका नाम मालूशाही रखा गया। सुनपत शौका के घर में लडकी हुई, उसका नाम राजुला रखा गया। समय बीतता गया, जहां बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा वहीं भोट में राजुला का सौन्दर्य लोगों में चर्चा का विषय बन गया। वह जिधर भी निकलती उसका लावण्य सबको अपनी ओर खींचता था।
पुत्र जन्म के बाद राजा दोलूशाही ने ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य पर विचार करने को कहा। ज्योतिषी ने बताया कि “हे राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है, इसका निवारण करने के लिये जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करना होगा।” राजा ने अपने पुरोहित को शौका देश भेजा और उसकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपति तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही के साथ कर दिया। लेकिन विधि का विधान कुछ और था, इसी बीच राजा दोलूशाही की मृत्यु हो गई। इस अवसर का फायदा दरबारियों ने उठाया और यह प्रचार कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आयेगी तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिये मालूशाही से यह बात गुप्त रखी जाये।
धीरे-धीरे दोनों जवान होने लगे….राजुला जब युवा हो गई तो सुनपति शौका को लगा कि मैंने इस लड़की को रंगीली वैराट में ब्याहने का वचन राजा दोलूशाही को दिया था, लेकिन वहां से कोई खबर नहीं है, यही सोचकर वह चिंतित रहने लगा।
एक दिन राजुला ने अपनी मां से पूछा कि
” मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?”
उसकी मां ने उत्तर दिया ” दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीली वैराट”
तब राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी मां से कहा कि ” हे मां! मेरा ब्याह रंगीले वैराट में ही करना। इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौक के यहां आया और उसने अपने लिये राजुला का हाथ मांगा और सुनपति को धमकाया कि अगर तुमने अपनी कन्या का विवाह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे देश को उजाड़ देंगे। इस बीच में मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रुप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊंगा। यही सपना राजुला को भी हुआ, एक ओर मालूशाही का वचन और दूसरी ओर हूण राजा विखीपाल की धमकी, इस सब से व्यथित होकर राजुला ने निश्च्य किया कि वह स्व्यं वैराट देश जायेगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी मां से वैराट का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी मां ने कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, वैराट के रास्ते से तुझे क्या मतलब। तो रात में चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर राजुला रंगीली वैराट की ओर चल पड़ी।
वह पहाड़ों को पारकर मुनस्यारी और फिर बागेश्वर पहुंची, वहां से उसे कफू पक्षी ने वैराट का रास्ता दिखाया। लेकिन इस बीच जब मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात की तो उसकी मां ने पहले बहुत समझाया, उसने खाना-पीना और अपनी रानियों से बात करना भी बंद कर दिया। लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे बारह वर्षी निद्रा जड़ी सुंघा दी गई, जिससे वह गहरी निद्रा में सो गया। इसी दौरान राजुला मालूशाही के पास पहुंची और उसने मालूशाही को उठाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह तो जड़ी के वश में था, सो नहीं उठ पाया, निराश होकर राजुला ने उसके हाथ में साथ लाई हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने में रख दिया और रोते-रोते अपने देश लौट गई। सब सामान्य हो जाने पर मालूशाही की निद्रा खोल दी गई, जैसे ही मालू होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और उसे वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें लिखा था कि ” हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं।” यह सब देखकर राजा मालू अपना सिर पीटने लगे, अचानक उन्हें ध्यान आया कि अब मुझे गुरु गोरखनाथ की शरण में जाना चाहिये, तो मालू गोरखनाथ जी के पास चले आये।
गुरु गोरखनाथ जी धूनी रमाये बैठे थे, राजा मालू ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि मुझे मेरी राजुला से मिला दो, मगर गुरु जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद मालू ने अपना मुकुट और राजसी कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख को शरीर में मलकर एक सफेद धोती पहन कर गुरु जी के सामने गया और कहा कि हे गुरु गोरखनाथ जी, मुझे राजुला चाहिये, आप यह बता दो कि मुझे वह कैसे मिलेगी, अगर आप नहीं बताओगे तो मैं यही पर विषपान करके अपनी जान दे दूंगा। तब बाबा ने आंखे खोली और मालू को समझाया कि जाकर अपना राजपाट सम्भाल और रानियों के साथ रह। उन्होंने यह भी कहा कि देख मालूशाही हम तेरी डोली सजायेंगे और उसमें एक लडकी को बिठा देंगे और उसका नाम रखेंगे, राजुला। लेकिन मालू नहीं माना, उसने कहा कि गुरु यह तो आप कर दोगे लेकिन मेरी राजुला के जैसे नख-शिख कहां से लायेंगे? तो गुरु जी ने उसे दीक्षा दी और बोक्साड़ी विद्या सिखाई, साथ ही तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि हूण और शौका देश का विष उसे न लग सके।
तब मालू के कान छेदे गये और सिर मूड़ा गया, गुरु ने कहा, जा मालू पहले अपनी मां से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा में खाना खाकर आ। तब मालू सीधे अपने महल पहुंचा और भिक्षा और खाना मांगा, रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है, मालू ने उत्तर दिया कि मैं तेरा मालू नहीं एक जोगी हूं, मुझे खान दे। रानी ने उसे खाना दिया तो मालू ने पांच ग्रास बनाये, पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को दिया और पांचवा ग्रास खुद खाया। तो रानी धर्मा समझ गई कि ये मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंचग्रासी था। इस पर रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू क्यों जोगी बन गया, राज पाट छोड़कर? तो मालू ने कहा-मां तू इतनी आतुर क्यों हो रही है, मैं जल्दी ही राजुला को लेकर आ जाऊंगा, मुझे हूणियों के देश जाना है, अपनी राजुला को लाने। रानी धर्मा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन मालू फिर भी नहीं माना, तो रानी ने उसके साथ अपने कुछ सैनिक भी भेज दिये।
मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुंचा, उस देश में विष की बावडियां थी, उनका पानी पीकर सभी अचेत हो गये, तभी विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को अचेत देखा तो, उसे उस पर दया आ गई और उसका विष निकाल दिया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुंचा, वहां बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खी पाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने अलख लगाई और बोला ’दे माई भिक्षा!’ तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ’ले जोगी भिक्षा’ पर जोगी उसे देखता रह गया, उसे अपने सपनों में आई राजुला को साक्षात देखा तो सुध-बुध ही भूल गया। जोगी ने कहा- अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहां कहां से आ गई? राजुला ने कहा कि जोगी बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं, तो जोगी ने कहा कि ’मैं बिना नाम-ग्राम के हाथ नहीं देखता’ तो राजुला ने कहा कि ’मैं सुनपति शौका की लड़की राजुला हूं, अब बता जोगी, मेरा भाग क्या है’ तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा ’चेली तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीली वैराट का मालूशाही था’। तो राजुला ने रोते हुये कहा कि ’हे जोगी, मेरे मां-बाप ने तो मुझे विक्खी पाल से ब्याह दिया, गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया’। तो मालूशाही अपना जोगी वेश उतार कर कहता है कि ’ मैंने तेरे लिये ही जोगी वेश लिया है, मैं तुझे यहां से छुड़ा कर ले जाऊंगा’।
तब राजुला ने विक्खी पाल को बुलाया और कहा कि ये जोगी बड़ा काम का है और बहुत विद्यायें जानता है, यह हमारे काम आयेगा। तो विक्खीपाल मान जाता है, लेकिन जोगी के मुख पर राजा सा प्रताप देखकर उसे शक तो हो ही जाता है। उसने मालू को अपने महल में तो रख लिया, लेकिन उसकी टोह वह लेता रहा। राजुला मालु से छुप-छुप कर मिलती रही तो विक्खीपाल को पता चल गया कि यह तो वैराट का राजा मालूशाही है, तो उसने उसे मारने क षडयंत्र किया और खीर बनवाई, जिसमें उसने जहर डाल दिया और मालू को खाने पर आमंत्रित किया और उसे खीर खाने को कहा। खीर खाते ही मालू मर गया। उसकी यह हालत देखकर राजुला भी अचेत हो गई। उसी रात मालू की मां को सपना हुआ जिसमें मालू ने बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं। तो उसकी माता ने उसे लिवाने के लिये मालू के मामा मृत्यु सिंह (जो कि गढ़वाल की किसी गढ़ी के राजा थे) को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हून देश भेजा।
सिदुवा-विदुवा रमोल के साथ मालू के मामा मृत्यु सिंह हूण देश पहुंचे, बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर उन्होंने मालू को जीवित कर दिया और मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगाया और फिर इसके सैनिको ने हूणियों को काट डाला और राजा विक्खी पाल भी मारा गया। तब मालू ने वैराट संदेशा भिजवाया कि नगर को सजाओ मैं राजुला को रानी बनाकर ला रहा हूं। मालूशाही बारात लेकर वैराट पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम से शादी की। तब राजुला ने कहा कि ’मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी राजुला हूं और जो दस रंग का होगा मैं उसी से शादी करुंगी। आज मालू तुमने मेरी लाज रखी, तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो। अब दोनों साथ-साथ, खुशी-खुशी रहने लगे और प्रजा की सेवा करने लगे। यह कहानी भी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन इतिहास में जड़ गई कि किस प्रकार एक राजा सामान्य सी शौके की कन्या के लिये राज-पाट छोड़्कर जोगी का भेष बनाकर वन-वन भटका।
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Very good writing….I’m very happy…..i love u mere dost…..
बढिया संकलन है .. बहुत अच्छा लगा .. पर शीर्षक अंग्रेजी में क्यूं ??
मालूशाही पर लिखी गई बहुत से लेख , किताबों आदि में बहुत सी बिसंगितायां पाइ गइ हैं । आपका संकलन भी अछूता नहीं। इस विषय पर मुन्स्यारी के डा. शेर सिंह पागती जी की इसी विषय पर एक पुस्तक में सविस्तार लिखा है । कृपया उसे अबष्य देखे।
जो बातें मुझे खटक रही है वहा है कि सुमपति सौका को हुन देश का बताया गया है वह बिल्कुल गलत है।
दूसरी बात उसे एक साधारण सौका व्यापारी कहा गया है वहा भी गलत है।
अतः कृपया डा.शेर सिंह पांगती, जिन्होने इस विषय पर काफी शोध किया है, के पुस्तक को पढ़े और उचित सुधार करें।
Lot of thanks to this story writer .I hope in future you will search our old stories and introduse to all pahari people . I am very happy from this mera pahad blog .because it a most important property for comming genration .
thanks for this story writer.
IS KAHANI MEIN JO RAJKUMARI RAJULA JI HAIN UNAKE SATH BADA HI ANYAY
KIYA GAYA HAIN KI PANDIT KE KAHANE MAIN AAKAR UNAKI NAV JAT
STITHI MEIN VIVAH KARA DIYA GAYA
MEIN IS BAAT SE SAHAMAT NAHI HOON.
(UPASANA MISHRA)
MUMBAI(VIKHROLI)
I am always excited to visit this blog in the evenings..It is very entertaining.
thank you Pankaj aap ne dil chu liya yaar mera.
so nice story. i like it.
राजुला-मालूशाही उत्तराखंड की एक अमर प्रेम गाथा है. ये आज भी कत्यूरी देवता के रूप में पूजे जाते हैं. इस कहानी को अपनी कविताओं के माध्यम से श्री जुगल किशोर पेटाशाली जी ने एक अमूर्त रूप प्रदान किया है. उनकी इस पुस्तक का नाम “राजुला-मालूशाही” है.
great love story ….love it….proud to be kumauni….
thanks very much… i had heard of the love-story of Rajula-Malushahi, but was really nice reading the whole story here…
thanx.. bhut he achi lagi par .. aik (Malu and Raja Haru Hit) bhi jo Almora ke salt mai (Tala Salt mai rhte thei) ye khani unse kaphi milti julti hai…… sime bhi Malu Bhot ki hoti hai… bus bhaig time nahi milta —–lekin koshi karunga ki aap logo ko malu and Raja Haru Hit ki story batounga wo bhi aik amar pyar khani hai …almora distt mai is nayay (judge) devta bhi khta hai ..
thanks for this lovely story.
i am happy from MERA PAHAD blg ,thanks to all MERA PAHAD family..best regards ,ROSHAN BHATT
MERA PAHAD PARIWAR KO DHANAYABAD
ye kahani mene bachpan me suni thi apne .ise sunne se hume humare purane log yaad aate hai .me thank kahana chahata un sabhi ko joinhone ye story aaj tak jeevit rakhi hai.
इस पौराणिक कहानी में जादू-टोना, रहस्य, रोमांच, प्यार-नफरत और एक्शन सहित ऐसे कई तत्व हैं जिनको देखकर ऐसा लगता है कि इस विषय पर एक अच्छा धारावाहिक या फिल्म बन सकती है..
Mera Pahad Uttrakhand
sach mai,aisa lagta hai jaise ki dur -dur se log es amar prem kahai ko sunne ke liye mere paas aa raha ho, kyo ki mere kahaniyo se bahut bada lagav hai….
evergreen true love story of Rajula & Malushahi…….
Pratap Singh Rawat
Distt:- Almora,
Gram:- Rudoli:-Talla Chakout
State:-Uttrakhand
Hello sir thanks to nice story sir mein aapse 1 baat aur kehna chahta hu aapne is kahani ko toh bahut achha likha hai magar is kahani padh kar mujhe santosh nahi hua plz sir meri aapsse 1 req hai aap is kahani ko pura likhe jisse ki hume is kahani mein padhne aur sikhne k liye aur bhi mile..
jaise ki jab malushshi rajula ko lene gaya toh uske raaste mein use bahut kathinaiyon ka samna bhi karna pada hoga un kathinyaion k baare mein aap hume bataye …
aur mene jaha tak suna hai is kahan mein jaadu tona aur bhi bahut kuch romaanchit path hai plz sir aap is sab ki jaankaari ekatarirt ka l prastuth kare..
yaa sir aapke pass agar raju;a malushahi ki sampurn prem katha hai toh sir mera aapse nimar nivedan hai plz sir aap usse mujhe mail kar de..
mein aapka bahut abhari rahunga
Subhash Tiwari
Thanks sir it is the nice story. But We want to know in detail regarding this story
Mujhe is kahani ke baare mai jyada jankari to nahi hai, per jo bhi hai kahani badi achchhi lagi.
So is kahani ko prastut karne ke liye aapka bahu-bahut dhanyabad.
Main gaun ja ke Dada ji se is kahani per charcha karunga.
From,
Chandan Mehta,
Anarsa, Bageshwar.
Himachal
hi
dear all “family of mera pahad ”
by this story i think i find too much hidden things bcz i knew only a garwali song “rajuli re ”
before reading this story
and i always find a great enviorment of uttarakhnd on this site although we r not in garwal
by this site we can always feel the freshness, joy, beauty and can also refresh all the old memories of my pahad
thaks very much to this site and for well done job . i hope we’ll do better then this in future
“I PROUD TO BE A PAHARI AND THE MEMBER OF MERA PAHAD”
DEEPAK
Thanks for nice & useful story
very good love story,I like such type of love story,
Thanks
chatur lal
someshwar(dist-Almora) uttrakhand
kahani achchhi lagi..
very Good Love Story, I like !
Namaskar,
Rajula Malashahi ki prem katha bahut romanchak lagi,padkar jankari me ijafa hua, vakai me pahad ke es sachhe prem ki gatha pr TV Sireal bana kar pure BHART me es AmerPrem gatha ko dikhana chahiye. Thanks
Thanks, for this . U just remember our past by this story. Thanks. Team
uper di gayi “rajula malushai” ki katha pari or iska gyan hua.maine abhi kuch samay pahle ranikhet se kuch dvd li thi jis main rajula malushai bhi thi per usmain kahani kuch or thi (dono ko mara dikhya tha).hw this? un dvd main se haruheet or rajula malushai dekh kar confusion ho gaya tha.
badi kahani ko choti kar ke accha laga . siduwa biduwa aaj tak puje ja rahe hai . jai siduwa baba ki ..namaskar
i like very Good Love Story !
story bohot achhi thi sir pr mujhe sidhnath or vidhnath k bare m or janna h wo hamare ishtdev h pr unki jitni jankari mujhe h wo kafi nhi h
yo prem kahanik varnan muku aur myr saru dagada ku bhhottte bhal lagol…. aur humr binti chhuu samast dajyu ayr dida se ki apand comment ma jitu ho sakni gadhmuni(gadhwali-kumauni) bhasa ka prayog kardhein…. dhanyabaad
apandu uttaranchal pyaru uttaranchal…! humr devbhoomik ek premgatha bhhotteee! hridye ko chhu go dida…. mann chhuu go
Hi,
Thanks for this useful website.
I Love my uttranchal, I want to know about RAJA HARU SINGH HEET history.
thanks
A romantic love story of Uttarakhand. A popular TV serial can be prepared on this real story of Rajula Malushahi . Our present Pahari generation and rest of India must know about this Amar Prem Kahani and I hope that this can be possible through Media and serials.
Raja Malushai story very sepence. A romantic love story of Uttarakhand. A popular serial can be prepared on this real story of Rajula Malushahi . Our present Pahari generation and rest of India must know about this Amar Prem Kahani and I hope that this can be possible through
Read more: http://www.merapahad.com/rajula-malushahi-immortal-love-story-of-uttrakhand. I throughout is rajula malshahi story.
nice story but not well…
First of all thanks for this story, but we are missing somer parts of this story but i want to know about whole part of this story so provide to us.
Thanks
Sonu Rawat
Love goodsong
Very nice!!!!!!!!!!!!
Its a very interesting story,i like very much.
This is a very interesting story,i like very much.
राजुला मालुशाही ki book kha melige jra bta dina miri ko to nhee mele
Mani to yha khane sume hi par kbhe bhee keetap nhe dhikhe
thi$$$$ love tory i really $o $weet nd romantic nd great part of uttarakhand hi$tory
thi$ love $tory i$ really $o $weet nd romantic nd great part of uttarakhand hi$tory…….
मैँने यह कहानी पढी बहुत अच्छी है
I £ike it. . . . I £v my £v. 2
Thank you so much. I chanced upon this love story while searching for history of Uttarakhand.
Just got information that a utranchali movie RAJULA has been produced. But could not connect with the word Rajula. Then entered this word in google and got information about this website. After surfing got knowledge of the love story of Rajula Malusahi from where the word Rajula has been taken. Thanks for the information I love it.
sir aapke pass agar Haru heet ke history hai toh sir mera aapse nimar nivedan hai plz sir aap usse mujhe mail kar de..
mein aapka bahut abhari rahunga
राजुला मालुशाही की कथा हामरा गढवाल मा पवढोँ मा गये जादिन तब सुणि छै या कथा पर आप द्वारा फेस बुक का माध्यम से पूरी कथा पढिकि बहुत अच्छु लगी गौँ की पुरणी याद ताजा होईगे
बहुत अच्छा लगा
Bhut achi story.awesome collection.thankyou mera pahad
Simply great work!!!!!!!!!
es story m raja malushai ar rajula merr jate hai y tho batay hi nhai
Nice
Nice love story
Nice story heart to lung—
First of all thanks for this story, but we are missing somer parts of this story but i want to know about whole part of this story so provide to us.
Thanks
prahlad rana
मेरा पहाड़”” मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?”
उसकी मां ने उत्तर दिया ” दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीली वैराट”
waaw what a story…
thanks to writer and mera pahad .com
evergreen love story..:-)
superb collection & inspiring motivating stories
बहुत ही सरहनीय ब्लोग लिखा है आपने..उम्मीद है की इसी तर्ज पर आप और भी ब्लोग लीखॆगे।
inspiring and heart touching love story. i like it.
bahut achha laga pad ke
I love this story very much, this is a famous love stoey of our Uttaranchal, but this is incomplete, please read that book which is written by Dr Sher Singh Pangtey sahab. who has done lot of work and research on this, ,
It is a real story……….. and i proud that i born in this state uttrakhand. where raja malusahi and rajula born.
hai bagnath dev kya rajula malusahi phir janam hoga .
phir ek bar janam le lo rajula malusahi.phir ek bar amar hojaooo aaj pyar ki paribasa sirf paisa hai jaath pat hai unch nich hai.amir garib hai phir ek bar inlogon ko bata do ki pyar ki koi paribasa nhi jath path nhi hai. phir ek bar janam le lo ye mahan atmaon……
rajula malushahi story is very nice ……………… ab aisa pyar kahan aur aise insaan kahan ………….. koi pass rehke bhi pyar ko nhi paata ye to mahan the jo dur rehekar bhi ek dusre ko dekh lete………aur apna apna dard share karlete ……… nice story and nice movie …………………..dil bar aaya miss u both of them.
jai uttaranchal dev bhoomi
Pdh kr ati sundr lga
thanks for this lovely story..
Nice story
Nice story.
i like this
Really thanks a lot to author…. aaj tak sirf suna tha log geeto main raja Malu & Rujala k baare main. padh kar bahut hi acha laga apni sanskriti ki ye amar katha.
This is a real story of Kumaon before five hundred year ,when power was in hand Chanda but the western part from Ramganga is in hand of Katur .The prince Maloooshahi was son of Dule Shahi ,He reach boarder of Uttrakhand to wed with Rajula .As per folk lore he could not get success ,Rajula father was a leader of his community and were successor.of Saka who had accepted Hinru religion ..The successor of Kature are been living in western part of Ramganga river and Rajula was daughter of saka or Shoka this love story had made as relation between .Her father place is near Munsiyari
In year1398 the Tamurlang had looted in Meerut than tne King of Haridwarmade a request King of Askot to wed his daughter Maula Davi so he could protected her from Tamur .King did not go but he had send his nephew Haridwar to bring his aunt but there a love has flourish between and the Maula Dave not went Askot and had been lived in RaniBagh and in end of his time the Preetan Dav had called MaulaDavi in Askot .He handed over his minor son to Maula dave .Mauladave took Dulesahi ih Birat and she nurse Dule Sahi.the Malosahi was son of Dulesahi so the time of this love story was taken place around 15th century
nice story ase hi hmare uttrakhand ki anek story h bt hmare uttrakhand ke kaam ,logo ko hi iska pta h
kya koe mere help kar sakta he mughe kumoun ke jagar ya un ke kahaneya chahe ye the kya koe bata sakta he ke ye ketabe mughe kaha melege , mughe (sem raja ke kahane chaheye the )
Dear Writer,
Thank you for sharing such a beautiful story with us.
कहानी बड़ी मस्त हैं यार !
इसका किताब जरूर पढना चाहिए!!
पर। सुनपत शौका सात सूप पैसे हुण से खाता है इसका वर्णन इस कहानी मैं
किया ही नहीं गया है।
Ye bat samajh ni aayi, munsyari se bageshwar…munsyari last town kumaun
Bahut achhi achhijankari dene ke liye apka dhanyabad
aap isi tarah apni kala sanskriti sanshkaron ka isis tarah prachar prasar karte rahain hamari yahi kamna hai
धन्य हैं उत्तराखंड. धन्य हैं यहाँ की संस्कृति
Jay Hind, Om Hari Har
Very good, nice love story thenks for you.
Mujhe yeh kahani acchi lagi.
mai eisi story pasand karta hu
Bahut aachi sanklan hai.. Thank You.
Hi
I need book of Haru heet which is written by Kheemanand Sharma in Kumauni language.
Thanks
Rajendra Prasad
Please help me out for Haru Heet’s Books
tnx
Kya in 2 ruho ne punarjanam le liya hoga.agar le v liya hoga to log manenge nhi?
Sir ye हुर्ण देश कहाँ पड़ता है ?
It’s a very romantic love story full of thrill.It is true that love never dies.We have many legend stories and rajuli-malushahi is one of them.Our’s have been the great history for centuries.I think we should respect this true love story. Sushil mall Gauchar,chamoli
बचपन में बुजुर्गों से सूनी कहानी में बताया जाता था कि राजा धर्मपाल और सुनपत शौक की मुलाकात हरिद्वार कुम्भ मेले में हुई थी. राजुला के वैराठ से वापस जाने के बाद जब मालूशाही की निद्रा टूटी तो फिर नौ लाख कत्युरो की सेना भोट गई जहाँ उन्हें धोखे से मारने की कोशिश हुई. जनकवि चिंतामणि नए लिखा है. “तौल भांजी बेरा मुनढा बनानी, पांडिया भांजी बेरा चिमटा बनानी, नौ लाख कत्युरा तब अलख जगानी.”
बागेशर के उत्तरैंणी के पौराणिक मेले में उनकी मुलाकात हुई थी क्योंकि बागेशर का मेला ही कुमाऊं का प्राचीन और पौराणिक मेला रहा है।
आपने यह भी सुना होगा, गंग नान बागेसर,, द्याप्ता देखण जागेशर
This is a real story of Kumaon before five hundred year ,when power was in hand Chanda but the western part from Ramganga is in hand of Katur .The prince Maloooshahi was son of Dule Shahi ,He reach boarder of Uttrakhand to wed with Rajula .As per folk lore he could not get success ,Rajula father was a leader of his community and were successor.of Saka who had accepted Hinru religio
जय हो राजा वैराठ
राजुला मालुशाही की प्रेमगाथा पढी यह सत्य् है जै हो गेली गिवाङ सेली सिमार नौलाख कन्थापुरी(लखनपुर) तुम्हारी जै हो कत्यूरो।
need book of haruhit & malusai
Raaljula or malushahi ki love story padh kar acchha laga. Ye kahani hame uttrakhand ke etihas ke bare main batate gain. Thanks
बहुत बहुत धन्यवाद जी अपका अपने बहुत अछि तरह समझया और बहुत जल्दी 1 गीत मे कुछ सब्द लेके बनाने की सोच रहा हूँ धन्यवाद अपका
शाही ओर क्तूरी राजाओ के इतिहास पर जोर दो सर थोड़ा
nice