उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के पहाड़ में पहले खेलों के लिये परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ साधन नहीं थे, बचà¥à¤šà¥‡ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ संसाधनों पर खेल बनाकर खेला करते थे, जो आज पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ नहीं हैं। आज कमà¥à¤ªà¥à¤¯à¥‚टर और सà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤Ÿ फोन के यà¥à¤— में यह खेल कहीं खो से गये हैं, लेकिन खेलों में à¤à¥€ पहाड़ की सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ बनी रही है, इस लेख से माधà¥à¤¯à¤® से कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ खेल याद किये जा रहे हैं।
बाघ-बकरी यह उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ का काफी पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ खेल है, हालांकि इन खेलों से अब नई पीढी परिचित नहीं है। इसमें मैदान या किसी पतà¥à¤¥à¤° पर à¤à¤• तà¥à¤°à¤¿à¤à¥à¤œà¤¾à¤•à¤¾à¤° आकृति उकेरी जाती है और à¤à¤• बाघ और तीन बकरियों से यह खेल खेला जाता है। बाघ तà¥à¤°à¤¿à¤à¥à¤œ के ऊपर यानि जंगल में रहता है और बकरियां तà¥à¤°à¤¿à¤à¥à¤œ के बाद à¤à¤• गोठमें, इसमें बाघ और बकरी à¤à¤•-à¤à¤• घर बà¥à¤¤à¥€ हैं और यदि बाघ ने तीनों बकरियां खा लीं तो उसे विजेता मान लिया जाता है { मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ इसमें तीन घर à¤à¤• लाइन में होते हैं, माना सबसे ऊपर वाले घर में बाघ है और बीच में बकरी और सामने à¤à¤• घर खाली है तो बाघ को बकरी के ऊपर से कूदाकर खाली घर में रखा जाता है और माना जाता है कि बाघ ने बकरी खा ली}
अगर तीनों बकरियों ने मिलकर बाघ को बीच में फंसा लिया और बाघ के पास आगे बà¥à¤¨à¥‡ के लिये कोई घर खाली नहीं है तो बकरी वाले खिलाड़ी को विजेता माना जाता है।
लà¥à¤•à¤šà¥à¤ªà¥à¤ªà¥€à¥¤Â लà¥à¤•à¤šà¥à¤ªà¥à¤ªà¥€ (इस खेल को हिनà¥à¤¦à¥€ में छà¥à¤ªà¤¨à¥à¤›à¥à¤ªà¤¾à¤ˆ और अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में HIDE & SEEK कहा जाता है) में कई लोग शामिल हो सकते हैं और इसमें सà¤à¥€ खिलाड़ियों को छिपना होता है और à¤à¤• खिलाड़ी उन सà¤à¥€ को खोजता है। उसे “चोर” कहा जाता था, यदि वह सà¤à¥€ को खोज नहीं पाता है तो फिर से उसे चोर बनना पड़ता है। दूसरे खिलाड़ी को देख लेने पर वह “आईस-पाईस” कहता है, जिस खिलाड़ी को चोर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सबसे पहले देख लिया जाये, उसे अगली बार चोर बनकर सबको ढूंढना पड़ता है। सबसे पहले चोर बनने के लिये à¤à¤• गीत बोला जाता है, उस गीत के à¤à¤• शबà¥à¤¦ को à¤à¤• खिलाड़ी पर गिना जाता है और जिस खिलाड़ी पर गीत समापà¥à¤¤ होता है, उसे ही सबसे पहले चोर बनना होता था।
हम इस गीत का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते थे- “अकà¥à¤•à¥œ-बकà¥à¤•à¥œ बमà¥à¤¬à¥‡ बौ, असà¥à¤¸à¥€-नबà¥à¤¬à¥‡ पूरे सौ, सौ में लागा तागा, चोर निकल कर à¤à¤¾à¤—ा” जिस पर à¤à¤¾à¤—ा शबà¥à¤¦ आया, वही चोर……!
घà¥à¤šà¥à¤šà¥€-GUCHEE घà¥à¤šà¥à¤šà¥€ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में खेला जाने वाला सबसे पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ खेल है, हालांकि बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤—वार इस खेल को खेलने से हमेशा रोकते-टोकते हैं। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह à¤à¤• छोटा जà¥à¤† सा à¤à¥€ है, आइये जानते हैं इस खेल के बारे में-  इस खेल को दो या उससे अधिक लोग à¤à¥€ खेल सकते हैं, घà¥à¤šà¥à¤šà¥€ खेलने के लिये सबसे पहले à¤à¤• छोटा सा गढढा बनाया जाता है, जिसे पिल कहा जाता है, उससे १ मीटर की दूरी पर à¤à¤• लाइन खीची जाती है। सà¤à¥€ खिलाड़ियों को खेलने के लिये à¤à¤•-à¤à¤• सिकà¥à¤•à¥‡ की जरà¥à¤°à¤¤ होती है, इस लाइन पर खड़े होकर पहला खिलाड़ी सà¤à¥€ के सिकà¥à¤•à¥‹à¤‚ को à¤à¤• साथ पिल की ओर फेंकता है और जो à¤à¥€ सिकà¥à¤•à¤¾ पिल में चला जाता है, वह उसका हो जाता है, उसके बाद पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¥à¤µà¤¨à¥à¤¦à¥€ खिलाड़ी जिस सिकà¥à¤•à¥‡ पर मारने को कहे, (अडà¥à¤¡à¥‚-à¤à¤• गोल पतà¥à¤¥à¤° के टà¥à¤•à¥œà¥‡ से) यदि वह उस सिकà¥à¤•à¥‡ पर मार लेता है तो वह सिकà¥à¤•à¤¾ उसका हो जाता है और अगर नहीं मार पाता है तो वह हार जाता है, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ उसका सिकà¥à¤•à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¥à¤µà¤¨à¥à¤¦à¥€ ले लेता है और उसे खेलने के लिये दूसरे सिकà¥à¤•à¥‡ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ होती है।
ठिणी-दाबà¥à¤²à¥€ THINI-DABULI यह गà¥à¤²à¥à¤²à¥€ डंडा का उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ वरà¥à¤œà¤¨ है, इसमें à¤à¤• ठिणी बनाई जाती है, जो लकड़ी की बनी होती है और इसके दोनों छोर नà¥à¤•à¥€à¤²à¥‡ होते हैं, दाबà¥à¤²à¥€ à¤à¥€ लकड़ी से बनाई जाती है और इसका निचला छोर थोड़ा छिला होता है। किसी चौरस मैदान में à¤à¤• छोटा सा गà¥à¥à¤¢à¤¾ बनाया जाता है और सà¤à¥€ खिलाड़ी सरà¥à¤µà¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¯ तरीके से पहले खिलाड़ी को चà¥à¤¨ लेते हैं। पहला खिलाड़ी ठिणी को गà¥à¥à¤¢à¥‡ के ऊपर रखकर दाबà¥à¤²à¥€ से उसे उछालता है, अगर उसके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उछाली गई ठिणी किसी अनà¥à¤¯ खिलाड़ी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कैच कर ली जाती है तो वह आउट हो जाता है। अगर कोई ठिणी को पकड़ नहीं पाता खिलाड़ी अपनी दाबà¥à¤²à¥€ को गढà¥à¤¢à¥‡ के ऊपर रख देता है और पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¥à¤µà¤¨à¥à¤¦à¥€ खिलाड़ी ठिणी को दाबà¥à¤²à¥€ के ऊपर फेंकने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करता है। अगर ठिणी दाबà¥à¤²à¥€ के ऊपर गिरती है तो खिलाड़ी आऊट, अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ खिलाड़ी गढà¥à¤¢à¥‡ से ठिणी तक की दूरी को दाबà¥à¤²à¥€ से नापता है, जितनी दाबà¥à¤²à¥€, उतने की पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट…..इस खेल के कई अनà¥à¤¯ नियम à¤à¥€ हैं, जो मैं à¤à¥‚ल रहा हूं, फाउल होने पर à¤à¥€ खिलाड़ी को अतिरिकà¥à¤¤ मौका दिया जाता है, जिसमें वह ठिणी को ऊपर-ऊपर ही उछालता है और जितनी बार उछाल ले, उतने पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट और उसे मिलते हैं।
और à¤à¥€ कà¥à¤› था, à¤à¤¾à¤°à¥à¤°à¥‹, बांछो, सेमलà¥à¤¯à¤¾, सिलà¥à¤Ÿà¥‹
गिरा – कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ की हॉकी हॉकी à¤à¤¾à¤°à¤¤ का गौरव हà¥à¤µà¤¾ करती थी. धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ चाà¤à¤¦ को हॉकी का जादूगर कहा जाता था. आज हाकी की दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¤¾ हो चà¥à¤•à¥€ है. आंखिर हॉकी की इश दसा के लिठकौन जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° है? पहले हॉकी घर घर मैं खेली जाती थी. रानीखेत के गावों मैं हॉकी खेलने का अलग अंदाज़ था’ हॉकी बनाने के लिठपेड़ की à¤à¤¸à¥€ टहनी को काटा जाता था जो छड़ी की आकार की हो. यह उलà¥à¤Ÿà¥€ लाठी के समान होती थी. इसे हॉकी के रूप मैं पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— मैं लाया जाता था. घिंघारू की जड़ की हॉकी उतà¥à¤¤à¤® मानी जाती थी. कपड़े की सिलाई कर उसे बौल का सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª दिया जाता था. कà¥à¤› लोग बांस की जड़ की बाल बनाते थे. उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ के दिन मकर संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति को इसका फाइनल खेला जाता था. विजेता को इनाम मिलता था. खेल समापà¥à¤¤à¤¿ के बाद बौल तथा हॉकी को फैंक दिया जाता था. मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ थी की à¤à¤¸à¤¾ न करने वाले को पितà¥à¤¤ रोग हो जायेगा. मैदान कितना बड़ा या छोटा हो इसकी सीमा नहीं थी. खिलाडियोठकी à¤à¥€ सीमा नहीं थी. १०-१२ या à¥-८ लोग गिरा का खेल खेलते थे . आज à¤à¥€ गिरा का मेला चनà¥à¤²à¥€ सरपट मनà¥à¤¦à¤¿à¤° जो के घटà¥à¤Ÿà¥€ के पास है, चमरà¥à¤–ान के मेले के समापन के दिन गिरी का खेल खेला जाता है. इसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ बसंत पंचमी तक गिलà¥à¤²à¥€ डंडा खेला जाता है.
à¤à¤• और खेल जो गिरा की ही तरह होता था उसका नाम है सिमंटाई या सतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¥à¤¾à¤°à¥€. इसमें सात पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ से विकिट बनाया जाता था. कपड़े की बौल से विकेट गिराना होता था. विकेट कीपर ही खिलाड़ी को बौल मारकर आउट करता था. आज से सब खेल लगà¤à¤— समापà¥à¤¤ हो चà¥à¤•à¥‡ हैं. यदि हांकी को पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¥€à¤µà¤¿à¤¤ करना है तो इन खेलों को à¤à¥€ पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¥€à¤µà¤¿à¤¤ करना होगा
गà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€/पांछि/दाणि यह मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ महिलाओं का खेल है, इस खेल को पांच छोटे-छोटे पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ से खेला जाता है, इस खेल को पतà¥à¤¥à¤° उछाल-उछाल कर खेला जाता है। जिसमें से चार पतà¥à¤¥à¤° हाथ में रहते हैं और à¤à¤• नीचे, जो ऎसा नहीं कर पाता या जिससे पतà¥à¤¥à¤° गिर जाते हैं, वह हार जाती है। इसमें पांच दाणि (छोटे छोटे सà¥à¤¡à¥Œà¤² पतà¥à¤¤à¥à¤¥à¤°) होती है. पहले पाचों को नीचे गिराया जाता है. फिर à¤à¤•à¥‡ पतà¥à¤¥à¤° को ऊपर उछाल कर उसके नीचे गिरने से पहले à¤à¤• पतà¥à¤¥à¤° हाथ में उठाया जाता है और उछाले गये पतà¥à¤¥à¤° को कैच कर लिया जाता है. यदि पतà¥à¤¥à¤° गिर गया तो आउट. इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° सà¤à¥€ चार पतà¥à¤¥à¤° उठाये जाते है. फिर यही पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤• साथ दो , तीन और चार पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ को उठाने के लिये à¤à¥€ की जाती है.
इसके बाद आता है कोठा. इसमें बांये हाथ को जमीन में रख के कोठरी सी बनाते हैं. सारे पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ को नीचे गिरा लेते हैं. फिर à¤à¤• पतà¥à¤¥à¤° को ऊपर उछाल कर सारे पतà¥à¤¤à¥à¤¥à¤° à¤à¤• à¤à¤• कर कोठे में डालने होते हैं.
फिर कà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ . ..अंगूठे और पहली दूसरी ऊंगली को à¤à¤• दूसरे पर चà¥à¤¾à¤•à¤° बीच की जगह में से à¤à¤• à¤à¤• कर सारे पतà¥à¤¥à¤° निकाल लेते है..
लासà¥à¤Ÿ में होता है मà¥à¤Ÿà¥à¤ ा..
अडà¥à¤¡à¥‚ अडà¥à¤¡à¥‚ à¤à¥€ किशोरियों का ही खेल है, पतà¥à¤¥à¤° के à¤à¤• गोलाकार टà¥à¤•à¥œà¥‡ को अडà¥à¤¡à¥‚ कहा जाता है और मैदान में आठवरà¥à¤—ाकार खाने बनाये जाते हैं। खिलाड़ी को इस अडà¥à¤¡à¥‚ को à¤à¤• पांव पर उछल-उछल कर सà¤à¥€ खानों में पार कराना होता है। जो ऎसा नहीं कर पाता वह हारता है और जो सà¤à¥€ खानों पर अडà¥à¤¡à¥‚ को à¤à¤• पैर पर उछलकर पार करा लेता है, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है।
सिमनटाई इस खेल में सात पतà¥à¤¥à¤° à¤à¤• के ऊपर à¤à¤• करके रखे जाते थे और इसको à¤à¤• कपड़े की बाल से गिराना होता था, इस बीच विपकà¥à¤·à¥€ टीम बाल से दूसरे खिलाड़ी को मारती, जिस पर बाल पडती, वह आऊट और फिर यदि टीम इन सात पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ को फिर से à¤à¤• के ऊपर à¤à¤• रख लेती थी, उसी को विजयी माना जाता था।
ढडà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥‚ं की बनà¥à¤¦à¥‚क-ढढà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥‚ à¤à¤• कंटीला पौधा होता है, इसकी पतली डालियां अनà¥à¤¦à¤° से खोखली बनाई जा सकती हैं. इस खोखली नाल में ढढà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥‚ के बीज या कागज आदि डाल कर पीछे से à¤à¤• डणà¥à¤¡à¥‡ से इसे धकेलने पर यह तेजी से बाहर आता है-आवाज के साथ. यह कतई घातक नही होता, à¤à¤• हलà¥à¤•à¤¾-फà¥à¤²à¥à¤•à¤¾ मनोरंजन à¤à¤° है. अब शायद ही यह खेल कोई खेलता होगा.
इसके अलावा मà¥à¤°à¥à¤—ा à¤à¤ªà¤Ÿ, पकड़चà¥à¤ªà¥à¤ªà¥€, अंटी आदि कई खेल खेले जाते थे, किसी को याद हों तो कृपया कमेणà¥à¤Ÿ में पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ रहेगी।
à¤à¤• फà¥à¤°à¤«à¥à¤°à¥€ होता था, à¤à¤¾à¤‚ग के सूखे डंठल में कागज का पंखा सा बनाकर किलमोड़े के कांटे से फिकà¥à¤¸ किया जाता था और दौडने में वह पंखा चलता था।
à¤à¤¸à¥‡ ही पà¥à¤¯à¤¾à¤œ के शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤à¥€ पौधों से पीपरीबाजा à¤à¥€ बनता था।
oh this made me nostalgic