हिन्दू मान्यताओं के अनुसार हमारे जीवन में सोलह संस्कार होते हैं, जीवन के विभिन्न संस्कारों से संबंधित गीत हमारे उत्तराखण्डी समाज में भरे पड़े हैं, जिन्हें शकुन आंखर, मांगल गीत, फाग या संस्कार गीत कहा जाता है। जन्म से लेकर विवाह तक नामकरण, छठी, ब्रतबंद, गणेश वंदना, मातृका पूजन, जनेऊ संस्कार, कन्यादान आदि गीत हमारे समाज में सुने जाते हैं। ये गीत बिना किसी वाद्य की संगत के महिलाओं द्वारा गाये जाते हैं, प्रायः धुनें ताल रहित होती हैं। इन गीतों का किसी भी मांगलिक कार्यों में बहुत महत्व होता है, महिलाओं की टोली को विशेष रुप से इन मांगलिक कार्यों में फ़ाग गाने के लिये बुलाया जाता है, इन्हें फगारी भी कहा जाता है। प्रस्तुत हैं, कुछ संस्कार गीत-
शकूना दे, शकुना दे,
काज ये अती नींको सो रंगीलो,
पाटलो आंचली कमलौ को फूल।
सोही फूल मोलावंत, गणेश,
रामीचन्द्र, लछीमण, जीवा जन में,
जीवा जन में आद्या अमरु होय।
अमरु होय, सोही पांटो पैरी रैना,
सिद्धि बुद्धि, सीता देही, बहुरानी,
आई वान्ती पुत्र वान्ती होय,
सोही फूल मोलवन्ती,
(परिवार के पुरुषों के नाम)जीवा जन में आद्या अमरु होय,
सोही पाटो पैरी रैना,
सिद्धि-बुद्धि (परिवार की स्त्रियों के नाम)
किसी भी मांगलिक कार्य की शुरुआत गणेश पूजा से ही की जाती है, गणेश पूजा के समय निम्न फाग गाया जाता है-
जय जय गणपति, जय जय ए ब्रह्म सिद्धि विनायक।
एक दंत शुभकरण, गंवरा के नंदन, मूसा के वाहन॥
सिंदुरी सोहे, अगनि बिना होम नहीं,
ब्रह्म बिना वेद नहीं,
पुत्र धन्य काजु करें, राजु रचें।
मोत्यूं मणिका हिर-चौका पुरीयलै,
तसु चौखा बैइठाला रामीचन्द्र लछीमन विप्र ऎ।
जौ लाड़ी सीतादेही, बहुराणी, काजुकरे, राजु रचै॥
फुलनी है, फालनी है जाइ सिवान्ति ऎ।
फूल ब्यूणी ल्यालो बालो आपूं रुपी बान ऎ॥
मातृका पूजन के समय गाये जाने वाला मंगल गीत
कै रे लोक उबजनी नाराइन पूत ए?
कै रे लोक उबजनी माई मत्र देव ए?
नाराइनी कोख अबजनी माई मात्र देव ए।
माथी लोके उबजनी माई मात्र देव ए॥
कौसल्या रांणि कोखि, सुमित्रा रांणि कोखि,
उबजनी रामीचन्द्र, लछीमणे पूत ए।
माथी लोके उबजनी माई मात्र देव ए,
सीतादेहि कोखी, बहूरांणि कोखी उबजनीं।
लव-कुश पूत ए। बालकै सहोदरै पूत ए।
माथी लोकै उबजनीं माई मात्र देव ए।
दूलाहिण कोखी, बहूरांणि कोखी उबजनी,
बालकै सहोदरे पूत ए॥
ज्यूंति पूजा के समय गाये जाने वाला संस्कार गीत
मेरा ममा का कंस राजा का, ज्य़ोंति की पूजा
वै रे चैइनीं मोष्टिका फूल।
उति को उठो बालो मेरी बारुड़ी का घर।
बणै दे बारुड़ी बांस पिटारी,
उतिको उठो बालो मेरी भएड़ि का घर,
बणैं दे इजू छही ज्यूंनार।
हमु ले जांणों छ चौ गंग पार॥
आहो भांणिजा, ल्याहो भांणिजा,
मोष्टिका फुल ल्या।
मेरा ममा का कंस…….
क्वे त्वे बाबा रे बाटो बतालौ?
को त्वे बाबा रे जमुना लैखलो,
आंखा जोड़ी बाटा बताओ,
जंघा जोड़ी जमुना तैराला।
उति को उठो बालो मेरो नागिणीं का घर।
व्युंजा नागिणीं नाग आपणो।
मेरा ममा का…..
की तू बाबा रे मोस्यांणी लेछपाणीं कि,
तू बाबा रे जुवो को हारीया,
कि तू बाबा रे बाटो को भुलिया,
ना मैं नागिणी मौस्याणी ढोछयाणीं,
नामैं नागिणो बाटो को भुलिया,
मेरा ममा का…..
ली जा बाबा रे झडि़या पाडि़या लीजा,
बाबा रे धरति चडिया,
नीली जूनागिणी झंडीया,
पडि़या नी लीजू नागिणी धरति,
चडि़या नीका भला नीका,
भला कोरंगी भरुला।
निमंत्रण गीत
जा रे भंवरिया पितरों का देश-पितरों का द्वार ए,
को रे होलो पितरों का देश, पितरों का द्वार ए?
आधा सरग चन्द्र सुरीज, आधा सरग पितरों का द्वार ए।
सरग तैं पुछना छन दशरथ ज्य़ू ए।
की रे पूत ले, पूत नांति लै, की रे बहुवे ले दिवायो छ न्यूंतो, बढ़ायों उछव?
जो रे तुमें लै नाना छीना दूददोया,
नेत्र पोछा घृतमाला अमृत सींचा,
उं रे तुमें ले भला घरे की, भला वसै की सीतादेहिं आंणी, बहुराणीं आणी,
जीरो पूतो-पूतो, नातियां लाख बरीख,
तुमरी सोहागिनी जनम आइवांती जनम पुत्रावान्ती ए॥
विवाह के अवसर पर भंवरे को पितृलोक में पितरों को निमंत्रण देने के लिये इस गीत में कहा जा रहा है।
विवाहोत्सव का निमंत्रण गीत
सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा हरीयो तेरो गात,
पिंगल तेरो ठून, तू सूवा नगरी को न्यौत दी आ,
नौं न पछ्याणन्यू, गों नि पछ्याणन्य़ूं, के घर के नारि न्यूंतो,
अघिल आधिबाड़ी, पछिल फुलवाड़ी, वी घर वी नारि न्यूंतो,
चौं दिस गौं छ, सुभद्रादेहि नौं छ, वी का पुरुष को अरजुन नौं छ,
वी घर वी नारि न्यूंतो।
चौं दिस गौं छ, बहिनी देहि नौं छ, वी का पुरुष को ब्राहन नौं छ,
वी घर वी नारि न्यूंतो।
अघिल आधिबाड़ी, पछिल फुलबाड़ी आ बेटी खिलकणी मैत,
हाथ छ बेला, गोद छ चेला, आ बेटी खलकणी मैत॥
विवाह के अवसर पर गांव में सबको निमंत्रण देने के लिये सूवा (तोता) पक्षी को माध्यम बनाया जा रहा है।
मांगलिक कार्य की सायंकाल को गाये जाना वाला मांगल गीत
सांझ पड़ी, सांझ वाली पायां चलिन एन
आस-पास मोत्यूं हार बीच चलिन गंगा,
लछिमि पूंछछिन अपनं स्वामि नाराइन,
इनुं घरि काहि बधाई। इनु घर आनंद बधाई॥
रामीचंद्र घरै, घरै सांझ को दीयो जगायो,
सीतादेही, बहूरांणी जनम आइवांती।
इनरे बहुअन की शोभण कोख ए,
जाग हो दियड़ा इनु घरि आज की राति ए।
अगर चंदन को दीयड़ा, कपूर सारी बाति ए,
जाग हो दियड़ा इनुं घर सुलच्छिणी राति ए॥
यह गीत नामकरण, छठी और विवाह के शुभ अवसर पर सांध्य वेला में गाया जाता है] जिसमें दीपक से सारी रात जलते रहने की प्रार्थना की जाती है।
छठी तथा नामकरण का मांगल गीत
तुम रामी चंद्र लछीमण कवन के तुम पूत,
तुम कवन माएलि ले उर धरौ?
तुम कवन बहीनों को भाई लो?
हम रामीचंद्र लछीमण दशरथ के पूत,
मेरि माई कौसिल्य रांणि लै,
मेरि माई सुमित्रा रांणि लै उर धरो।
उर धरौ है लला दस मास, मेरि बहिनां सुभद्रादेहि को माए लै,
हम लव कुश, रामी चंद्र के पूत,
मेरि माई सीतादेहि लै,
बहूरांणि लै उर धरौ।
उर धरौ है लला दस मास, मेरि बहिनां बहिनीं देहि को माए लै॥
यह गीत नवजात शिशु के नामकरण और छठी संस्कार पर गाया जाता है। शिशुओं को प्रथम राम-लक्ष्मण पीछे लव-कुश संबोधित कर पूछा जाता है कि वे किस माता की कोख में हुये और इसका उत्तर शिशुओं द्वारा दिलवाया जाता है।
मांगलिक कार्यों में स्नान के समय गाया जाने वाला गीत
उमटण दइए मइए मैल छूटाइये,
गंगा जमुना मिलि आए तो बालौ नवाइए, कलेस मराइए,
भाई बहिनीं मिलि आए तो नवाइए,
हलदी के घर जाओ तो हलद मौलाइए,
तेली के घर जावो तो तेल मौलाइए,
कुमकुम केसर परिमल अंग सुहाइए,
किन ए उ पंडित ले हलद मौलाइ,
तो हलद की शोभा ए,
किन ए उ सोहागिलि लै घोटा घोटाइ,
तो हलद रंगीलो।
किन ए उ पहिरन जोग्य तो हलद की शोभा ए।
रामीचंद्र, लछीमण हलद मोलाइ तो हलद की शोभा ए।
सीता देहि लै, बहूरांणि लै हलद घौटाई, तो हलद कि शोभा ए।
लव कुश पहिरन जोग्य, तो हलद की शोभा ए॥
ब्रत बंध, विवाह आदि में नहलाते समय यह गीत गाया जाता है।
ब्रतबंद (जनेऊ संस्कार) के समय गाया जाने वाला मांगलिक गीत
लला नारींग रस ल्यै दे जामीर फल ल्यै दे,
नारींग हूं जिया करे
भौजी नारींग कसी ल्यूं, जामीर कसी ल्यूं,
नारींग हूं पहरा धरे,
तुमर बाबज्यू का बाग-बगीचा,
मैय्या की हैंसियां फुल बाड़ियां,
लुदी रई बोट हजार, नारींगा…….
तुमर ससुर ज्यू का माली महेन्द्र,
सैय्यां का चौकीदार मुच्छन्दर,
लाठी ली बैठियां छन पार, नारींग कस ल्यूं।
भौज्यू नारींग में रस नी भरिन,
नारींग को आजी रंग नी गरिणो,
हरिया पातलन है रीं डाल,
नारींग कसीं ल्यूं,
भैय्या ते मांगो पैसा रुपया,
तुम लाला नाचो ताता थैईयां,
दौड़ी जाओ हाट बाजार,
नारींग हूम जिया करे।
बौजी छ मेरी के भली बाना,
सासु ननद की हाथ की चाना,
चोरी खांची खटई अचार,
नारींग कसी ल्यूं।
नंददेवी मैल दिखै दयूंलो,
चरख में लला बैठाई दयूंलो,
बाजा बैलून ल्यूंलो चार,
नारींग हूं जिया करे।
आपौं हूं दुल्ह-दुल्हिणी,
शैणी भिषौणी मैकणी नी चैनी,
आपणों त खेल हजार,
नारींग कसी ल्य़ूं।
भाभी और देवर में वार्तालाप चल रहा है, भाभी देवर से संतरे लाने को कहती है और देवर न लाने के बहाने ढूंढता है…..सामान्य चुहल लोकगीत के माध्यम से।
बारात के पहुंचने पर गाया जाने वाला मंगल गीत
जब ही महाराजा देश में आए,
देश में धूम मचाए, हो मथुरा के हो वासी,
जोशी ज्यू लगन में आईयो, हो मथुरा के हो वासी,
जब ही महाराजा अंगना में आए, अंगना में धूम मचाइए,
हो मथुरा के हो वासी।
बढ़इया चौख ले ऐयो, शंख घंट सबद सुणइयो,
अंगना सुं चौक पुरैयो, बहिनियां रोचन ल्यइयो,
विरामन वेद पढ़इयो, हो मथुरा के हो वासी।
शुभ्रण कलश भरइयों हो, मथुरा के हो वासी,
तमोलिनी बीड़ा ले आईयो, हल्वाईनि सीनिं ले अइयो,
मलिनि फुल ले अइयो, हो मथुरा के हो वासी,
बजनियां बाजा बजइयो, गहमह बाजा बजइयो,
हो मथुरा के हो वासी।
बारात के घर पहुंचने पर यह मंगल गीत गाया जाता है।
गोधूलि बेला गीत
कैकें द्यूं मैं धूलि अरघ तो को रे बेवइया?
जैका सिर में मुकुट होलो मन रइया,
वी द्यूं मैं धूलि अरघ तो वी रे बेवइया।
जैका सिर महिं सिहरा होलो मन रइया,
वी द्यूं मैं धूलि अरघ तो वी रे बेवइया।
जैका कान कुंडल होला मन रइया,
वी द्यूं मैं धूलि अरघ तो वी रे बेवइया।
जैका कंध दुसाला होलो मन रइया,
वी द्यूं मैं धूलि अरघ तो वी रे बेवइया।
जैका गलहिं में कंठा होलो मन रइया,
वी द्यूं मैं धूलि अरघ तो वी रे बेवइया।
जैका हाथ अंगुठि होलो मन रइया,
वी द्यूं मैं धूलि अरघ तो वी रे बेवइया।
जैका तल हि में घोड़ा होलो मन रइया,
वी द्यूं मैं धूलि अरघ तो वी रे बेवइया।
यह गोधूलि बेला का गीत है, जिसके सिर पर मुकुट, सिहरा कान में कुंदल आदि होगा, वही दूल्हा होगा और उसी को धूलिअर्घ दी जायेगी। बारात के पहुंचने पर सबसे पहली रस्म यही की जाती है।
छोली बांटते समय गाया जाने वाला मंगल गीत
बरु तेरो आयो त्वी सौ कीया-कीया ल्यायो?
दाख दाडि़म बबज्यु छोली भरी ल्यायो।
नींमु नारिंग बबज्यु छोली भरी ल्यायो,
माथै की बिंदी बबज्यु छोली भरी ल्यायो।
नाक की नथुले बबज्यु छोली भरी ल्यायो,
बालि की नथुलि बबज्यु छोली भरी ल्यायो।
माला और तोड़ा बबज्यु छोली भरी ल्यायो,
हाथ सुं चूड़ी बबज्यु छोली भरी ल्यायो
पहुंची खड़ेवा बबज्यु छोली भरी ल्यायो।
लछा झांवर बबज्यु छोली भरी ल्यायो,
घाघरा पिछौड़ी बबज्यु छोली भरी ल्यायो॥
छोली बांटते समय यह गीत गाया जाता है, बर पक्ष की ओर से जो भी सामान लाया जाता है, उसे छोली कहा जाता है, इस गीत में बताया जा रहा है कि छोली में क्या-क्या सामान आया है।
कन्यादान के उपरांत का गीत
को ए उ जुहरा जुवा खेलिये?
को ए उ जुहरा जुवा जीतिये?
को ए उ जुहरा जुवा हारिए?
को ए उ जुहरा जुवा जीतिए?
जनक जुहरा जुआ हारिए,
रामीचंद्र जुहरा जुवा जीतिए।
तौलिन हारौ, सैयां मेरो कसेरिन हारो।
मेरि ललनिंया, दुदुवा पिलनियां,
गोद खेलनियां कै तुम हारो?
थालिन हारो पिया मेरो कटोरिन हारो,
मेरि ललनियां गोद खेलनियां,
गुड़िया खेलनियां कै तुम हारो?
गडुवन हारो, सइयां मेरा लोटन हारो।
मेरि ललनियां. गुड़िया खेलनियां,
छाजो बैठनियां कै तुम हारो?
तौसक हारो, पिया मेरे तकियन हारो,
लिहाफन हारो सइयां मेरे गददन हारो॥
कन्यादान के उपरांत यह गीत गाया जाता है, पत्नी पति से रोष में पूछती है कि उन्होंने उसकी लाडली बेटी को दांव पर क्यों लगा दिया।
विदाई गीत
काहे कि छोडूं मैं एजनि पैंजनि,
काहे की लंबी कोख ए?
बाबु कि छोडूं मैं एजनि पैंजनि,
माई की लंबी कोख ए।
काहे को छोडूं मैं हिल मिल चादर,
काहे को राम रसोई ए।
भाई कि छोडूं मैं हिल मिल चादर,
भाभि की राम रसोए ए।
छोटे-छोटे भाइन पकड़ि पलकिया,
हमरि बहिन कहां जाइ ए।
छोड़ो-छोड़ो भाई हमरि पलकिया,
हम परदेसिन लोक ए।
जैसे जंगल की चिड़िया बोले,
रात बसें दिन उड़ि चलै।
वैसे बाबुल घर हम छिप सोयें,
रात बसैं दिन उड़ि चलैं।
बाबुल घर छाड़ि ससुर का देस,
छाड़ो तुम्हारो देस ए।
भाइन घर छाड़ि जेठ का देस,
छाड़ो तुम्हारो देस ए।
माइन कहे बेटि नित उठि अइयो,
बाबु कहैं छट मास में,
भाई कहे बैना काज पड़ोसन,
भाभि कहे क्या काज ए॥
यह गीत लड़की के विदा होते समय गाया जाता है, इसमें मां-बाप, भाई-बहिन को छोड़ ससुराल जाती हुई बेटी और उसके संबंधियों का दुःख व्यक्त होता है।
उत्तराखण्ड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता, उत्तराखण्ड में देवता आराध्य तो हैं ही, इसके साथ ही उनसे लोगों की एक विशेष आत्मीयता जु्ड़ी रहती है। अपने काज-बार में वे देवताओं को भी आमंत्रित करना नहीं भूलते…प्रस्तुत शकुनाआंखर में घर की महिला देवताओं से साथ काज में सहभागी सभी कारकों को बुला रही है।
समाये, बंधाये न्यूतिये,
प्रातहि न्यूतू में सूरज, किरणन को अधिकार,
सन्ध्या न्य़ूतू में चन्द्रमा, तारन को अधिकार।
ब्रह्मा-विष्णु न्यूतूं, मैं काज सों, ब्रह्मा-विष्णु सृष्टि रचाय,
गणपति न्यूतुं मैं काज सों, गणपति सिद्धि ले आय।
ब्राह्मण न्यूंतूं मैं काज सों, ब्राह्मण वेद पढ़ाये,
कमिनी न्यूतूं मैं काज सों, कामिनी दीयो जगाय,
सुहागिनी न्यूतूम मैं काज सों,सुहागिनी मंगल गाय,
शंख-घंट न्यूतूम मैं काज सों, शंख-घंट शबद सुनाय,
मालिनि न्यूतूं मैं काज सों, मालिनि फूल ले आय,
कुम्हारिनि न्यूतूं मैं काज सों, कुम्हारिनि कलश ले आय,
अहिरिनी न्यूतूं मैं काज सों, अहिरनी दूध ले आय,
धिवरनी न्यूतूं मैं काज सों, धिवरनी शकुन ले आय,
गुजरिनी न्यूतूं मैं काज सो, गुजरिनी दइया ले आय,
बहिनिया न्यूंतूं मैं काज सों, बहिनिया रोचन ले आय,
बान्धव न्यूतूं मैं काज सों, बान्धव शोभा बढ़ाय,
बढ़इया न्यूतूम मैं काज सों, बढ़इया चौकी ले आय,
बजनिया न्यूतूम मैं काज सों, बजनिया बाजा ले आय,
समाये बधाये न्यूतिये,
आंगनी धाई बढ़ाई, सब दिन होवेंगे काज, दिन-दिन होवेंगे,
काज, समाये बधाये न्य़ूतिये।
इस शकुन आंखर में एक नारि एक तोते के माध्यम से सीता, राधा और सुभद्रा को अपने काज में आमंत्रित कर रही है। तोते को घर और गांव का नाम मालूम नहीं है, सो महिला कुमाऊनी बोली में ही उसे महिला, उसके पति का नाम, उसके घर की पहचान और गांव का नाम बता रही है।
शुवा रे शुवा, वनखण्डी शुवा,
जा शुवा नगरिन न्यूत दि आ।
हरिया तेरो गात, पिंगली तेरो ठून,
ललांगि तेरी खाप, रतनारी आंखी,
नजर तेरि बांकि, तू जा रे शुवा नगरिन न्यूत दि आ॥
नौं नी जाणन्यू मैं, गौं नी जाणन्यू,
कै घर, कै नारि न्यूत दि ऊं?
सीतादेई नौ छ, जनकपुर गौंछ,
तैक स्वामि कणि रामीचन्द्र नौं छ।
अघिल अघिवाड़ी, पछिल फुलवारी,
तू तै घर तै, नारि न्यूत दि आ।
नौं नी जाणन्यू मैं, गौं नी जाणन्यू,
कै घर, कै नारि न्यूत दि ऊं?
राधादेई नौं छ, मथुरा तैं को गौं छ,
तैक स्वामि कण, श्रीकृष्ण नौं छ।
अघिल अघवाड़ी, पछिल फुलवाड़ी,
तू तै घर, तै नारि न्यूत दि आ॥
नौं नी जाणन्यू मैं, गौं नी जाणन्यू,
कै घर, कै नारि न्यूत दि ऊं?
सुभद्रादेवी नौ छ, हस्तिनापुर गौं छ,
तैक स्वामि कणि अर्जुन नौं छ,
अघिल अघवाड़ी, पछिल फुलवाड़ि,
तू तै घर, तै नाति न्यूत दि आ॥
नामकरण हेतु शकुन आंखर
आज बाजी रहे, बाजा बाज रहे,
रामीचन्द्र दरबार, लछीमन दरबार।
बधाईया रातों ए बाज बाजिये राति ए,
तू उठ रानी बहुआ, सीता देहि बहुआ,
बहुरानी ओढो, दक्षिण को चीर, ए
हम तो ओढे़ रहे, हम तो पैरि रहे,
अपने बाबुल प्रसाद, ससुर दरबार, प्रिय परसाद,
लला के काज, संय्यां के राज, बलम दरबार,
बधाईयां राती ए, ए सोहाई है रातो ए,
बच्चे को नामकरन के दिन प्रथम सूर्य दर्शन कराया जाता है, इस अवसर पर निम्न शकुन आंखर गाया जाता है-
अपना पलना, अपना पलना,
अपना पलना, हस्ती घोड़ा,
हम जानू, हम जानू,
बबज्यू मेरा, कक्ज्यू मेरा,
मेरा सूरिज जुहारए,
बाला की, भाई बाला की माई,
हरखि, निरखि,
हम जानू, हम जानू बबज्यू,
ककज्यू मेरा, सुरिज जुहारए।
सूर्य दर्शन के समय गाये जाना वाला शकुन आंखर
लिपि घैंसी, अंगना में,
पुरी हाला चौकी,
तसु चौका बैठाल पंडित ज्यू,
रामीचन्द्र पंडित लछीमन,
आन ए पाट,
बुणै हाली डोरी,
तसु डोरा पैरली सीता देही,
सुमित्रा देही, बहुराणी,
आजु बधावन नगरी सुहावन।
Supar mera uttarakand
भल च बल