जब à¤à¥€ पौड़ी जाना होता है à¤à¤• जगह हमेशा अपनी ओर आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करती रही है। बताती रही है अपनी थाती। कोटदà¥à¤µà¤¾à¤° से ऊपर जाने के बाद à¤à¤• पटà¥à¤Ÿà¥€ शà¥à¤°à¥‚ हो जाती है कोडिया। यहीं à¤à¤• गांव है पाली। बहà¥à¤¤ चरà¥à¤šà¤¿à¤¤à¥¤ जाना पहचाना। यहां गà¥à¤°à¤¾à¤® सà¤à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° बताता है कि आप डाॅ. पीतामà¥à¤¬à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² के गांव में हैं। पीतामà¥à¤¬à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² का मतलब हिनà¥à¤¦à¥€ के पहले डी. लिट। हिनà¥à¤¦à¥€ की शोध परंपरा का à¤à¤¸à¤¾ नाम जिसने बहà¥à¤¤ कम उमà¥à¤° में गहन अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨, पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾, निषà¥à¤ ा और सहजता के साथ हिनà¥à¤¦à¥€ की सेवा की।
डाॅ. पीतामà¥à¤¬à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² का जनà¥à¤® पौड़ी जनपद के लैंसडाउन से तीन किलोमीटर दूर कोडिया पटà¥à¤Ÿà¥€ के पाली गांव में 13 दिसंबर, 1901 में हà¥à¤† था। उनके पिता का नाम पं. गौरीदतà¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² था। वे अचà¥à¤›à¥‡ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· और करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤‚डी विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ थे। बहà¥à¤¤ शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤à¥€ समय में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने घर में ही संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ शà¥à¤°à¥‚ कर दिया था। और ‘अमरकोष’ जैसे गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ पढ़ डाले। जब वे मातà¥à¤° दस साल के थे उनके पिता का निधन हो गया। उनके ताऊ पं. मणिराम बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² ने उनका पालन-पोषण किया। उनकी कोई संतान नहीं थी। पीतामà¥à¤¬à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² जी की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚à¤à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ गांव में ही हà¥à¤ˆà¥¤ आगे की पढ़ाई के लिये वे शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र चले गये, लेकिन वहां से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ जलà¥à¤¦à¥€ लखनऊ जाना पड़ा। यह उनके जीवन का नया मोड़ था। यहां 1920 में कालीचरण हाईसà¥à¤•à¥‚ल से उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने समà¥à¤®à¤¾à¤¨ के साथ मैटà¥à¤°à¤¿à¤• और हाईसà¥à¤•à¥‚ल की परीकà¥à¤·à¤¾ पास की। उन दिनों इस विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में हिनà¥à¤¦à¥€ के सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨, आलोचक शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¸à¥à¤¨à¥à¤¦à¤° दास पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• थे। उनके सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ में आने के बाद उनका हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ और साहितà¥à¤¯ की यातà¥à¤°à¤¾ का मारà¥à¤— पà¥à¤°à¤¶à¤¸à¥à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ इसके बाद वे कानपà¥à¤° चले गये और यहां के डीà¤à¤µà¥€ कालेज से 1922 में इंटर की परीकà¥à¤·à¤¾ उतà¥à¤¤à¥€à¤°à¥à¤£ की। कानपà¥à¤° पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दौरान उनका संपरà¥à¤• अनà¥à¤¯ गढ़वाली छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ हà¥à¤†à¥¤ सबने निशà¥à¤šà¤¯ किया कि परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ का à¤à¤• संगठन बनाया जाय और ‘हिलमैन’ नाम से पतà¥à¤° निकाला। वे जितनी अचà¥à¤›à¥€ हिनà¥à¤¦à¥€ और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ लिखते थे, अब अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ à¤à¥€ उतनी ही अचà¥à¤›à¥€ और अबाध गति से लिखने लगे।
आगे की पढ़ाई के लिये बनारस हिनà¥à¤¦à¥‚ विशà¥à¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ लिया। यहां बीमार पड़ने के कारण गांव आना पड़ा। सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ ठीक न होने के कारण दो साल तक गांव में ही रहना पड़ा। उनका 1922 से 1924 तक का समय बहà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾ रहा। पिता के निधन के बाद जिन ताऊ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी छाया दी थी उनका à¤à¥€ निधन हो गया। इस बीच उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ‘अमà¥à¤¬à¤°’ उपनाम से कवितायें लिखना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया। उनकी कवितायें ‘पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥’ मासिक में छपने लगी। इस बीच गढ़वाल में पड़े अकाल में अपने साथियों के साथ मिलकर असहाय, à¤à¥‚खे और ज़रूरतमंदों की सेवा की। तब ‘पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥’ में उनकी à¤à¤• कविता पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ हà¥à¤ˆ-
अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का वजà¥à¤° बनकर कर विà¤à¤‚जक हे हà¥à¤°à¤¦à¤¯,
पर दीनजन दà¥à¤ƒà¤– ताप समà¥à¤®à¥à¤– मोम बन तू हे हà¥à¤°à¤¦à¤¯,
समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ तू बन, इंदà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ हों तव पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤œà¤¨ हे हà¥à¤°à¤¦à¤¯,
सतà¥à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¯ में संलगà¥à¤¨ सतत à¤à¥‚ल तन-मन हे हà¥à¤°à¤¦à¤¯à¥¤
वे दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ बनारस गये और 1926 में बीठकी परीकà¥à¤·à¤¾ उतà¥à¤¤à¥€à¤°à¥à¤£ की। तब शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¸à¥à¤¨à¥à¤¦à¤° दास यहां हिनà¥à¤¦à¥€ के विà¤à¤¾à¤—ाधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· थे। उसी साल विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में à¤à¤®à¤ हिनà¥à¤¦à¥€ की ककà¥à¤·à¤¾à¤à¤‚ शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆà¥¤ वे हिनà¥à¤¦à¥€ के पहले बैच के विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ के रूप में नामांकित हà¥à¤¯à¥‡à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने 1928 में पà¥à¤°à¤¥à¤® शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में à¤à¤®à¤ की परीकà¥à¤·à¤¾ पास की। इस परीकà¥à¤·à¤¾ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ‘छायावाद’ पर विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ और विदà¥à¤µà¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤£ निबंध लिखा। उससे शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¸à¥à¤¨à¥à¤¦à¤° दास बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हà¥à¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस निबंध को विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ की ओर से छपाना चाहा, लेकिन विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में à¤à¤¸à¤¾ कोई पà¥à¤°à¤¾à¤µà¤§à¤¾à¤¨ न होने से यह संà¤à¤µ नहीं हो पाया। शà¥à¤¯à¤¾à¤® सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° दास ने उनके इस विषय को शोध के लिये चà¥à¤¨ लिया। वे अपने शोध कारà¥à¤¯ में लग गये। इसी बीच 1930 में उनकी नियà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के हिनà¥à¤¦à¥€ विà¤à¤¾à¤— में पà¥à¤°à¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• के तौर पर हो गयी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने 1929 में à¤à¤²à¤à¤²à¤¬à¥€ परीकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ उतà¥à¤¤à¥€à¤°à¥à¤£ कर ली। उनके शोध कारà¥à¤¯ और अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ को देखते हà¥à¤¯à¥‡ ‘काशी नागरी पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ सà¤à¤¾’ ने अपने यहां उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शोध विà¤à¤¾à¤— का अवैतनिक संचालक नियà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ किया। इस काम को करते हà¥à¤¯à¥‡ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बहà¥à¤¤ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• तरीके से कई महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ की तालिकायें तैयार कीं। इस दौरान वे अपने शोध की तैयारी में लगे रहे। दो-तीन वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के अथक परिशà¥à¤°à¤® के बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने 1931 में अपना शोध पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में जमा किया। उनके शोध का विषय था- ‘हिनà¥à¤¦à¥€ कावà¥à¤¯ में निरà¥à¤—à¥à¤£à¤µà¤¾à¤¦à¥¤’ इस शोध के परीकà¥à¤·à¤• थे- ऑकà¥à¤¸à¤«à¥‹à¤°à¥à¤¡ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में उरà¥à¤¦à¥‚-हिनà¥à¤¦à¥€ के विà¤à¤¾à¤—ाधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· डाॅ. टी गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤® वैली, पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के दरà¥à¤¶à¤¨ शासà¥à¤¤à¥à¤° विà¤à¤¾à¤— के पà¥à¤°à¥‹. रामचंदà¥à¤° दतà¥à¤¤à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥‡à¤¯ और शà¥à¤¯à¤¾à¤® सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° दास। डाॅ. वैली ने इसे पीà¤à¤šà¤¡à¥€ के लिये ही उपयà¥à¤•à¥à¤¤ माना। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ इसमें संशोधन कल पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ 1933 में विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के दीकà¥à¤·à¤¾à¤‚त समारोह में डी-लिट की उपाधि दी गई। इसके साथ ही वे हिनà¥à¤¦à¥€ विषय में ‘डाकà¥à¤Ÿà¤°à¥‡à¤Ÿ’ करने वाले पहले शोधारà¥à¤¥à¥€ बन गये। इसके साथ ही उनकी खà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¿ à¤à¥€ बढ़ने लगी। विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पतà¥à¤°-पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤“ं में उनके शोधपरक लेख पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ होने लगे। उनकी गिनती हिनà¥à¤¦à¥€ के बड़े विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में होने लगी और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कई समà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨à¥‹à¤‚ में बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ जाने लगा।
पीतामà¥à¤¬à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² के पास शोध का वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• फलक था। हिनà¥à¤¦à¥€, संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ और अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ के असाधारण विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ होने के कारण उनका शोध और अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ बहà¥à¤¤ गहरा था। à¤à¤• तरह से उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आजादी से पहले अपने शोध से हिनà¥à¤¦à¥€ के लिठनये रासà¥à¤¤à¥‡ और संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤à¤‚ तलाशी। उनका शोध पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध ‘निरà¥à¤—à¥à¤£ सà¥à¤•à¥‚ल इन हिनà¥à¤¦à¥€ पोयटà¥à¤°à¥€’ शैकà¥à¤·à¤¿à¤• अनà¥à¤¸à¤‚धान के लिये मील का पतà¥à¤¥à¤° थी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कबीर को पूरà¥à¤µà¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ सिदà¥à¤§ संपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ से जोड़कर इतिहास की अनà¥à¤¤à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ धारा को पाटने का काम किया। डाॅ. बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² का काम इसलिठà¤à¥€ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¸à¥‡ समय पर यह शोध किया जब संतवाणियां पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ नहीं थी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सबसे पहले यह सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया कि नाथ, सिदà¥à¤§ और संतकवि उपनिषदों के घाट पर बहते योग पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ में डà¥à¤¬à¤•à¥€ लगाकर खड़े हैं।
डाॅ. बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² ने फà¥à¤Ÿà¤•à¤° शोधपरक लेखों के अतिरिकà¥à¤¤ गोरखबानी, रामानंद की हिनà¥à¤¦à¥€ रचनाà¤à¤‚, सूरदास, हिनà¥à¤¦à¥€ कावà¥à¤¯ में निरà¥à¤—à¥à¤£ समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯, योग पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹, मकरंद, संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ रामचंदà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾, तथा हसà¥à¤¤à¤²à¤¿à¤–ित गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का चौदहवां, पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹à¤µà¤¾à¤‚ तथा तà¥à¤°à¥ˆà¤®à¤¾à¤¸à¤¿à¤• विवरण गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ की रचना की। ‘गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸’ तथा ‘रूपक रहसà¥à¤¯’ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ बाबू शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¸à¥à¤¨à¥à¤¦à¤° दास के संयà¥à¤•à¥à¤¤ लेखन में तैयार की। इनके अलावा कबीर की साखी, सरà¥à¤µà¤¾à¤—ी, हरिदास की साखी, रैदास की साखी, हरिà¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶, सेवादास, नेपाली साहितà¥à¤¯ तथा जोगेसà¥à¤°à¥€ बानी à¤à¤¾à¤—-2 की रचना उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने की थी लेकिन असमय निधन के कारण ये पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ नहीं हो पाई। ‘गढ़वाल में गोरखा शासन’, ‘पवाडे’ या ‘गढ़वाल की वीरगाथायें’ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ आज उपलबà¥à¤§ नहीं हैं। उनके अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में लिखे निबंधों का à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ नहीं हो पाया। उनके निधन के बाद डाॅ. संपूरà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤‚द तथा डाॅ. à¤à¤—ीरथ मिशà¥à¤° ने कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ ‘योग पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹’ और ‘मकरंद’ नाम से इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ किया। ‘गदà¥à¤¯ सौरऒ नाम से à¤à¤• पाठà¥à¤¯ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आचारà¥à¤¯ शà¥à¤•à¥à¤² के साथ तैयार की थी। डाॅ. गोविनà¥à¤¦ चातक ने à¤à¥€ उनके निबंधों का à¤à¤• संगà¥à¤°à¤¹ ‘पीतांबरदत बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² के शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ निबंध’ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ किया। बाल पाठकों के लिये उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ‘किंग आरà¥à¤¥à¤° à¤à¤£à¥à¤¡ नाइटà¥à¤¸ आव द राउंड टेबल’ का हिनà¥à¤¦à¥€ अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ किया। अपने खराब सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ के चलते समय उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने योग के कà¥à¤› वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किये। इससे संबंधित कà¥à¤› लेख तथा ‘पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¾à¤¯à¤¾à¤®’, ‘विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ और कला’ और धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से आतà¥à¤®à¤šà¤¿à¤•à¤¿à¤¤à¥à¤¸à¤¾’ जैसी पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ à¤à¥€ लिखीं। डाॅ. बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² के निधन के बाद यह सारी सामगà¥à¤°à¥€ बिखर गई।
à¤à¤• हिनà¥à¤¦à¥€ सेवी विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ के रूप में बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² जी की जो पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा रही है, उतना ही उनका पà¥à¤°à¥‡à¤® पहाड़ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ हमेशा रहा। जहां कानपà¥à¤° में रहते उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ‘हिलमैन’ पतà¥à¤° निकाला वहीं बहà¥à¤¤ छोटी उमà¥à¤° में शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र में हसà¥à¤¤à¤²à¤¿à¤–ित ‘मनोरंजनी’ का संपादन किया। वरà¥à¤· 1921 में शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र में नवयà¥à¤µà¤• समà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया। वे à¤à¤• आलोचक से पहले कवि और पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¥€ रहे। जहां वे ‘अंबर’ उपनाम से कवितायें कर रहे थे वहीं ‘वà¥à¤¯à¥‹à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦à¥à¤°’ और ‘विलोचन’ उपनामों से गदà¥à¤¯ लिख रहे थे। डाॅ. पीतामà¥à¤¬à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² का जीवन बहà¥à¤¤ संघरà¥à¤· रहा। पारिवारिक परेशानियां और आरà¥à¤¥à¤¿à¤• अà¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ से वह बाहर नहीं निकल पाये। जिस हिनà¥à¤¦à¥€ की उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इतनी सेवा की उसी के लिये काम करते हà¥à¤¯à¥‡ बनारस हिनà¥à¤¦à¥‚ विशà¥à¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में असिसà¥à¤Ÿà¥‡à¤‚ट पà¥à¤°à¥‹à¤«à¤¼à¥‡à¤¸à¤° होने के बावजूद उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अनà¥à¤¯ विषयों के पà¥à¤°à¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•à¥‹à¤‚ के समान वेतन नहीं दिया गया। इस पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उप-कà¥à¤²à¤ªà¤¤à¤¿ को संबोधित अपने पतà¥à¤° में लिखा- ‘अनà¥à¤¯ विषयों में डी-लिट के समककà¥à¤· मà¥à¤à¥‡ वेतन न दिये जाने का à¤à¤• ही कारण दिखाई देता है और वह है मेरा हिनà¥à¤¦à¥€ का सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤• होना।’ डाॅ. पीतामà¥à¤¬à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² जी का 43 वरà¥à¤· की बहà¥à¤¤ कम उमà¥à¤° में 24 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ 1944 को निधन हो गया। हिनà¥à¤¦à¥€ सेवी इस विà¤à¥‚ति को शत-शत नमन।
संदरà¥à¤
1. उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड की दिवंगत विà¤à¥‚तियां, लेखक: à¤à¤•à¥à¤¤à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨
2. पीतामà¥à¤¬à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤², लेखक: विषà¥à¤£à¥à¤¦à¤¤à¥à¤¤ राकेश
3. डाॅ. पीतामà¥à¤¬à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² के शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ निबंध, संपादक: डाॅ. गोविनà¥à¤¦ चातक
लेखक -शà¥à¤°à¥€ चारॠतिवारी
अपने पीतामà¥à¤¬à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² की के बारे में बहà¥à¤¤ हे अचà¥à¤›à¤¾ वरà¥à¤£à¤¨à¤‚ किया है आज गरà¥à¤µ होता है कि कोटदà¥à¤µà¤¾à¤° महाविदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में हम पड़े है वो डॉ पीतामà¥à¤¬à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ बड़थà¥à¤µà¤¾à¤² जी को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है