यों तो उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ हमेशा से वीरों की à¤à¥‚मि रहा है, इस धरती ने इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ वीरों में से कà¥à¤› परमवीर à¤à¥€ पैदा किये। जिनमें चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ का नाम सरà¥à¤µà¥‹à¤ªà¤°à¤¿ कहा जा सकता है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने २३ अपà¥à¤°à¥ˆà¤², १९३० को अफगानिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के निहतà¥à¤¥à¥‡ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® सेनानियों पर गोली चलाने से इनà¥à¤•à¤¾à¤° कर à¤à¤• नई कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ का सूतà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ किया था और अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ हà¥à¤•à¥‚मत को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ में उनके राज के कà¥à¤› ही दिन बचे हैं। हालांकि इस अजर-अमर विà¤à¥‚ति की à¤à¤• कमजोरी थी कि वह à¤à¤• पहाड़ी था, जो टूट जाना पसनà¥à¤¦ करते हैं लेकिन à¤à¥à¤•à¤¨à¤¾ नहीं। चनà¥à¤¦à¥à¤° सिह जी à¤à¥€ कà¤à¥€ राजनीतिजà¥à¤žà¥‹à¤‚ के आगे नहीं à¤à¥à¤•à¥‡, जिसका पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤«à¤² यह हà¥à¤† कि सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® के इस जीवट सिपाही को सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के बाद à¤à¥€ जेल जाना पड़ा और कई अपमान à¤à¥‡à¤²à¤¨à¥‡ पड़े। इनकी जीवटता को कà¤à¥€ à¤à¥€ वह समà¥à¤®à¤¾à¤¨ नहीं मिल पाया जिसके वे हकदार थे। उनके अंतिम दिन काफी कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ में बीते, जब सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® सेनानी के नाम पर लोग मलाई चाट रहे थे, वहीं गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ जी अपने साथियों की पेंशन के लिये संघरà¥à¤· कर रहे थे। इस अमर सेनानी को हमारा सलाम, उनका सपना था कि उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ पृथक आतà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤à¤° राजà¥à¤¯ बने, जिसकी राजधानी à¤à¥€ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के केनà¥à¤¦à¥à¤° में हो, दूधातोली, जो उनका पैतृक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ था, उसका विकास हो, वहां पर गà¥à¤µà¤¾à¤² नगर बसे, राजा à¤à¤°à¤¤ की जनà¥à¤® सà¥à¤¥à¤²à¥€ कणà¥à¤µ आशà¥à¤°à¤®, कोटदà¥à¤µà¤¾à¤° में à¤à¤°à¤¤ नगर बसाया जाय….आदि। लेकिन दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ है कि राजà¥à¤¯ मिलने के इतने समय बाद à¤à¥€ उनके सपने अधूरे हैं।
चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ “गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€”  जनà¥à¤®- 25 दिसमà¥à¤¬à¤°, 1891, निधन- 1 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर, 1979
गà¥à¤°à¤¾à¤®- मासी, रौणीसेरा, चौथान पटà¥à¤Ÿà¥€, गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥¤
महातà¥à¤®à¤¾ गांधी के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में “मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• चंदà¥à¤° सिंह गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ और मिलता तो à¤à¤¾à¤°à¤¤ कà¤à¥€ का सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° हो गया होता।”
११ सितमà¥à¤¬à¤°, १९१४ को २/३९ गà¥à¤µà¤¾à¤² राईफलà¥à¤¸ में सिपाही à¤à¤°à¥à¤¤à¥€ हो गये, पà¥à¤°à¤¥à¤® विशà¥à¤µ यà¥à¤¦à¥à¤§ के दौरान अगसà¥à¤¤ १९१५ में मितà¥à¤° राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‹à¤‚ की ओर से अपने सैनिक साथियों के साथ योरोप और मधà¥à¤¯ पूरà¥à¤µà¥€ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· हिसà¥à¤¸à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ की। अकà¥à¤Ÿà¥‚बर में सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶ लौटे और १९१ॠमें अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ की ओर से मेसोपोटामिया के यà¥à¤¦à¥à¤§ में à¤à¤¾à¤— लिया। १९२१-२३ तक पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤‚त में रहे, जहां अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ और पठानों में यà¥à¤¦à¥à¤§ हो गया था। १९२० के बाद चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह देश में घटित राजनैतिक घटनाओं में रà¥à¤šà¤¿ लेने लगे। १९२९ में गांधी जी के बागेशà¥à¤µà¤° आगमन पर उनकी मà¥à¤²à¤¾à¤•à¤¾à¤¤ गांधी जी से हà¥à¤ˆ और गांधी जी के हाथ से टोपी लेकर, जीवन à¤à¤° उसकी कीमत चà¥à¤•à¤¾à¤¨à¥‡ का पà¥à¤°à¤£ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कर लिया। १९३० में इनकी बटालियन को पेशावर जाने का हà¥à¤•à¥à¤® हà¥à¤†, २३ अपà¥à¤°à¥ˆà¤², १९३० को पेशावर में किसà¥à¤¸à¤¾à¤–ानी बाजार में खान अबà¥à¤¦à¥à¤² गफà¥à¤«à¤¾à¤° खान के लालकà¥à¤°à¥à¤¤à¥€ खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ खिदमतगारों की à¤à¤• आम सà¤à¤¾ हो रही थी। अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ आजादी के इन दीवानों को तितर-बितर करना चाहते थे, जो बल पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— से ही संà¤à¤µ था। कैपà¥à¤Ÿà¥‡à¤¨ रैकेट à¥à¥¨ गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ सिपाहियों को लेकर जलसे वाली जगह पहà¥à¤‚चे और निहतà¥à¤¥à¥‡ पठानों पर गोली चलाने का हà¥à¤•à¥à¤® दिया। चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ कैपà¥à¤Ÿà¥‡à¤¨ रिकेट के बगल में खड़े थे, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ सीज फायर का आदेश दिया और सैनिकों ने अपनी बनà¥à¤¦à¥‚कें नीचीं कर ली। चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह ने कैपà¥à¤Ÿà¥‡à¤¨ रिकेट से कहा कि “हम निहतà¥à¤¥à¥‹à¤‚ पर गोली नहीं चलाते” इसके बाद गोरे सिपाहियों से गोली चलवाई गई। चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह और गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ सिपाहियों का यह मानवतावादी साहस अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ हà¥à¤•à¥‚मत की खà¥à¤²à¥€ अवहेलना और राजदà¥à¤°à¥‹à¤¹ था। उनकी पूरी पलà¥à¤Ÿà¤¨ à¤à¤¬à¤Ÿà¤¾à¤¬à¤¾à¤¦(पेशावर) में नजरबंद कर दी गई, उनपर राजदà¥à¤°à¥‹à¤¹ का अà¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤— चलाया गया। हवलदार २५३ चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ को मृतà¥à¤¯à¥ दणà¥à¤¡ की जगह आजीवन कारावास की सजा दी गई, १६ लोगों को लमà¥à¤¬à¥€ सजायें हà¥à¤ˆ, ३९ लोगों को कोरà¥à¤Ÿ मारà¥à¤¶à¤² के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ नौकरी से निकाल दिया गया। ॠलोगों को बरà¥à¤–ासà¥à¤¤ कर दिया गया, इन सà¤à¥€ का संचित वेतन जबà¥à¤¤ कर दिया गया। यह फैसला मिलिटà¥à¤°à¥€ कोरà¥à¤Ÿ दआरा १३ जून] १९३० को ऎबटाबाद छावनी में हà¥à¤†à¥¤ बैरिसà¥à¤Ÿà¤° मà¥à¤•à¥à¤¨à¥à¤¦à¥€à¤²à¤¾à¤² ने गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की ओर से मà¥à¤•à¤¦à¤®à¥‡ की पैरवी की थी। चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह गà¥à¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ ततà¥à¤•à¤¾à¤² ऎबटाबाद जेल à¤à¥‡à¤œ दिये गये, २६ सितमà¥à¤¬à¤°, १९४१ को ११ साल, ३ महीन और १८ दिन जेल में बिताने के बाद वे रिहा हà¥à¤¯à¥‡à¥¤ ऎबटाबाद, डेरा इसà¥à¤®à¤¾à¤‡à¤² खान, बरेली, नैनीताल, लखनऊ, अलà¥à¤®à¥‹à¥œà¤¾ और देहरादून की जेलों में वे बंद रहे और अनेक यातनायें à¤à¥‡à¤²à¥€à¥¤ नैनी सेनà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤² जेल में उनकी à¤à¥‡à¤‚ट कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•à¤°à¥€ राजबंदियों से हà¥à¤ˆà¥¤ लखनऊ जेल में नेताजी सà¥à¤à¤¾à¤· चनà¥à¤¦à¥à¤° बोस से à¤à¥‡à¤‚ट हà¥à¤ˆà¥¤
शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ à¤à¤• निरà¥à¤à¥€à¤• देशà¤à¤•à¥à¤¤ थे, वे बेड़ियों को “मरà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का जेवर” कहा करते थे।जेल से रिहा होने के बाद कà¥à¤› समय तक वे आननà¥à¤¦ à¤à¤µà¤¨, इलाहाबाद रहने के बाद १९४२ में अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के साथ वरà¥à¤§à¤¾ आशà¥à¤°à¤® में रहे। à¤à¤¾à¤°à¤¤ छोड़ो आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ में उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹à¥€ नवयà¥à¤µà¤•à¥‹à¤‚ ने इलाहाबाद में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपना कमाणà¥à¤¡à¤° इन चीफ नियà¥à¤•à¥à¤¤ किया। डा० कà¥à¤¶à¤²à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ गैरोला को डिकà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿà¤° बनाया गया, इसी दौरान उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ फिर से गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° कर लिया गया, नाना जेलों में कठोर यातनायें दी गई, ६ अकà¥à¤Ÿà¥‚बर, १९४२ को उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सात साल की सजा हà¥à¤ˆà¥¤ १९४५ में ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जेल से छोड़ दिया गया, लेकिन गà¥à¤µà¤¾à¤² पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ पर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¨à¥à¤§ लगा दिया गया। जेल पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दौरान उनका परिचय यशपाल से परिचय हà¥à¤† और कà¥à¤› दिन उनके साथ वे लखनऊ में रहे। फिर अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के साथ हलà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤¨à¥€ आ गये। जेल पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दौरान वे आरà¥à¤¯ समाजी हो गये, इस बीच उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤°à¥€ कमà¥à¤¯à¥à¤¨à¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ विचारों को अपनाया और १९४४ में कमà¥à¤¯à¥à¤¨à¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ के रà¥à¤ª में सामने आये, १९४६ में चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह ने गà¥à¤µà¤¾à¤² में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया, जहां जगह-जगह पर जनसà¥à¤®à¥‚ह ने उनका à¤à¤µà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया। कà¥à¤› दिन गà¥à¤µà¤¾à¤² में रहने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ वे किसान कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ में à¤à¤¾à¤— लेने लà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾ चले गये और वहां से लाहौर पहà¥à¤‚चे, दोनों जगह उनका à¤à¤¾à¤°à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤—त हà¥à¤†à¥¤ टिहरी रियासतॠकी जनकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ में à¤à¥€ इनकी सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ à¤à¥‚मिका रही है। नागेनà¥à¤¦à¥à¤° सकलानी के शहीद हो जाने के बाद गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ ने आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ का नेतृतà¥à¤µ किया। कमà¥à¤¯à¥à¤¨à¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ विचारधारा का वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ होने के कारण सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ के बाद à¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार उनसे शंकित रहती थी। वे जिला बोरà¥à¤¡ के अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ लड़ना चाहते थे, लेकिन सरकार ने उनपर पेशावर कांड का सजायाफà¥à¤¤à¤¾ होने के आरोप लगाकर गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° कर लिया। सामाजिक बà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤¯à¥‹à¤‚ के उनà¥à¤®à¥‚लन के लिये वे सदैव संघरà¥à¤·à¤°à¤¤ रहे, १९५२ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पौड़ी विधान सà¤à¤¾ सीट से कमà¥à¤¯à¥à¤¨à¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ पारà¥à¤Ÿà¥€ की ओर से चà¥à¤¨à¤¾à¤µ लडा, लेकिन कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ की लहर के आगे वे हार गये। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के विकास की योजनाओं के लिये उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी आवाज उठाई और बाद के वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में पृथक उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ राजà¥à¤¯ के समरà¥à¤¥à¤¨ से लेकर विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियों में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हिसà¥à¤¸à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ की।
* बैरिसà¥à¤Ÿà¤° मà¥à¤•à¥à¤¨à¥à¤¦à¥€ लाल के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में “आजाद हिनà¥à¤¦ फौज का बीज बोने वाला वही है”
* आई०à¤à¤¨à¥¦à¤à¥¦ के जनरल मोहन सिंह के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में “पेशावर विदà¥à¤°à¥‹à¤¹ ने हमें आजाद हिनà¥à¤¦ फौज को संगठित करने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾
वीर चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ जी की याद को अकà¥à¤·à¥à¤£à¥à¤£ रखने के लिये उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ दल ने २५ दिसमà¥à¤¬à¤°, १९९२ को गैरसैंण में उनकी à¤à¤• आदमकद पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की। जिसमें यह संकलà¥à¤ª लिया गया कि à¤à¤¾à¤µà¥€ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ राजà¥à¤¯ की राजधानी का नाम गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ जी के नाम पर चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤—र होगा।
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