We covered the story of forest fire in Uttarakhand.
उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में जंगल की आग से 6 की मौत.
Dr. Shamsher Singh Bisht says that the policies of government are responsible for that. धधकते जंगलों के लिठसरकार की वन नीति जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°: डा.बिषà¥à¤Ÿ. Forest Fire in Uttarakhand is not a new phenomena. Dr. Sekhar Pathak has written an article on this. Please go through.
उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में जंगलों की इस बार की आग 1921 या 1995 की आग की याद दिला रही है। 1921 में वन और बेगार आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ चले हà¥à¤¯à¥‡ थे और 1995 में उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨à¥¤ इस बार चà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ का दौर है। छोटे-बड़े नेता चà¥à¤¨à¤¾à¤µ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° में लगे हैं तो पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ की तैयारी में। बड़े-बड़े नेताओं का छोटापन इससे सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दावानल का जिकà¥à¤° तक नहीं किया। छोटे नेताओं का निकमà¥à¤®à¤¾à¤ªà¤¨ इससे उजागर होता है कि वे अपने नेताओं को दावानल की वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤•à¤¤à¤¾ से परिचित ही नहीं करा सके।
वरना चà¥à¤¨à¤¾à¤µ के समय तो वे à¤à¤• मार कर इस बाबत बोलते। इस सबके ऊपर बà¥à¤¤à¤¾ तापमान, लगातार सूखा, लोगों की आंशिक उदासीनता और पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ तथा जंगलात विà¤à¤¾à¤— की कम तैयारी जैसै कारण दावानल के फैलने में योगदान देने को तैयार बैठे थे।
नौ मई तक पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के जंगलों में आगजनी की 1270 घटनायें हो चà¥à¤•à¥€ हैं और 3107 हेकà¥à¤Ÿà¥‡à¤¯à¤° जंगल कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° जला और पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हà¥à¤† है। जंगलात विà¤à¤¾à¤— के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° आग लगने की 80 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ घटनायें आबादी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के पास हà¥à¤ˆ हैं। à¤à¤µà¤¾à¤²à¥€ के पास फरसौली में आग के घिर जान के कारण गरà¥à¤à¤µà¤¤à¥€ लाली और नौ साल की उसकी बहिन दीपा काल कवलित हो गये।
इससे à¤à¤• दिन पहले गà¥à¤°à¤¾à¤® मंजियाड़ी, चिनà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥€à¤¸à¥Œà¥œ जिला उतà¥à¤¤à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¥€ में आग बà¥à¤à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤¯à¥‡ विशला देवी की मृतà¥à¤¯à¥ हो गई। गांवों से आग कसà¥à¤¬à¥‹à¤‚ और नगरों तक ही नहीं पहà¥à¤‚ची बलà¥à¤•à¤¿ जिम कारà¥à¤¬à¥‡à¤Ÿ तथा राजाजी पारà¥à¤• à¤à¥€ आग से नहीं बचे। बहà¥à¤¤ जगहों में सà¥à¤•à¥‚लों और संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं तक आग पहà¥à¤‚च गई।
गगवाड़ा गांव के पंचायती जंगल में आग बà¥à¤à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤¯à¥‡ 5 गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ तो जंगल में ही शहीद हो गये थे और दो की मृतà¥à¤¯à¥ असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² में हà¥à¤ˆà¥¤ अनेक लोग अà¤à¥€ à¤à¥€ जिनà¥à¤¦à¤—ी और मौत के बीच जूठरहे हैं। आग बà¥à¤à¤¾à¤¨à¥‡ को महिलायें à¤à¥€ बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में गई थीं, पर जब आग कà¥à¤› नियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ हो गई तो वे à¤à¥‹à¤œà¤¨ बनाने घर लौटीं। इसी बीच आग फैल गई। चीड़ की जलती हà¥à¤ˆ फलियां लà¥à¥à¤• कर नीचे आने लगीं तथा à¤à¤• पेड़ à¤à¥€ गिर गया। उस समय वे चटà¥â€Œà¤Ÿà¤¾à¤¨à¥€ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के ऊपर आग बà¥à¤à¤¾ रहे थे।
आग का सामना करन के लिये हमारी शासकीय तैयारी बिलà¥à¤•à¥à¤² नहीं थी। सितमà¥à¤¬à¤° 2008 के बाद इस बार वरà¥à¤·à¤¾ नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ बरà¥à¤«à¤µà¤¾à¤°à¥€ à¤à¥€ कम हà¥à¤ˆà¥¤ जंगलों की आग बहà¥à¤¤ जगह फरवरी में दिखाई देने लगी थी। सूखे की आशंका तà¤à¥€ से थी। अपà¥à¤°à¥ˆà¤² में 13 में से 11 जिले सूखे घोषित कर दिये गये थे। फसल के 50 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ तक के नà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨ का अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ था और बागवानी पर à¤à¥€ काफी बà¥à¤°à¥‡ असर की बात की जा रही थी। केनà¥à¤¦à¥à¤° से 200 करोड़ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ के पैकेज की मांग à¤à¥€ की गई थी। इस सबके बीच यह बात सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ थी कि आने वाले महीनों में जंगल की आग सबसे बड़ी चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ होगी।
आग बà¥à¤à¤¾à¤¨à¤¾ सरकार तथा समाज दोनों की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ है। पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ à¤à¤¸à¥‡ कà¥à¤¤à¤°à¥à¤• नहीं दे सकता कि यह जंगल सरकारी है या पंचायती या निजी। हर जंगल को जलने से बचाया जाना है। उसकी मिलà¥à¤•à¤¿à¤¯à¤¤ सरकारी, पंचायती या निजी अथवा नगर पंचायत या छावनी की हो और वह मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ या à¤à¤•à¤² वन हो या कि वृकà¥à¤·à¤¾à¤°à¥‹à¤ªà¤£ ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हो। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के लोग पिछले 150 साल से विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ जंगलों की आग बà¥à¤à¤¾à¤¤à¥‡ रहे हैं। जंगल सतà¥à¤¯à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ तथा राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ संगà¥à¤°à¤¾à¤® के दौर में चीड़ के जंगलों तथा लीसे के डिपों में आग à¤à¥€ लगाई गई थी। लेकिन तब से लेकर आज तक लोगों ने संरकà¥à¤·à¤¿à¤¤ जंगलों की आग à¤à¥€ बà¥à¤à¤¾à¤ˆ है। इधर पंचायतों के सरकारीकरण ने à¤à¤• उदासी को जनà¥à¤® जरूर दिया है। à¤à¤• गहरी जन हिसà¥à¤¸à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ वाली वन नीति से यह उदासी समापà¥à¤¤ की जा सकती है। इसी से माफिया तथा शरारती ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ पर à¤à¥€ निगाह रखी जा सकती है। दूसरी ओर आग से हà¥à¤ˆ कà¥à¤·à¤¤à¤¿ का ठीक अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ लगाने का कोई तरीका विकसित नहीं हो सका है। आज à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ हेकà¥à¤Ÿà¥‡à¤¯à¤° अधिकतम हजार रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की कà¥à¤·à¤¤à¤¿ मानी जाती है।
आपदा पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¨ अपने देश में à¤à¤• आरोपित शैली में आया है। इसके पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤• न अपने इलाके के à¤à¥‚गोल को ठीक से समà¤à¤¤à¥‡ हैं और न संसाधनों को। अत: विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ तथा तकनीक का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² à¤à¥€ हम नहीं कर पाते हैं। राजà¥à¤¯ अंतरिकà¥à¤· केनà¥à¤¦à¥à¤° ने बताया कि 1 मई 2009 को उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में 129 सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर आग लगी हà¥à¤ˆ थी। पर आपदा पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¨ मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯, जिला आपदा पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¨ केनà¥à¤¦à¥à¤°, वन विà¤à¤¾à¤—, जिला पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¥‹à¤‚, गैर सरकारी संगठनों तथा गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£à¥‹à¤‚ में किसी तरह का तालमेल न था।
यह तालमेल बिना तैयारी के संà¤à¤µ नहीं था और तैयारी जाड़ों से ही हो जानी चाहिये थी। जलवायॠपरिवरà¥à¤¤à¤¨ तथा पृथà¥à¤µà¥€ ताप बà¥à¤¨à¥‡ के दौर में दावानल से निपटन के पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ तरीके कारगर नहीं हो सकते। सबसे पहले वन, वनवासियों तथा वन विà¤à¤¾à¤— के बीच घनिषà¥à¤ ता विकसित करनी है, जिस कतिपय नकली कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ ने घटा दिया है और हम नये राजà¥à¤¯ में उस ओर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ नहीं दे सके। आपदा पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¨ कैसे हर गांव, पंचायत तथा सà¥à¤•à¥‚ल तक वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ तथा समà¤à¤¦à¤¾à¤°à¥€ से जा सके, यह इसके लिये अनिवारà¥à¤¯ है। फिर मामला चाहे दावानल का हो या, à¤à¥‚सà¥à¤–लन, बाॠअथवा à¤à¥‚कमà¥à¤ª का, लोग उनसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ संगठित तरीके से निपट सकते हैं।
इसमें मौसम विà¤à¤¾à¤—, अनà¥à¤¤à¤°à¤¿à¤•à¥à¤· उपयोग केनà¥à¤¦à¥à¤°, वन सरà¥à¤µà¥‡, वन अनà¥à¤¸à¤‚धान संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तथा विजà¥à¤žà¤¾à¤¨-तकनीकी विà¤à¤¾à¤—ों के तालमेल के साथ मीडिया के उपयोग की जरूरत है। चीड़ के पिरूल, पतà¥à¤¤à¥‡ के किसी वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤• उपयोग की जरूरत है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दावानल में सबसे बड़ा योगदान इसी पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ का है। वन अनà¥à¤¸à¤‚धान संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ ने उनà¥à¤¨à¥€à¤¸à¤µà¥€à¤‚ सदी में चीड़ को इमà¥à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤—नेट करके रेल की पटरी बिछाने हेतॠउपयोगी बना दिया पर बीसवीं सदी में पिरूल के उपयोग का कोई विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ विकसित नहीं हो पाया है। à¤à¤• हजार मीटर से उपर कटान पर रोक ने इधर के सालों में चीड़ की घà¥à¤¸à¤ªà¥ˆà¤ चौड़ी पतà¥à¤¤à¥€ के जंगलों में बà¥à¤¾ दी है। उसे जन उपयोग हेतॠचीड़ का नियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ कटान करके कम किया जाना चाहिये।
इस बार दावानल से निपटने में सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ लोगों के जीवन गये हैं। इस जंगल को इनकी सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ के साथ जोड़ देना चाहिये। इस वन पंचायत को वृकà¥à¤·à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤° तो मिले ही राजà¥à¤¯ à¤à¥€ दावानल से अपने जंगलों को बचाने वालों को गगवाड़ा के शहीदों की याद में à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¥ƒà¤¤ करे। सरकार की ओर से शहीद परिवारों को à¤à¤• à¤à¤• लाख तथा घायलों को 50-50 हजार रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ दिये जा चà¥à¤•à¥‡ हैं। पर कम से कम 5 लाख रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ शहीद परिवारों को दिये जाने चाहिये। इनकी शहादत को à¤à¤• संचित ऊरà¥à¤œà¤¾ में बदलने का काम हर हाल में होना चाहिये। ताकि पहाड़ों में जंगल तथा जीवन दोनों बचाये जा सकें।
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sir mai 12th pass ho or b.a ker raha hu mujhe forest departmant me jane ka bahut shauk hai ajab bhee uttarakhan forest departmant me requrmatnt me bharti hogi to mujhe meri mail id per mail ker dena