कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° विधा के à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° चितेरे पà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¾ बी०मोहन नेगी अब हमारे बीच नहीं रहे। देहरादून के à¤à¤• निजी असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² में उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ अंतिम सांसे ली। अà¤à¥€ तक विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ नहीं हो रहा है। खबर सà¥à¤¨à¤•à¤° सà¥à¤¤à¤¬à¥à¤§ हूà¤, बीमोहन दा रूला गये आप। अà¤à¥€ तो बहà¥à¤¤ कà¥à¤› सीखना था आपसे। लमà¥à¤¬à¥€ बातें करने थी।अब कौन बनाà¤à¤—ा हमारे लिठकविता पोसà¥à¤Ÿà¤° !
बीमोहन दा का जाना लोकसंसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के पà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¾ का असमय जाना है। जिससे à¤à¤• खालीपन हो गया है। जिसकी à¤à¤°à¤ªà¤¾à¤ˆ कà¤à¥€ नहीं हो सकती। उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° विधा से लोक का पहली बार साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° करवाया। इस विधा से लोकसंसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को संजोने का बीडा खà¥à¤¦ के कंधों पर उठाया। अपनी इस विधा के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कई गà¥à¤®à¤¨à¤¾à¤® लोगों से लोक का परिचय करवाया। चमोली के गोपेशà¥à¤µà¤° नगर से शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤† यह सफर 41 सालों के बाद आज थम गया है। इस जातà¥à¤°à¤¾ में वो अकेले ही डटे रहे। सिर में लोकसंसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की छटा बिखेरती हà¥à¤ˆ टोपी, पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ सी लमà¥à¤¬à¥€ दाड़ी, चेहरे पर मनमोहक मà¥à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤¨ जिस पर हर कोई फ़िदा हो जाये अब हमें कà¤à¥€ à¤à¥€ दिखाई नहीं देगी। जीवनà¤à¤° चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª लोक की सेवा करते हà¥à¤¯à¥‡ चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से चले गये। उनका जाना à¤à¤• अपूरà¥à¤£ कà¥à¤·à¤¤à¤¿ है।
गौरतलब है कि पौड़ी जनपद के कलà¥à¤œà¥€à¤–ाल बà¥à¤²à¤¾à¤• के मनà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¸à¥‚ पटà¥à¤Ÿà¥€ गांव के नेगी परिवार ने देश की आजादी के पहले दà¥à¤°à¥‹à¤£ नगरी देहरादून को अपना आशियाना बना दिया था, à¤à¤²à¥‡ ही जब इस परिवार ने अपने पैतृक घर को छोड़ा था तो उस समय ये उनकी जरà¥à¤°à¤¤ थी, लेकिन इस परिवार ने अपनी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और विरासत को कà¤à¥€ à¤à¥€ बिसराया नहीं, देहरादून में नेगी परिवार की विरासत को संà¤à¤¾à¤²à¤¨à¥‡ वाले à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ सिंह नेगी और जमà¥à¤¨à¤¾ देवी के घर २६ अगसà¥à¤¤ १९५२ को सबसे बड़े बेटे के रूप में बिलकà¥à¤·à¤£ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ के धनी à¤à¤• बालक ने जनà¥à¤® लिà¤, माता पिता ने इनका नाम बिरेनà¥à¤¦à¥à¤° मोहन रखा, दो à¤à¤¾à¤ˆ और à¤à¤• बहिन में ये सबसे बड़े थे, १२ वीं के बाद ये आगे की पढाई जारी नहीं रख पाये, पिताजी की आकसà¥à¤®à¤¿à¤• मृतà¥à¤¯à¥ हो जाने के कारण पूरे परिवार की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ इनके कंधो पर आ गई, जिसके लिठइनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ पà¥à¤°à¤¿à¤‚टिंग पà¥à¤°à¥‡à¤¸ में कारà¥à¤¯ करना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया, बचपन से इनके अंदर कला के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ à¤à¤• ललक सी थी, इनके मन में चितà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° बनà¥à¤¨à¥‡ के खà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¸ थी, लेकिन परिवार की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ आड़े आ गयी, इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤—वानॠकी मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ बेहद à¤à¤¾à¤¤à¥€ थी, à¤à¤• मूरà¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤° से इनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ बनाने सिखाने को कहा लेकिन इनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ मना कर दिया, इस घटना ने उनके अंदर के कलाकार को à¤à¤•à¤à¥‹à¤° कर रख दिया, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ठान ली की अब जिनà¥à¤¦à¤—ी में जो à¤à¥€ करेंगे वे खà¥à¤¦ की मेहनत से,और खà¥à¤¦ ही ये काम सीखेंगे, देखते ही देखते इनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ बनाने का कारà¥à¤¯ सीख लिया और खà¥à¤¦ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ बनाने लग गà¤, अपनी धà¥à¤¨ के पकà¥à¤•à¥‡ बीमोहन ने इसमें महारत हासिल कर ली, इसी दौरान वे शौकिया तौर पर लोगो के सà¥à¤•à¥‡à¤š बनाने लग गà¤, और परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•à¥‹à¤‚ के à¤à¥€, जिससे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤› आमदानी पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जाती, जिसका उपयोग वे पेंटिग का सामान खरीदने में करतें, १९à¥à¥§ उनके लिठखà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾à¤ लेकर आया, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ डाक विà¤à¤¾à¤— में नौकरी मिल गई, जहाठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उस समय की चिटठी, पतà¥à¤°à¥€, अंतरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥€, डाक टिकट, लिफापों ने कà¥à¤› अलग करने की राह दिखाई, और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° विधा को अपनाया, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जो à¤à¥€ कविताà¤à¤ पसंद आती उन पर वो कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° बना देते, वे दिन à¤à¤° नौकरी करते और रात को जितना à¤à¥€ समय मिलता कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° बनाते।
इसी बीच इनका चयन पोसà¥à¤Ÿà¤² असà¥à¤¸à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤‚ट पद हेतॠहà¥à¤† और इनकी इचà¥à¤›à¤¾ के अनà¥à¤°à¥‚प इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गोपेशà¥à¤µà¤° में तैनाती दी गई, गोपेशà¥à¤µà¤° आना इनकी जिनà¥à¤¦à¤—ी का सबसे अहम फैसला साबित हà¥à¤†, गोपेशà¥à¤µà¤° आने के बाद à¤à¤• दफा इनके दोसà¥à¤¤ और बेहद करीबी लोकसंसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ करà¥à¤®à¥€ और पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° राजेन टोडरिया के साथ उनकी लोकसंसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ पर लमà¥à¤¬à¥€ गà¥à¤«à¥à¤¤à¤—ू हà¥à¤ˆ, जिसमे राजेन ने उनसे कहा की गोपेशà¥à¤µà¤° जैसे पहाड़ी जनपदों में कला और सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• शूनà¥à¤¯ को खतà¥à¤® करने के लिठकà¥à¤› किया जाना चाहिà¤, इस पर बी मोहन नेगी ने कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° का विचार सामने रखा, जिसे राजेन ने अपनी सहमती दे दी, उस समय उनका साथ दिया बहादà¥à¤° सिंह बोरा नें, जो उस समय सीà¤à¤®à¤“ कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¤¿à¤• अधिकारी के पद पर कारà¥à¤¯à¤°à¤¤ थे, बहादà¥à¤° सिंह à¤à¥€ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ थे,इनकी जà¥à¤—लबंदी ने कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€ को पंख लगा दिये, १६ दिनों की मेहनत आखिरकार रंग लायी जब १४५ कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° तैयार हो गये,जिसमे कविता और पोसà¥à¤Ÿà¤° के माधà¥à¤¯à¤® से लोगों को सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• गतिविधियों और कला की जानकरी मà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾ करवाई गई, साथ ही लोगों को आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करने और जागरूक करने का बीड़ा उठाया गया, १९८४ की दिसमà¥à¤¬à¤° महीने की कडकडाती ठणà¥à¤¡ में राजकीय सà¥à¤¨à¤¾à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤¤à¤° महाविदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ गोपेशà¥à¤µà¤° में पहली बार कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° की पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€ लगाई गई, जिसमें गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ कवियों की कविताओं से लेकर देश के जाने माने कवियों की कविताà¤à¤ à¤à¥€ शामिल थी, सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¤‚दन पनà¥à¤¤ से लेकर कनैहया लाल डडरियाल और रविनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टैगोर जैसे पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कवि और लेखको की कविताà¤à¤ शामिल थी, पहाड़ों में इस तरह के पहले आयोजन ने गोपेशà¥à¤µà¤° में धूम मचा दी, लोगों ने इस आयोजन को बेहद सराहा और बी मोहन नेगी की सराहना की, इसके बाद तो बी मोहन नेगी गोपेशà¥à¤µà¤° के चरà¥à¤šà¤¿à¤¤ चेहरे बन गये, इस आयोजन ने बी मोहन नेगी के जीवन की दिशा और दशा बदल कर रख दी,लोगों से मिले पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ ने बी मोहन नेगी को गदगद कर दिया, गोपेशà¥à¤µà¤° से शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤¯à¥‡ कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° के सफर को जो रफà¥à¤«à¥à¤¤à¤¾à¤° दी वो आज à¤à¥€ बदसà¥à¤¤à¥‚र जारी है, १९९१ में मनà¥à¤¦à¤¾à¤•à¤¿à¤¨à¥€ नदी के किनारे पर बसे नगर अगसà¥à¤¤à¥à¤¯à¤®à¥à¤¨à¤¿ में चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤•à¥à¤‚वर बरà¥à¤¤à¥à¤µà¤¾à¤² के जीवन पर आधारित à¤à¤• कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¨à¥€ का आयोजन किया गया, इस पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€ के माधà¥à¤¯à¤® से लोक ने पहली बार चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤•à¥à¤‚वर को इतने करीब से जाना, इनके इस पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ को लोगों ने बेहद सराहा, १९९२ में दूरदरà¥à¤¶à¤¨ के राजेनà¥à¤¦à¥à¤° धसà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¾ के सहयोग से १४ सितमà¥à¤¬à¤° को हिंदी दिवस के मौके पर दिलà¥à¤²à¥€ के हिमाचल à¤à¤µà¤¨ में इनकी ८० कविता पोसà¥à¤Ÿà¤°à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€ लगाई गई, जिस की हर किसी ने à¤à¥‚री à¤à¥‚री पà¥à¤°à¤¸à¤‚शा की, इसके अलावा पौड़ी, शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र, देहरादून, मसूरी, नैनीताल, सहित कई जगहों में विà¤à¤¿à¤¨ अवसरों पर इनकी कविता पोसà¥à¤Ÿà¤°à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€ लग चà¥à¤•à¥€ है, इसके अलावा विगत ४० सालों में सैकड़ों पतà¥à¤° पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤“ं में इनके सà¥à¤¥à¤¾à¤ˆ सà¥à¤¤à¤ और कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° छप चà¥à¤•à¥‡à¤‚ हैं,कई पतà¥à¤° पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤“ं के रेखांकन संपादक à¤à¥€ हैं, १४५ कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° से शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤† यह सफर १३०० का आंकड़ा पार करने के करीब है,
लोकसंसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और कला पर बी मोहन नेगी जी से लमà¥à¤¬à¥€ बाते होती थी। वे कहते थै की यदि कलाकार के पास आरà¥à¤¥à¤¿à¤• संसाधन न हो तो उसकी कला संसाधन के आà¤à¤¾à¤µ में घà¥à¤Ÿ घà¥à¤Ÿ कर दम तोड़ देती है, जैसे कà¤à¥€ गà¥à¤µà¤¾à¤² की समृदà¥à¤§ विरासत की बानगी रही काषà¥à¤ शिलà¥à¤ª कला अंतिम साà¤à¤¸à¥‡ गिन रही है, à¤à¤¸à¥‡ कलाकारों और उनकी कला को बचाने के कà¤à¥€ कोई पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ नहीं किये गये, में बहà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¥€ हूठकी मà¥à¤à¥‡ कà¤à¥€ à¤à¥€ आरà¥à¤¥à¤¿à¤• तंगी नहीं à¤à¥‡à¤²à¤¨à¥€ पड़ी वरना मेरी कला à¤à¥€ तिल तिल कर कहीं दफन हो जाती, साथ ही सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ आà¤à¤¾à¤°à¥€ हूठगोपेशà¥à¤µà¤° की जनता का जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ दिया और आगे बà¥à¤¨à¥‡ के लिठहोंसला बà¥à¤¾à¤¯à¤¾, वरना जहा में आज हूठवहां तक नहीं पहà¥à¤à¤š पाता, आगे कहतें है की जिस à¤à¥€ कलाकार ने अपनी कला को बà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ के रूप में à¤à¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾ उसकी मौलिकता खà¥à¤¦ ही समापà¥à¤¤ हो गई, इसलिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी कला को कà¤à¥€ à¤à¥€ बà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤• रूप नहीं दिया, अपनी कला में जो à¤à¥€ खरà¥à¤š आता उसे वे खà¥à¤¦ ही वहन करते, ४० सालों से अकेले ही अपनी कला के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लोक और उसकी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को संजोने का कारà¥à¤¯ कर रहें हैं, जो आने वाली पीà¥à¥€ के लिठकिसी धरोहर से कम नहीं है, नई पीà¥à¥€ के लोगों को साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की जड़ों को मजबूत करने की वकालत करतें हैं, वे अपनी कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° की जातà¥à¤°à¤¾ में गà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€, कà¥à¤®à¤¾à¤‰à¤¨à¥€, जौनसारी, रंवालटा, उरà¥à¤¦à¥‚, अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€, हिंदी, पंजाबी, à¤à¥‹à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾, बांगà¥à¤²à¤¾, à¤à¥‹à¤œà¤ªà¥à¤°à¥€ सहित कई à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ठके कवि और लेखकों की कविताओं को जगह दे चà¥à¤•à¥‡à¤‚ हैं, दो पà¥à¤¤à¥à¤° और दो पà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पिता बी मोहन नेगी का लोक और कला से लगाव बचपन से ही रहा है, अपने जीवन में इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टैगोर की कविताओं और बà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ ने बेहद पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ किया, जिसकी à¤à¤²à¤• उनकी कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° और बà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त जीवन में à¤à¥€ देखने को मिलती है, बी मोहन नेगी को बिगत 36 बरसों से करीब से जानने वाले उनके परम मितà¥à¤°, लोकसंसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ करà¥à¤®à¥€ और साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° डॉ नंदकिशोर हटवाल बताते हैं की कला के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ बी मोहन नेगी जैसा जूनून, समरà¥à¤ªà¤£ और तà¥à¤¯à¤¾à¤— बिरले ही लोगों के पास होता है, अपनी कला के लिठवे खाना पीना तक à¤à¥‚ल जाते हैं, खà¥à¤¦ बी मोहन नेगी सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤°à¤¤à¥‡à¤‚ हैं की पेंटिंग और कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° बनाने के लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने खाने से समà¤à¥‹à¤¤à¤¾ कर लिया था, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि खाना बनाने में समय जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ लगता था, इसलिठवे अधिकतर रोटी चावल की जगह खिचड़ी खा कर दिन गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¾ करते थे, उनके कई दोसà¥à¤¤ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ खिचड़ी बाबा कहकर पà¥à¤•à¤¾à¤°à¤¤à¥‡ थे, उनके खिचड़ी पà¥à¤°à¥‡à¤® पर नंदकिशोर हटवाल कहते हैं की उनकी à¤à¥‚ख पेंटिंग और कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° में ही समà¥à¤®à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ थी, २००९ में वे राजकीय सेवा से सेवानिवृत हà¥à¤¯à¥‡ और अब हमारे बीच नहीं रहे।
आलेख- संजय चौहान
(लेखक खोजी पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° हैं और सीमानà¥à¤¤ पीपलकोटी, चमोली में निवास करते हैं।)
सच नेगी जी का जाना à¤à¤• अपूरणीय कà¥à¤·à¤¤à¤¿ है
ईशà¥à¤µà¤° उनकी आतà¥à¤®à¤¾ को शांति पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करें
सारà¥à¤¥à¤• पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ हेतॠआपका धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦!
सच में नेगी जी बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ कवि अर कविता पोसà¥à¤Ÿà¤° बनौंदा था, आज बस कà¥à¤› याद हि साथ रैगिन…