Uttarakhand Encyclopedia : उत्तराखण्ड ज्ञानकोष अपना उत्तराखण्ड आइये, जाने, समझें और जुडें अपने पहाड़ से, अपने उत्तराखण्ड से मेरा पहाड़ फोरम तब नहीं तो अब गैरसैंण, अब नहीं तो कब गैरसैंण राजधानी से कम मंजूर नहीं

Mule: Eco Friendly Development or Dying Animal?

mule

 

 

In Uttarakhand where in many areas even roads are non-existent Mule plays an Important role in transportation. Estimates show there are more than 25,000 horses in the state. Mules and horses are used extensively for ferrying pilgrims in various Yatras. Recently there was a news that Char Dham Yatra was halted because of the lack of them.

The Uttarakhand animal husbandry department was taken by surprise this year with mules and horses, that form a key means of transport to reach the shrine of Kedarnath as part of the Char Dham Yatra, suffering from an influenza attack. Already 20 two mules and horses have died while 3,000 livestock have reportedly taken ill. The department has directed that the yatra proceedings be halted till normalcy is resorted. As many as 14 control rooms have been set up for constant monitoring of the horses and mules in use.  The department has also set up control rooms at Pashulok in Rishikesh and Rudraprayag.

These mules and horses are important source of livelihood for locals. The suspension of the yatra has led to financial losses for the locals, who are taken aback by the development.  In May 2007, Uttarkhand had seen a similar situation with the spread of “Glander” in horses. The disease was first noticed in Nainital district. Serum samples of these horses were sent to Hisar and “Glander” confirmed in 22 horses.

Our Forum member Pankaj writes a nice article on those mules where he feels that mule is nothing but a mean of Eco Friendly development in the hills of Uttarakhand.

Pankajखच्चर- उत्तराखण्ड के गांवों का ईको फ्रेंडली विकास का साधन

मैने जब उत्तराखण्ड में भ्रमण किया तो पाया कि अंग्रेजों ने दूरस्थ गांवों तक भी घोड़िया मार्ग बनाये थे जिनमें घोड़े और खच्चर आराम से चल सकें। मेरी समझ में यह नहीं आया कि ऐसा उन्होंने क्यों किया? काफी चिन्तन के बाद मुझे प्रथम दृष्टया यह लगा कि अंग्रेजों ने ऐसा इसलिये किया ताकि इन दूरस्थ इलाकों तक घोड़े में चढ़कर इनके अधिकारी पहुंच सकें, वहां की आबो-हवा का आन्न्द ले सके और अपना अस्थायी निवास बना सके। इसके लिये जिस भी चीज की जरूरत हो उसे उपलब्ध कराया गया। इस तरह पहाड़ के दूरस्थ इलाकों से कच्चा माल और स्थानीय उत्पाद पर अपना कब्जा जमाने के लिये अंग्रेजों द्वारा यह पूंजी निवेश किया गया था।

अब आते हैं वर्तमान में, यदि आपने आजकल उत्तराखण्ड के दूरस्थ गांव देखे होंगे तो आपको आश्चर्य भी हुआ होगा कि जहां तक पैदल चलने में हमारी हालत खराब हो जाती है , वहीं पर सीमेन्टेड मकान, सजी-संवरी आम जरुरत की सभी चीजों को संजोये दुकान। उत्तराखण्ड के दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रो को उपभोक्ता वस्तुओं की बहुलता से परिचित कराने वाला कौन है? खच्चर, जी हां खच्चर, शायद घोड़े और गधे का संकर रुप। खच्चर नहीं होते तो क्या होता पहाड़ के गांवों का? राशन-पानी, नमक-तेल जैसी आवश्यक वस्तुओं को पहाड की ऊंचाईयों तक कौन ढोता? क्या हमारे पहाड आज की भौतिक और ऐशो-आराम की चीजों से लेकर सौन्दर्य प्रसाधन की चीजों से अवगत हो पाते?

तो महाराज! खच्चर है तो पहाड़ों में बसे, सड़क से बहुत दूर के गांव भी शहर बन पाये हैं। सीमेन्टेड मकान हैं, उत्सव-त्योहारों का आनन्द है, शादी-ब्याह के दान-दहेज-सोफा, डबल बैड, अल्मारी है। लाईट नहीं है तो क्या हुआ, खच्चर की पीठ पर लदकर जरनेटर पहुंचा है उससे डी०जे० भी लगा है, आज पहाड़ में भी इसकी बदौलत संगीत है, डी०जे० की धकाधक है, रौनक है। ……….इतना कुछ इस मूक जानवर की वजह से है कि पहाड़ की गांवों में आज हल्की-फुल्की आधुनिकता है, आधुनिक सुविधा है। एकदम पिछ्ड़े होने के अहसास से थोड़ा-बहुत छुटकारा है, कहा जाय तो सुविधा और आधुनिकता दोनों ही खच्चर की पीठ पर चढ़कर पहाड़ के गांवों में पहुंची है। ऐसा नहीं कि खच्चर ने पहाड़ के ही गांवों के लिये कुछ किया। चीन की सीमा तक यह हथियार-बारुद और जवानों से लिये खाना भी पहुंचाता है, मतलब कि इस खच्चर का योगदान सीमा की सुरक्षा में भी है।

पहाड़ी गांवों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी यही खच्चर है, क्योंकि पहिये का आविष्कार भी पहाड़ियों के चेहरे पर मुस्कान नहीं ला सका, इस आविष्कार के मायने मैदान में रिक्शा, ठेली, तिपाहिया, साईकिल, मोटर आदि के लिये ही हैं, जो कि पहाड़ी गांवों के लिये कोई मायने नहीं रखते। आलू, चौलाई, सेब, अदरक आदि जो भी पहाड़ों में पैदा होता है, वह खच्चर की पीठ पर ही लदकर मोटर हैड तक पहुंचता है तो मोटर हैड से पूरी दुकान गांव पहुंच जाती है, यदि सड़कों से दूर-दराज के गांवों में दुकानें हैं तो इसका पूरा श्रेय खच्चर को ही जाता है। इन पिछड़े और उपेक्षित गांवों में रोजगार के साधन तो कुछ हैं नहीं, सीमित कृषि उत्पादों पर ही जीवन है, वहां से खच्चर इन उत्पादों को सड़क पर पहुंचाता है और गांव वालों की जेब में भी कुछ रुपये पैसे आ जाते हैं। मोटर स्टैण्ड के पास ही एक स्वयं-भू खच्चर स्टैंड भी आपको आसानी से अब दर्शनीय हो जायेगा, ट्रक से माल आता है, मोटर हैड पर उतरता है और फिर खच्चर की पीठ पर लदता है और गांवों की दुकानों तक पहुंच जाता है, चीनी, चावल, गेहूं, बीड़ी-तम्बाकू-सिगरेट से लेकर मिट्टी का तेल आदि सब कुछ। गांव की दुकान से गांव वाले अपनी आवश्यकतानुसार सामान ले लेते हैं, अब बूबू को तम्बाकू लेने या राशन लेने "घाम की धूप" में बजार नहीं जाना होता, सब कुछ गांव में ही सुलभ है, खच्चर की मेहरबानी से।

विकास का ईको फ्रेन्डली माडल भी है यह खच्चर, सड़को के बनने से जंगलों को कटने से भी बचा रहा है, पहाड़ की सड़क की चढ़ाई पर धुंआ छोड़ रहे ट्रक के धुयें से होने वाली पर्यावरण की हानि से बचा रहा है। पर्यटन और तीर्थाटन में भी इसकी अग्रणी भूमिका है, यमुनोत्री, केदारनाथ और फूलों की घाटी तक बिना हैलीकाप्टर की घड़्घड़ाट (इसके कारण इन इलाकॊं में चिडियाओं की चहचहाट खत्म हो गई है) के पहुंचा रहा है, खच्चर। यद्यपि सड़कों का पर्याय तो खच्चर नहीं बन सकते लेकिन काफी हद तक लोगों की पीठ का बोझा इसने कम किया है। गैस का सिलेण्डर लेकर गांव पहुंच जाता है, महिलाओं को ईधन के लिये जंगलों में घूमना नहीं पड़ता, ईधन की चाह में जंगल भी कम कट रहे हैं। मकान बनाना है, खच्चर हाजिर है, सीमेन्ट, रेता, सरिया सब कुछ शहरों की तरह आपके गांव में भी पहुंच जायेगा।

आधुनिक सुख-सुविधाओं की चाह में गांव से शहर या मोटर हैड तक पलायन को भी खच्चर ने काफी हद तक रोका है। लेकिन बेचारे खच्चर की भी एक सीमा है, वह गांव में स्कूल नहीं ला सकता, गूल नहीं बना सकता, स्कूल में मास्साब की नियुक्ति नहीं करवा सकता, डाकदर सैप की नियुक्ति नहीं करा सकता, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के साधन गांव में नहीं पहुंचा सकता। पहाड़ और मैदान की भौगोलिक अन्तर को पाट नहीं सकता।

नियोजित विकास का दावा करने वाली सरकारों को भी पहाड़ में विकास के इस साधन को अन्देखा नहीं करना चाहिये, दूरस्थ गांवों तक खडंजा या सी०सी० मार्ग की जगह खच्चर फ्रेंडली मार्ग भी बनवाये जाने चाहिये। मोटर हैड के पास खच्चर स्टैंड भी बनवाने चाहिये जहां पर इनके बांधने से लेकर दाना-पानी और मेडिकल सुविधायें भी हों। खच्चर स्टैंड के पास माल गोदाम भी हो, रियायती दरों पर चारा-भूसा हो। जिन गांवों तक सरकार चाहकर (????) भी सुविधायें नहीं पहुंचा पा रही है, वहां पर विकास के इस कारक को तो थोड़ी-बहुत सुविधा देकर उन दुरस्थ गांवों तक आधुनिक सुविधाओं का लाभ पहुंचाया जा सके। खच्चर पहाड़ के गांवों के लिये हैलीकाप्टर है, मालवाहक विमान है,बिना सड़क के ही पहुंच जाने वला ट्रक है, बिना पटरी के चढ़ जाने वाली माल गाड़ी है। यदि कोई इस दुर्गम पहाड़ की सड़क-सुविधा से वंचित गांवों के विकास का कोई सूत्र तलाशने की कोशिश करे तो एक बार खच्चर को भी जरुर याद कर ले। क्योंकि बहुत सारी समस्याओं का निदान खच्चर से ही निकल आयेगा। आज खच्चर पहाड़ की इस दुर्गमनीयता को अपने खुरों से रौंद रहा है तो सरकार को भी उसके खुरों को थोड़ा आराम देने का प्रयास करना ही चाहिये।

You get the daily information on some major happening of Uttarakhand through this column. If you don’t want to miss it, you can get the same in your e-mail. Please subscribe our feed by clicking on right side column at our home page. You can leave your comments here or you can take the part in Uttarakhand related discussions at our forum.

For being a member of our forum click here.

4 responses to “Mule: Eco Friendly Development or Dying Animal?”

  1. घिंघारु

    खच्चर को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उसने मेरे पहाड़ के सुदूर गांवों तक भी आधुनिकता और विकास को सुलभ करवा दिया। सरकार को तो खच्चर को उत्तराखण्ड का राजकीय पशु घोषित करना चाहिये।

  2. अड़्याट

    salam to MULE, pahaad mai vikas ke prati uske yogadan ko bhulaya nahi ja sakta.

  3. bishan singh

    आधुनिक सुख-सुविधाओं की चाह में गांव से शहर या मोटर हैड तक पलायन को भी खच्चर ने काफी हद तक रोका है। लेकिन बेचारे खच्चर की भी एक सीमा है, वह गांव में स्कूल नहीं ला सकता, गूल नहीं बना सकता, स्कूल में मास्साब की नियुक्ति नहीं करवा सकता, डाकदर सैप की नियुक्ति नहीं करा सकता, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के साधन गांव में नहीं पहुंचा सकता। पहाड़ और मैदान की भौगोलिक अन्तर को पाट नहीं सकता।

    bahut accha likha hai, khaccar ki bhi ek sima hai, uske bhai-bandhu to MLA MP ho gaye hai, lekin vo becara, abhi bhi mal hi dho raha hai ha ha..

  4. NIRAJ

    ripot uttrakhand….

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.