लेखक : उमाशंकर मिशà¥à¤°
पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की गोद में बसे उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड की वादियों में जनजीवन कठिन ही नहीं अदà¥à¤à¥à¤¤ à¤à¥€ है, लोग सीमित संसाधनों के बूते जीवन यापन की राह तलाश में जà¥à¤Ÿà¥‡ रहते हैं। लेकिन अब उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड à¤à¥€ पलायन की मार से बच नहीं पाया है. à¤à¤¸à¥‡ में महिलाओं के हौसले की दाद देनी होगी, जिनके उदà¥à¤¯à¤®à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ को देखकर उमà¥à¤®à¥€à¤¦ की जा सकती है कि सागर में फेंके गठकंकड़ से à¤à¥€ लहर पैदा होती है.
पिथौरागॠजैसे परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ इलाके में जीवन यापन पहाड़ पर चà¥à¤¾à¤ˆ करने की तरह है। कहने को तो हिमालय की गोद में बसे इस जिले में पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• सà¥à¤‚दरता बिखरी पड़ी है, लेकिन पहाड़ी लोगों के जीवन यापन की तरफ कम ही लोगों का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ जाता है। लमà¥à¤¬à¥‡ समय तक पिथौरागॠजैसे सà¥à¤¦à¥‚र कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ तक पहà¥à¤‚च पाना आसान नहीं था, आज à¤à¥€ अधिकतर इलाकों में सड़को का जाल बिछ जाने के बावजूद वहां यातà¥à¤°à¤¾ करना आसान नहीं है। वसà¥à¤¤à¥à¤¤: पहाड़ी इलाकों में परिवहन की इसी समसà¥à¤¯à¤¾ के चलते सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों को जीविकोपारà¥à¤œà¤¨ के लिठबेहद जदà¥à¤¦à¥‹à¥›à¤¹à¤¦ करनी पड़ती है। कठिन परिवहन और बाजार से दूरी के चलते कई बार उदà¥à¤¯à¤®à¥€à¤¯ कौशल का परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤«à¤² लोगों को नहीं मिल पाता। जिले की पूरी अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤: कृषि आधारित है, लेकिन पहाड़ पर खेती करना आसान काम नहीं है। अपनी मेहनत के बूते लोग पहाड़ों पर ही सीà¥à¥€à¤¦à¤¾à¤° खेत बनाकर विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की फसलों की खेती करते रहे हैं। लेकिन गà¥à¤²à¥‹à¤¬à¤² वारà¥à¤®à¤¿à¤‚ग à¤à¤µà¤‚ वनों के अंधाधà¥à¤‚ध दोहन का असर इस परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ इलाके पर à¤à¥€ पड़ा है। हिमालय की तराई में होने के बावजूद पिथौरागॠको न केवल सिंचाई बलà¥à¤•à¤¿ पीने के पानी के लिठà¤à¥€ तरसना पड़ रहा है। दूसरी ओर वनों के कट जाने से पहाड़ों पर वरà¥à¤·à¤¾ जल संचित न होकर वà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥ बह जाता है। मैदानी इलाकों की तरह यहां पमà¥à¤ªà¤¸à¥‡à¤Ÿ लगाकर सिंचाई करना संà¤à¤µ नहीं है और पूरी खेती बरसात पर निरà¥à¤à¤° करती है, लेकिन गत दो वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से बरसात नहीं होने से सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें लगातार बà¥à¤¤à¥€ जा रही हैं।
लेकिन माधवी दिगारी जैसी महिलाओं ने इस परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£à¥€à¤¯ विपतà¥à¤¤à¤¿ के समय à¤à¥€ अपने कौशल के बूते उपलबà¥à¤§ संसाधनों से परिवार के जीवन यापन के लिठराह खोज ली है। पिथौरागॠजिले के कनालीछीना बà¥à¤²à¥‰à¤• के सनà¥à¤¨ गांव की माधवी वैसे तो सामानà¥à¤¯ गृहणियों की तरह ही हैं, लेकिन बरसात की आंखमिचौली को देखते हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने संतà¥à¤²à¤¿à¤¤ तापमान à¤à¤µà¤‚ नमी को बरकरार रखने के लिठदो साल पहले ही अपने खेतों मे पॉलीहाऊस का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कर लिया था। जिसमें फिलहाल वे खीरा, ककड़ी, धनिया, गोà¤à¥€, à¤à¤¿à¤£à¥à¤¡à¥€, टमाटर जैसी मौसमी सिबà¥à¤œà¤¯à¥‹à¤‚ की खेती कर रही हैं। माधवी के पास कà¥à¤² 70 नाली (पहाड़ी इलाकों में जमीन की माप नाली होती है) जमीन है, जिसमें से महज 20 नाली जमीन खेती योगà¥à¤¯ है। इस पर वे और उनका परिवार मिलकर धान, मडà¥à¤µà¤¾, à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ (सोयाबीन), सरसों, मसूर à¤à¤µà¤‚ जौ की खेती करते हैं। माधवी कहती हैं कि बारिश न होने से फसलें सूख रही हैं और पारंपरिक खेती खतà¥à¤® हो रही है, जिससे लोग पलायन को विवश हो रहे हैं। वे बताती हैं कि-`ऊंची-नीची जमीन होने से खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ फसलों का उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ नाममातà¥à¤° का होता है, जिससे छ: महीने à¤à¥€ परिवार का à¤à¥€ गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¾ नहीं चलता। इन समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं के चलते माधवी ने सबà¥à¤œà¥€ की खेती के महतà¥à¤µ को काफी पहले ही समठलिया था। माधवी बताती हैं कि-`वैसे तो हम सालों से सबà¥à¤œà¥€ की खेती कर रहे थे, लेकिन कà¤à¥€ अधिक बरसात से फसल सड़ जाती थी, तो कà¤à¥€ कम बरसात से फसलें मà¥à¤°à¤à¤¾ जाती थी। लेकिन पॉलीहाऊस का उपयोग करने से अब आप तापमान संतà¥à¤²à¤¿à¤¤ रहता है, जिससे फसलें तेजी से बà¥à¤¤à¥€ हैं और समानà¥à¤¯ से कम से में तैयार हो जाती हैं।´
फसल उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ के बाद उपयà¥à¤•à¥à¤¤ बाजार की उपलबà¥à¤§à¤¤à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤• के लिठहमेशा महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ होती है, जिससे कि किसान को अपनी उपज का सही मूलà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो सके। बाजार के उतार-चà¥à¤¾à¤µ और तातà¥à¤•à¤¾à¤²à¤¿à¤• मांग की जानकारी किसान के लिठमददगार साबित होती है। माधवी और उनके परिवार के सदसà¥à¤¯ इस बात को à¤à¤²à¥€ à¤à¤¾à¤‚ति जानते हैं और वे हमेशा मारà¥à¤•à¤¿à¤Ÿ डिमांड का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखते हैं। मारà¥à¤•à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤‚ग के काम में माधवी के देवर जमन सिंह दिगारी उनका सहयोग करते हैं और बाजार जाकर समय समय पर विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के à¤à¤¾à¤µ और उनकी मांग का निरीकà¥à¤·à¤£ करते रहते हैं और मांग और मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¥‡ का अंदाज लगाकर संबंधित फसल की खेती करते हैं। हाल ही में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दो कà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में बने पॉलीहाऊसों में धनिये की खेती की है। जमन सिंह बताते हैं कि-`जब बाजार में धनिये की कमी देखी तो इसका कारण दà¥à¤•à¤¾à¤¨à¤¦à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ से पूछा, जवाब में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया कि तेज गरà¥à¤®à¥€ में धनिया सूख रहा है, इसलिठपैदावार नहीं हो रही है।´ बस फिर कà¥à¤¯à¤¾ था जमन सिंह और माधवी ने मिलकर अपने दो पॉलीहाऊसों में 50 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ के धनिये के बीज लाकर बो दिये। कà¥à¤› ही समय में धनिया तैयार हो गया और थोड़ा थोड़ा करके जमन सिंह इसे पास के बाजार कनालीछीना में ले जाकर अचà¥à¤›à¥‡ दामों में बेच आते हैं। वे बताते हैं कि अà¤à¥€ तक सिरà¥à¤« धनिये से à¤à¤• हजार रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की आमदनी हो चà¥à¤•à¥€ है। इसके अलावा टमाटर, कदà¥à¤¦à¥‚ और खीरा à¤à¥€ à¤à¤• पॉलीहाऊस में लगा हà¥à¤† है। हर तीसरे दिन इनमें फल तैयार हो जाते हैं, जिसे कनालीछीना ले जाकर बेच दिया जाता है। इस तरह से गरà¥à¤®à¥€ और सूखे समय में à¤à¥€ हर तीसरे दिन लगà¤à¤— तीन सौ से साà¥à¥‡ तीन सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की आमदनी माधवी और जमन सिंह को हो जाती है। जमन सिंह बताते हैं कि हमने पिछले छ: महीनों के दौरान 10 हजार रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ से अधिक बचत की है। बकौल जमन सिंह-`पहले घर वाले कहते थे, कि जीवन बीमा करा लो, तो मैं सोचता कि आखिर इसकी किसà¥à¤¤ मैं कैसे à¤à¤° पाऊंगा, लेकिन आज 250 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की तीन आर.डी. बैंक में करा रखी है। इसके अलावा पानी की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को दà¥à¤°à¥à¤¸à¥à¤¤ करने के लिठकरीब 7 हजार रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पाईप लाईन के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ पर à¤à¥€ खरà¥à¤š किठहैं।´ घर में दà¥à¤§à¤¾à¤°à¥‚ पशॠरखने से जहां उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दूध मिल जाता है, वहीं खेतों के लिठगोबर की खाद à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ हो जाती है। इसके अलावा उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हिमालयन सेवा समिति के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¥€ कैलाश पांडेय की सलाह पर वरà¥à¤®à¥€ कमà¥à¤ªà¥‹à¤¸à¥à¤Ÿ पिट का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कराया है, जिसमें बनने वाली केंचà¥à¤† खाद को सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की खेती में उपयोग करते हैं।
फिलहाल माधवी ने 4 कà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में करीब 4 हजार रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की लागत से पॉलीहाऊस लगाया है। जमन सिंह कहते हैं कि-`घर वालों ने कहा कि पॉलीहाऊस में लगाकर पनà¥à¤¨à¥€ खराब मत कर, लेकिन मैंने उनकी बात नहीं मानी और आज हालात यह है कि आसापास के लोग यहां आकर चà¥à¤ªà¤•à¥‡ से à¤à¤¾à¤‚ककर हमारे पॉलीहाऊस को उतà¥à¤¸à¥à¤•à¤¤à¤¾à¤µà¤¶ देखते हैं।´ हाल ही में जमनसिंह ने आसपास के कà¥à¤› अनà¥à¤¯ लोगों को à¤à¥€ पॉलीहाऊस बनाने में मदद की है। वे कहते हैं कि यदि आदमी को जानकारी है तो à¤à¤• साथ दो फसलें आसानी से उगाई जा सकती हैं। सितंबर के महीने में वे पालक, धनिया, मेथी, समसूर, पà¥à¤¯à¤¾à¤œ, लहसà¥à¤¨, अदरक इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ की खेती करेंगे। जमन सिंह सीमित बाजार और परिवहन की समसà¥à¤¯à¤¾ की बात करते हà¥à¤ कहते हैं कि-`हम इससे à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ कर सकते हैं, लेकिन मारà¥à¤•à¤¿à¤Ÿ नहीं है।´ गरà¥à¤®à¥€ में सूखे के अलावा सदिरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में पड़ने वाला पाला à¤à¥€ फसलों के लिठनà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨à¤¦à¥‡à¤¯ होता है। जमन सिंह मौसम के इन पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ से हमेशा सतरà¥à¤• रहते हैं। गैर सरकारी संसà¥à¤¥à¤¾ `हिमालयन सेवा समिति´ माधवी जैसे उदà¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ à¤à¤µà¤‚ तकनीकी सहयोग पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती है। संसà¥à¤¥à¤¾ से जà¥à¥œà¥‡ सामाजिक कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤µà¥€à¤£ जोशी कहते हैं कि-`वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ मौसमी परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को देखते हà¥à¤ पहाड़ी इलाकों के किसानों के लिठà¤à¤• वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• नीति के तà¥à¤µà¤°à¤¿à¤¤ कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¨ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है।´इसी तरह गà¥à¤°à¤¾à¤® पंचायत डूंगरी की तà¥à¤²à¤¸à¥€ मेहता आम गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ महिलाओं की तरह है संकोची सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µ की हैं, लेकिन परिवार की गाड़ी को आगे बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ के लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने पति राजेश मेहता का समय समय पर न केवल मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ किया, बलà¥à¤•à¤¿ उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम à¤à¥€ किया। उबड़-खाबड़ रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ और पहाड़ी खेतों की पगडंडियों और उनके बीच से होकर कल-कल करके बहती धाराओं के बीच से होते हà¥à¤ हम पहाड़ के à¤à¤• टीले पर बनाठगठतà¥à¤²à¤¸à¥€ के पॉलà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ फारà¥à¤® में जा पहà¥à¤‚चे। लेकिन इतनी चà¥à¤¾à¤ˆ करने के बाद हम हांफने लगे थे। वहां पहà¥à¤‚चने पर हमने देखा कि हरे-à¤à¤°à¥‡ पेड़ों और à¤à¤¾à¥œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के बीच इंसानी बसावट से काफी दूर बांस को चीरकर दो सà¥à¤‚दर सी à¤à¥‹à¤ªà¥œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया गया है। दिन में काम करते समय तनिक विशà¥à¤°à¤¾à¤® और à¤à¥‹à¤œà¤¨ पानी के लिठà¤à¤• à¤à¥‹à¤ªà¥œà¥€ का उपयोग तà¥à¤²à¤¸à¥€ और उनके पति राजेश करते हैं। जबकि दूसरी अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ बड़ी à¤à¥‹à¤ªà¥œà¥€ उनके पालà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ की 120 मà¥à¤°à¥à¤—ियों के लिठहै। हालांकि तà¥à¤²à¤¸à¥€ और उनके पति ने मिलकर पहले इसी à¤à¥‹à¤ªà¥œà¥€ में दो लाख चालीस हजार रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ करà¥à¤œ लेकर डेयरी का काम शà¥à¤°à¥ किया था। लेकिन पहाड़ी इलाका होने से दूध को बाजार तक पहà¥à¤‚चाना टेà¥à¥€ खीर साबित हà¥à¤† और अंतत: हारकर इस काम को बंद करना पड़ा। à¤à¤• बार तो इन पति पितà¥à¤¨ की कमर टूट गई, लेकिन इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं हारी। इस पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— के असफल होने के बाद à¤à¤• सबक तà¥à¤²à¤¸à¥€ को मिल गया था, सो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ करने की सोची जिसके परिवहन में बहà¥à¤¤ अधिक परेशानी न हो। इस बात को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤ तà¥à¤²à¤¸à¥€ ने अपने पति को सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की खेती करने की बात कही। लेकिन अनà¥à¤ªà¤œà¤¾à¤Š जमीन होने के कारण सबसे पहले उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ 10 नाली जमीन पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ और à¤à¤¾à¥œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को काटकर खेती योगà¥à¤¯ बनाने मे मशकà¥à¤•à¤¤ करनी पड़ी। सिंचाई के अà¤à¤¾à¤µ और जंगली जानवरों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ फसलों को नà¥à¤•à¥à¤¸à¤¾à¤¨ पहà¥à¤‚चाये जाने की बात को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखकर तà¥à¤²à¤¸à¥€ और उनके पति राजेश ने मिलकर जमीन के नीचे विकसित होने वाली सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚; जैसे-आलू, अदरक, लहसà¥à¤¨, पà¥à¤¯à¤¾à¤œ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ की खेती करने की सोची। पहली बार उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आलू और लहसà¥à¤¨ की खेती की, लेकिन फसल खराब हो जाने से à¤à¤• बार फिर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ घाटा उठाना पड़ा। लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की खेती नहीं छोड़ी। लेकिन यह बात à¤à¥€ समठआ गई थी, अकेले सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की खेती से काम नहीं चलने वाला। तà¥à¤²à¤¸à¥€ ने इसी बात को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤ पति को पॉलà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ फारà¥à¤® à¤à¥€ शà¥à¤°à¥ करने की सलाह दी। फिर कà¥à¤¯à¤¾ था, राजेश आनन फानन में दरà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ मà¥à¤°à¥à¤—ियों के बचà¥à¤šà¥‡ खरीद लाये। कà¥à¤› ही महीनों में मà¥à¤°à¥à¤—ियां तैयार हो गई। जिसमें कà¥à¤› को तो पहले ही राजेश ने बेचकर उनके चारे का खरà¥à¤š निकाल लिया। इसके बावजूद आज à¤à¥€ 120 मà¥à¤°à¥à¤—ियां तà¥à¤²à¤¸à¥€ और राजेश दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनाये गठउनके बाड़े में रहती हैं। इन मà¥à¤°à¥à¤—ियों से पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ करीब 80 अंडे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जाते हैं, जिसे ले जाकर राजेश पास की कनालीछीना मारà¥à¤•à¤¿à¤Ÿ में 4 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अंडे की दर से बेच देते हैं। इसके अलावा अपने खेत में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने धनिया, टमाटर, कदà¥à¤¦à¥‚, खीरा, ककड़ी जैसी सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¥€ खेती की हà¥à¤ˆ है। इससे à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ करीब 100 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की आमदनी हो जाती है। इसके अलावा उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने घर पर à¤à¤• छोटी सी दà¥à¤•à¤¾à¤¨ à¤à¥€ खोली है, जिसकी देखरेख उनके माता पिता करते हैं। कà¥à¤² मिलाकर फिलहाल राजेश और तà¥à¤²à¤¸à¥€ मिलकर दो से तीन हजार रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¹ बचा लेते हैं, जो सà¥à¤¦à¥‚र गांव के किसी परिवार के लिठà¤à¤• बड़ी बात कही जा सकती है।
आज तà¥à¤²à¤¸à¥€ और राजेश मेहता पर करीब 3 लाख रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का करà¥à¤œ है, लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं हारी है। राजेश दूरदराज के गांव में रहकर à¤à¥€ बेकरी, मतà¥à¤¸à¤¯ पालन, मौन पालन जैसे पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करके गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£à¥‹à¤‚ को दिखाना चाहते हैं। जिससे कि लोगों में निरंतर बॠरही पलायन की पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ को रोका जा सके और लोग अपने गांव में रहकर ही वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ करके जीवन यापन कर सकें। मौसम की मार को देखते हà¥à¤ फिलहाल राजेश सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की खेती के लिठपॉलीहाऊस का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करना चाहते हैं। लेकिन आरà¥à¤¥à¤¿à¤• तंगी उनके आड़े आ रही है। सरकारी अमले को कोसते हà¥à¤ राजेश बताते हैं कि सरकार पॉलीहाऊस के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ के लिठ30 हजार रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ तक अनà¥à¤¦à¤¾à¤¨ देती है। लेकिन इसका लाठजरूरतमंदों को न देकर अनियमित बंदरबांट की जा रही है और लोग खेती करने के बजाय इन पॉलीहाऊसों में à¤à¥‚सा रखते हैं। पà¥à¤°à¤µà¥€à¤£ जोशी à¤à¤¸à¥€ अनियमितताओं पर खासी नराजगी जताते हैं और कहते हैं कि सरकार को गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£à¥‹à¤‚ के जीवन सà¥à¤¤à¤° को ऊंचा उठाने के लिठशà¥à¤°à¥ की गई योजनाओं की परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मॉनीटरिंग की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है, जिससे तà¥à¤²à¤¸à¥€ और राजेश जैसे वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• जरूरतमंदों को फायदा पहà¥à¤‚च सके।
तà¥à¤²à¤¸à¥€ गांव में चलने वाले महिला सà¥à¤µà¤¯à¤‚ सहायता समूह की सदसà¥à¤¯ à¤à¥€ हैं। हिमालयन सेवा समिति के आहà¥à¤µà¤¾à¤¨ पर आज आसपास के दस गांवों महिलाà¤à¤‚ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ कोऑपरेटिव डेयरी परियोजना शà¥à¤°à¥ करने के लिठà¤à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ हà¥à¤ˆ हैं और महिलाओं मिलकर डेयरी चलाने का निरà¥à¤£à¤¯ लिया है। अà¤à¥€ देखना बाकी है कि पहाड़ी महिलाओं की सफलता का यह सफर कितनी दूर तक जा पाता है।
उमाशंकर मिशà¥à¤°/ साà¤à¤¾à¤° : विसà¥à¤«à¥‹à¤Ÿ
माधवी और तà¥à¤²à¤¸à¥€ जैसी महिलाओं को राजà¥à¤¯ सरकार दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सहायता देकर और पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ करना चाहिये। इनका यह काम “पहाड़ में कà¥à¤¯à¤¾ रखा है?” कहने वालों के मà¥à¤‚ह पर करारा तमाचा है। सà¥à¤µà¤°à¥‹à¤œà¤—ार से पहाड़ के पलायन को रोका जा सकता है, सरकार की इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में बहà¥à¤¤ नीतियां हैं, लेकिन लोगों को मालूम नहीं है, इन लोगों को à¤à¥€ यह जानकारी बà¥à¤²à¤¾à¤• नजदीक होने और इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में इनकी रà¥à¤šà¤¿ से मिली होगी। लेकिन इसी बà¥à¤²à¤¾à¤• में पीपली के नेपाल सीमा से लगे सà¥à¤¦à¥‚र गांव हैं, जहां इसकी परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ सरकार को यह धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देना चाहिये कि मोटर हैड के किनारे बसे गांव ही उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ नहीं है, उससे आगे à¤à¥€ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ है। जहां आप वोट मांगते समय पहà¥à¤‚चते हैं?
Great and inspiring success stories.. God help those who help them shelves..I hope very soon tulsi and her husband would pay all their loan.. I agree that Government should look seriously in this matter and monitor all these policies so that they can keep track of all the benefits provided by them is reaching in needy hands …And I am proud of pahadi ladies who not even help their husband and in most of areas of our Pahad man does not earn money in fact only waste it in Drink and playing cards..while Ladies possess double responsibility of earning as well as managing home.I salute Pahadi ladies …