Buransh: Poet’s Favourite
वहां उधर पहाड़ शिखर पर बà¥à¤°à¥‚ंश का फूल खिल गया और मैं समà¤à¥€ कि मेरी पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ बिटिया हीरू आ रही है। अरे फूलों से à¤à¤•à¤à¤• लदे हà¥à¤ बà¥à¤°à¥‚ंश के पेड़ को मैने अपनी बिटिया हीरू का रंगीन पिछौड़ा समठलिया। वह तो बà¥à¤°à¥‚ंश का वृकà¥à¤· है। मेरी बेटी हीरू को तो राजा का पटवारी सोने-चांदी का लोठदिखाकर अपने साथ ले गया है। वह अब आने से रही। अब तो वह तà¤à¥€ आà¤à¤—ी जब बूà¥à¤¾ पटवारी आà¤à¤—ा उसी के साथ वह आà¤à¤—ी।
सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कहानीकार मोहन लाल नेगी की कहानी ‘बà¥à¤°à¤¾à¤‚श की पीड’ की नायिका रूपदेई के मà¥à¤– पर अगर किसी परदेशी ने देख लिया तो उसकी मà¥à¤–ड़ी शरà¥à¤® से à¤à¤¸à¥‡ लाल हो जाती थी जैसे उसके मà¥à¤– पर बà¥à¤°à¥‚ंश का फूल खिल गया हो। पहाड़ में नायिका के कपोलों और होठों को परिà¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ करने के लिठबà¥à¤°à¥‚ंश à¤à¤• लोकपà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ उपनाम है। गà¥à¤µà¤¾à¤² के पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कवि चनà¥à¤¦à¥à¤° मोहन रतूड़ी ने नायिका के ओठों की लालिमा का जिकà¥à¤° कà¥à¤› इस अंदाज में किया है। इस बà¥à¤°à¤¾à¤‚श के फूल ने हाय राम तेरे ओंठकैसे चà¥à¤°à¤¾ लिà¤, चोरया कना ठबà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¨ ओंठतेरा नाराण।