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Jageshwar : The Temple Town Of Uttarakhand

35 km. from Almora, Jageshwar is believed to be the adobe of the twelve jyotirlings.It is situated in a beautiful narrow valley surrounded by magnificent Deodar trees. The complex, consisting of 124 temples and hundreds of statues, is famous not merely for its exquisite craftsmanship, but also for its swayambhu linga named NAGESH. In Jageshwar, fairs are held during Shivratri and in the month of Savan (July-August). The place is visited by both religious as well as nature loving tourists.

जागेश्वर में छोटे-छोटे मन्दिरों का समूह है।

Jageshwar Dham, boasts of more than 200 big and small temples, at the height of about 1,900 mt above sea level. The deodar trees and the fragrant sandal wood plantations lend an ethereal aura to the site. The main Temple in the complex is dedicated to Bal Jageshwar , or Shiva the child. There is another one dedicated to Vridh Jageshwar, situated on the higher slopes. The story goes that as Lord Shiva was meditating at this spot, the village women left their household chores and other duties and walked to watch him, as if in a trance.

Mythological History

आदि गुरु शंकराचार्य जी ने पूरे भारत वर्ष में 12 (द्वादश) शिव ज्योर्तिलिंगो की स्थापना की, जहां पर आदिकाल से शिव जी ने निवास किया या तपस्या की, उन स्थानों को उन्होंने चिन्हित कर विकसित किया था, वह स्थान श्लोक रुप में निम्न हैं –

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालमोकांरममलेश्वरम् ।
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम् ।
सेतुबंधे तु रामेशं, नागेशं दारूकावने ।
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्रयंम्बकं गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ।
ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति

उक्त में से “नागेशं दारुका वने” ही जागेश्वर है, हालांकि द्वारिका के समीप नागेश्वर महादेव मंदिर भी इसका दावा करता है, लेकिन यह निम्न श्लोक से सिद्ध हो जाता है।

हिमाद्रेरूत्तरे पार्श्वे देवदारूवनं परम्
पावनं शंकरस्थानं तत्र् सर्वे शिवार्चिताः।

बद्री दत्त पाण्डे जी द्वारा लिखित “कुमाऊं का इतिहास” में जागेश्वर के बारे में निम्न वर्णन है-

जागेश्वर महादेव मन्दिर का प्रवेश द्वार

“कूर्मांचल में जागीश्वर सबसे बड़ा मंदिर है, जिसमें बहुत सी गूंठें हैं। मानसखंड में भी इसका वर्णन है, यहां अनेक देवता हैं, जिनके मंदिर अन्यत्र भी हैं, यथा तरुण जागीश्वर, वृद्ध जागीश्वर, भांडेश्वर, मृत्युंजय, डंडेश्वर, गडारेश्वर, केदार, बैजनाथ, वैद्यनाथ, भैरवनाथ, चक्रवक्रेश्वर, नीलकंठ, बालेश्वर, विमेश्वर, बागीश्वर, बाणीश्वर, मुक्तेश्वर, डुंडेश्वर, कमलेश्वर, हाटेश्वर, पाताल भुवनेश्वर, भैरवेश्वर, लक्ष्मीश्वर, पंचकेदार, बह्रकपाल, क्षेत्रपाल या समद्यो तथा यह शक्तियां भी पूजीं जाती हैं- पुष्टि, चंडिका, लक्ष्मी, नारायणी, शीतला एवं महाकाली। वृद्ध जागीश्वर ऊपर चोटी में चार मील पर है और क्षेत्रपाल लगभग ५ मील पर है। यह मंदिर अल्मोड़ा और गंगोली के बीच में है। अल्मोड़ा से उत्तर की ओर १६ मील पर यह मंदिर है। यहां महादेव ज्योर्तिलिंग के रुप में पूजे जाते हैं। सबसे बड़े मंदिर जागीश्वर, मृत्युंजय और डंडेश्वर हैं, कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने मृत्युंजय का मंदिर वहां आकर बनवाया था तथा सम्राट शालिवाहन ने जागीश्वर का मंदिर बनवाया। पश्चात में शंकराचार्य ने आकर इन तमाम मंदिरों की फिर से प्रतिष्ठा करवाई तथा कत्यूरी राजाओं ने भी इसका जीर्णोद्धार किया।”

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जागेश्वर मन्दिर का शिखर

“इसके पश्चात, दक्ष प्रजापति ने कनखल के समीप यज्ञ किया। वहां शिव के अतिरिक्त सबको बुलाया, शिव की पत्नी काली बिना बुलाये पिता के यहां गई और वहां अपना और अपने पति का तिरस्कार देखकर रोष से भस्म हो गई। शिव ने कैलाश से यह बात जान दक्ष प्रजापति का यज्ञ विध्वंस कर सबका नाश कर दिया और चिता की भस्म से शरीर को आच्छादित कर झांकर सैम ( जागेश्वर से करीब ५ कि०मी० गरुड़ाबांज नामक स्थान पर) में तपस्या की। झांकर सैम को तब भी देवदार वन से आच्छादित बताया गया है। झांकर सैम जागेश्वर पर्वत में है। कुमाऊं के इस वन में वशिष्ठ मुनि अपनी पत्नियों के साथ रहते थे। एक दिन स्त्रियों ने जंगल में कुशा और समिधा एकत्र करते हुये शिव को राख मले नग्नावस्था में तपस्या करते देखा, गले में सांप की माला थी, आंखें बंद, मौन धारण किये हुये, चित्त उनका काली के शोक से संतप्त था। स्त्रियां उनके सौन्दर्य को देखकर उनके चारों ओर एकत्र हो गईं, सप्तॠषियों की सातों स्त्रियां जब रात में ना लौटी तो वे प्रातःकाल उनको ढूंढने को गये, देखा तो शिव समाधि लिये बैठे है और स्त्रियां उनके चारों ओर बेहोश पड़ी हैं। ॠषियों ने यह विचार कर लिया कि शिव ने उनकी स्त्रियों की बेइज्जती की है और शिव को श्राप दिया कि “जिस इन्द्रिय यानी वस्तु से तुमने यह अनौचित्य किया है वह (लिंग) भूमि में गिर जायेगा” तब शिव ने कहा कि “ तुमने मुझे अकारण ही श्राप दिया है, लेकिन तुमने मुझे सशंकित अवस्था में पाया है, इसलिये तुम्हारे श्राप का मैं विरोध नहीं करुंगा, मेरा लिंग पृथ्वी में गिरेगा। तुम सातों भी सप्तर्षि तारों के रुप में आकाश में लटके हुये चमकोगे।” अतः शिव ने श्राप के अनुसार अपने लिंग को पृथ्वी में गिराया, सारी पृथ्वी लिंग से ढक गई, गंधर्व व देवताओं ने महादेव की तपस्या की और उन्होंने लिंग का नाम यागीश या यागीश्वर कहा और वे ऋषि सप्तर्षि कहलाये। श्राप के कारण शिव का लिंग जमीन पर गिर गया और सारी पृथ्वी लिंग के भार से दबने लगी, तब ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, सूर्य, चंद्र और अन्य देवगण जो जागेश्वर में शिव की स्तुति कर रहे थे, अपना-अपना अंश और शक्तियां वहां छोड़्कर चले गये, तब देवताओं ने लिंग का आदि अन्त जानने का प्रयास किया, ब्रह्मा, विष्णु और कपिल मुनि भी इसका उत्तर न दे सके, विष्णु पाताल तक भी गये लेकिन उसका अंत न पा सके, तब विष्णु शिव के पास गये औए उनसे अनुनय विनय के बाद यह निश्चय हुआ कि विष्णु लिंग को सुदर्शन चक्र से काटें और उसे तमाम खंडों में बांट दें। अंततः जागेश्वर में लिंग को काटा गया और उसे नौ खंडों में बांटा गया तथा शिव की पूजा लिंग रुप में शुरु की गई।

१-हिमाद्रि खंड
२- मानस खंड
३- केदार खंड
४- पाताल खंड – जहां नाग लोग लिंग की पूजा करते हैं।
५- कैलाश खंड
६- काशी खंड- जहां विश्वनाथ जी हैं, बनारस
७- रेवा खंड- जहां रेवा नदी है. जहां पर नारदेश्वर के रुप में लिंग पूजा होती है, शिवलिंग का नाम रामेश्वरम है।
८- ब्रह्मोत्तर खंड- जहां गोकर्णेश्वर महादेव हैं, कनारा जिला मुंबई।
९- नगर खंड- जिसमें उज्जैन नगरी है।”

उक्त से यह भी सिद्ध होता है कि महादेव की लिंग रुप में पूजा जागेश्वर से ही प्रारम्भ हुई।

पुरातत्वविद डा० पुरोहित के अनुसार यहां पर इतने मंदिर होने के कारण बताते हुये कहते हैं कि “यहां पर पहले १५० मंदिरों का समूह था और यह मंदिर समूह होने का कारण यह है कि पहले समय में यहां पर राजा लोग और स्थानीय लोग मन्नत मांगते थे और मन्नत मांगे जाने पर मंदिर निर्माण का वचन देते थे और मन्नत पूरी होने पर मंदिरों का निर्माण अपनी हैसियत के अनुसार करवाते थे। इस कारण यहां पर कई छोटे और बड़े मंदिर हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि यहां पर सबसे प्राचीन मंदिर मुख्य देवालय और महामृत्युंजय मंदिर हैं, इनका निर्माण कत्यूरी शासकों द्वारा ८ वीं और ९ वीं शताब्दी में करवाया गया था।
जनश्रुति यह भी है कि भगवान राम के पुत्र लव और कुश ने यहां पर एक विशाल यज्ञ करवाया था, जिसमें कई देवी-देवताओं ने भी भाग लिया था, इस कारण यहां पर यज्ञ में भाग लेने वाले देवी-देवताओं के मंदिरों का भी निर्माण करवाया गया। यह भी कहा जाता है कि मुख्य मंदिर का निर्माण स्वयं देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा जी ने किया था और सम्राट विक्रमादित्य ने इस मंदिर का जीर्णॊंद्धार किया था

How To Reach

Rail- Nearest head is Kathgodam 125 kms.

Road- Directly linked with Almora-35 kms., Haldwani-131 kms. Pithoragarh 88 Kms. and Kathgodam, private jeeps and taxis are also available.

What To See

Vridh Jageshwar(वृद्ध जागेश्वर)- For splendid Himalayas view and an old Temple of OLD SHIVA for the interest of the tourist.

Dhandeshwar(दण्डेश्वर)- A ancient temple of lord shiva, where shiva came at a punishment.

Mirtola Ashram(मिरतोला आश्रम)- A centre of spirutual and natural beauty, this ashram lures many foreign disciples. It is a 10 kms. trek from Jageshwar to Shokiathal and Mirtola aashram. One can reach Mirtola ashram by road till Vridh Jageshwar, then trek 2 kms.

Where To Stay

  • K.M.V.N. Tourist rest house – 05962-263028
  • Forest Rest House
  • Paying Guest House
  • There is one Tourist Rest house and a few Dharamshalas here and about 2 km’s by trek from here is Vridh Jageshwar which provides a splendid view of the Himalayas from this old Temple.

For More and detailed information of this temple, you can visit here जागेश्वर मंदिर

3 responses to “Jageshwar : The Temple Town Of Uttarakhand”

  1. घिंघारु

    जागेश्वर का महातम्य बहुत है, निःसंतान दंपत्ति भी श्रावण पूर्णिमा के दिन यहां पर आते हैं और रात भर जागरण कर हाथ में दीपक जलाकर रखते हैं और अगले साल तक उनकी गोद भर जाती है।

  2. Chetan Pandey

    ॐ नमः शिवाय

  3. अजय कुमार

    ॐ नमः शिवाय

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