चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह राही: उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की à¤à¤• सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• थाती
(सà¥à¤µà¥¦ चनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह राही जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, वह किसी बोली à¤à¤¾à¤·à¤¾ से हटकर पूरे उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के गà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¾ और लोककरà¥à¤®à¥€ थे। दिनांक १० जनवरी को उनकी पà¥à¤£à¥à¤¯ तिथि पर याद कर रहे हैं, वरिषà¥à¤ पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° शà¥à¤°à¥€ चारॠतिवारी जी) रात के साà¥à¥‡ बारह बजे उनका फोन आया। बोले, ‘तà¥à¤¯à¤¾à¥œà¤œà¥à¤¯à¥‚ सै गै छा […]