(उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को लेकर à¤à¤• नई बहस शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆ है। सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ जरूरतों और विकास के लिठइसको पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ देने की टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¥‹à¤‚ में बातें होती रही हैं। राजà¥à¤¯ में बोली जाने वाली मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤: तीन बोलियों कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली और जौनसारी को संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में शामिल करने की बात à¤à¥€ उठती रही है। इन दिनों नई दिलà¥à¤²à¥€ से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ ‘जनपकà¥à¤· आजकल’ पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इसे लोक à¤à¤¾à¤·à¤¾ अà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨ के रूप में चलाया जा रहा है, जिसे हम साà¤à¤¾à¤° यहां पर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ कर रहे हैं। इसकी पहली कड़ी में आप लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ सिंह बिषà¥à¤Ÿ “बटरोही’ जी का लेख , दूसरी कड़ी में बदà¥à¤°à¥€à¤¦à¤¤à¥à¤¤ कसनियाल का लेख तथा तीसरी कड़ी में शà¥à¤°à¥€ à¤à¤—वती पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ नौटियाल का लेख पॠचà¥à¤•à¥‡ हैं, इसकी चौथी कड़ी में साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° शà¥à¤°à¥€ पूरन चनà¥à¤¦à¥à¤° कांडपाल जी का लेख पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ है।)
मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ जिसे दà¥à¤§à¤¬à¥‹à¤²à¥€ à¤à¥€ कहते हैं अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ वह à¤à¤¾à¤·à¤¾ जो हम अपनी मां के मà¥à¤– से सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ हैं, फिर बोलते हैं। यहां पर अà¤à¥€ लिखने का पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ नहीं है, केवल बोलने का है। बचà¥à¤šà¤¾ सà¥à¤•à¥‚ल जाने से पहले ही इस à¤à¤¾à¤·à¤¾ को बोलता है। दूसरी है राजà¤à¤¾à¤·à¤¾- जो कि संविधान में सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है, ‘संघ की राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ और लिपि देवनागरी होगी। हमारा देश २८ राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ और ॠकेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ का संघ है। जिन राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में हिनà¥à¤¦à¥€ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ में नहीं है, वहां कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ के साथ हिनà¥à¤¦à¥€ पढ़ायी जाती है। हमारे संविधान में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ को à¤à¥€ राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ का दरà¥à¤œà¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। तीसरी है राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤à¤¾à¤·à¤¾-हमारे देश में हिनà¥à¤¦à¥€ अघोषित राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤à¤¾à¤·à¤¾ है, जबकि संविधान में यह आज à¤à¥€ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤à¤¾à¤·à¤¾ नहीं है। हिनà¥à¤¦à¥€ हमारे राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की पहचान है। यह पूरे राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की संपरà¥à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾ à¤à¥€ है। चौथी है संपरà¥à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾- हिनà¥à¤¦à¥€ के साथ ही अंगेà¥à¤°à¤œà¥€ आज à¤à¥€ हमारे विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ में संपरà¥à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾ या ‘लिंक à¤à¤¾à¤·à¤¾â€™ का कारà¥à¤¯ कर रही है। वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ को देखते हà¥à¤ हमारे देश में ‘तà¥à¤°à¤¿à¤à¤¾à¤·à¤¾ फारà¥à¤®à¥‚ला’ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ में है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤-मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ (सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾), हिनà¥à¤¦à¥€ और अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€à¥¤ कई पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ में पà¥à¤°à¤¾à¤‚तीय à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में राजकाज à¤à¥€ चल रहा है, परनà¥à¤¤à¥ इन राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का केनà¥à¤¦à¥à¤°, दूसरे पà¥à¤°à¤¾à¤‚तों, हिनà¥à¤¦à¥€ या अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में संपरà¥à¤• होता है। देश में जिन २४ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को संवैधानिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है उनका उलà¥à¤²à¥‡à¤– संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में है। ये इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° हैं- १.असमिया, २.ओडीसी, ३.उरà¥à¤¦à¥‚, ४.कनà¥à¤¨à¤¡à¤¼, ५.कशà¥à¤®à¥€à¤°à¥€, ६.गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€, à¥.तमिल, ८.तेलà¥à¤—ू, ९.पंजाबी, १०.बंगला, ११.मराठी, १२.मलयालम, १३.संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤, १४.सिनà¥à¤§à¥€, १५. हिनà¥à¤¦à¥€, १६.मणिपà¥à¤°à¥€, १à¥.नेपाली, १८.कोंकणी, १९.मैथिली, २०.संथाली, २१. बोडो, २२. डोगरी, २३.राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€, २४.तà¥à¤¡à¥‚।
इन चौबीस à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में हिनà¥à¤¦à¥€, मराठी, संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤, राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€, मैथिली, नेपाली की लिपि देवनागरी है और दस राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ à¤à¥€ हिनà¥à¤¦à¥€ है। यहां कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गढ़वाली मà¥à¤–à¥à¤¯ मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ है, जिनकी लिपि देवनागरी है। राजà¥à¤¯ में जौनसारी, बà¥à¤•à¥à¤¸à¤¾, थरूआटी, रं (à¤à¥‹à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾) और राजी (बनरौत) लोकà¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ बोलने वाले à¤à¥€ हैं, जिनकी संखà¥à¤¯à¤¾ अधिक नहीं है। कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गढ़वाली बोलने वालों की संखà¥à¤¯à¤¾ लगà¤à¤— पचà¥à¤šà¥€à¤¸-पचà¥à¤šà¥€à¤¸ लाख है, जबकि इन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को समà¤à¤¨à¥‡ वालों की संखà¥à¤¯à¤¾ कहीं अधिक है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ बोलने वाले गढ़वाली और गढ़वाली बोलने वाले कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ समà¤à¤¤à¥‡ हैं। राजà¥à¤¯ में पंजाबी, उरà¥à¤¦à¥‚ आदि à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में हैं, मगर ये पहले से ही आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में शामिल हैं। कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गढ़वाली राजà¥à¤¯ की दो पà¥à¤°à¤®à¥à¤– मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ हैं और यहां के अधिकांश लोगों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बोली à¤à¥€ जाती हैं। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में रहने वाले लगà¤à¤— सà¤à¥€ लोग इन दोनों में से किसी à¤à¤• को अचà¥à¤›à¥€ तरह समà¤à¤¤à¥‡ हैं। इन दोनों à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का लगà¤à¤— सà¤à¥€ विधाओं में साहितà¥à¤¯ उपलबà¥à¤§ है। ये दोनों ही यहां के जन की बोलियां à¤à¥€ हैं। इतना होने के बावजूद à¤à¥€ इन दोनों à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को अà¤à¥€ तक आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ नहीं मिला है। गढ़वाली की तरह कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ की शबà¥à¤¦ समà¥à¤ªà¤¦à¤¾ à¤à¥€ कम नहीं है। शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ से à¤à¤°à¤ªà¥‚र हैं ये दोनों, न लेखकों की कमी न पाठकों की। à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ और पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤“ं का पाठकों के पास निरंतर पहà¥à¤‚चने के आधार पर कहा जा सकता है। कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ के à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤µà¤¿à¤¦à¥ पà¥à¤°à¥‹. केशवदतà¥à¤¤ रà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ के लेख (कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ मासिक पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ ‘पहरू’ नवमà¥à¤¬à¤° २०१० अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤) के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में दस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ बोली जाती है। पूरà¥à¤µà¥€ à¤à¤¾à¤— में चार-कà¥à¤®à¤¾à¤ˆ, सोराली, सीराली और असà¥à¤•à¥‹à¤Ÿà¥€ तथा पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ à¤à¤¾à¤— में छह- खसपरà¥à¤šà¤¿à¤¯à¤¾, चौगरà¥à¤–िया, गडनेई, दनपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾, पछाई और रौचाबैसी, ये दसों पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ के बोलने के लहजे में तनिक अंतर है। कà¥à¤› शबà¥à¤¦-समà¥à¤ªà¤¦à¤¾ में à¤à¥€ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ है, परनà¥à¤¤à¥ इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समà¤à¤¨à¥‡ में कहीं पर à¤à¥€ किसी को कोई परेशानी नहीं होती है। à¤à¤¾à¤·à¤¾ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¥‹. शेर सिंह बिषà¥à¤Ÿ के वà¥à¤¯à¤¾à¤–ान के आधार पर कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ की शबà¥à¤¦-समà¥à¤ªà¤¦à¤¾ को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ मानकीकरण की तरफ अगà¥à¤°à¤¸à¤° हैं। किसी à¤à¥€ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में जो à¤à¤¾à¤·à¤¾ बोली जाय वह तो वैसे ही बोली जाà¤à¤—ी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वह दà¥à¤§à¤¬à¥‹à¤²à¥€ है, परनà¥à¤¤à¥ लिखने के लिठ‘पछाइ’ कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ (अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• बोली जाने वाली) का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤µà¤¿à¤¦à¥‹à¤‚ ने सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤°à¤¾ है। à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤µà¤¿à¤¦à¥ इस बात पर à¤à¥€ à¤à¤•à¤®à¤¤ हैं कि ‘पछाइ’ के अलावा अनà¥à¤¯ नौ कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को à¤à¥€ नजरअंदाज नहीं किया जाà¤à¤—ा, परनà¥à¤¤à¥ वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ के हिसाब से लेखन में ‘पछाइ’ का ही पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— होगा। बहरहाल, इस बात पर किसी को कोई आपतà¥à¤¤à¤¿ नहीं है। बहस का मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ तो à¤à¤¾à¤·à¤¾ को आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ दिलाने का है। इसके लिठà¤à¤¾à¤·à¤¾ की à¤à¤•à¤°à¥‚पता अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° की हà¥à¤¯à¥€ à¤à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾ का पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥‚प अति आवशà¥à¤¯à¤• है, जिसे संविधान की आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मिले।
हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¥€ तो कई रूपों (पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°) से लिखी गयी- बृज, अवधी, रूहेलखणà¥à¤¡à¥€, मैथिली आदि, मगर अंत में सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° की गई हिनà¥à¤¦à¥€ की ‘खड़ी बोली’ जो आज दस राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ है और पूरे राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की संपरà¥à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾ है। जहां तक उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ लोक à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं की लिपि का पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ है, ये à¤à¥€ देवनागरी लिपि में ही लिपिबदà¥à¤§ है। गढ़वाली में लिखे गठसाहितà¥à¤¯ की à¤à¥€ कमी नहीं है। कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गढ़वाली के शबà¥à¤¦à¤•à¥‹à¤¶à¥‹à¤‚ की à¤à¥€ कमी नहीं है। डॉ. रà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ और डॉ. नारायण दतà¥à¤¤ पालीवाल के कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ शबà¥à¤¦à¤•à¥‹à¤¶ उपलबà¥à¤§ है। गढ़वाली, जौनसारी में à¤à¥€ शबà¥à¤¦à¤•à¥‹à¤¶ उपलबà¥à¤§ हैं। वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ और वृहद शबà¥à¤¦à¤•à¥‹à¤¶à¥‹à¤‚ की रचनाà¤à¤‚ à¤à¥€ हो रही हैं। रजनी कà¥à¤•à¤°à¥‡à¤¤à¥€ रचित ‘गढ़वाली à¤à¤¾à¤·à¤¾ का वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£â€™ २०१० में पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ हà¥à¤† है। ‘पहरू’ पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ में à¤à¤• पृषà¥à¤ बतौर शबà¥à¤¦à¤•à¥‹à¤¶ ही छप रहा है। १२,१३ और १४ नवमà¥à¤¬à¤° २०१० को अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ में आयोजित तà¥à¤°à¤¿à¤¦à¤¿à¤µà¤¸à¥€à¤¯ कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ समà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ तथा १६,१ॠऔर १८ अपà¥à¤°à¥ˆà¤² २०११ को देहरादून में आयोजित पà¥à¤°à¤¥à¤® उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ लोकà¤à¤¾à¤·à¤¾ समà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ में कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गढ़वाली à¤à¤¾à¤·à¤¾ के इतिहास, विकास, सà¥à¤µà¤°à¥‚प, लोक सहितà¥à¤¯, वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£, मानकीकरण आदि विषयों पर विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ वारà¥à¤¤à¤¾ हà¥à¤¯à¥€à¥¤ इस बात का à¤à¥€ उलà¥à¤²à¥‡à¤– हà¥à¤† कि लगà¤à¤— आठवीं से सोलहवीं शताबà¥à¤¦à¥€ तक चमà¥à¤ªà¤¾à¤µà¤¤ कूरà¥à¤®à¤¾à¤šà¤² की राजधानी रहा और कूरà¥à¤®à¤¾à¤šà¤²à¥€ यहां के राजकाज की à¤à¤¾à¤·à¤¾ रही।
यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है कि किसी à¤à¥€ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में कोई à¤à¤¾à¤·à¤¾ रातोंरात नहीं पनपती, यह सदियों से चलायमान होती है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में पहले कौन सी à¤à¤¾à¤·à¤¾ बोली जाती थी? अकà¥à¤°à¤¾à¤‚ता आया और चला गया, à¤à¤¾à¤·à¤¾ तो पहले से ही थी। यही कारण है कि इन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं की शबà¥à¤¦-समà¥à¤ªà¤¦à¤¾ बड़ी धनवान है। इसी आधार पर साहितà¥à¤¯ अकादमी ने कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गढ़वाली को मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ à¤à¥€ दी है। संविधान में सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है कि ‘पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• राजà¥à¤¯ और राजà¥à¤¯ के à¤à¥€à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤§à¤¿à¤•à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤ˆ अलà¥à¤ªà¤¸à¤‚खà¥à¤¯à¤•-वरà¥à¤—ों के बालकों को शिकà¥à¤·à¤¾ के पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¤à¤° पर मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ में शिकà¥à¤·à¤¾ की पà¥à¤°à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करेगा और राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¤à¤¿ किसी राजà¥à¤¯ को à¤à¤¸à¥‡ निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ दे सकेगा जो वह à¤à¤¸à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं का उपलबà¥à¤§ सà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ कराने के लिठआवशà¥à¤¯à¤• या उचित समà¤à¤¤à¤¾ है।’
उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ सरकार संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ को हिनà¥à¤¦à¥€ के बाद दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ दरà¥à¤œà¤¾ देकर फूले नहीं समा रही है। कà¥à¤¯à¤¾ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ राजà¥à¤¯ में हमारी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ है? कà¥à¤¯à¤¾ यह जन-जन की बोली है? कà¥à¤¯à¤¾ यह राजà¥à¤¯ में आम पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में आ रही है? इन तीनों पà¥à¤°à¤¶à¥à¤°à¥‹à¤‚ का उतà¥à¤¤à¤° नहीं है। अब पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उठता है कà¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€-गढ़वाली राजà¥à¤¯ की मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ है? कà¥à¤¯à¤¾ ये जन-जन की à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ हैं? कà¥à¤¯à¤¾ इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ राजà¥à¤¯ में आम वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ बोलता-समà¤à¤¤à¤¾ है? इन तीनों पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ का उतà¥à¤¤à¤° हां है। यह सब जानते हà¥à¤ à¤à¥€ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ सरकार ने सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के बजाय संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ को दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ दरà¥à¤œà¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ दिया? यह पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ राजà¥à¤¯ के कोने-कोने में गूंज रहा है और सरकार इसका उतà¥à¤¤à¤° नहीं दे पा रही है। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ को दूसरा दरà¥à¤œà¤¾ देकर सरकार ने आम आदमी के हित की बात नहीं सोची। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ राजà¥à¤¯ में आम बोलचाल की à¤à¤¾à¤·à¤¾ नहीं है, यह केवल करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤£à¥à¤¡ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ है। सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ होने का सà¥à¤¤à¤° इसे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। यह आठवीं अनà¥à¤¸à¥‚ची में à¤à¥€ है। इसका साहितà¥à¤¯ à¤à¥€ à¤à¤°à¤ªà¥‚र है, परनà¥à¤¤à¥ यह जन की à¤à¤¾à¤·à¤¾ नहीं है। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का कोई विरोधी à¤à¥€ नहीं है। यह माधà¥à¤¯à¤®à¤¿à¤• ककà¥à¤·à¤¾à¤“ं में पढ़ाई जा रही है। कà¥à¤› लोग सà¥à¤µà¥‡à¤šà¥à¤›à¤¾ से इसे अगली ककà¥à¤·à¤¾à¤“ं में à¤à¥€ पढ़ रहे हैं। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में जो करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤£à¥à¤¡ हमारे घरों में होता है उसे वह à¤à¥€ नहीं समà¤à¤¤à¤¾ जो इसे पढ़ता-बांचता या इसका गलत उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करता है। हमें संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ से सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ à¤à¥€ है, परनà¥à¤¤à¥ जमीनी सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करनी ही पड़ेगी। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ को उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का दरà¥à¤œà¤¾ देने से राजà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को कà¥à¤¯à¤¾ लाठहà¥à¤†, जिससे वह राजà¥à¤¯ सरकार की पीठथपथपाà¤? जनà¤à¤¾à¤·à¤¾ न होते हà¥à¤ à¤à¥€ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का मंतà¥à¤°à¥‹à¤šà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ कम नहीं हà¥à¤† है। सरकार को सलाह देने वाले à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤µà¤¿à¤¦à¥‹à¤‚ को मà¥à¤ à¥à¤ ी पर लोगों के संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥€à¤•à¤°à¤£ के लिठलाखों कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€ और गढ़वाली बोलने-समà¤à¤¨à¥‡, लिखने-पढऩे वालों के साथ अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯ नहीं करना चाहिà¤à¥¤ शीघà¥à¤° ही इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ राजà¥à¤¯ में दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का दरà¥à¤œà¤¾ देना चाहिà¤à¥¤ यदि राजà¥à¤¯ सरकार कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€-गढ़वाली को राजà¥à¤¯ में दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ दरà¥à¤œà¤¾ नहीं देगी तो इसका पठन-पाठन पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ माधà¥à¤¯à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¤à¤° पर सà¥à¤•à¥‚लों में नहीं हो सकेगा। अपने राजà¥à¤¯ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ को बचाने के लिठदेश के छोटे से राजà¥à¤¯ गोवा ने इसी वरà¥à¤· से पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤• ककà¥à¤·à¤¾à¤“ं में इसे पढ़ाठजाने का आदेश जारी किया है। देश के सà¤à¥€ पहाड़ी राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ सरकारी संरकà¥à¤·à¤£ में फल-फूल रही हैं। à¤à¤¾à¤·à¤¾ पढ़ायी नहीं जाà¤à¤—ी तो धीरे-धीरे उसकी वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ कम हो जाà¤à¤—ी। कà¤à¥€-कà¤à¥€ देखने में आता है कि सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बाजार या बारात में, सà¤à¤¾ या मà¥à¤²à¤¾à¤•à¤¾à¤¤ में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ की वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ घट रही है। साकà¥à¤·à¤°à¤¤à¤¾ दर बढऩे के साथ बचà¥à¤šà¥‡ उस à¤à¤¾à¤·à¤¾ में अधिक बोलने लगे हैं जिसमें वे पढ़ायी करते हैं अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ हिनà¥à¤¦à¥€ की वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ बढ़ रही है। हिनà¥à¤¦à¥€ तो राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ है ही और आम पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ में à¤à¥€ है। जिन लोगों को यह शंका है कि कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€-गढ़वाली के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° से हिनà¥à¤¦à¥€ को धकà¥à¤•à¤¾ लगेगा, यह उनका संकà¥à¤šà¤¿à¤¤ दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥‹à¤£ है। हिनà¥à¤¦à¥€ राजà¥à¤¯ की जनपà¥à¤°à¤¿à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ है। उसका अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ à¤à¥€ हो रहा है और वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ à¤à¥€ बनी हà¥à¤¯à¥€ है। फिर हिनà¥à¤¦à¥€ को धकà¥à¤•à¤¾ लगने का हौवा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ खड़ा किया जाता है? कà¥à¤› लोग राजà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को अपनी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अरà¥à¤šà¤¿ दिखाने के नà¤-नठहथकंडे अपनाते हैं। यह ठीक है कि देश के किसी à¤à¥€ राजà¥à¤¯ में उस राजà¥à¤¯ के वाशिनà¥à¤¦à¥‹à¤‚ को अपनी जà¥à¤¬à¤¾à¤¨ में ही बोलने की अनिवारà¥à¤¯à¤¤à¤¾ नहीं है, परनà¥à¤¤à¥ उस राजà¥à¤¯ की मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ को पलà¥à¤²à¤µà¤¿à¤¤- पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¿à¤¤ करना à¤à¥€ उस राजà¥à¤¯ की सरकार का संवैधानिक करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है। राजà¥à¤¯ के वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ मà¥à¤–à¥à¤¯à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ à¤à¥€ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के अà¤à¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ नहीं हैं। उनकी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ गढ़वाली है। राजà¥à¤¯ में चà¥à¤¨à¤¾à¤µ की सà¥à¤—बà¥à¤—ाहट चल पड़ी है। अपने बड़े-बड़े विजà¥à¤žà¤¾à¤ªà¤¨à¥‹à¤‚ में सरकार à¤à¤¾à¤·à¤¾ की चरà¥à¤šà¤¾ नहीं करती। à¤à¤¾à¤·à¤¾ को जिनà¥à¤¦à¤¾ रखने के लिठयह अहम मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ है। इस मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ को राजनीतिक दलों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपने घोषणा पतà¥à¤° में सरà¥à¤µà¥‹à¤ªà¤°à¤¿ उलà¥à¤²à¥‡à¤– करने की राजà¥à¤¯ की जनता पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रही है। इस बात की सराहना की जानी चाहिठकि उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के कवि, गीतकार, गायक, साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° और पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° अपनी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ को समृदà¥à¤§ करने में लगे हैं। घरों में à¤à¥€ इन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में निरंतरता बनी रहनी चाहिà¤à¥¤ विवाह-कारà¥à¤¡ और निमंतà¥à¤°à¤£-सूचना पतà¥à¤° उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में छपने चाहिà¤à¥¤ हमें à¤à¤• नहीं, अनेक à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ सीखनी चाहिà¤, परनà¥à¤¤à¥ सबसे अचà¥à¤›à¥€ बात तो यह होगी कि हम अपनी मां को न à¤à¥‚लें, अपनी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ को न à¤à¥‚लें। à¤à¤¾à¤·à¤¾ तो जà¥à¤¬à¤¾à¤¨ से जिनà¥à¤¦à¤¾ रहती है, लिखित विधाà¤à¤‚ तो उसे संजोठरखती हैं। अत: हमें अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾ बोलने में पीछे नहीं हटना चाहिठऔर उसके विकास, सृजन और संवरà¥à¤§à¤¨ में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिà¤à¥¤ राजà¥à¤¯ सरकार को à¤à¥€ अब मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को ‘दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ दरà¥à¤œà¤¾â€™ देने में देर नहीं करनी चाहिà¤à¥¤
[…] का लेख तथा चौथी कड़ी में साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° शà¥à¤°à¥€ पूरन चनà¥à¤¦à¥à¤° कांडपाल जी का लेख à¤à¤µà¤‚ पांचवीं कड़ी में साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° […]
उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ पर जो à¤à¥€ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ लिखी जाती हैं, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¨à¥€, गढ़वाली और जौनसारी में à¤à¥€ लिखा जाना चाहिये।